संविधान सभा की दलित महिला सदस्य दक्षयणी को कितना जानते हैं आप?
कुछ दिन पहले हमने आपको संविधान निर्माण से जुड़े एक ऐसी शख्सियत से रूबरू करवाया था जिसे संविधान के जनक ‘डॉ भीमराव अंबेडकर’ खुद से बेहतर बताते थे. और उनका नाम था स्वामी अल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर. संविधान बनाने में इस शख्सियत के योगदान को हम कभी नहीं भुला सकते.
लेकिन हमने अभी सिर्फ संविधान निर्माण के लिए गठित ड्राफ्टिंग कमिटी में शामिल सिर्फ पुरुषों के योगदान के बारे में बताया है. दरअसल संविधान निर्माण के लिए गठित ड्राफ्टिंग कमिटी के कुल सदस्यों में सिर्फ 15 महिलाएं शामिल थी. लेकिन क्या आपको पता है इन 15 महिलाओं में से दलित समुदाय से आनेवाली एकमात्र युवा महिला भी थी, जिनका नाम था दक्षिणायनी वेलायुदन.
संविधान सभा में किसी महिला का सदस्य बनना अपने आप में बहुत बड़ी उपाधि थी. वो भी ऐसे वक़्त में जब भारतीय समाज में जातिवाद पूरी तरह से हावी थी ऊपर से महिलाओं की सामाजिक स्थिति का तो क्या ही कहना. जिन महिलाओं का घर से बाहर निकलना तक दूभर था उसके लिए उस वक़्त में संविधान सभा में शामिल होना नारी समाज के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि थी.
संविधान सभा की सबसे युवा सदस्य
साल 1912 में कोच्ची के एक छोटे से द्वीप मुलावुकड में जन्मी दक्षायिणी वेलायुदन का उनके निजी और राजनीतिक जीवन पर तत्कालीन केरल में मौजूद प्रचंड जाति व्यवस्था का गहरा प्रभाव रहा है. वेलायुदन ऐसे पुलाया समुदाय से संबंध रखती थी, जिन्हें केरल राज्य के शुरूआती समुदायों में से एक माना जाता था.
घोर छूआछूत का शिकार था पुलाया समुदाय
परिवार के लिए ‘माँ दुर्गा’ से कम नहीं थी ‘दक्षायिणी’
जिस वक़्त दक्षायिणी का जन्म हुआ था उस वक़्त केरल समाज में व्याप्त इस गैर संवैधानिक जाती व्यवस्था और छुआछूत जैसी कुरीतियों का विरोध होना शुरू हो चुका था. अय्यनकाली जैसे समाज सुधारकों ने पुलाया जैसे पिछले समुदाय के उत्थान की दिशा में आवाज उठाना शुरू कर दिया था, हालांकि मंजिल इतनी भी आसान नहीं थी कि एक कदम रखा कि घर में घुस गए.
सौजन्य : Nedrick news
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