रूपेश की रिहाई के लिए संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार मामलों के स्पेशल रेपुटर मेरी लॉलोर ने लिखा भारत के राष्ट्रपति को पत्र
रांची। बिरसा मुंडा केंद्रीय कारागार में बंद पत्रकार रूपेश कुमार सिंह की रिहाई के लिए संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार मामलों की स्पेशल रेपुटर मेरी लॉलर ने कुछ मांगों और सवालों के साथ भारत सरकार को पत्र लिखा है।
मेरी लॉलोर ने भारत के राष्ट्रपति को लिखे पत्र में रूपेश की गिरफ्तारी पर चिंता जतायी है। उन्होंने लिखा है कि मानवाधिकारों पर रूपेश कुमार सिंह के काम के कारण झूठा आरोप लगाया गया है। उन्होंने उनके स्वास्थ्य पर चिंता जताते हुए कहा कि सरकार का रुख उनके प्रति गलत है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार उपकरणों और इनसे संबंधित मानकों का हवाला देते हुए सरकार से रूपेश कुमार सिंह के अधिकारों को संभावित क्षति से बचाने की अपील की है।
उन्होंने अपने पत्र में लिखा है कि पत्रकार रूपेश सिंह को आम जनता का मुद्दा उठाने के लिए प्रताड़ित किया जा रहा है। उनके स्वास्थ्य पर भी ध्यान नहीं दिया जा रहा है। उन्होंने रूपेश के मामले पर पूरी जानकारी से भी अवगत कराने के लिए कहा है।
इसके अलावा रूपेश की पत्नी ईप्सा शताक्षी ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को खुला पत्र भेज कर अपने पति की बिना शर्त रिहाई की मांग की है।
ईप्सा शताक्षी ने अपने पत्र लिखा है कि रुपेश कुमार सिंह एक ऐसे जुझारू और जनपक्षीय पत्रकार हैं जिन्होंने अपनी कलम को किसी का गुलाम नहीं बनने दिया। उन्होंने हमेशा आदिवासी, दलित, शोषित – पीड़ित व गरीब जनता के हक में लिखा है, जिन्हें 6 महीने पहले 17 जुलाई, 2022 को सरायकेला खरसावां के कांड्रा थाना अंतर्गत केस संख्या -67/21 में गिरफ्तार कर लिया गया है। रुपेश 6 महीने से जेल में बंद हैं। इन 6 महीनों में उनके ऊपर खरसावां जिले के थाना – कांड्रा, केस संख्या 67/21, के साथ-साथ और भी 2 केस जिसमें एक केस संख्या -16/22, थाना- जगेश्वर बिहार, जिला-बोकारो का तथा दूसरा केस संख्या 15/18, थाना-टोक्ला जिला -चाईबासा का थोप दिया गया है।
गौरतलब है कि सभी केस झारखंड के हैं। उस राज्य के, जो आदिवासियों-मूलवासियों के संघर्षों पर बना है और आज भी यहां के मूलवासी-आदिवासी अपने अधिकार व हक के लिए संघर्षरत हैं। वैसे ये बात आप से अच्छा कौन समझ सकता है, क्योंकि आप खुद इस संघर्षरत समुदाय से आते हैं। आज भी झारखंड में आदिवासी – मूलवासी के शोषण और संघर्षों के मुद्दे व्याप्त हैं, जिन्हें मेरे जीवन साथी रुपेश कुमार सिंह ने अपने लेख और रिपोर्टिंग में जगह दी है।
फिर चाहे वह विस्थापितों की समस्या हो, मजदूरों की समस्या हो, सुदूर इलाकों में बसे गरीब आदिवासियों की समस्या हो, भूख से हो रही मौतें हों, आम नागरिकों पर पुलिसिया ज़ुल्म की बात हो या विकास के नाम पर फैक्ट्रियों से आबोहवा में घुलते जहर से आम जन जीवन में हो रही समस्या हो, रुपेश ने हर मुद्दे पर जमीनी पत्रकारिता की है। इतना ही नहीं इन्होंने अपने ट्विटर पेज पर ट्वीट के माध्यम से आपकी और संबंधित अधिकारियों का भी ध्यान आकृष्ट करने की कोशिश की है और इनके ट्वीट पर खुद आपने, झामुमो के ही नेता चम्पई सोरेन के साथ-साथ कुछ पुलिस अधिकारियों ने भी रिट्वीट करते हुए कई बार मामले को संज्ञान में लेने का आदेश दिया है और संज्ञान में लिया है।
कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान रुपेश ने कभी ट्विटर पोस्ट, कभी फोन कॉल तो कभी सीधे तौर पर जैसे भी संभव हुआ है, जरूरत मंद लोगों की हमेशा ही मदद की है। साथ ही स्वतंत्र पत्रकार रुपेश कुमार सिंह स्पाई वेयर-पेगासस पीड़ित भी रहे हैं और इनकी पत्नी होने के कारण मैं भी पीड़ित रही हूं।
