अमरमणि…BRD के कमरा नंबर-16 को बनाया ‘घर’:ऐसा रसूख…सरकार कोई हो, सत्ता उसकी ही चलती; 11 साल में सिर्फ 16 महीने जेल में रहा
अमरमणि त्रिपाठी…यूपी सरकार के पूर्व मंत्री। ये वो नाम है, जो अपने आप में ही एक ‘सिस्टम’ था। रसूख और दबदबा ऐसा कि सरकारों को मैनेज कर उसमें बड़ी आसनी से फिट हो जाता। फिर वो सिस्टम से नहीं, बल्कि ‘सिस्टम’ उसके हिसाब से चलने लगता। यह बात उस वक्त साबित भी हुई। जब साल 2007 में देहरादून की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने कवयित्री मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में अमरमणि और उसकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी को दोषी माना।
दोनों को आजीवन कारावास की सजा हुई। लेकिन, अमरमणि ने अपने तिकड़मी दिमाग और रसूख से 2012 में अपना हरिद्वार से गोरखपुर जेल में ट्रांसफर करवा लिया। अमरमणि की पत्नी मधुमणि को दिसंबर 2008 और अमरमणि को मार्च 2012 में गोरखपुर लाया गया। गोरखपुर में 11 साल 5 महीने की सजा के दौरान अमरमणि ने केवल 16 महीने ही जेल में काटे। उसका बाकी समय बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्राइवेट वार्ड के कमरा नंबर-16 में बीता। यह कमरा उसके घर जैसा हो गया।
मैं उत्तर प्रदेश हूं…OTT सीरीज की 8वीं कड़ी के दूसरे चैप्टर में कहानी बाहुबली अमरमणि त्रिपाठी के तिकड़मी रसूख की।
जेल, घर और अस्पताल…अमरमणि के लिए सब कुछ एक जैसा रहा। अमरमणि BRD मेडिकल कॉलेज के प्राइवेट वार्ड नंबर-16 में करीब 10 साल रहा। यहां वह अपना दरबार लगाता था। सुबह से शाम तक उससे मिलने वालों की भीड़ लगी होती थी। कोई रिश्तेदार तो कोई दोस्त बनकर आता था। बाहर सुरक्षाकर्मी बैठे रहते थे, लेकिन कोई रोक-टोक नहीं थी। वह जिससे चाहता उससे मिलता।
अस्पताल से ही चुनावी समीकरण तैयार करने से लेकर सेटिंग करवाता। यही वजह रही कि सजा के दौरान भी अमरमणि ने जब और जिसे चाहा, वह चुनाव जीतता चला गया। सजा के दौरान ही अमरमणि ने अपने बेटे अमनमणि को नौतनवा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़वाकर विधायक बनवा दिया। वह भी तब जब प्रदेश में मोदी-योगी की लहर थी।
अमरमणि से जुड़े करीबी बताते हैं कि अमरमणि बाहुबली पंडित हरिशंकर तिवारी का बेहद खास बन गया। उस वक्त सिर्फ गोरखपुर ही नहीं बल्कि प्रदेश में बाहुबल के लिए उसका नाम जाना जाता था। राजनीति और अपराध का कॉकटेल तैयार करके उनसे अपना ओहदा काफी बड़ा कर लिया था।
सरकारें आईं…गईं, लेकिन रुतबा कम नहीं हुआ
उस दौर में सरकारें आईं…गईं। कल्याण सिंह से लेकर मायावती तक मुलायम सिंह यादव से लेकर अखिलेश तक, लेकिन अमरमणि का रुतबा कम नहीं हुआ। प्रदेश में योगी सरकार आने के बाद भी जब अमरमणि जेल में सजा काट रहा था तब भी अमरमणि का बेटा अमनमणि कई बार सीएम योगी के मंच के करीब तक देखा गया।
बेटे ने 2022 विधानसभा टिकट के लिए भी काफी कोशिश की। लेकिन, चुनाव में उसे टिकट नहीं मिला। मैनेज करने में अमरमणि को एक तरह से महारत हासिल थी। वह किसी न किसी तरकीब से कभी सरकार तो कभी सरकार में बैठे ताकतवर लोगों को सेट करता रहा।
