घोसी नतीजे सपा के लिए संजीवनी, साइकिल से उतरने की तैयारी में जुटे नेताओं पर क्या लगेगा ब्रेक?
उत्तर प्रदेश की घोषी विधानसभा सीट पर हाल ही में हुए उपचुनाव ने समाजवादी पार्टी के उन नेताओं की सोच बदल दी है जो लोकसभा चुनाव से पहले साइकिल छोड़ बीजेपी में शामिल होने का मूड बना रहे थे. इन नेताओं को सपा में एक बार फिर से उम्मीद की किरण दिखाई देने लगी है.
त्तर प्रदेश के 2022 विधानसभा चुनाव में सपा सत्ता में वापसी नहीं कर सकी तो पार्टी नेताओं के अंदर सियासी बेचैनी बढ़ गई थी. खासकर उन नेताओं में जिन्होंने सपा के सत्ता में आने की उम्मीदों के भरोसे दूसरे दलों से आए थे. योगी सरकार के रिपीट होने के साथ ही सपा से उनका मोहभंग होना शुरू हो गया था. इस फेहरिस्त में सबसे पहले धर्म सिंह सैनी सपा की साइकिल से उतरकर बीजेपी का दामन थामने के लिए आगे बढ़े, लेकिन स्थानीय नेताओं के चलते उनकी एंट्री टल गई. इसके बाद दारा सिंह चौहान ने सपा के साथ-साथ विधायक पद से इस्तीफा देकर बीजेपी में आए थे और उनके बाद सपा छोड़कर आने वाले कई नेता लाइन में थे.
बीजेपी ने दारा सिंह चौहान को घोसी सीट से टिकट देकर चुनावी मैदान में उतारा था, लेकिन सपा ने सुधाकर सिंह को उतारकर उन्हें धूल चटा दी. दारा की हार और सुधाकर की जीत सपा के लिए सियासी संजीवनी से कम नहीं है. बीजेपी अगर दारा सिंह चौहान को जिताने में सफल हो जाती तो फिर सपा छोड़ने वालों का सिलसिला तेज हो सकता था, लेकिन सपा की घोसी में मिली जीत ने साइकिल से उतरने के फिराक में लगे नेताओं पर ब्रेक जरूर लगा दिया है.
दरअसल, बीजेपी लोकसभा चुनाव 2024 से पहले यूपी में विपक्षी दलों में सेंधमारी का बड़ा प्लान बनाया था. सूबे में सपा, बसपा, आरएलडी के तमाम बड़े और छोटे नेताओं को अपने साथ मिलाने का अभियान शुरू किया था. इस तरह बीजेपी ने विपक्षी दलों को कमजोर करने की रणनीति बनाई थी. इस कड़ी में बीजेपी ने पूर्व राज्यसभा सदस्य राजपाल सैनी, सपा सरकार में मंत्री रहे साहब सिंह सैनी, जगदीश सोनकर, पूर्व विधायक सुषमा पटेल, पूर्व सांसद अंशुल वर्मा, शालिनी यादव सहित तमाम नेताओं को अपने साथ जोड़ा.
समान विचानरधारा के नेताओं को जोड़ने का था प्लान
बीजेपी इस अभियान के तहत हर महीने उत्तर प्रदेश की हर छोटी बड़ी पार्टी से जुड़े प्रभावशाली नेताओं को जोड़ने का प्लान बनाया था. इसके लिए पार्टी के भीतर उन सभी दूसरे दलों के प्रमुख नेताओं की सूची भी बनाई गई थी, जिन्हें विचारधारा के साथ जोड़ने की रणनीति थी. हर महीने भारी संख्या में ऐसे नेताओं को अपने साथ जोड़कर सियासी माहौल बनाने का था, जिसके तहत ही दारा सिंह चौहान को लाया गया था और उसके बाद सपा के कई मौजूदा विधायकों को भी साथ लाने की स्ट्रैटेजी बनाई थी.
