बच्चे कंधों पर जाते हैं स्कूल, नाम सुनते ही टूट जाती है शादी, महादलितों के गांव में न सड़क न पुल
बिहार वैसे तो देश में हर वक्त किसी न किसी कारण से चर्चा में रहता है. कारण राजनीतिक हो या फिर कुछ और लेकिन इस बार चर्चा का कारण बहुत अजब- गजब है. बिहार के जमुई के जिला मुख्यालय से मात्र 5 किलोमीटर दूर स्थित बरुअट्टा गांव है. जहां नौजवान लड़को की शादी नहीं होती है. ऐसा नहीं कि इस गांव में कभी किसी की शादी नहीं हुई है. शादी हुई है, लेकिन बहुत हुज्जत या फिर मशक्कत करने के बाद यहां लड़को की शादी हो पाती है. यहां शादी कटने का मुख्य कारण इस गांव में सड़क जैसी मूलभूत सुविधा ना होना बताया जा रहा है.
क्यों नहीं होती शादी
बरुअट्टा गांव का 5 नंबर वार्ड महादलितों की बस्ती है. इस बस्ती में करीब 50 परिवार अपना गुजारा करते हैं. इस गांव की सबसे बड़ी समस्या यह है कि यहां दलितों के घर जाने तक का रास्ता नहीं है. बरसात के दिनों में यहां के लोगों का जनजीवन दुश्वार हो जाता है. यहां के लोग साल के 6 महीने घुटने भर पानी में अपना गुजर बसर करते हैं. गांव में इतनी समस्या है कि यहां पैदा होने वाले बच्चे जन्म के दिन से ही संघर्षों के आदी हो जाते हैं. इतनी समस्या से अपना जीवन यापन कर रहे इन लोगों के बीच आखिर कौन बाप अपनी बेटी की शादी करना चाहेगा.
बच्चों को कंधों पर उठाकर पहुंचाते हैं स्कूल
गांवों के बीचों बीच सरकारी विद्यालय है. बरसात के समय गांव में इतना पानी भर जाता है कि बच्चों को कंधो पर उठाकर स्कूल लें जाना पड़ता है.ग्रामीण शांतनु पांण्डेय बताते हैं कि इस गांव में सड़क जाने के लिए जिस जमीन की जरुरत है वह जमीन देने के लिए वह तैयार है. लेकिन क्षेत्र का कोई प्रतिनिधी ना कभी पहल करता है और हम लोगों के कहने का कभी कोई असर नहीं हुआ. कई बार सांसद जी से कहने पर भी इस रोड को लेकर कोई सुनवाई नहीं हुई है.
गांव में ही कराना पड़ता है प्रसव
बरसात के दिनों में सड़को पर पानी भरे होने के कारण इस गांव में महिलाओं का प्रसव गांव में ही कराना पड़ता है. इस गांव के लोगों इस दौर में भी बहुत पिछड़े हुए है. इन्हें आज भी सरकार की किसी भी योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है. इस गांव के दलित अपने मूलभूत सुविधा से भी नदारद है. हम कितनी भी बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएं, लेकिन हमारे देश की एक तस्वीर यह भी है. बरुअट्टा तो बिहार का एक गांव हैं. देश में ऐसे कई जगह होंगे, जो आज भी इस डिजिटलाइजेशन और कई तड़क भड़क भरे दौर में भी अपने मूलभूत अधिकार और सुविधा से वंचित हैं.
सौजन्य : News18
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