चन्नार क्रांति: जब स्तन ढंकने के अधिकार के लिए दलित वीरांगनाओं ने दी थी अपनी आहुति
भारत के दक्षिण में स्थित, केरल राज्य में 200, साल पहले त्रावणकोर में, व्यक्तियों के लिए उच्च जाति वाले लोगों की उपस्थिति में अपनी छाती को उजागर करने की प्रथा थी. इस प्रथा में महिलाओं को अपनी छाती पुरुषों और महिलाओं दोनों के सामने उजागर करनी पड़ती थी. जिसमें नादर पर्वतारोहियों और एझावा जैसे निचली जाति के व्यक्तियों को उच्च जाति नायर के सदस्यों की उपस्थिति में अपनी छाती को खुला रखना पड़ता था. ऐसे ही, नायर जाति को भी अपने से उच्च जाति के नंबूदिरी ब्राह्मणों की उपस्थिति में ऐसा ही करना पड़ा. ब्राह्मण, जो हिन्दू में सबसे बड़ी जाति मानी जाती है. उन्हें केवल देवताओं की उपस्थिति में छाती खुली रखते थे.
उस समय समाज की स्थिति इतनी दयनीय थी, कि छोटी जाति वाली महिलाओं को अपने स्तन के लिए भी कर देना पड़ता है. इस कर के तहत महिलाओं को अपने सत्न के आकर के हिसाब से कर देना पड़ता था. छोटी जाति कि लड़की के स्तन निकलते ही उसके परिवार से ‘स्तन कर’ लिया जाता था.
इसी प्रथा के खिलाफ लड़ाई को चन्नार क्रांति के नाम से जाना जाता है. आईये आज हम आपक्प अपने इस लेख से पूरी क्रांति का वर्णन करते है.
चन्नार क्रांति (1813 से 1859)
यह बात 19वीं सदी की है, केरला में ‘नीची जात’ की औरतों को अपने छाती ढकने की इजाज़त नहीं थी, नंगी छाती को गुलामी का प्रतीक मन जाता था. इसके चलते निचली जाति के लोगो को कपड़े पहनना मना था. इस प्रथा के चलते उच्च जातिओं की महिलाओं को भी अपने पति के सामने कपड़े पहने की इजाजत नहीं थी. छोटी जाति की लड़की के स्तन निकलते ही उसके परिवार से ‘स्तन कर’ लिया जाता था.
इस प्रथा का विरोध 1813 में शुरू हुआ था. त्रावणकोर की दो छोटी जातियां थीं, उनके नाम हैं ‘एरावा’ और ‘पन्नयेरी नाडर’. इन दोनों जातियों के महिलाये सड़क पर निकल आई, उनकी मांग थी कि उन्हें भी कुप्पायम’ पहनने की इजाजत दी जाये. यह एक तरह कि बनियान होती थी जो महिलाओ द्वारा पहननी जाती थी. जो ऊंची जात की औरतें पहनती थी.
यह महिलाएं 5 साल अपने हकों की मांग रखती रही. साल 1819 में त्रावणकोर के महाराजा, तिरुनल राम वर्मा ने ये कहते हुए फ़रमान जारी किया, कि दलित औरतों को कपड़े पहनने का कोई अधिकार नहीं है. इस फरमान से निराशा हुई लेकिन महिलाओं ने हिम्मत नहीं हारी. महिलाएं अपने हक के लिए लडती रही. जिसके बाद, साल 1820 में त्रावणकोर में एक ब्रिटिश दीवान, कर्नल जॉन मुनरो ने उन सभी दलित औरतों को कपड़े पहनने की इजाज़त दी, जो धर्मांतरण करके ईसाई बन गयी थी.
कर्नल जॉन के इस फरमान ने राज्यसभा को हिला कर रख दिया. उच्च जाति के लोगो ने इसकी निंदा यह कहते हुए कि दलित महिलाएं कपड़े पहनने लगी तो हमारो महिलाओं और उनके बीच क्या फर्क रह जायेगा. जिसके चलते फरमान को वापिस ले लिया गया, और विरोध करती सारी महिलाओं के साथ शारीरिक शोषण किया गया. इसके बाद भी यह विरोध जारी रहा.
साल 1829 से धर्म परिवर्तन, ईसाई औरतों के साथ हिन्दू दलित औरतें बगावत में शामिल होने लगीं. अपनी छाती को ढककर मंदिर जाने लगी, शारीरिक आक्रमण का जवाब देने लगी. इन सबके लिए हिन्दू धर्म के ब्राह्मणों ने ईसाई लोगो को जिम्मेदार ठहराया. उनके हिसाब से वह हिन्दू धर्म को खतम करना कहते है. इन औरतों को दबाए रखने के लिए उच्च जाति के लोगो ने कोई कसर नहीं छोड़ी. और जिस हिसाब से हिंसा बढ़ती गई, बगावत भी और बुलंद होने लगी.
साल 1858 में सारी हदें पार हो गई जब उच्च जाति के मर्द सड़क के बीच में महिलाओं की कुप्पायम उतारकर फेंकने लगे. एक बार सरकारी कर्मचारी ने नाडर औरतों के कुप्पायम अपने हाथों से फाड़ दिए थे. यह धीरज की आखरी परीक्षा थी जिसक जवाब दलितों ने बहुत भयंकर दिया. दलितों द्वारा उच्च जाति के लोगो पर हमला शुरू हो गया. जिसके बाद उच्च जाति के लोगो को जिन्दा जलने लग गए, पूरे के पूरे मोहल्ले जलाये गए. जिसके बाद इसको अनदेखा नहीं किया जा सकता. त्रावणकोर के राजा के पास मद्रास के गवर्नर से आदेश आया की जल्दी यह हिंसा रोको.
चन्नार क्रांति की सफलता
चन्नार क्रांति की सफलता में त्रावणकोर के राजा ने सभी दलित औरतों को अपने स्तन ढकने का अधिकार दे दिया गया. 26 जुलाई 1859 को यह फ़रमान जारी किया गया, भी दलित औरतों को सिर्फ़ कुप्पायम जैसे कपड़ों से खुद को ढकने की इजाज़त मिली . अपने शरीर को ढकने जैसी साधारण बात के लिए त्रावणकोर की दलित औरतों को सालों तक लड़ना पढ़ा. ऊंची जाति की औरतों की तरह साधारण कपड़े पहनने का हक़ उन्हें साल 1915-16 में जाकर ही मिला.
हम आपको बता दे कि साल 2016 में एनसीईआरटी (NCERT) ने स्कूल की किताबों से इनका ज़िक्र भी हटवा दिया गया. चन्नार क्रांति जैसी घटनाएं हमें भूलनी नहीं चाहिए. हमें नहीं भूलना चाहिए कि समाज ने हमारे समाज में दलित महिलाओं के साथ किस तरह के जुर्म किए है.
सौजन्य : Nedrick news
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