‘मोदी का करिश्मा, आरक्षण कोटे में बदलाव’, दक्षिण कर्नाटक में JD(S) को कमजोर करने के लिए BJP के तीन हथियार
मैसूर: वीपी सिंह के सामाजिक न्याय के मसीहा बनने से बहुत पहले, कांग्रेस के मुख्यमंत्री देवराज उर्स ने 1970 के दशक में कर्नाटक की राजनीति में प्रमुख लिंगायत और वोक्कालिगा समुदायों के वर्चस्व को समाप्त करने के लिए इस रणनीति का इस्तेमाल किया था.
हवानूर आयोग द्वारा ओबीसी में सुधार लाने के प्रयास के तीन दशक बाद कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कोटा में परिवर्तन कर कर्नाटक की जटिल जाति संरचना को दोबारा एक नई दिशा में ले जाने की कोशिश की है.
ऐसा कर बीजेपी ने लिंगायत और वोक्कालिगा का कोटा बढ़ाकर कांग्रेस नेता सिद्धारमैया की ‘अहिंडा रणनीति’ (अल्पसंख्यकों, पिछड़े वर्गों और दलितों का एक संयोजन) को चुनौती दी है. दलितों में सबसे पिछड़े वर्ग को बीजेपी अपना वोटबैंक मानती है.
10 मई को होने वाले विधानसभा चुनावों में बहुमत हासिल करने के लिए पार्टी कुछ प्रमुख बातों पर निर्भर है जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करिश्मा, पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा की लिंगायत समुदाय में पकड़, बोम्मई द्वारा कोटा में फेरबदल तथा दक्षिण कर्नाटक में एचडी देवेगौड़ा के नेतृत्व वाले जेडी (एस) के गढ़ में घुसपैठ जैसी चीजें शामिल हैं.
कर्नाटक बीजेपी प्रभारी और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने दिप्रिंट को बताया, ‘बोम्मई सरकार द्वारा किया गया जाति वर्गीकरण कर्नाटक चुनाव में गेम चेंजर होगा. इसका प्रयास पहले की सरकारों ने भी किया, लेकिन वे इसे लागू करने में हिचकिचा रही थीं. बोम्मई सरकार ने समुदायों के लिए आरक्षण बढ़ाकर सामाजिक न्याय का एक अलग स्तर हासिल किया है.’
पूर्व मुख्यमंत्री देवराज उर्स के पैतृक गांव बेट्टादतुंगा में बीजेपी की हिंदुत्व की राजनीति के कम ही समर्थक हैं. लेकिन कई लोग बीजेपी के कोटे में बदलाव को जेडी (एस) और कांग्रेस के जातिगत अंकगणित को कमजोर करने की एक कोशिश के रूप में देखते हैं.
बेट्टाडातुंगा के वोक्कालिगा किसान राजू गौड़ा ने अपनी टिप्पणियों से इस बात पर मुहर लगाई. उन्होंने कहा, ‘बीजेपी ने वोक्कालिगा, लिंगायत और अन्य जातियों के लिए आरक्षण बढ़ाकर अच्छा काम किया है. लेकिन बीजेपी को इस फैसले को पहले ही लागू कर देना चाहिए था. नए आरक्षण फॉर्मूले के बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं. हम परंपरागत रूप से देवेगौड़ा के समर्थक हैं जिन्होंने किसानों के लिए काम किया है. हम बुढ़ापे में उनके साथ विश्वासघात नहीं कर सकते हैं.’
राजू के बगल में बैठे राजेश ने राज्य में सत्ताधारी दल द्वारा किए गए अच्छे कामों को गिनाया. राजेश मडिगा समुदाय से आते हैं, जो कर्नाटक में अनुसूचित जातियों के सबसे बड़े समूहों में से एक है.
उन्होंने कहा, ‘बीजेपी सरकार ने दलितों के लिए घर बनाए हैं. कोरोना महामारी के दौरान हमें फ्री राशन दिया. सरकार ने फ्री वैक्सीन दी, जिसके कारण हमारी जान बच पाई. हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे बेंगलुरु के आईटी सेक्टर में नौकरी करें. हमारे समुदाय के लिए अधिक आरक्षण देने के सरकार के फैसले से हमारा जीवन आसान हो जाएगा. देवगौड़ा का क्षेत्र होने के बावजूद हम चुनाव में बीजेपी को सपोर्ट करेंगे.’
