दलितों व पिछड़ों के नाम वाले स्कूल फैला रहे शिक्षा का उजियारा
छतरपुर जिले में दलित व पिछड़ी जातियों व स्थान के नाम पर जिले में 100 शासकीय स्कूल ऐसे हैं, जो करीब 50 साल से ज्ञान का उजियारा फैला रहे हैं और जातिगत खाइयों को भी पाट रहे हैं।
छतरपुर. देश में जहां एक ओर जाति को लेकर राजनीतिक की जा रही है। वहीं छतरपुर जिले में दलित व पिछड़ी जातियों व स्थान के नाम पर जिले में 100 शासकीय स्कूल ऐसे हैं, जो करीब 50 साल से ज्ञान का उजियारा फैला रहे हैं और जातिगत खाइयों को भी पाट रहे हैं। शिक्षा के इन मंदिरों से सभी वर्ग के बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। हर साल इन स्कूलों से 3 से 4 हजार बच्चे पढ़ाई कर आगे बढ़ रहे हैं।
पढ़ाई पर भरोसा
जिले के सरकारी स्कूलों में नाम, जाति से ऊपर उठकर सौहार्द के माहौल में पढ़ाई हो रही है। प्राथमिक शाला कलरया कुआं छतरपुर, माध्यमिक शाला कुरयाना छतरपुर, प्राथमिक शाला कुरयाना, प्राथमिक शाला चमारन पुरवा महोई खुर्द, गल्र्स प्राइमरी स्कूल हरिजन पुरवा, प्राथमिक शाला हरिजन बस्ती बूदौर, प्राथमिक शाला गडऱपुर, प्राथमिक शाला अहीरन पुरवा, प्राथमिक शाला ढिमरपुर, माध्यमिक शाला शुक्लाना जैसे दर्जनों स्कूल हैं, जो किसी जाति के नाम पर है। इन स्कूलों में पढऩे वाले बच्चों और उनके अभिभावकों को नाम से ज्यादा पढ़ाई पर भरोसा है।
काम से बनी पहचान
प्राथमिक शाला नालापार नौगांव, प्राथमिक शाला डिस्लरी नौगांव, गल्र्स प्राथमिक आश्रम शाला नौगांव, गल्र्स प्राथमिक शाला बघराजन टौरिया, माध्यमिक शाला देवी मंदिर नौगांव, प्राथमिक शाला इमलनपुरवा, शासकीय माध्यमिक शाला डेरा पहाड़ी, गल्र्स प्राइमरी स्कूल नयामोहल्ला, गल्र्स प्राइमरी स्कूल बेनीगंज, गल्र्स प्राइमरी स्कूल सबनीगर, गल्र्स प्राइमरी स्कूल नरसिंगगढ़ पुरवा, गल्र्स प्राइमरी स्कूल टौरिया खिडक़ी, गल्र्स प्राइमरी स्कूल रावसागर समेत अन्य स्कूल स्थान के नाम से जाने जाते हैं, इन स्कूलों की पहचान शिक्षा प्रदान करने से बनी हैं।
बदलना चाहे नाम, नहीं ली रुचि
मध्यप्रदेश सरकार ने 28 जून 2004 को आदेश जारी किया कि शासकीय शाला भवनों तथा संस्थाओं आदि के नाम महापुरुष के नाम रखे जाएं। पर इस जिले में ऐसा कुछ नहीं हुआ। शासन ने 22 जनवरी 2014 एवं 4 जून 2014 को भी पुन: निर्देश जारी कर नाम बदले को कहा। शिक्षा विभाग के आला अफसर आयुक्त लोक शिक्षण संचालनालय भोपाल ने भी 21 जुलाई 2017 को पत्र जारी कर निर्देश दिए, लेकिन जिले के स्कूलों के नाम बदलने में किसी ने रुचि नहीं दिखाई। लोग जातियों के बंधन से उठकर शिक्षा को प्राथमिकता देते रहे।
इनका कहना है
हमारे समाजिक जीवन में बदलाव आया है। सर्वधर्म समभाव की भावना बढ़ी है। शिक्षा से सोच बदल रही है। लोग जाति बंधन से ऊपर उठ रहे हैं। आर्थिक संपन्नता, शिक्षा से मिल रही उच्च सोच का नतीजा है, जो समाजिक समरसता बढ़ा रही है। सबकी सोच में बदलाव आया है। समाजिक ताना बाना में सुधार आया है।
डॉ. ममता वाजपेयी, एचओडी, समाजशास्त्र, महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय
सौजन्य : पत्रिका
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