गुजरात: एसआईटी ने 2002 दंगों के गवाहों और रिटायर्ड जज को मिली सुरक्षा वापस ली
गुजरात दंगों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल (एसआईटी) ने आठ दंगा प्रभावित ज़िलों में ज़किया जाफरी को छोड़कर 159 लोगों को प्राप्त सुरक्षा वापस लेने का निर्णय लिया है. इनमें नरोदा पाटिया नरसंहार केस में माया कोडनानी और बाबू बजरंगी को सज़ा सुनाने वालीं रिटायर्ड जज ज्योत्सना याज्ञनिक भी शामिल हैं|
नई दिल्ली: वर्ष 2002 के गुजरात दंगों के नौ मामलों की दोबारा जांच कर रही सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल (एसआईटी) ने केंद्र और राज्य के सरकारी अधिकारियों के साथ खतरे की आशंका की समीक्षा के बाद सभी गवाहों और सेवानिवृत्त जज ज्योत्सना याज्ञनिक से पुलिस और अर्द्ध-सैन्य सुरक्षा वापस ले ली है
एसआईटी सदस्य एके मल्होत्रा ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया है, ‘डीजीपी (पुलिस महानिदेशक) और गृह विभाग सहित हर स्तर पर सावधानीपूर्वक विचार करने के बाद, सुरक्षा वापस लेने का निर्णय लिया गया है. पिछले 15 वर्षों में (एसआईटी के गठन के बाद से) अब तक किसी भी गवाह पर हमला नहीं किया गया है और किसी को भी धमकी नहीं दी गई है.’
अधिकारियों ने कहा कि केवल जकिया जाफरी, जिन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी, को एसआईटी द्वारा सुरक्षा प्रदान की जा रही है. जकिया कांग्रेस के दिवंगत सांसद एहसान जाफरी की पत्नी हैं जिनकी दंगों के दौरान गुलबर्ग सोसाइटी के अंदर 68 अन्य लोगों के साथ हत्या कर दी गई थी.
गुजरात सरकार और एसआईटी ने राज्य के आठ दंगा प्रभावित जिलों में 159 लोगों को सुरक्षा प्रदान की थी. नरोदा पाटिया नरसंहार मामले का फैसला सुनाने वालीं जज याग्निक और जाफरी को केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) द्वारा सुरक्षा प्रदान की जा रही थी. जज याग्निक को मिल रहीं धमकियों को देखते हुए गुजरात पुलिस के जवान उनकी सुरक्षा में तैनात है.
मल्होत्रा ने कहा, ‘यह गवाह सुरक्षा कार्यक्रम केवल गवाहों के लिए था, न्यायाधीशों या वकीलों के लिए नहीं.’
एसआईटी अधीक्षक बीसी सोलंकी ने 13 दिसंबर 2023 को सभी जिला और शहर पुलिस प्रमुखों को एक पत्र लिखकर सूचित किया था कि उनके अधिकार क्षेत्र में गवाहों से एसआईटी सुरक्षा वापस ली जा रही है. पत्र में कहा गया है कि संबंधित पुलिस थानों को ‘सतर्क रहने और अपने क्षेत्र में गवाहों की सुरक्षा करने का निर्देश दिया गया है.’
एसआईटी के एक शीर्ष अधिकारी ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि सीआईएसएफ को हटाने का निर्णय 9 नवंबर 2023 को लिया गया था और गवाहों की सुरक्षा और दंगा प्रभावित क्षेत्रों में गश्त करने के लिए तैनात 126 सीआईएसएफ जवानों को हटा लिया गया था. अधिकारी ने आगे कहा, ‘शेष 134 जवानों को 13 दिसंबर को हटा लिया गया.’