घोसी में सपा की रणनीति की अग्निपरीक्षा थी
दारा सिंह चौहान ने सपा के साथ विधायक पद से इस्तीफा देकर बीजेपी का दामन थामा था. इस तरह घोसी उपचुनाव में बीजेपी और सपा की रणनीति की परीक्षा होनी थी. सपा भी इस बात को समझ रही थी, जिसके चलते पूरी ताकत झोंक दिया. सपा महासचिव शिवपाल यादव ने उपचुनाव की कमान संभाली और कैंडिडेट सिलेक्शन से लेकर वोटिंग तक घोसी में डेरा जमाए रखा. चुनावी प्रचार से लेकर प्रशासन पर दबाव बनाने तक का काम शिवपाल ने बखूबी निभाया. उपचुनाव में प्रचार से दूरी बनाकर चलने वाले अखिलेश यादव ने भी घोसी में जाकर सुधाकर सिंह के लिए वोट मांगा, जिससे यह बात समझी जा सकती है कि सपा ने किस गंभीरता के साथ चुनाव लड़ा था. इसीलिए नतीजा भी सपा के पक्ष में आया.
घोसी का परिणाम बीजेपी के लिए बड़ा सेटबैक
बीजेपी ओम प्रकाश राजभर और दारा सिंह चौहान को अपने साथ जोड़ने के बाद पूर्वांचल में अपने आपको मजबूत समझने लगी थी, लेकिन घोसी में लगे दोनों ही नेता सफल नहीं रहे. ओम प्रकाश राजभर अपने समुदाय का वोट बीजेपी के पक्ष में ट्रांसफर नहीं कर सके तो दारा सिंह भी अपने जाति का वोट जोड़े नहीं रख सके. इतना ही नहीं बीजेपी का कोर वोटबैंक सवर्ण मतदाता भी सपा के उम्मीदवार को पक्ष में चला गया. ऐसे में बीजेपी दलबदलू नेताओं को लेकर सतर्क हो गई है तो सपा को भी राहत मिली है.
सपा छोड़ने वाले नेताओं का सिलसिला थमेगा
घोसी विधानसभा उपचुनाव नतीजों ने साफ कर दिया है कि हर बार दलबदलू नेताओं पर दांव लगाना सफलता का पैमाना नहीं हो सकता है. वहीं, सपा के लिए भी किसी राहत से कम नहीं है, क्योंकि यह सीट दारा सिंह जीतने में सफल हो जाते तो बीजेपी के हौसले बुलंद हो जाते और सपा नेताओं के पार्टी छोड़ने का सिलसिला तेज हो सकता था. घोसी में बीजेपी की हार ने उसके सियासी मंसूबों पर फिलहाल के लिए पानी फेर दिया है. खासकर उन नेताओं के लिए घोसी चुनाव ने रास्ते बंद किए हैं, जो यूपी चुनाव 2022 के बाद से बदलाव को महसूस कर पाला बदलने की तैयारी में थे. सपा की साइकिल से उतरकर कमल थामने के लिए बेताब हो रहे थे.
काफिला लेकर घर से निकल गए थे धर्म सिंह सैनी, लेकिन…
दारा सिंह चौहान की हार धर्म सिंह सैनी की वेटिंग बढ़ा सकती है. धर्म सिंह सैनी यूपी चुनाव के बाद ही पिछले साल घर वापसी करना चाहते थे. ऐसे में सपा छोड़कर बीजेपी में जाने के फिराक में थे. खतौली उपचुनाव के दौरान योगी आदित्यनाथ की रैली में बीजेपी की सदस्यता लेने का प्लान था, धर्म सिंह सैनी घर से अपना काफिला लेकर निकल भी गए थे. खतौली पहुंचने ही वाले थे कि उन्हें यह कह कर वापस सहारनपुर जाने के लिए कह दिया गया कि बाद में आपकी एंट्री प्रदेश संगठन के द्वारा कराई जाएगी. एक साल होने जा रहे हैं, लेकिन अभी तक बीजेपी में उनकी एंट्री नहीं हो सकी.
ऐसे ही सपा के कई दूसरे नेताओं और विधायकों के भी बीजेपी में जाने की चर्चा थी, जिनमें विधायक पूजा पाल का नाम भी आया था. इसके अलावा इंद्रजीत सरोज को लेकर भी कयास लगाए जा रहे थे, लेकिन दारा सिंह चौहान की हार ने बीजेपी के अरमानों पर पानी फेर दिया है तो सपा के लिए सियासी संजीवनी दे दी है?
सौजन्य : Tv9 hindi
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