UP में सबसे ज्यादा 46.36 प्रतिशत बच्चे कुपोषित, 55.6% भारतीय स्वस्थ आहार का खर्च उठाने में असमर्थ: कुपोषण पर लोकसभा में सरकार
“बौनेपन से तात्पर्य उन बच्चों से है जो अपनी उम्र के हिसाब से बहुत छोटे होते हैं। ऐसा आमतौर पर लंबे वक्त तक कुपोषण के कारण होता है। इसी तरह कमजोर बच्चों का तात्पर्य उन बच्चों से है, जो अपनी लंबाई के हिसाब से बहुत पतले होते हैं। जो गंभीर रूप से कम वजन के कारण तीव्र कुपोषण का संकेत देते हैं। वहीं, एक वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार, 55.6 प्रतिशत भारतीय स्वस्थ आहार का खर्च उठाने में असमर्थ हैं।”
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, बच्चों में सबसे अधिक बौनेपन का प्रतिशत उत्तर प्रदेश में निकला है, जो कि 46.36 प्रतिशत है। वहीं लक्षद्वीप दूसरे नंबर पर है। यहां 13.22 प्रतिशत बच्चे गंभीर रूप से कुषोषित पाए गए हैं। जबकि 0-5 वर्ष आयु वर्ग के 17 प्रतिशत बच्चे कम वजन के पाए गए, वहीं बौनेपन का प्रतिशत 36 प्रतिशत और कमजोरी का प्रतिशत 6 प्रतिशत है। दरअसल, बौनेपन से तात्पर्य उन बच्चों से है जो अपनी उम्र के हिसाब से बहुत छोटे होते हैं। ऐसा आमतौर पर लंबे वक्त तक कुपोषण के कारण होता है। इसी तरह कमजोर बच्चों का तात्पर्य उन बच्चों से है, जो अपनी लंबाई के हिसाब से बहुत पतले होते हैं।
कमजोर, बौने बच्चों के बारे में यह जानकारी लोकसभा में दी गई। देश में पांच साल तक के 37 प्रतिशत बच्चे बौने तथा 17 प्रतिशत पांच साल तक के बच्चे कम वजन वाले पाए गए। जी हां, भारत में जन्म लेने वाले 0 से पांच साल तक के बच्चों में से 36 प्रतिशत बौने हैं। उनकी ऊंचाई तय मानकों से कम पाई गई। ऐसा हम नहीं कर रहे हैं बल्कि स्वयं महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय ने ये दावा किया है। बताया कि इस आयुवर्ग के करीब 17 प्रतिशत बच्चे कम वजन वाले पाए गए जबकि छह प्रतिशत कमजोर की श्रेणी पाए गए। यह तीनों लक्षण कुपोषण का शिकार बच्चों में पाए जाते हैं। देश में सबसे ज्यादा बौने बच्चे उत्तर प्रदेश में है। इसी तर्ज पर मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा कम वजन वाले बच्चे हैं।
UP में बौने बच्चों की संख्या देश में सर्वाधिक…
महिला एवं बाल विकास मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि जून 2024 के ‘पोषण ट्रैकर’ के आंकड़ों के अनुसार, छह वर्ष से कम उम्र के लगभग 8.57 करोड़ बच्चों की लंबाई मापी गई, जिन में से 35 प्रतिशत बौने पाए गए वहीं 17 प्रतिशत कम वजन वाले और पांच वर्ष से कम उम्र के छह प्रतिशत बच्चे कम ताकत वाले पाए गए। उन्होंने राज्यवार आंकड़े साझा करते हुए बताया कि बौनेपन की सर्वाधिक 46.36 प्रतिशत दर उत्तर प्रदेश में है, जिसके बाद लक्षद्वीप में यह दर 46.31 प्रतिशत है।
मध्य प्रदेश में कम वजन वाले बच्चे ज्यादा…
आंकड़ों के अनुसार, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में बौनेपन की दरें क्रमशः 44.59 प्रतिशत और 41.61 प्रतिशत दर्ज की गई हैं। बिहार और गुजरात में बच्चों में शक्तिक्षीणता की दर क्रमशः 9.81 प्रतिशत और 9.16 प्रतिशत है। कम वजन वाले बच्चों के मामले में, मध्य प्रदेश 26.21 प्रतिशत के साथ सबसे आगे है, इसके बाद दादरा और नगर हवेली तथा दमन एवं दीव 26.41 प्रतिशत के साथ दूसरे स्थान पर हैं।
