पनवारी कांड के बाद मजबूती से उभरी दलित राजनीति, जाटों के मजबूत नेता के रूप में उभरे बाबूलाल

पनवारी कांड ने जिले की राजनीतिक दिशा और दशा को बदल दिया। इस घटना के बाद आगरा में दलित राजनीति मजबूती से उभर कर सामने आई। बहुजन समाज पार्टी ने अपनी जड़ें गहरी जमा लीं। वहीं चौधरी बाबूलाल जाटलैंड में जाटों के मजबूत नेता के रूप में उभरे।
पनवारी कांड के वक्त आगरा में चौधरी अजय सिंह केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल थे। वहीं चौधरी बदन सिंह, विजय सिंह राणा जैसे कद्दावर नेता भी मजबूत स्तंभ माने जाते थे। पनवारी कांड के बाद दलित एकजुटता के कारण बहुजन समाज पार्टी के संगठन का विस्तार हुआ। दलित और मुस्लिम गठजोड़ भी पहली बार सामने आया।
इस कांड में जातीय तनाव के बाद आगरा के मुस्लिम नेता हाजी इस्लाम दलित की बेटी की बरात चढ़ाने साथियों के साथ पनवारी पहुंचे थे। इसके बाद बसपा ने आगरा में 3 विधानसभा चुनावों में लगातार दमदार उपस्थिति दर्ज कराई। समाजसेवी और साहित्यकार अमीर अहमद एडवोकेट बताते हैं कि पनवारी कांड के बाद दलित चेतना बढ़ गई। आगरा में मजबूती से स्थापित कांग्रेस को इसका सीधा नुकसान उठाना पड़ा। इस विवाद का असर राष्ट्रीय लोकदल और समाजवादी पार्टी जैसे दलों पर भी पड़ा। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इस कांड के बाद जातिगत राजनीति को बढ़ावा मिला।
सदस्य से सांसद तक का सफर
चौधरी बाबूलाल का राजनीतिक सफर उतार-चढ़ाव वाला रहा है। उन्होंने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत 1975 में जिला परिषद सदस्य के रूप में की थी। 1980 में वह अछनेरा के ब्लॉक प्रमुख चुने गए। वर्ष 1993 में फतेहपुर सीकरी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और 1500 वोट से हार गए। वर्ष 1996 में इसी विधानसभा से 32 हजार से अधिक वोटों से जीते। 2002 में राष्ट्रीय लोक दल से विधायक चुने गए। प्रदेश सरकार में राज्य मंत्री बनाए गए। 2007 तक वह दो बार राज्य मंत्रिमंडल में रहे। वर्ष 2007 व 2012 के विधानसभा चुनाव में वह हार गए। वर्ष 2014 में भाजपा के टिकट पर फतेहपुर सीकरी लोकसभा सीट से सांसद चुने गए। दूसरी बार लोकसभा का टिकट नहीं मिल सका। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में वह फतेहपुरसीकरी विधानसभा सीट से विधायक चुने गए।
सौजन्य : Amarujala
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