यूपी में जमीन बेचने संबंधी प्रस्तावित संशोधन दलितों/आदिवासियों के लिए घातक
राज्यपाल उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दलितों/आदिवासियों की भूमि को बिना जिलाधिकारी की पूर्व अनुमति बेचने संबंधी प्रस्तावित संशोधन को रोकें- आइपीएफ की मांग
लखनऊ: आल इंडिया पीपुल्स फ्रन्ट ने मांग की है कि राज्यपाल उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दलितों/आदिवासियों की भूमि को बिना जिलाधिकारी की पूर्व अनुमति बेचने संबंधी प्रस्तावित संशोधन को रोकें।
फ्रंट के अध्यक्ष एस आर दारापुरी ने प्रेस को जारी बयान में कहा है कि आज उन्होंने राज्यपाल महोदया उत्तर प्रदेश को भेजे गए पत्रक में कहा है कि हाल में समाचार पत्रों के माध्यम से ज्ञात हुआ है कि उत्तर प्रदेश सरकार नई टाउनशिप नीति- 2023 में दलितों/आदिवासियों की भूमि को जिलाधिकारी की पूर्व अनुमति के बिना बेचने की शर्त को रद्द करने के लिए उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता- 2006 में संशोधन करने जा रही है जोकि दलितों/आदिवासियों के लिए बहुत घातक होगा। क्योंकि इससे दबंग/प्रभावशाली लोग लालच, धोखाधड़ी अथवा दबाव द्वारा उनकी जमीन खरीद लेंगे। यह ज्ञातव्य है कि उत्तर प्रदेश में लगभग 73% दलित तथा 79% आदिवासी भूमिहीन हैं और बहुत कम दलितों/आदिवासियों के पास थोड़ी थोड़ी जमीन है और वे लघु एवं सीमांत श्रेणी के कृषक हैं।
दारापुरी ने आगे कहा है कि सत्तर के दशक में विभिन्न सरकारों द्वारा दलितों की भूमिहीनता खत्म करने के लिए उन्हें भूमि आबंटन करके उनका सशक्तिकरण किया गया था। उनकी भूमि को संरक्षित रखने लिए 1975 में जमींदारी उन्मूलन अधिनियम में यह प्रावधान किया गया था कि कोई भी दलित/आदिवासी जिलाधिकारी की पूर्व अनुमति के बिना अपनी जमीन किसी को भी नहीं बेच सकता। यदि किसी विशेष परिस्थिति में वह बेचना ही चाहता है तो वह केवल किसी दलित/आदिवासी को ही बेच सकता है बशर्ते के उक्त भूमि का टुकड़ा बेचने के बाद उसके पास निश्चित मात्रा में भूमि बची रहनी चाहिए। इस आदेश का मुख्य ध्येय दलितों/आदिवासियों कि जमीन को संरक्षित करना तथा उन्हें भूमिहीनता से बचाना था। इसके बावजूद सामान्य जाति के कुछ लोग किसी दलित को खड़ा करके दलित/आदिवासी की भूमि कब्जा लेते थे परंतु यह काफी कम मात्रा में था।
उन्होंने आगे कहा है कि दुर्भाग्यवश 2016 में समाजवादी पार्टी की सरकार ने दलित/आदिवासी वर्ग के हित की अनदेखी करते हुए राजस्व संहिता- 2006 में संशोधन करके दलित/आदिवासी वर्ग के लोगों के साथ-साथ सामान्य जाति के लोगों द्वारा भी इस वर्ग की भूमि खरीदने का कानून पारित कर दिया जबकि उसमें भी जिलाधिकारी की पूर्व अनुमति तथा निर्धारित मात्रा में भूमि शेष रहने की शर्त यथावत रखी गई थी। इसके फलस्वरूप तब से प्रभावशाली लोगों द्वारा भारी मात्रा में दलितों/आदिवासियों की जमीन खरीद ली गई है और दलित/आदिवासी भूमिहीन हो गए हैं।
अब वर्तमान भाजपा सरकार द्वारा नई टाउनशिप नीति-2023 में दलित/आदिवासी वर्ग की जमीन को खरीदने के लिए जिलाधिकारी की पूर्व अनुमति तथा उक्त भूमि के टुकड़े को बेचने के बाद निर्धारित मात्रा में भूमि शेष रहने की शर्त को समाप्त करने हेतु राजस्व संहिता – 2006 में संशोधन प्रस्तावित है जोकि दलितों/ आदिवासियों के लिए बहुत घातक होगा क्योंकि इससे प्रभावशाली लोगों द्वारा लालच एवं दबाव से उनकी भूमि हथियाना संभव हो जाएगा।
आल इंडिया पीपुल्स फ्रन्ट ने राज्यपाल से अनुरोध किया है कि आप दलितों/आदिवासियों के हित को सामने रखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को आदेशित करें कि वह उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता-2006 में प्रस्तावित संशोधन न करे ताकि उत्तर प्रदेश के दलितों को भूमिहीनता की दुर्दशा से बचाया जा सके।
सौजन्य : Hastakshep
नोट : समाचार मूलरूप से hastakshep.com में प्रकाशित हुआ है| मानवाधिकारों के प्रति सवेदनशीलता व जागरूकता के उद्देश्य से प्रकाशित है!