नए चुनाव आयुक्त कौन हैंः ज्ञानेश कुमार की राम मंदिर ट्रस्ट में क्या भूमिका थी?
सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में बाबरी मसजिद की जमीन केंद्र सरकार को सौंपते हुए आदेश दिया था कि सरकार एक ट्रस्ट बनाए और ट्रस्ट मंदिर का निर्माण करेगा। पीएमओ से गृह मंत्रालय को निर्देश मिला कि एक अलग डेस्क बनाकर इस काम को युद्धस्तर पर किया जाए। गृह मंत्रालय में जब डेस्क बनी तो इसमें तीन आईएएस अधिकारी शामिल थे लेकिन इस डेस्क और टीम का नेतृत्व अडिशनल सेक्रेटरी ज्ञानेश कुमार करेंगे। बाद में ज्ञानेश कुमार ने पूरे ट्रस्ट का खाका तैयार किया। उनकी विशेषज्ञता यही है कि उन्होंने राम मंदिर ट्रस्ट बनाते समय इसका नियंत्रण अप्रत्यक्ष रूप से पीएम के सबसे विश्वस्त नौकरशाह के हाथ में रखा। नृपेंद्र मिश्रा पीएम मोदी के प्रधान सचिव रहे थे। पीएमओ का काम भी मिश्रा ही संभाल रहे थे। ऐसे में ज्ञानेश कुमार ने मिश्रा को राम मंदिर निर्माण समिति का चेयरमैन बनाने का प्रस्ताव तैयार किया, जिसे सरकार ने फौरन स्वीकार कर लिया। बहुत ध्यान से देखें तो इन सारी नियुक्तियों की कड़ियां आपस में जुड़ी हुई हैं।
ये वही ज्ञानेश कुमार है, जिन्होंने धारा 370 खत्म करने से जुड़ा सारा मामला देखा था और सरकार का मार्गदर्शन किया था। ज्ञानेश कुमार यहीं से चमके और इसके बाद उन्हें ट्रस्ट स्थापित करने का काम मिला। यानी पिछले दस वर्षों में केरल काडर (1988) के ज्ञानेश कुमार ने पीएमओ की वफादारी सबसे ज्यादा हासिल की। इसलिए चुनाव आयुक्त बनाए जाते समय वो सरकार की पहली पसंद बने। वो केंद्र में बतौर सचिव (सहकारिता) रिटायर होने के बाद अगले फल चखने का इंतजार कर रहे थे।
दूसरे चुनाव आयुक्त सुखबीर सिंह संधू उत्तराखंड काडर के 1988 बैच के पूर्व आईएएस अधिकारी हैं। मूल रूप से पंजाब के रहने वाले संधू को उत्तराखंड का मुख्य सचिव नामित किया गया था। 2021 में पुष्कर सिंह धामी जब राज्य के मुख्यमंत्री बने तो संधु ने बतौर मुख्य सचिव कमान संभाली। बताया जाता है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय की सलाह पर संधु को चीफ सेक्रेटरी बनाया गया था।
इससे पहले, संधू ने भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) के अध्यक्ष के रूप में काम किया था। उन्होंने मानव संसाधन विकास मंत्रालय के उच्च शिक्षा विभाग में अतिरिक्त सचिव के रूप में भी कार्य किया। उन्होंने सरकारी मेडिकल कॉलेज, अमृतसर से एमबीबीएस किया और गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर से इतिहास में मास्टर डिग्री भी हासिल की है। उनके पास कानून की डिग्री भी है। संधू ने ‘शहरी सुधार’ और ‘नगरपालिका प्रबंधन और क्षमता निर्माण’ पर पत्र प्रकाशित किए हैं। नगर निगम, लुधियाना, पंजाब के आयुक्त के रूप में उनकी सेवाओं के लिए उन्हें राष्ट्रपति पदक से सम्मानित किया गया था।
फरवरी में अनूप चंद्र पांडे के रिटायरमेंट और पिछले हफ्ते अरुण गोयल के अचानक इस्तीफे से केंद्रीय चुनाव आयोग में चुनाव आयुक्त के दो पद खाली हो गए। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार आयोग में अकेले बचे रह गए। चूंकि अब लोकसभा चुनाव 2024 की तारीखें घोषित होनी हैं तो अकेले मुख्य चुनाव आयुक्त सारी जिम्मेदारी नहीं निभा सकते। ऐसे में दोनों पद भरे जाने की तत्काल जरूरत थी। इस तरह ये दोनों अधिकारी आननफानन में तलाशे गए हैं। लेकिन इनमें सरकार से वफादारी के गुण पहले तलाशे गए। पिछले हफ्ते जिन अरुण गोयल ने चुनाव आयुक्त पद से इस्तीफा दिया था, सरकार उन्हें भी आननफानन में लाई थी। रिटायरमेंट के अगले ही दिन उन्हें चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया था।
प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में 14 मार्च की जिस बैठक में कमेटी ने संधु और ज्ञानेश कुमार को चुना, उसमें विपक्ष की कोई भूमिका या सलाह थी। हालांकि कमेटी में नेता विपक्ष अधीर रंजन चौधरी बतौर सदस्य थे। लेकिन उनकी कोई भूमिका नहीं थी। अधीर रंजन चौधरी ने कहा- “उनके (सरकार के) पास (चुनाव आयुक्त की नियुक्ति करने वाली समिति में) बहुमत है। पहले, उन्होंने मुझे 212 नाम दिए थे, लेकिन नियुक्ति से 10 मिनट पहले उन्होंने मुझे फिर से सिर्फ छह नाम दिए। मुझे पता है कि भारत के चीफ जस्टिस वहां नहीं हैं। सरकार ने ऐसा कानून बनाया है कि सीजेआई हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं और केंद्र सरकार मनपसंद का नाम चुन सकती है। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि यह मनमाना है लेकिन जो प्रक्रिया अपनाई जा रही है उसमें कुछ खामियां हैं।” चौधरी ने ही सबसे पहले संधु और ज्ञानेश कुमार के नाम की जानकारी दी थी कि इन्हें चुनाव आयुक्त बनाया गया है।
सौजन्य :सत्या
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