तीन साल में दलित अत्याचार के 35 फीसदी मामले झूठे
नागौर. पिछले तीन साल में दलित अत्याचार संबंधी करीब 35 फीसदी से अधिक मामले झूठे पाए गए। बलात्कार के ही 81 में से 23 मामले झूठे निकले। सरकार की ओर से मुआवजा भी खूब बंटा। वर्ष 2020 से 2022 तक नागौर जिले में दर्ज दलित अत्याचार के 1407 में से 515 मामले सत्यता से परे थे, इन पर एफआर लगा दी गई , जबकि इन्हें 77 लाख का सरकारी मुआवजा मिला वो भी बेवजह।
सूत्रों के अनुसार हत्या, हत्या के प्रयास, बलात्कार सहित अन्य आपराधिक मामलों की यह स्थिति है। आलम यह है कि झूठे मामलों की संख्या अधिक है। वर्ष 2020 को ही देखें तो 327 मामले दर्ज हुए, इनमें 135 मामलों में एफआर लगाई गई। वर्ष 2021 में 347 में से 155 तो वर्ष 2022 में 417 में से 213 मामलों में एफआर लगानी पड़ी। यानी तीन साल में 35 फीसदी से अधिक मामले झूठे निकले, मजे की बात यह कि इन सभी में सरकार की ओर से मुआवजा राशि भी दी गई जो कभी भी किसी भी हालत में वापस नहीं आने वाली। इनमें हत्या के करीब ढाई दर्जन मामले हैं, इनमें तीन मामले झूठे निकले।
सूत्र बताते हैं कि एक जनवरी 2017 से 31 दिसम्बर 2022 तक करीब अठारह सौ मामले दर्ज हुए हैं, जिनमें लगभग बारह करोड़ का मुआवजा तो दिया जा चुका है । इनमें करीब छह सौ मामलों में एफआर लग गई, जबकि 714 मामलों में ही चालान पेश किए गए। 53 एफआईआर गलत मानी गई। 1082 मामलों में आधी मुआवजा राशि दी गई जबकि 427 को इसकी पूरी राशि मिल चुकी है। इसके बावजूद अभी भी इसका इंतजार कर रहे लोगों की लम्बी फेहरिस्त है।
बलात्कार में इक्का-दुक्का ही दोषी
छह-सात साल में दलित बलात्कार के इक्का-दक्का मामलों में ही आरोपी को सजा मिली है। इन मामलों में भी एफआईआर और चालान पेश होने तक की मुआवजा राशि पीडि़ता ने उठा ली। खास बात यह है कि इस तरह का कोई नियम नहीं है जहां मामले में एफआर लगने के बाद इन पीडि़ताओं से इस राशि को वापस लिया जा सके। फैसला होने के बाद पीडि़त पक्ष को इसकी जानकारी संबंधित थाने को देनी होती है जो आगे की प्रक्रिया के लिए सामाजिक न्याय व अधिकारिता विभाग को ब्योरा देकर यह दिलवाने का काम करता है। अभी तक बलात्कार का एक भी मामला ऐसा नहीं है कि फैसले के बाद भुगतान लेने यहां तक कोई आया हो।
पहले डीएनएन तो अब एफआईआर पर
सूत्र बताते हैं कि पहले एफएसएल की डीएनए रिपोर्ट के बाद पीडि़ता को पहली किस्त देने का नियम बनाया गया था। डीएनए रिपोर्ट में देरी के चलते एफआईआर पर मुआवजे की पहली किस्त देना तय कर दिया गया। पीडि़ता को एफआईआर पर पहली किस्त दी जाने लगी। सात-आठ सालों में बलात्कार की 1565 में से 1258 पीडि़ताओं को एफआईआर दर्ज करने पर पहली और 505 को चालान पेश होने पर दूसरी किस्त मिल चुकी है।
कुछ सच से परे और आधे में रजामंदी
दलित बलात्कार के करीब पैंतीस फीसदी मामले सच से परे होते हैं। करीब आधे मामले रजामंदी से सुलझ जाते हैं। राहत राशि झूठे पीडि़तों अथवा समझौता करने वालों को करीब आधी तो मिल जाती है, जिसे वापस भी नहीं देना पड़ता।
इनका कहना
हाल ही में एक करोड़ 36 लाख का बजट स्वीकृत हुआ है, जिसमें लम्बित मामलों में पीडि़तों को मुआवजा दिया जाएगा। आए दिन मामले बढ़ रहे हैं और लगभग हर मामले पर मुआवजा देय है।
-किशनाराम लोल, उपनिदेशक सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग, नागौर।
सौजन्य : Patrika
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