लोकसभा में महिला एवं बाल विकास मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने राज्यवार आंकड़े प्रस्तुत किए। इन आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश में बौनेपन की दर सबसे अधिक है। यहां 46.36 प्रतिशत बच्चे बौनापन के शिकार हैं। वहीं दूसरे स्थान पर लक्षद्वीप है, यहां 46.31 प्रतिशत बच्चे बौने हैं। वहीं महाराष्ट्र 44.59 प्रतिशत और मध्य प्रदेश में 41.61 प्रतिशत की बौनेपन दर दर्ज हुई। उन्होंने बताया कि कुपोषण की एक गंभीर निशानी, कमजोरी जो कि लक्षद्वीप में सबसे गंभीर स्थिति में है। यहां 13.22 प्रतिशत बच्चे कुपोषण से प्रभावित हैं। उधर बिहार में 9.81 प्रतिशत और गुजरात में 9.16 प्रतिशत की उच्च कमजोरी दर दर्ज हुई। आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि यह समस्या आमतौर पर अपर्याप्त भोजन या बीमारियों के कारण होता है। यह स्थिति चिंताजनक है।
महिला एवं बाल विकास मंत्री ने बताया कि कुछ राज्य अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन करते हैं। गोवा में सबसे कम स्टंटिंग (बौनापन) दर 5.84 प्रतिशत, वेस्टिंग (कमजोरी) 0.85 प्रतिशत और कम वजन वाले बच्चे 2.18 प्रतिशत दर्ज किए गए हैं। वहीं, सिक्किम और लद्दाख में भी तुलनात्मक रूप से कम कुपोषण दर दिखी।
कुपोषित भारतीय
भारत में 2021 और 2023 के बीच 19.46 करोड़ कुपोषित लोग थे। यह कुल आबादी का 13.7 प्रतिशत था। खाद्य और कृषि संगठन या एफएओ की परिभाषा के अनुसार, ‘कुपोषण’ का अर्थ है कि कोई व्यक्ति एक वर्ष की अवधि में दैनिक न्यूनतम आहार ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त भोजन प्राप्त करने में सक्षम नहीं है। जबकि ‘वेस्टिंग’ यानी बौनेपन से प्रभावित बच्चों (पांच वर्ष से कम) की संख्या 2.19 करोड़ (18.7 प्रतिशत) थी; और 2022 में 3.61 करोड़ (31.7 प्रतिशत) बच्चे बौने थे।
एफएओ वेस्टिंग को ‘ऊंचाई के हिसाब से कम वजन’ (कमजोरी) के रूप में वर्णित करता है, जो कुपोषण का एक घातक रूप है, जबकि स्टंटिंग को ‘उम्र के हिसाब से कम ऊंचाई’ यानी बौनेपन के रूप में वर्णित किया जाता है और यह क्रोनिक या बार-बार होने वाले कुपोषण का परिणाम है।
55.6 प्रतिशत भारतीय स्वस्थ आहार का खर्च उठाने में असमर्थ: SOFI रिपोर्ट
इस साल मई में एक अन्य वैश्विक रिपोर्ट ने भारत में आहार संबंधी आदतों के बारे में चिंता जताई है। वो यह कि भारत की कुल आबादी का आधे से ज्यादा हिस्सा (55.6 प्रतिशत) स्वस्थ आहार का खर्च उठाने में असमर्थ है।
यह तथ्य 24 जुलाई, 2024 को प्रकाशित संयुक्त राष्ट्र की स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड (एसओएफआई) रिपोर्ट में बताया गया है। हालांकि रिपोर्ट के मुताबिक 2020 यानी जब कोविड-19 महामारी फैली थी उस वर्ष को छोड़ दिया जाए तो इस अनुपात में लगातार गिरावट देखी गई है। वहीं, यह स्थिति अभी भी सभी दक्षिण एशियाई देशों के औसत (53.1 प्रतिशत) से ज्यादा है और 2022 में पाकिस्तान (58.7 प्रतिशत) के बाद इस क्षेत्र में आबादी का दूसरा सबसे बड़ा प्रतिशत है। वैश्विक स्तर पर 35.4 प्रतिशत लोग स्वस्थ आहार का खर्च उठाने में असमर्थ थे; इनमें से 64.8 प्रतिशत अफ्रीका में और 35.1 प्रतिशत एशिया में थे।
सौजन्य:सबरंग इंडिया
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