धर्म परिवर्तन पर केंद्र सरकार ये काम करने जा रही है!
केंद्र सरकार हिंदू, बौद्ध और सिख धर्म छोड़कर दूसरा मजहब अपनाने वाले दलितों के लिए बड़ा कदम उठाने जा रही है. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र ने अनुसूचित जातियों के ऐसे सदस्यों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति का पता लगाने के लिए एक राष्ट्रीय आयोग का गठन करने की तैयारी कर ली है. कहा जा रहा है कि दलित समाज के लिए सरकार के इस कदम के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं.
धर्म बदलने वाले दलितों के लिए राष्ट्रीय आयोग
अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र में इस तरह का आयोग बनाने के प्रस्ताव पर काफी समय से चर्चा हो रही थी और अब फाइनली इस पर फैसला लिया जा सकता है. अल्पसंख्यक मंत्रालय और कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के सूत्रों ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि इस प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी गई है. फिलहाल इस पर गृह, वित्त, कानून, सामाजिक न्याय और अधिकारिता जैसे बड़े और महत्वपूर्ण मंत्रालय विचार-विमर्श कर रहे हैं.
धर्म बदलने वाले दलितों के लिए राष्ट्रीय आयोग बनाने का फैसला कई मायनों में महत्वपूर्ण है. मसलन, सुप्रीम कोर्ट में इस संबंध में कई याचिकाएं पेंडिंग हैं. इन पिटिशंस में मांग की गई है कि धर्म परिवर्तन कर ईसाई या मुसलमान बनने वाले दलितों को भी आरक्षण के लाभ दिए जाएं. इस मामले में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का सुप्रीम कोर्ट में दिया एक बयान महत्वपूर्ण है.
बीती 30 अगस्त को तुषार मेहता ने शीर्ष अदालत से कहा था कि वे अगली सुनवाई में बताएंगे कि इन याचिकाओं पर सरकार का क्या स्टैंड है. कोर्ट ने इसके लिए तुषार मेहता को तीन हफ्तों का समय दिया था. वहीं सुनवाई के लिए 11 अक्टूबर, 2022 की तारीख तय की थी. अब खबर है कि सरकार दलित मुस्लिम या दलित ईसाइयों की स्थिति के मूल्यांकन के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक अलग आयोग का गठन करने जा रही है.
इस आयोग के गठन के बाद संवैधानिक बहस भी छिड़ सकती हैं. संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत ‘संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950’ ये कहता है कि हिंदू धर्म, सिख धर्म या बौद्ध धर्म को स्वीकार करने वाले व्यक्ति को शेड्यूल कास्ट नहीं माना जा सकता. लेकिन ये शर्त अनुसूचित जनजाति यानी शेड्यूल ट्राइब पर लागू नहीं होती. ST समाज का व्यक्ति धर्म परिवर्तन के बाद भी आदिवासी समुदाय का सदस्य माना जाएगा. यहां ये भी बता दें कि असली आदेश में केवल हिंदुओं को अनुसूचित जातियों में बांटा गया था. बाद में 1956 में सिखों और 1990 में बौद्धों को भी इस श्रेणी में शामिल किया गया.
पहले भी बना है आयोग
बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार से पहले अक्टूबर 2004 में यूपीए सरकार ने भी धार्मिक और लैंगिक अल्पसंख्यकों के लिए इसी तरह का राष्ट्रीय आयोग बनाया था. देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंगनाथ मिश्रा इसके अध्यक्ष थे. मई 2007 में रंगनाथ मिश्रा आयोग ने अपनी रिपोर्ट सबमिट करते हुए कहा था कि किसी दलित के शेड्यूल कास्ट होने का स्टेटस धर्म पर आधारित नहीं होना चाहिए. रिपोर्ट के मुताबिक, धर्म परिवर्तन के बाद भी एक दलित व्यक्ति को शेड्यूल कास्ट की श्रेणी में रखा जाना चाहिए. ठीक वैसे ही जैसे आदिवासी समुदाय के लिए अनुसूचित जनजाति का सदस्य होने का स्टेटस धर्म-निरपेक्ष है.
हालांकि यूपीए सरकार ने इस सिफारिश को स्वीकार नहीं किया. दलील दी गई कि रिपोर्ट में दिए गए तथ्य जमीनी अध्ययन द्वारा सिद्ध नहीं हैं. इस आयोग ने 2007 में एक अलग स्टडी के तहत फिर सिफारिश की थी कि दलित मुस्लिम और दलित ईसाइयों को शेड्यूल कास्ट का दर्जा दिया जाना चाहिए. लेकिन इसे भी छोटा सैंपल साइज का हवाला देकर रिजेक्ट कर दिया गया था.
रिपोर्ट के मुताबिक, अब मौजूदा सरकार को लगता है कि इस मुद्दे पर नया प्रस्ताव लाना महत्वपूर्ण है. उसका ये भी मानना है कि इस संबंध में कोई निश्चित आंकड़ा भी उपलब्ध नहीं है जिसके आधार पर कोई क्लियर स्टैंड लिया जा सके. बहरहाल, बताया गया है कि आयोग में तीन-चार सदस्य हो सकते हैं. इसकी अध्यक्षता केंद्रीय कैबिनेट मंत्री के लेवल का कोई व्यक्ति करेगा. पैनल को एक साल के बाद इस मसले पर अपनी रिपोर्ट सबमिट करनी होगी. इसके अलावा आयोग इस बात का भी अध्ययन करेगा कि अनुसूचित जाति की सूची में और लोगों या समुदायों को जोड़ने का क्या प्रभाव होगा.
सौजन्य : Thelallantop
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