AIMIM चीफ ने कहा-भैया को हिंदुत्व बचाना है, गलती उनकी नहीं; सपा प्रमुख का पलटवार-सच सबको पता है
सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के ‘असली हिंदू’ बयान पर AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी भड़क गए। ओवैसी ने कहा,”पिछले विधानसभा चुनाव में अखिलेश की पार्टी सपा को एकतरफा मुस्लिम वोट मिला। भाजपा पूरे देश में मुसलमान को निशाना बना रही है। अखिलेश कह रहे हैं कि असली हिंदुत्व को बचाना है। आप संविधान को नहीं बचाएंगे। आप धर्मनिरपेक्षता को नहीं बचाएंगे।” वहीं, सोमवार को विधानसभा पहुंचे अखिलेश ने ओवैसी के इस बयान पर पलटवार किया। उन्होंने कहा, “सबको पता है प्रदेश में और देश में की सपा किसके लिए क्या काम कर रही है?”
अचानक ओवैसी के इस बयान से उत्तर प्रदेश समेत देश के मुसलमान वोटर्स को लेकर सियासत गर्म हो गई है। ओवैसी के इस बयान से यूपी की सियासत पर क्या असर पड़ेगा। मुसलमान वोट बैंक का आंकड़ा क्या कहता है? तीन पॉइंट में ओवैसी के बयान के मायने पढ़िए?
सबसे पहले अखिलेश का वह बयान पढ़िए, जिसके बाद ओवैसी की प्रतिक्रिया आई है…
5 अगस्त को लखनऊ में जनेश्वर मिश्र की जयंती पर अखिलेश यादव श्रद्धांजलि अर्पित करने पहुंचे थे। ज्ञानवापी पर सवाल पूछने पर अखिलेश बोले,”हमारी तहजीब गंगा जमुनी है। बीजेपी के लोग बंटवारा कर रहे हैं। सच्चे हिंदू लोगों को आगे आना होगा। समाज को बचाने के लिए असली हिंदू लोगों को आगे आना पड़ेगा।”
अब 3 प्वाइंट में ओवैसी के बयान के मायने…
1. सपा को वोट किया तो मुसलमान गुमराह कहलाएंगे
ओवैसी ने ट्वीट करके अखिलेश यादव पर सवाल उठाए हैं। जिस अंदाज में ओवैसी ने अखिलेश को तंज कसते हुए लिखा। उसमें साफ संदेश दिया कि बीजेपी की सरकार मुसलमानों को हिंसा और नाइंसाफी का निशाना बना रही है। ओवैसी ने अखिलेश पर तंज करते हुए लिखा कि उन्हें सांड़ समाचार से फुरसत मिल नहीं रही। ओवैसी ने यह भी कहा कि गलती भैया कि नहीं, गलती तो उन बिचौलियों की है, जिन्होंने डरे हुए मुसलमानों को गुमराह किया है।
ओवैसी ने मुसलमानों को साफ संदेश दिया कि उनका वोट समाजवादी पार्टी को किया जाएगा तो वह गुमराह कहलाएंगे। फिलहाल, ओवैसी ने यह भी लिखा ‘एक आजाद सियासी आवाज के सिवा हमारा कोई और विकल्प नहीं है।’ मुसलमान एकतरफा रिकॉर्ड तोड़ सपा को वोट न करें। राजनीतिक जानकार यह भी कहते हैं कि ओवैसी ने जिस अंदाज में मुसलमानों को गुमराह न होने की सलाह दी है। उससे तो साफ है वह वोट में बिखराव कर सपा का खेल बिगाड़ना चाहते हैं।
2. मुसलमान वोट बैंक के दावेदार सपा, बसपा, कांग्रेस ही नहीं AIMIM भी
ओवैसी ने साफ किया कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, बसपा, कांग्रेस ही मुसलमानों के वोट बैंक के दावेदार नहीं हैं। उनकी पार्टी AIMIM भी दावेदार है। राजनीतिक जानकार करते हैं कि अगर मुसलमानों के वोट बैंक में बिखराव हुआ तो इसका सीधा फायदा भाजपा को होता है। मेरठ, मुरादाबाद के नगर निगम महापौर चुनाव में AIMIM के उम्मीदवार के चुनाव लड़ने की वजह से सपा का उम्मीदवार तीसरे नंबर पर पहुंच गया। मेरठ के निकाय चुनाव के इस परिणाम ने सबको चौंका कर रख दिया। यहां पर बीजेपी का मेयर प्रत्याशी जीता था।
इसके पीछे की मुख्य वजह मुसलमानों के वोट बैंक में बिखराव माना गया। क्योंकि, एक लाख से ज्यादा वोट ओवैसी की पार्टी को मिले थे। इसकी वजह से सपा कैंडिडेट लड़ाई से बाहर हो गया। जानकार यह भी मानते हैं कि 2014 से लेकर अब तक हुए विधानसभा और लोकसभा के चुनाव में मुसलमान कैंडिडेट्स ज्यादा की संख्या में उतरने की वजह से कई जगहों पर बीजेपी की एकतरफा जीत दर्ज की थी। यानी मुसलमानों के वोट बैंक का बिखराव हुआ तो नुकसान सपा, बसपा और कांग्रेस को होगा। लेकिन इसका सबसे ज्यादा फायदा बीजेपी को मिलेगा।
3. मुसलमानों को नया राजनीतिक विकल्प देना
यूपी के वरिष्ठ पत्रकार परवेज अहमद का मानना है कि 2017 के चुनाव के बाद से उत्तर प्रदेश की सियासत में मुसलमानों के मामलों पर अखिलेश की चुप्पी का लाभ ओवैसी ने उठाने की कवायद शुरू कर दी। परवेज अहमद का यह भी कहना है कि लगातार मुसलमान समाजवादी पार्टी की चुप्पी की वजह से एक विकल्प तलाश रहे हैं।
ऐसे में ओवैसी का बयान और निकाय चुनाव में मेरठ, मुरादाबाद, संभल जैसे जिलों में AIMIM पार्टी को मिले वोट बैंक से उत्साहित भी हैं। वह यह भी कहते हैं कि अखिलेश यादव के असली हिंदुत्व को बचाने के बयान पर अचानक से ओवैसी का ट्वीट और बयान आना एक राजनीतिक खेल भी है। ओवैसी ने खुद स्वीकार किया कि उस यूपी विधानसभा के चुनाव में एकतरफा मुसलमानों का वोट समाजवादी पार्टी को मिला था।
मुसलमानों के एकजुट होने का फायदा सपा को मिला, सवाल 2024 में मुस्लिम किसके साथ?
