भारतीय आदिवासीयो के अस्तित्व का सवाल ?
देश में मकरसंक्रांतीकी, लोरी तथा पोंगल के उत्सवों के साथ, आदिवासी मुक्तियोद्धा तिलका मांजी की जयंती ! और इसी देश के मध्यवर्ती छत्तीसगढ़ – आंध्र – तेलंगाना के सीमांत क्षेत्र में, पैरा मीलिटरी के द्वारा नक्सलियों के नाम पर, आदिवासियों के उपर हवाई हमले किए जा रहे हैं !
और भारत की आजादी के 75 साल के इतिहास में ! पहली बार आदिवासी महिला को देश के सर्वोच्च पद पर बैठाया है ! संविधानिक तौर पर वह देश की तीनो सेनाओं की सर्वोच्च कमांडर भी होती है ! क्या आदिवासीयो के उपर चल रहे अॉपरेशन को उनकी मान्यता है ?
भारत के संविधान बनाने के समय ! आदिवासीयो के अधिकारों व हितों की रक्षा के लिए ! विशेष रूप से 5 वी, और -6 वी, अनुसुची बनाने का प्रावधान ! हमारे संविधान सभा ने किया है ! जिस से शेड्यूल एरिया में, बगैर आदिवासीयो के इजाजत से ! सरकार कोई परियोजना नहीं कर सकती है ! और कोई भी गैर आदिवासी व्यक्ति, आदिवासीयो की जमीन नही ले सकते हैं !
वर्तमान सत्ताधारी दल के कई नेता ! संविधान को भी नही मानना चाहते ! तो वह आदिवासीयो के लिए, विशेष रूप से बनाये गए ! विशेष प्रावधानों को भी नही मानते ! इसलिए आदिवासी क्षेत्र में खनन से लेकर, किसी भी तरह की परियोजना को आदिवासीयो के विरोध के बावजूद ! परियोजना के निर्माण कार्य, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओरिसा, आंध्र – तेलंगाना तथा महाराष्ट्र के गडचिरोली के आदिवासी इलाकों में ! ( दंडकारण्य ) लोगों के विरोध की अनदेखी करते हुए ! परियोजनाएं लादने का, जनविरोधी काम करने के कारणों से ! स्थानीय लोगों के विरोध को देखते हुए ! सबसे पहले उसे नक्सल प्रभावित क्षेत्र बोल कर ! तथाकथित कानून और व्यवस्था के नाम पर ! अबतक केंद्रीय रिजर्व फोर्स या कोब्रा बटालियन और स्थानीय पुलिस को तैनात कर के ! आदिवासियों के विरोध को कुचलने के लिए, जमीन परसे उनके उपर आक्रमण करते रहे हैं ! लेकिन अब पिछले दो-तीन दिनों से ! हवाई हमले हेलिकॉप्टरों और ड्रोन के द्वारा, बमबारी करना शुरू किया है ! और जहाँ तक मुझे याद आ रहा है ! आजादी के बाद, भारत में किसी भी जनांदोलनों के उपर हवाई हमले ! भारत सरकार द्वारा, आजादी के, पचहत्तर साल के सुवर्ण महोत्सवी वर्ष को दौरान करना ! भारत के कुल जनसंख्या के अनुपात में ! 8-5,9% आबादी, मतलब लगभग दस करोड़ से भी अधिक जनसंख्या के ! अस्तित्व को खत्म करने की साजिश है !
वैसे भी वर्तमान सत्ताधारी दल का मातृ संघठन आर. एस. एस. उन्हें आदिवासी की जगह वनवासी कहता है ! क्योंकि उनके द्वितीय सरसंघचालक श्री. माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर के, तथाकथित आर्य संस्कृति का सिद्धांत के अनुसार ! आदिवासीयो की गिनती अनार्यो में होती है ! और उनके सिद्धात के अनुसार भारतवर्ष के मूलवासियों में सिर्फ आर्यों का शुमार होता है ! तो आदिवासी का मतलब मूल निवासी को मूल – आदि शब्द हटाने की योजना में, आदिवासी समाज के मूलवासियों के होने पर ही ! मूल से खत्म करने की साजिश के तहत ! उन्हें वनवासी यानी वनों में रहने वाले लोग ! मतलब वह कही से भी आये होंगे ! लेकिन उनकी मूलवासि होने की बात को ही ! वनवासी शब्द का प्रयोग करके ! नकारने के लिए विशेष रूप से शुरुआत की है ! जैसे भगवान गौतम बुद्ध ने समता कहा है ! जो बाबा साहब अंबेडकरजी ने संविधान की प्रस्तावना में ही स्वातंत्र्य, समता और बंधुता की त्रिसूत्री का समावेश किया है ! लेकिन संघ के लोग, कभी भी समता शब्द का प्रयोग करने की जगह ! समरसता शब्द का प्रयोग करते हैं ! क्योंकि समता मे बराबरी का दर्जा देने की बात है ! और समरसता में (“ठेविले अनंते तैसेची रहावे, चित्ती असू द्यावे समाधान “) इस अभंग के अनुसार आपको अनंत मतलब भगवान ने जैसा रखा है ! वैसे ही रहिए, और अपने मन में समाधान रखिए ! क्योंकि आपके पूर्वजन्म के पापों के कारण ! इस जन्म में आप क्षुद्र जाती में पैदा हुए हैं ! इसलिए अभी आप प्रायश्चित करने के बाद ! अगले जन्म में उंची जाती पा सकते हो ! इसलिए समरस होकर जिने की आदत डालिए ! इसलिए समरसता ! समता नही ! आर. एस. एस. ने अपने खुद के 200 से भी अधिक, शब्दों का निर्माण किया है ! फिर वह प्रदेश के नामों से लेकर शहरों के नामों तक ! (औरंगाबाद को देवगिरी, अहमदाबाद को कर्णावति ) और सामाजिक क्षेत्र में, समानता , स्वतंत्रता और बंधुता की त्रिसूत्री को नकारते हुए ! अपनी खुद की शब्दावली का प्रयोग करने की कोशिश, संघ के स्वयंसेवक करते हैं ! इसलिये वह आदिवासीयो की जगह, वनवासी शब्द का प्रयोग जानबूझकर करते हैं !