लखनऊ के निशातगंज की पेपर मिल कॉलोनी में 9 मई 2003 को कवयित्री मधुमिता शुक्ला की गोली मारकर हत्या हुई। CBI जांच के दौरान अमरमणि पर गवाहों को धमकाने के आरोप लगाए गए तो मुकदमा देहरादून की फास्ट ट्रैक कोर्ट ट्रांसफर कर दिया। कोर्ट ने 24 अक्टूबर 2007 को अमरमणि, मधुमणि और अमरमणि के भतीजे रोहित चतुर्वेदी समेत 2 अन्य को हत्या की साजिश और हत्या के लिए दोषी ठहराया।
जुलाई 2012 में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने भी दोषियों को CBI कोर्ट द्वारा सुनाई गई उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा। कोर्ट ने अमरमणि के एक अन्य सहयोगी प्रकाश पांडे को भी आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
चेक बाउंस केस से गोरखपुर आया, फिर गया ही नहीं
अमरमणि की पत्नी मधुमणि त्रिपाठी 4 दिसंबर 2008 को उत्तराखंड की हरिद्वार जेल से ट्रांसफर होकर गोरखपुर जेल आई। 2008 में महराजगंज में एक चेक बाउंस मामले में उसे लाया गया था। इसके बाद से वह वापस नहीं गई। मधुमणि को 16 अप्रैल 2012 को जेल के एक डॉक्टर की सिफारिश पर बीआरडी मेडिकल कॉलेज भेजा गया था।
जबकि अमरमणि को 13 मार्च 2012 को हरिद्वार जेल से ट्रांसफर होकर गोरखपुर जेल लाया गया। फिर 27 फरवरी 2014 को अमरमणि भी मेडिकल कॉलेज में भर्ती हुआ। यहां आने के बाद उसे एक प्राइवेट वार्ड में भर्ती कराया गया। इसके बाद दोनों वापस नहीं गए।
वहीं, अमरमणि से जुड़े लोगों का तो यहां तक कहना है कि चेक बाउंस का केस भी उसकी प्लानिंग का हिस्सा था। वो अपने ही लोगों से चेक बाउंस कराकर खुद अपने और पत्नी के खिलाफ केस दर्ज कराया। फिर इस मामले में पेशी के लिए हरिद्वार से गोरखपुर आ गया। जहां उसका सिक्का चलता था। अमरमणि को BRD के कमरा नंबर-8 में रखा गया था।
हालांकि, अधिकांश दिन वह उसी गलियारे में ऊपर कमरा नंबर-16 में पाया जाता था, जहां उसकी पत्नी भर्ती थी। लोगों की नजरों से बचने के लिए दरवाजे के पर्दे हमेशा बंद रहते थे। खिड़कियां सील कर दी जाती थीं। इस कमरे के ऊपर नंबर भी नहीं लिखा गया।
अमरमणि मानसिक बीमार, पत्नी को सर्वाइकल
ऐसा नहीं है कि अमरमणि और मधुमणि को कोई गंभीर बीमारी है। डॉक्टरों के मुताबिक, अमरमणि मानसिक रूप से बीमार थे। उसका इलाज मानसिक रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. तपस कुमार की देख-रेख में चल रहा था। जबकि, उसकी पत्नी मधुमणि को सर्वाइकल से जुड़ी दिक्कत थी। उनका न्यूरो सर्जन की देखरेख में इलाज चल रहा था।
अमरमणि की रिहाई के बाद पूर्व विधायक बेटे अमनमणि त्रिपाठी ने कहा कि फिलहाल पिता जी की स्थिति ठीक नहीं है। डॉक्टरों की देखरेख में उनका इलाज चल रहा था। उनके पूरी तरह स्वस्थ्य हो जाने के बाद ही डॉक्टरों के परामर्श पर उन्हें यहां से डिस्चार्ज कराया जाएगा।