हम दोनों इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता भी हैं। इनके मोबाइल में स्पाई वेयर होने की संभावना जिस समय से जताई गई है, वो समय ठीक एक रिपोर्टिंग के बाद की है। वह ग्राउंड रिपोर्टिंग गिरिडीह जिला के एक डोली मजदूर मोतीलाल बास्के की हत्या की घटना पर थी, जिसे सीआरपीएफ द्वारा मारने के बाद ईनामी माओवादी बताया गया था और इस हत्या के विरोध में और मोतीलाल बास्के के परिवार को न्याय दिलाने के लिए दमन विरोधी मोर्चा, जिसमें झामुमो भी शामिल था प्रयासरत था। ईप्सा ने हेमंत सोरेन को संबोधित पत्र में लिखा है कि इसी मामले पर मोतीलाल बास्के को न्याय दिलाने के लिए उस वक्त विपक्ष में रहे बाबूलाल मरांडी के साथ-साथ आप खुद भी प्रयासरत थे, आप दोनों ने राजभवन के सामने धरना भी दिया था।
17 जुलाई 2022 को अपनी गिरफ्तारी के ठीक 2 दिन पहले ही रूपेश की गिरिडीह के प्रदूषण प्रभावित इलाकों पर वेब पोर्टल पर एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी साथ ही रूपेश ने प्रभावित इलाके में औद्योगिक प्रदूषण के कारण चेहरे पर बड़े से ट्यूमर से पीड़ित एक बच्ची का खुद से लिया एक वीडियो भी अपने ट्विटर पेज तथा यूट्यूब पर भी डाला था। जिसका उद्देश्य बच्ची को निःशुल्क ईलाज उपलब्ध कराने में मदद करना था। क्योंकि वह एक गरीब परिवार से थी और परिवार वाले अपनी स्थिति को ऊपर तक पहुंचा नहीं पा रहे थे, इस मामले को चम्पई सोरेन ने भी संज्ञान में लिया था। साथ ही रूपेश के ट्वीट पर कुछ डॉक्टरों ने भी मदद की बात कही थी।
पर तभी अगली सुबह हमारे घर को पुलिस छावनी में तब्दील कर रूपेश की गिरफ्तारी कर ली गई। एक ऐसे पत्रकार को जो समाज के लिए कुछ सकारात्मक कर रहा होता है, जो संवेदनशील मुद्दों को कवर करने के लिए जोखिम लेते हुए भी ग्राउंड पर जाता है, ताकि अपनी लेखनी के साथ न्याय कर सके और समाज के अंतिम कतार के लोगों की बातें सरकार और प्रशासन तक पहुंचे।
मैं इनकी जीवन साथी होने के नाते यह बात दावे के साथ कह सकती हूं कि ये बेहद ही संवेदनशील इंसान हैं। जो हर पल पूरे समाज के बारे में सोचते रहते हैं। पर इसका प्रतिफल मिला है, इन्हें जेल में डाल दिया जाना और एक, एक कर और केस में फंसाते जाना। ताकि ये ज्यादा से ज्यादा दिनों तक जेल में ही बंद रह सकें, समाज की और दूसरों के बच्चों की चिंता करने वाले इंसान को उसके ही परिवार और छोटे से बच्चे से दूर कर दिया गया है।
हालांकि इनकी गिरफ्तारी का विरोध देश, विदेश के तमाम मानवाधिकार संगठन, ‘कमेटी फॉर प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट'(CPJ), मीडिया हाउस सहित समाज के अमनपसंद, न्यायपसंद लोगों द्वारा किया गया है। साथ ही भाकपा माले के बगोदर विधायक विनोद कुमार सिंह ने भी 3 सितम्बर, 2022 को इनकी रिहाई की मांग विधानसभा में रखी थी। पिछले 26 अक्टूबर, 2022 को यूएन स्पेशल रेपुटर आन ह्यूमन राइट्स-मैरी लॉलोर ने कुछ मांगों और सवालों के साथ भारत सरकार को पत्र लिखकर रूपेश की गिरफ्तारी पर चिंता जताई है। जिसे उन्होंने अपने ट्विटर पेज पर भी शेयर किया है।
उन्होंने मुख्यमंत्री को संबोधित पत्र में साफ लिखा है कि आपके एक आदिवासी, मूलवासी मुख्यमंत्री होने के नाते आदिवासी – मूलवासी के हक अधिकार के लिए लिखने वाले पत्रकार की बिना शर्त रिहाई के लिए आपसे सकारात्मक पहल की उम्मीद है।
सौजन्य :janchowk
नोट : यह समाचा मूलरूप से janchowk.comमें प्रकाशित हुआ है. मानवाधिकारों के प्रति सवेदनशीलता व जागरूकता के उद्देश्य से प्रकाशिकिया है|