और हमारे लोग टंट्या भिल, बिरसा मुंडा या तिलका मांजी की जयंती, पूण्यतथी और हूल जोहार के उच्चारण से आगे नहीं बढ़ रहे हैं ! अन्यथा सूदूर उत्तर पूर्व में महाराष्ट्र के ब्राम्हण सुधीर देवधर ! झारखंड जैसे आदिवासी बहुल क्षेत्र में ! उत्तर प्रदेश के अशोक भगत ! और गुजरात महाराष्ट्र के सिमावर्ति इलाके डांग – अहवा में ! बंगाल के स्वामी आसिमानंद ! तिस सालों से पहले जाकर, आदिवासीयो के साथ रहकर ! वहां पर वनवासी कल्याण आश्रमों की स्थापना करके ! उनकी आदिवासी पहचान कि जगह ! उन्हें शबरी के वंशजों से लेकर, हिंदू होने के एहसास दिलाते हुए ! उनकी मूल निवासी की पहचान मिटाने के लिए ! विशेष रूप से कोशिश कर रहे हैं ! और सबसे हैरानी की बात ! यह षडयंत्र आदिवासीयो के साथ ! बरसों से उनके जल – जंगल और जमीन के सवालों पर ! काम करने वाले लोगों के रहते हुए !
संघ के लोग सिर्फ आस्थाओं के मुद्दो के उपर ! आदिवासीयो की पहचान बदलने के काम में, सफलता प्राप्त की है ! जिसके उदाहरण अभि हप्ते भर पहले का ही उदाहरण है ! नारायणपुर नामके, छत्तीसगढ़ के एक चर्च पर ! ह
जारों की संख्या में चलकर जाने वाले लोग कौन थे ? 2002 के गुजरात दंगों के पहले डांग अहवा तथा सुरत के क्षेत्र में ख्रिश्चन चर्च और निवासि स्कूलों के उपर हमलावरों के हाथ किनके थे ? वैसे ही 2004 के फरवरी माह में डांग – अहवा के तथाकथित चंपा सरोवर के परिसर में लाखों की संख्या में आदिवासी समुदाय के लोगों को लेकर शबरी कुंभ मेला आयोजित किया गया ! और उस के पहले 27 फरवरी 2002 के बाद हुए गुजरात के दंगों में शामिल लोगों में और कौन – कौन लोग थे ?
वैसे ही ओरिसा के कंधमाल के मनोहरपुकुर में ! फादर ग्रॅहम स्टेन्स और उनके दोनों मासूम बच्चों को जलाने वाले हाथ कौन लोगों के थे ? और वैसाही नजारा आजकल उत्तर बंगाल और विरभूम जैसे संथाली और राजवंशी दलितों की ! हिंदू करण करने की, संघ के लोगों की कोशिश के परिणामस्वरूप ! शेकडो की संख्या में, हनुमान जयंती और रामनवमी के समय ! हाथों में त्रिशूल, भालो और तलवारो के साथ निकल रहे ! जुलुसो मे शामिल कौन लोग हैं ? जिस बंगाल में इन उत्सवों का, इसके पहले कोई अस्तित्व नहीं था ! काली और दुर्गा पूजा छोड़कर ! साथियों यह सब सवाल पुछने का एकमात्र उद्देश्य ! हमारे बहुत सारे साथियों के जीवन के सबसे बेहतरीन समय ! दलित महिला और आदिवासियों के सवाल ! मुखतः जल जंगल और जमीन के सवाल पर ! काम करने के लिए विशेष रूप से चालीस – पचास वर्षों के खर्च हो रहे हैं ! लेकिन सांस्कृतिक स्तर पर सवाल आस्था का है ! जैसे मामलों पर, संघ के लोग हमारे आंखों के सामने ! दलित महिला और आदिवासियों को ! हिंदू-मुस्लिम, ख्रिश्चन के सवाल पर ध्रुवीकरण करने में ! हमसे दो कदम आगे निकल जा रहे हैं ! अभी भी समय है, हमे आदिवासीयो के जल- जमीन – जंगल ! और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के साथ – साथ ! आदिवासी अस्मिता के सवाल पर गंभीर रूप से सोचकर, कृति करने की आवश्यकता है ! बिरसा मुंडा की जयंती के अवसर पर ! हमने उन्हें सच्चा सम्मान देना है ! तो मैंने अपने मुक्त चिंतन, और वह भी छत्तीसगढ़ आंध्र,-तेलंगाना के क्षेत्र में जो हवाई हमले किए जा रहे हैं ! उस बहाने मैंने यह सब लिखा है ! भूल-चूक हो तो मुझे माफ करेंगे !
डॉ सुरेश खैरनार नागपुर
सौजन्य : Chauthi duniya
नोट : यह समाचार मूलरूप से chauthiduniya.com में प्रकाशित हुआ है. मानवाधिकारों के प्रति सवेदनशीलता व जागरूकता के उद्देश्य से प्रकाशित किया है !