आंकड़े बताते हैं कि मुसलमानों का सपा के साथ एकजुट होने का फायदा 2022 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव को मिला। सपा 47 सीटों से बढ़कर 111 सीटों पर पहुंच गई। एक रिपोर्ट के मुताबिक, 83 फीसदी मुस्लिम सपा के साथ थे। बसपा और कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवारों को भी मुसलमानों ने वोट नहीं किया था। असदुद्दीन औवैसी की पार्टी AIMIM को भी मुस्लिमों ने नकार दिया था। इतनी बड़ी तादाद में मुस्लिम समुदाय ने किसी एक पार्टी को 1984 चुनाव के बाद वोट किया था।
वहीं सवाल यह है कि मुस्लिम मतदाता 2024 के लोकसभा चुनाव में किसके साथ रहेगा। लेकिन इसी तरह से एकजुट रहा तो सूबे की 26 लोकसभा सीटों पर सियासी उलटफेर हो सकता है। ऐसे में मायावती निकाय चुनाव के जरिए दलित-मुस्लिम समीकरण लेकर फिर से लौटी हैं तो कांग्रेस भी उन्हें तरफ उन्हें लाने की कोशिश कर रही है।
वहीं, बीजेपी पसमांदा कार्ड के जरिए मुस्लिमों के बीच अपनी जगह बनाना चाहती है तो ओवैसी मुस्लिम लीडरशिप के बहाने सियासी जमीन तलाश रहे हैं। सपा मुस्लिम मतों को लेकर बेफिक्र है। अखिलेश यादव को यकीन है कि यह वोट फिलहाल उनसे दूर नहीं जाएगा। ऐसे में देखना है कि भविष्य की सियासत में मुस्लिम मतदाता किसके साथ खड़ा नजर आता है।
43 सीटें ऐसी…जहां मुस्लिम उम्मीदवार अपने दम पर जीतते हैं
देश में मुस्लिमों की आबादी 16.51 फीसदी है, तो यूपी में करीब 20 फीसदी मुसलमान यानि 3.84 करोड़ हैं। यूपी में 80 लोकसभा सीट और 403 विधानसभा की सीट हैं। इनमें से लगभग एक तिहाई यानी 143 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम वोटर प्रभावशाली हैं।
43 सीटों पर ऐसा असर है कि मुस्लिम उम्मीदवार यहां अपने दम पर जीत हासिल कर सकते हैं। इन्हीं सीटों पर मुस्लिम विधायक बनते रहे हैं। वहीं, यूपी की सियासत में मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व उनकी आबादी के तुलना में हमेशा से कम रहा है। सूबे में जब-जब बीजेपी सत्ता में आई है। तब-तब मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व कम हुआ है। 2017 के विधानसभा चुनाव में 24 मुस्लिम तो 2022 के चुनाव में 34 मुस्लिम विधायक जीते थे।
2014 लोकसभा चुनाव में 1 भी मुस्लिम सांसद नहीं
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी में एक भी मुस्लिम सांसद नहीं बन पाया था। साल 2019 के चुनाव में यूपी से 6 मुस्लिम सांसद चुने गए थे। इसमें बसपा और सपा के 3-3 सांसद रहे। बसपा से कुंवर दानिश ने अमरोहा से तो अफजाल अंसारी ने गाजीपुर और सहारनपुर से हाजी फजर्लुरहमान ने जीत हासिल की थी। वहीं, सपा से आजम खान ने रामपुर, शफीकुर्रमान ने संभल से तो डॉ. एसटी हसन मुरादाबाद से जीते थे।
हालांकि, 2022 के विधानसभा चुनाव में आजम खान ने रामपुर सीट से इस्तीफा देने के बाद उपचुनाव में बीजेपी ने कब्जा जमा लिया था। सूबे के 7 जिलों में मुसलमानों की आबादी 40 फीसदी से ज्यादा है, इन्हीं सात जिलों में से 6 जगह पर मुस्लिम सांसद 2019 में चुने गए थे।
इन सीटों पर रहेगी खास नजर: मुरादाबाद, रामपुर, बिजनौर, कैराना, अमरोहा, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, बरेली, मेरठ, सम्भल, बलरामपुर, मऊ, बदायूं, बहराइच, बुलंदशहर, गाजियाबाद, बाराबंकी जैसी लोकसभा सीटों पर अच्छी-खासी मुस्लिम आबादी है। यूपी की मौजूदा विधानसभा में मुरादाबाद लोकसभा क्षेत्र से सर्वाधिक तीन विधायक मुस्लिम हैं। इसी तरह रामपुर, कानपुर, बहराइच व आजमगढ़ से दो-दो मुस्लिम विधायक हैं। जाहिर है यह मुस्लिम विधायक भी अपने क्षेत्र में मुस्लिम वोटों की गोलबंदी में जुटेंगे ही।
सौजन्य : Dainik bhaskar
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