आंबेडकर ने हिंदू धर्म क्यों छोड़ा, क्या हैं उनकी 22 प्रतिज्ञाएं? जिस पर मचा है राजनीतिक घमासान
15 अक्टूबर 1956 को नागपुर में दीक्षाभूमि पर डॉ अम्बेडकर ने अपने 365,000 दलित अनुयायियों के साथ हिंदू धर्म को छोड़ दिया। इस अवसर पर, उन्होंने 22 प्रतिज्ञाएँ लीं।
सात अक्टूबर को दिल्ली के आंबेडकर भवन का वो सीन निसंदेह ही देश के अधिकांश लोगों के जेहन में लंबे वक्त तक कायम रहेगा। आयोजकों का दावा है कि 10 हजार दलितों ने हिंदू धर्म त्याग कर बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया। वैसे तो भारत का संविधान किसी भी व्यक्ति को अपनी मर्जी से किसी भी धर्म को त्यागने या अपनाने की आजादी देता है।
इस नाते जिन लोगों ने बौद्ध धर्म स्वीकार किया ये उनकी व्यक्तिगत आस्था का विषय है। लेकिन दिल्ली सरकार के अब पूर्व हो चुके मंत्री राजेंद्र पाल गौतम की सक्रियता ने मामले को ज्यादा संदिग्ध बना दिया। घटना के 39 सेकंड के वीडियो को ट्वीट करते हुए दिल्ली भाजपा सांसद मनोज तिवारी ने ट्वीट किया कि आम आदमी पार्टी हिंदू विरोधी क्यों है? आप का ये मंत्री हिंदू धर्म के खिलाफ शपथ ले रहा है और अन्य लोगों को भी इसे लेने के लिए कह रहा है। आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल के गुजरात दौरे से पहले ही राजेंद्र पाल गौतम का धर्मांतरण कराने वाला मुद्दा गुजरात पहुंच गया। मैं हिंदू धर्म को पागलपन मानता हूं, मैं ब्रह्मा, विष्णु, महेश, राम, कृष्ण को भगवान नहीं मानता हूं। इसी तरह की शपथ वाले सैकड़ों पोस्टर आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल की तस्वीरों के साथ गुजरात के कई हिस्सों में लगाए गए। इसके साथ ही केजरीवाल की तस्वीरों को इस्लामिक वेशभूषा में भी दर्शाया गया। इसके बाद 9 अक्टूबर को खबर आई कि राजेंद्र पाल गौतम ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और कहा कि आंबेडकर की प्रतिज्ञाओं पर बीजेपी गंदी राजनीति कर रही है। अब मामला दिल्ली पुलिस तक पहुंच गया है और गौतम को नोटिस भी जारी कर दिया गया।
क्या हैं डॉ आंबेडकर की 22 प्रतिज्ञाएं?
15 अक्टूबर 1956 को नागपुर में दीक्षाभूमि पर डॉ अम्बेडकर ने अपने 365,000 दलित अनुयायियों के साथ हिंदू धर्म को छोड़ दिया। इस अवसर पर, उन्होंने 22 प्रतिज्ञाएँ लीं, जो इस प्रकार हैं:
1. मुझे ब्रह्मा, विष्णु और महेश में कोई आस्था नहीं होगी और न ही मैं उनकी पूजा करूंगा।
2. मुझे राम और कृष्ण में कोई विश्वास नहीं होगा, जिन्हें भगवान का अवतार माना जाता है और न ही मैं उनकी पूजा करूंगा। 3. मुझे ‘गौरी’, गणपति और हिंदुओं के अन्य देवी-देवताओं में कोई विश्वास नहीं होगा और न ही मैं उनकी पूजा करूंगा।
4. मैं भगवान के अवतार में विश्वास नहीं करता।
5. मैं नहीं मानता और न मानूंगा कि भगवान बुद्ध विष्णु के अवतार थे। मैं इसे सरासर पागलपन और झूठा प्रचार मानता हूं।
6. मैं ‘श्राद्ध’ नहीं करूंगा और न ही ‘पिंड-दान’ करूंगा।
7. मैं बुद्ध के सिद्धांतों और शिक्षाओं का उल्लंघन करने वाला कोई कार्य नहीं करूंगा।
8. मैं ब्राह्मणों द्वारा किसी भी समारोह को नहीं कराऊंगा।
9. मैं मनुष्य की समानता में विश्वास करूंगा।
10. मैं समानता स्थापित करने का प्रयास करूंगा।
11. मैं बुद्ध के ‘महान अष्टांगिक मार्ग’ का अनुसरण करूंगा।
12. मैं बुद्ध द्वारा बताई ‘परमिताओं’ का पालन करूंगा।
13. मैं सभी जीवों पर दया और करूणा रखूंगा और उनकी रक्षा करूंगा।
14. मैं चोरी नहीं करूंगा।
15. मैं झूठ नहीं बोलूंगा।
16. मैं यौन अपराध नहीं करूंगा।
17. मैं शराब, नशीले पदार्थ आदि मादक द्रव्यों का सेवन नहीं करूँगा।
18. मैं अपने रोजाना के जीवन में अष्टांग मार्ग का अनुसरण करूंगा, सहानुभूति और दया भाव रखूंगा।
19. मैं हिंदू धर्म का त्याग करता हूं जो मानवता के लिए हानिकारक है और मानवता की उन्नति और विकास में बाधा डालता है क्योंकि यह असमानता पर आधारित है, और बौद्ध धर्म को अपना धर्म मानता हूं।
20. मेरा पूर्ण विश्वास है कि बुद्ध का धम्म ही एकमात्र सच्चा धर्म है।
21. मैं मानता हूं कि मेरा पुनर्जन्म हो रहा है।
22. मैं सत्यनिष्ठा से घोषणा और पुष्टि करता हूं कि मैं इसके बाद बुद्ध और उनके धम्म के सिद्धांतों और शिक्षाओं के अनुसार अपना जीवन व्यतीत करूंगा।
आंबेडकर ने क्यों त्यागा हिन्दू धर्म?
