19वीं सदी के महानायक ‘ज्योतिबा फुले’ की जयंती, जानिए सामाजिक परिवर्तन और देश के विकास में उनका योगदान
नई दिल्ली। 19वीं सदी के एक महान समाजसुधारक, समाज प्रबोधक, विचारक, समाजसेवी, लेखक, दार्शनिक तथा क्रान्तिकारी कार्यकर्ता ज्योतिराव गोविंदराव फुले की आज जयंती है। देश इन्हें ‘महात्मा फुले’ या ‘ज्योतिबा फुले’ के नाम से भी जानता है। महात्मा फुले ने अपना पूरा जीवन स्त्रियों को शिक्षा का अधिकार दिलाने, बाल विवाह को बंद कराने और देशहित में समर्पित कर दिया। आइये आज उनकी जयंती पर उनसे जुड़ी खास बातों के विषय में बात कर उन्हें याद करते हैं। ज्योतिबा फुले का जन्म 1827 ई. में पुणे में हुआ था। उनका परिवार कई पीढ़ी पहले सतारा से पुणे आकर बस गया था और यहां फूलों के गजरे बनाने का काम शुरू कर दिया था।
जब महात्मा फूले एक वर्ष के थे, तभी उनके माता-पिता का स्वर्गवास हो गया था। इसके बाद से इनका लालन-पालन एक बाई ने किया था। ज्योतिबा ने अपनी शुरूआती पढ़ाई मराठी में की, जिसके बाद उनकी पढाई बीच में ही छूट गई और बाद में 21 साल की उम्र में उन्होंने अंग्रेजी में सातवीं कक्षा की पढाई पूरी की। महात्मा का विवाह 1840 में प्रसिद्ध समाजसेवी सावित्री बाई फूले से हुआ था। दोनों पति-पत्नी ने मिलकर दलितों और स्त्रियों की शिक्षा के क्षेत्र में काफी काम किया। महात्मा ज्योतिबा फुले ने साल 1848 में पुणे में लड़कियों के लिए देश का पहला महिला स्कूल खोला था, जिसमें उनकी पत्नी सावित्रीबाई पहली शिक्षिका बनीं, जिसका काफी विरोध हुआ और उन्हें ये स्कूल बंद करना पड़ा। हालांकि, बाद में ये स्कूल किसी दूसरे स्थान पर फिर से खोला गया।
समाज परिवर्तन के आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने 24 सितंबर 1873 को ‘सत्यशोधक’ समाज की स्थापना की थी। इसका प्रमुख उद्देश्य दलितो, उपेक्षितों, महिलाओं और पीड़ितों को न्याय और शिक्षा दिलाना था। ज्योतिराव फुले की समाज सेवा से प्रभावित होकर 1888 में मुंबई की एक सभा में उन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि से नवाजा गया। समाजसुधारक होने के अलावा महात्मा एक अद्भभुद लेखक भी थे। उन्होंने अपने जीवन काल में ‘गुलामगिरी’, ‘तृतीय रत्न’, ‘छत्रपति शिवाजी’, ‘राजा भोसला का पखड़ा’, ‘किसान का कोड़ा’, ‘अछूतों की कैफियत’ आदि कई पुस्तकें भी लिखीं। महात्मा ज्योतिबा और उनके संगठन के प्रयासों का ही नतीजा था कि सरकार ने ‘एग्रीकल्चर एक्ट’ पास किया। बाल-विवाह विरोधी और विधवा-विवाह के समर्थक ज्योतिबा ने ब्राह्मण-पुरोहित की उपस्थिति के बिना ही विवाह-संस्कार आरम्भ कराया, जिसे मुंबई हाई कोर्ट ने भी मान्यता दी। उनके पहले स्कूल के बंद होने के कुछ ही समय बाद उन्होंने एक के बाद एक बालिकाओं के तीन स्कूल खोल दिए।
कहा जाता है कि साल 1848 में एक बार ज्योतिबा फुले अपने एक ब्राह्मण मित्र की शादी में भाग लेने गये हुए थे, जहां निचली जाति का होने के कारण ज्योतिबा फुले का काफी अपमान किया गया। उसी समय उन्होंने देश में फैली सामाजिक असमानता को जड़ से उखाड़ फेंकने की कसम खाई थी। शिक्षा के अलावा उन्होंने विधवा के लिए आश्रम, विधवा पुनर्विवाह, नवजात शिशुओं के लिए आश्रम, कन्या शिशु हत्या के खिलाफ भी आवाज उठाई। कहा जाता है पहली बार ‘दलित’ शब्द का प्रयोग महात्मा फुले ने ही किया था। इन सारे कार्यों के अलावा फुले समाज की कुप्रथा, अंधश्रद्धा के जाल से भी समाज को मुक्त करना चाहते थे। 28 नवंबर, 1890 को 63 साल की उम्र में देश के इस सच्चे भक्त का निधन हो गया था।
सौजन्य : Newsroompost
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