राजेश की बात से पता चलता है कि क्यों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा सहित बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं ने 2013 से 2018 तक मुख्यमंत्री रहने के दौरान वंचित समूहों के लिए जातिगत आरक्षण लागू नहीं करने के लिए अपनी रैलियों में कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया पर निशाना साधा.
हालांकि, आरक्षण कोटा को पुनर्गठित करने की रणनीति उन क्षेत्रों में काम नहीं कर रही है जहां बीजेपी के पास कोई बड़ा और चर्चित चेहरा हो.
बेट्टाडाटुंगा से एक घंटे की दूरी पर एक मंगला गांव है, जो वरुणा निर्वाचन क्षेत्र में अंतर्गत आता है. यहां से सिद्धारमैया बीजेपी नेता और आवास मंत्री वी. सोमन्ना के खिलाफ ताल ठोक रहे हैं.
एक दलित किसान ने दिप्रिंट से कहा, ‘यहां सोमन्ना को कौन जानता है? सिद्धारमैया ने दलितों के लिए कई काम किए हैं. वह सबको नाम से जानते हैं. यहां बीजेपी के लिए कोई चांस नहीं है. उन्हें कुछ वोट मिल सकते हैं लेकिन उनका जीतना बहुत मुश्किल होगा.’
लेकिन बगल के ही एक कोचनहल्ली गांव के रहने वाले और लिंगायत समुदाय से ताल्लुक रखने वाले किसान सुरेशा का मानना अलग है. उन्होंने कहा कि सोम्मना सिद्धारमैया को अच्छी टक्कर दे रहे हैं, लेकिन लोगों की सहानुभूति सिद्धारमैया के साथ है. क्योंकि सिद्धारमैया घोषणा कर चुके हैं कि यह उनका आखिरी चुनाव है.’
जब अमित शाह ने 2 मई को वरुणा का दौरा किया, तो बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं ने मतदाताओं से वादा किया कि अगर सोमन्ना इस सीट से जीतते हैं तो उन्हें सरकार में एक बड़ा पद दिया जाएगा. इसके बाद उनके निर्वाचन क्षेत्र में यह बात फैल गई कि सोमन्ना को मुख्यमंत्री का पद दिया जा सकता है.
सोमन्ना इस निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे, लेकिन बीजेपी ने उन्हें वहीं से मैदान में उतारा. पांच बार के विधायक सोमन्ना कोरोना महामारी के दौरान मैसूरु के जिला मंत्री थे और स्थानीय राजनीति से अच्छी तरह से वाकिफ हैं.
यह अच्छी तरह से जानते हुए कि कांग्रेस और जेडी (एस) ने पांच साल पहले पुराने मैसूर क्षेत्र में अपनी किसी भी प्रकार का नया प्रयोग बंद कर दिया है लेकिन बीजेपी ने अपने इस विपक्षी गढ़ में वोक्कालिगा को पुश कर एक नया दांव खेला है.
प्रधानमंत्री मोदी ने 2014 से अब तक आठ बार मैसूर का दौरा किया है. बीजेपी ने वहां टीपू सुल्तान के इर्द-गिर्द एक कहानी गढ़ने की कोशिश की, लेकिन एक मठ के प्रमुख द्वारा नाराजगी जताने के बाद बीजेपी टीपू सुल्तान का नाम उछालने से पीछे हट गई.
चूंकि बीजेपी के पास इस क्षेत्र में कोई बड़ा नेता नहीं है, इसलिए वह यहां अपने दो वरिष्ठ मंत्रियों पर दांव लगा रही है. जिसमें एक वरुणा से सोमन्ना और कनकपुरा से वोक्कालिगा समुदाय से आने वाले आर. अशोक हैं. अशोक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डी.के. शिवकुमार के घरेलू मैदान में ताल ठोक रहे हैं.