जिन आठ जिलों में गवाहों की सुरक्षा की गई थी वे गोधरा (पंचमहल), वडोदरा, आणंद, अहमदाबाद शहर, हिम्मतनगर (साबरकांठा), मेहसाणा, पश्चिमी रेलवे (वडोदरा) और गांधीनगर थे. नौ मामलों में गोधरा ट्रेन जलाने का मामला, नरोदा पाटिया नरसंहार, नरोदा गाम नरसंहार, गुलबर्ग सोसाइटी नरसंहार, सरदारपुरा नरसंहार, दीपड़ दरवाजा नरसंहार, प्रांतिज ब्रिटिश नागरिकों की हत्या का मामला, और ओडे नरसंहार I और ओडे नरसंहार II शामिल थे|
एसआईटी की गवाह संरक्षण इकाई के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि गवाहों की सुरक्षा वापस लेने का निर्णय केंद्र और राज्य स्तर से समीक्षा के बाद लिया गया था. 20 साल तक सुरक्षा दी गई और अब मामलों की सुनवाई खत्म हो गई और मामले हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में हैं|
अधिकारी ने यह भी पुष्टि की कि समीक्षा में खतरे की कोई आशंका न पाए जाने के बाद जज याग्निक को दी गई सुरक्षा वापस ले ली गई है. अधिकारी ने कहा कि नौ ट्रायल जजों में से केवल याग्निक को सुरक्षा प्रदान की गई थी और यह 2013 में उनकी सेवानिवृत्ति के बाद भी 10 साल तक जारी रही|
संपर्क करने पर याग्निक ने घटनाक्रम पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया|
इससे पहले इंडियन एक्सप्रेस ने ही 2015 में अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि अगस्त 2012 में नरोदा पाटिया नरसंहार, जिसमें 97 लोग मारे गए थे, मामले में फैसला सुनाने के बाद याग्निक को उनके आवास पर 22 धमकी भरे पत्र और ‘ब्लैंक फोन कॉल’ आए थे|
जज याग्निक ने अपने फैसले में पूर्व भाजपा मंत्री माया कोडनानी और बजरंग दल नेता बाबू बजरंगी समेत 32 लोगों को दोषी ठहराया था. इससे पहले, याग्निक की सुरक्षा को जेड-प्लस से घटाकर वाई श्रेणी कर दिया गया था और उन्होंने इस मामले को राज्य सरकार के समक्ष उठाया था|
अब एसआईटी अधिकारी ने बताया है कि ज़किया जाफरी की सुरक्षा में तीन सीआईएसएफ कर्मी हैं, ‘लेकिन उन्होंने अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान उन्हें हटाने के लिए कहा था. वह बुजुर्ग महिला हैं और मामले में शिकायतकर्ता थीं, इसलिए उन्हें सुरक्षा दी जा रही है|
मई 2009 के एक आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने गवाहों की सुरक्षा का दायित्व एसआईटी को दिया था, जिसके अध्यक्ष तब तत्कालीन सीबीआई निदेशक आरके राघवन थे|
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, ‘यह निर्देशित किया जाता है कि यदि गवाह के रूप में पूछताछ किए जाने वाले व्यक्ति को अदालत में स्वतंत्र रूप से गवाही देने के लिए अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सुरक्षा की आवश्यकता है, तो उसे एसआईटी को आवेदन करना होगा और एसआईटी इस मामले में जरूरी आदेश पारित करेगी और सभी प्रासंगिक पहलुओं को ध्यान में रखेगी और यह संबंधित व्यक्ति को सुरक्षा प्रदान करना उचित समझती है तो पुलिस अधिकारी/कर्मचारियों को निर्देशित करेगी. इस संबंध में एसआईटी के निर्देश का पालन करना राज्य का कर्तव्य होगा.’
एसआईटी को यह तय करने के लिए नोडल एजेंसी नियुक्त किया गया था कि किस गवाह को सुरक्षा की जरूरत है और उन्हें किस प्रकार की सुरक्षा उपलब्ध कराई जानी है|
सौजन्य: द वायर
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