साल 1923 में जब बाबा साहब भीमराव आंबेडकर भारत लौटे तो जाति के संदर्भ में उनके सामने कई सवाल थे। शुरुआत में उन्होंने समाजवाद और मार्क्सवाद में इस सवाल का हल खोजा। अंत में उत्तर धर्म में पाया। 14 अक्टूबर 1996 को डॉ. भीमराव आंबेडकर ने नागपुर में लाखों दलितों के साथ मिलकर बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया था। ऐसा उन्होंने क्यों किया ये जानने के लिए आजादी के पहले के भारत में जाना होगा। 1947 में भारत अंग्रेजों से आजादी के सामानांतर एक और मांग उठी। जाति प्रथा से आजादी। एक बार मुंबई में महारों की एक सभा को संबोधित करते हुए बाबासाहेब ने कहा था कि मैं आप सभी को विशेष रूप से बताना चाहता हूं, धर्म मनुष्य के लिए है, न कि मनुष्य धर्म के लिए। मानव उपचार पाने के लिए, अपने आप को परिवर्तित करें।”उन्होंने अगले 20 साल सभी धर्मों को पढ़ने में बिताए, और अंततः बौद्ध धर्म को चुना। एक अन्य अवसर पर, उन्होंने लिखा कि जब उन्होंने शुरू में सोचा था कि हिंदू धर्म को भीतर से सुधारा जा सकता है – जैसा कि महात्मा गांधी का मानना था – बाद में उन्होंने अपना विचार बदल दिया। आंबेडकर ने कहा था कि मैंने लंबे समय तक सोचा था कि हम हिंदू समाज को उसकी बुराइयों से छुटकारा दिला सकते हैं और दलित वर्गों को समानता के आधार पर इसमें शामिल कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि अनुभव ने मुझे बेहतर सिखाया है। मैं आज पूरी तरह से आश्वस्त हूं कि दलित वर्गों के लिए हिंदुओं में कोई समानता नहीं हो सकती क्योंकि असमानता पर हिंदू धर्म की नींव टिकी हुई है।
लाहौर सम्मेलन के लिए लिखे भाषण में आंबेडकर ने क्या कहा
1936 में लाहौर के जाति तोदक मंडल के वार्षिक सम्मेलन के लिए लिखे एक भाषण में अम्बेडकर ने तर्क दिया कि हिंदू जाति पदानुक्रम का पालन इसलिए नहीं करते क्योंकि वे “अमानवीय या गलत नेतृत्व वाले” हैं, बल्कि केवल इसलिए कि यह उनके धर्म का अभिन्न अंग है। वे जाति का पालन करते हैं क्योंकि वे गहरे धार्मिक हैं। लोग जाति का पालन करने में गलत नहीं हैं। मेरे विचार में, उनका धर्म गलत है, जिसने जाति की इस धारणा को जन्म दिया है। उसी भाषण में उन्होंने आगे कहा, “झूठ बोलने का कोई फायदा नहीं है। लोगों को यह बताने का कोई फायदा नहीं है कि शास्त्र यह नहीं कहते कि वे क्या कहते हैं, व्याकरणिक रूप से पढ़े जाते हैं या तार्किक रूप से व्याख्या किए जाते हैं। मायने यह रखता है कि लोगों ने शास्त्रों को कैसे समझा है। आपको वह स्टैंड लेना चाहिए जो बुद्ध ने लिया था। आपको वह स्टैंड लेना चाहिए जो गुरु नानक ने लिया था। आपको न केवल शास्त्रों को त्यागना चाहिए, आपको उनके अधिकार को नकारना चाहिए, जैसा कि बुद्ध और नानक ने किया था। आपको हिंदुओं को यह बताने का साहस होना चाहिए कि उनके साथ गलत क्या है उनका धर्म। यह भाषण, हालांकि, कभी नहीं दिया जा सका क्योंकि स्वागत समिति अम्बेडकर के विचारों से खुश नहीं थी और सम्मेलन रद्द कर दिया गया था।
सौजन्य : Prabhasakshi
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