वरुणा और चामराजनगर से सोमन्ना को मैदान में उतारकर, बीजेपी चामराजनगर और मैसूर जिलों के निर्वाचन क्षेत्रों के लिंगायत वोट बैंक को मजबूत करना चाह रही है.
रामनगर जिले के कनकपुरा तालुका में स्थित बेकुप्पे सर्कल में शिवम सिगरेट और पान की दुकान चलाते हैं. शिवम कहते हैं, ‘यहां लड़ाई एकतरफा है. शिवकुमार ने यहां कई प्रोजेक्ट किए हैं, जिसमें अस्पताल से लेकर स्कूल तक हैं. साथ ही, वह कोई भी इमरजेंसी होने लोगों के साथ खड़े रहते हैं. वह अकेले ही यहां मदद करते हैं. इसलिए, अशोक के जीतने की कोई संभावना नहीं है.’ शिवम लिंगायत समुदाय से आते हैं.
यही बात महिलाओं के एक ग्रुप द्वारा भी कही गई, जो चावल मिल में मजदूरी करती हैं और कनकपुरा मेन रोड पर बस का इंतजार कर रही थीं.
महिलाएं कहती हैं, ‘हमारी पूरी कमाई राशन खरीदने और दैनिक जरूरतों को पूरा करने में ही खर्च हो जाती है. गैस सिलेंडर इतना महंगा है कि हम एक पैसा भी नहीं बचा सकते हैं. बीजेपी सरकार में महंगाई ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. हमें उम्मीद है कि शिवकुमार साहब की सरकार ही हमारे जीवन को आसान बनाएगी.’
कनकपुरा से कुछ किलोमीटर दूर, रमन्ना और उनके किसान साथी गर्मी से बचने के लिए एक चाय की दुकान पर आराम कर रहे थे. सभी सामने भगवा वस्त्र पहने एक व्यक्ति को चुनाव प्रचार करते हुए देखने में व्यस्त थे.
रमन्ना दिप्रिंट से बातचीत में कहते हैं, ‘शिवकुमार ने अस्पताल से लेकर स्कूल तक, सब कुछ बनवाया. जबकि बीजेपी सरकार ने अपने मतदाताओं को धोखा देते हुए यहां से एक मेडिकल कॉलेज को हटवा दिया. लोग बीजेपी को वोट क्यों देंगे? लोग शिवकुमार को अशोक के लिए क्यों छोड़ेंगे जिन्होंने यहां केवल दो बार प्रचार किया था?’
राजस्व मंत्री आर. अशोक, जो पद्मनाभनगर से भी चुनाव लड़ रहे हैं, के लिए यहां चुनाव जीतना एक कठिन काम है क्योंकि कांग्रेस के इस गढ़ में बीजेपी का औसत वोट शेयर 4 प्रतिशत से अधिक नहीं है.
कनकपुरा में जीतने की संभावनाओं के बारे में पूछे जाने पर मंत्री आर. अशोक ने बहादुरी दिखाते हुए कहा, ‘आलाकमान ने मुझे पार्टी को मजबूत करने और चुनाव जीतने की रणनीति के साथ भेजा है. हम उन्हें हराने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं.’
शिवकुमार के चुनाव प्रचार का जिम्मा उनकी पत्नी उषा और पुत्र आकाश के पास है जबकि अशोक के लिए प्रचार बीजेपी के वरिष्ठ नेता अश्वथ नारायण कर रहे हैं.
अश्वस्थ नारायण ने भी दिप्रिंट से बातचीत में स्वीकार किया कि कनकपुरा एक मुश्किल निर्वाचन क्षेत्र है क्योंकि ‘शिवकुमार के लोग बीजेपी कार्यकर्ताओं को डराने के लिए सब कुछ कर रहे हैं, लेकिन हम उनके साम्राज्य को चुनौती देने के लिए पूरी उर्जा के साथ काम कर रहे हैं’.
ऐसे कारक जिन्हें बीजेपी नजरअंदाज नहीं कर सकती
दक्षिणी कर्नाटक में, बीजेपी जेडी (एस) के चुनावी प्रदर्शन पर नजर रख रही है. पार्टी अपनी ओर से देवेगौड़ा के गढ़ को कमजोर करने के लिए जाति संतुलन पर ध्यान दे रही है. इसके लिए पार्टी ने वोक्कालिगा समुदाय को आगे बढ़ाया है.