BRD में भर्ती रहने के दौरान इस मामले ने कई बार तूल पकड़ा। साल 2015 में मधुमिता हत्याकांड की पैरवी कर रही निधि शुक्ला की शिकायत पर कोर्ट ने बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल से भी बीमारी के बारे में जानकारी पूछ लिया। उस वक्त भी कोई संतोषजनक जवाब न दे पाने पर कोर्ट ने तब के प्रिंसिपल डॉ. आरपी शर्मा के साथ ही SIC डॉ. बीएन शुक्ला और सर्जरी विभाग के डॉक्टर आरडी रमन को तत्काल प्रभाव हटाने का आदेश दिया।
कुछ समय के लिए अमरमणि और मधुमणि भी बीआरडी मेडिकल कॉलेज से जेल भेज दिए गए। लेकिन, दोबारा तबीयत बिगड़ने पर फिर प्राइवेट वार्ड में भर्ती हो गए। मधुमणि ज्यादातर अस्पताल तक ही सीमित रहती थी, लेकिन अमरमणि हर सुबह जेल से बाहर जाता था। मेडिकल कॉलेज में फीजियोथेरेपी के नाम पर अपनी प्राइवेट गाड़ियों में घूमता था। मई 2012 में जब यह मामला सुर्खियो में आया तो अमरमणि की सुरक्षा ड्यूटी पर तैनात एक सब-इंस्पेक्टर समेत 4 पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया।
10 दिनों में ठीक हो गई 11 साल की बीमारी
अमरमणि और मधुमणि की 11 साल की बीमारी सिर्फ 10 दिनों में गायब हो गई। दोनों कब स्वस्थ्य होकर BRD मेडिकल कॉलेज से गायब हो गए। इसकी किसी को भनक तक नहीं लगी। हालांकि, 18 साल की सजा काटने के बाद अमरमणि और उनकी पत्नी मधुमणि की समय से पहले रिहाई तो हो गई। लेकिन बस्ती में किडनैपिंग के 22 साल पुराने केस में 14 अगस्त, 2023 को अमरमणि कोर्ट में पेश नहीं हुए। इस पर बस्ती MP-MLA कोर्ट ने गोरखपुर CMO से अमरमणि की हेल्थ की रिपोर्ट भी मांगी।
MP-MLA कोर्ट ने पूछा-आखिर कौन सी बीमारी है?
कोर्ट ने पूछा- आखिर उन्हें ऐसी कौन सी बीमारी है कि वे कोर्ट नहीं आ सकते। कोर्ट ने 24 अगस्त की सुनवाई में रिपोर्ट सौंपने को कहा था। जिसके बाद CMO गोरखपुर के नेतृत्व में एक मेडिकल बोर्ड बनाकर इसकी रिपोर्ट कोर्ट में पेश की गई। बावजूद इसके अमरमणि अब तक इस मामले में कोर्ट में पेश नहीं हुआ है।
अमरमणि 1989 में पहली बार विधायक बना
अमरमणि 1989 में पहली बार विधायक बना। दोबारा 1991 में चुनाव हुआ तो अमरमणि चुनाव लड़ा। मगर हार गया। कुछ दिनों बाद सरकार गिर गई और 1993 में चुनाव हुआ, तो अमरमणि को चुनाव में फिर हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद 1996 में विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर लड़ा और जीत गया।
1997 में अमरमणि लोकतांत्रिक कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गया। फिर कल्याण सरकार में मंत्री बना। अमरमणि भाजपा, सपा से लेकर बसपा तक की ‘गुड लिस्ट’ में रहा है। गेस्ट हाउस कांड में मायावती के आंखों की किरकिरी बना, लेकिन मुलायम सिंह से करीबी हो गई।
2012 विधानसभा चुनाव में अमरमणि के बेटे अमन मणि त्रिपाठी मैदान में उतरे, लेकिन चुनाव हार गए। इसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की लहर में भी अमनमणि चुनाव जीतकर विधायक बने। लेकिन, 2022 के विधानसभा चुनाव में यह बसपा से लड़े और हार का सामना करना पड़ा।
सौजन्य : दैनिक भास्कर
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