मरघट में भी जात-पात : गुजरात में जाति के हिसाब से अलग-अलग श्मशान घाट
भारत एक जाति प्रधान देश है। यहाँ जाति मरने के बाद भी आपका पीछा नहीं छोड़ती। मरने के बाद भी आपकी लाश को जाति के हिसाब से अलग रखा जाएगा। आप भले ही मर जाएं लेकिन आपकी जाति कभी नहीं मरती। जाति है कि जाती नहीं
श्मशान घाट में भी जात-पात
गुजरात के बनासकांठा ज़िले के होडा गाँव में जातियों के हिसाब से सिर्फ़ बस्तियाँ ही नहीं बंटी हुई, बल्कि जातियों के हिसाब से शमशान घाट भी बंटे हुए हैं। यहाँ जातियों के नाम के हिसाब से अलग-अलग शमशान घाट है। दलित सवर्णों के शमशान घाट में नहीं जा सकते तो पटेल ठाकोर जाति के…. जिसकी जो जाति है, वहीं उसका अंतिम संस्कार होगा।
सवर्ण-ओबीसी और दलितों का अलग श्मशान घाट
गुजरात चुनाव यात्रा के दौरान द न्यूज़बीक की टीम होडा गाँव पहुँची जहां गाँव के डिप्टी सरपंच नरेश ने हमें हैरान कर देने वाली सच्चाई से रूबरू कराया। नरेश ने हमें बताया कि उनके गाँव में हर दलितों के लिए अलग से शमशान घाट है और बाक़ी जाति के शमशान घाटों में उनकी एंट्री बैन है। नरेश बताते हैं कि उन्होंने दलितों के लिए ये ज़मीन भी लंबे संघर्ष के बाद हासिल की… उनके गाँव में आज तक ओबीसी और सवर्णों के शमशान घाट में किसी दलित का अंतिम संस्कार नहीं हुआ है।
इन श्मशानों में कभी नहीं हुआ किसी दलित का अंतिम संस्कार
होडा गाँव के दलित अपने शवों को जलाते नहीं हैं बल्कि उन्हें दफ़ना देते हैं। जातिवाद की सदियों पुरानी प्रथा के कारण मुमकिन हैं उनके पूर्वजों ने ये रास्ता अपनाया हो। कुछ समय पहले दो साल की बच्ची हेतल की मौत हो गई थी लेकिन उसे इतनी कम उम्र में भी जाति का सामना करना पड़ा। ओबीसी और सवर्णों के शमशान घाट में उसके लिए नो एंट्री थी इसलिए उसे दलितों के लिए रखी गई ज़मीन पर ही दफ़ना दिया गया।
कब्रों पर कैक्टस के पौधे लगा देते हैं
दलित अपनी क़ब्रों की पहचान के लिए हर कब्र के ऊपर कैक्टस का एक पौधा लगा दिया जाता है। जैसे कैक्टस के पौधे में अनगिनत कांटे हैं, वैसे ही दलितों की ज़िंदगी में भी जाति के अनगिनत कांटे जन्म से मृत्यु तक चुभते रहते हैं। इस शमशान घाट में ना चार दीवारी की गई है, ना लाइट का इंतज़ाम है। हर तरफ़ झाड़ियाँ हैं। ये जगह अभी भी दलितों के नाम नहीं हुई है इसलिए विकास का रास्ता दलितों के श्मशान घाट की चौखट तक पहुँचते ही ख़त्म हो जाता है।
दलितों के श्मशान घाट में सुविधा नहीं, बाकी में है
नरेश हमें दलितों के शमशान घाट को दिखाने के बाद गाँव के दो और शमशान घाट दिखाने के लिए ले गए। होडा गाँव में सवर्ण और कुछ ओबीसी जातियों के लिए अलग से शमशान घाट बनाया गया है। इस शमशान घाट में टिन शेड, बेंच और चारदीवारी जैसी सुविधाएँ हैं लेकिन दलितों के शमशान घाट में ऐसी कोई सुविधा नहीं मिली।
ठाकोर जाति ने भी बना लिया अपना अलग श्मशान घाट
इसी शमशान घाट के पास एक और शमशान घाट है जहां सिर्फ़ ठाकोर जाति के लोगों का अंतिम संस्कार होता है। यहाँ कोई और जाति का व्यक्ति मरने के बाद भी नहीं पहुँच सकता। इस श्मशान घाट में सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम थे। गेट लगा था और बाढ़बंधी भी की गई थी। यहां सिर्फ ठाकोर जाति के लोगों का ही अंतिम संस्कार हो सकता है।
गुजरात में दलित उत्पीड़न चरम पर
गुजरात में दलितों की आबादी क़रीब 7 फ़ीसदी है। ऐसे में गुजरात से दलित उत्पीड़न की भयानक ख़बरें सामने आती हैं। होडा गाँव की कहानी इस बात का पक्का सबूत है कि कैसे गुजरात का समाज जातियों के हिसाब से बुरी तरह विभाजित है। जीते तो जी तो जाति भेद होता है लेकिन मरने के बाद भी हिंदू धर्म की सवर्ण जातियाँ दलितों को अपने शमशान घाट तक में अंतिम संस्कार नहीं करने देती।
कब होगा इस बीमारी का पक्का इलाज ?
ऐसे में सवाल उठता है कि जाति की इस बीमारी का पक्का इलाज कब होगा? कब जातियों में बंटा समाज एक होगा? इस स्टोरी का पूरा वीडियो देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।
सौजन्य : The shudra
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