चुनाव की घोषणा से पहले जब अमित शाह ने मांड्या का दौरा किया, तो उन्होंने आरोप लगाया कि कुमारस्वामी सबसे भ्रष्ट नेता हैं. इस सप्ताह की शुरुआत में, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मांड्या से ही अपना चुनावी अभियान शुरू किया, जहां आदिचुंचनगिरी मठ स्थित है. कहा जाता है कि इस मठ का उत्तर प्रदेश में गोरखपुर स्थित गोरखनाथ मठ के साथ घनिष्ठ संबंध है, जिसके प्रमुख कोई और नहीं बल्कि स्वयं यूपी के मुख्यमंत्री हैं.
कुल मिलाकर 61 सीटों के साथ दक्षिणी कर्नाटक बीजेपी के लिए काफी महत्वपूर्ण है. यह न केवल जेडी (एस) का इलाका है बल्कि यह कांग्रेस के दिग्गज सिद्धारमैया और शिवकुमार का गढ़ भी है.
जेडी (एस) ने अपनी आंतरिक समस्याओं और पारिवारिक विवादों के बावजूद इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बरकरार रखा है. पार्टी ने यहां 2004 में 58, 2008 में 30, 2013 में 40 और 2018 में 37 सीटें जीती थीं.
साथ ही दक्षिणी कर्नाटक में हिंदुत्व की राजनीति का प्रभाव काफी कम है या फिर न के बराबर है. लेकिन फिर भी बीजेपी अपनी चुनावी संभावनाओं के बारे में आशावादी है क्योंकि हाल के एक सर्वेक्षण से पता चला है कि उज्ज्वला योजना, किसान सम्मान निधि और पीएम आवास योजना जैसी सरकारी योजनाओं के साथ-साथ मुफ्त कोविड वैक्सीन के कारण लोगों द्वारा पार्टी को एक अच्छी प्रतिक्रिया मिली है.
हासन जिला, जहां देवेगौड़ा ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी, वहां बीजेपी नेता पिछले चुनावों के विपरीत काफी आक्रामक रूप से प्रचार कर रहे हैं. 2018 में जेडी (एस) ने जिले में हासन को छोड़कर सभी छह सीटों पर जीत हासिल की थी. जेडी (एस) के संरक्षक देवगौड़ा ने हासन के बीजेपी विधायक प्रीतम को हराने के लिए मतदाताओं से एक भावनात्मक अपील की है.
हासन में साइकिल की दुकान चलाने वाले टी.एस. मूर्ति ने कहा कि प्रीतम ने महामारी के दौरान लोगों की मदद की. साथ ही उन्होंने टीकाकरण शिविर आयोजित किए और ग्रामीणों के साथ मुश्किल घड़ी में खड़े रहे.
उन्होंने कहा, ‘उन्होंने आवास योजना के तहत आवेदन करने के लिए शिविर आयोजित करके लोगों को इसका लाभ दिलवाया. देवेगौड़ा इस क्षेत्र के सबसे बड़े नेता होने के बावजूद, हम बदलाव लाने के लिए बीजेपी को चाहते हैं.’
केंद्रीय बीजेपी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि पार्टी ने पुराने मैसूर में भारी निवेश किया है.
उन्होंने कहा, ‘हम तटीय क्षेत्र, मलनाड क्षेत्र और उत्तर कर्नाटक के अपने पारंपरिक गढ़ों में अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद कर रहे हैं. लेकिन हमारा ध्यान पुराने मैसूर क्षेत्र पर है. हमने पुराने मैसूर क्षेत्र में काफी संसाधनों का निवेश किया है. जैसे हमने यूपी में मायावती से दलित वोटों का एक बड़ा हिस्सा तोड़ दिया, वैसे ही हम जेडी (एस) से वोक्कालिगाओं को अलग करने और कांग्रेस के दलित वोटो के एकीकरण को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. हम बहुमत हासिल करने के लिए इस क्षेत्र में अपनी सीटों को दोगुना करने की उम्मीद कर रहे हैं.’
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