एमपी में एससी/एसटी के ख़िलाफ़ अत्याचार के 37,000 से अधिक मामले लंबित, दोष-सिद्धि की दर केवल 36 फ़ीसदी
भोपाल: जांच और मुकदमे की गति शायद किसी सरकार की शासन करने की दक्षता का पैमाना होती है, जिसकी जनता पुलिस से अपेक्षा रखती है और जिसका वादा नेता हाई-प्रोफाइल मामलों में फंसने पर ही करते हैं। लेकिन नेमावर में हुए सामूहिक हत्याकांड, जिसने राज्य में राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया था, उसके छह महीने बीतने के बाद भी पीड़ित परिवार को न्याय नहीं मिला। विवश हो कर परिवार को 200 किलोमीटर के न्याय मार्च पर निकलना पड़ा है।
मध्य प्रदेश के देवास जिले की नेमावर तहसील में पुलिस ने 29 जून 2021 को 10 फीट गहरे गड्ढे से तीन नाबालिगों सहित पांच आदिवासियों के अधजले शव बरामद किए थे। ये पांचों लोग विगत 45 दिनों से लापता थे। पुलिस ने इस जघन्य हत्या के आरोप में नौ लोगों को गिरफ्तार किया और मुख्य आरोपित के घरों को ध्वस्त कर दिया। घटना के तुरंत बाद जब सरकार की चौतरफा आलोचना होने लगी तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 2 जुलाई, 2021 को वारदात पर दुख जताते हुए जनता से वादा किया, “नेमावर घटना से मैं भी आहत हूं। ये अपराधी नहीं, नराधम हैं। वे पकड़ लिए गए हैं मगर फास्ट ट्रैक कोर्ट में मामला चला कर इनको सख्त से सख्त सजा मिले, इसमें सरकार कोई कसर नहीं छोड़ेगी। (हम) कार्यवाही का एक उदाहरण पेश करेंगे।”
चौहान ने ये आश्वासन आदिवासी युवा भारती कासडेकर को दिए थे, जिनके परिवार के पांच सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। कासडेकर इस मामले की जांच में देरी से असंतुष्ट होकर न्याय की मांग को लेकर नेमावर से भोपाल तक 200 किलोमीटर की पैदल यात्रा पर निकल पड़ी हैं। हालांकि इस मामले में ट्रायल अभी शुरू हुआ है। लेकिन सवाल है कि यदि लोगों की निगाह में रहने वाले ऐसे किसी मामले में जांच प्रक्रिया शुरू होने में इतना लंबा वक्त लग सकता है तो उन मामलों का क्या होगा, जो सुर्खियों में नहीं हैं? इसका जवाब सरकार के आंकड़ों में है।
सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, केवल 36 फीसदी दोषसिद्धि दर के साथ, मध्य प्रदेश में 2018 से नवंबर 2021 तक अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के खिलाफ अत्याचार के 33,239 मामले दर्ज किए गए हैं। गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने 24 दिसंबर 2022 को कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी द्वारा पूछे गए एक प्रश्न के लिखित उत्तर में राज्य विधानसभा में यह जानकारी दी।
पटवारी ने मध्य प्रदेश में एससी/एसटी अत्याचार अधिनियम-1989 के तहत दर्ज मामलों की जानकारी सरकार से मांगी थी। इस अधिनियम के तहत दर्ज मामलों की संख्या पिछले दो वर्षों में राज्य में बढ़ी है, यहां तक कि COVID-19 की दोनों लहरों के बाद लगाए गए लॉकडाउन में भी वारदातें कम नहीं हुई हैं।
नवीनतम जनगणना के अनुसार, राज्य में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की आबादी क्रमशः 15.62 फीसद और 21.09 फीसद है।
11 जनवरी को, जब कासडेकर और उनके एकमात्र जीवित भाई संतोष 11 दिनों के लंबे न्याय मार्च के बाद राज्यपाल मंगूभाई पटेल से मिलने और मामले को केंद्रीय जांच ब्यूरो को सौंपने की मांग करने के लिए भोपाल पहुंचे तो राज्यपाल मंगूभाई सी पटेल, जो स्वयं भी एक आदिवासी हैं, उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सज्जन सिंह वर्मा के वहां मौजूद रहने के बावजूद मिलने से इनकार कर दिया था।
हालांकि, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार ने 29 दिसंबर को नेमावर की घटना में सीबीआइ जांच की सिफारिश की, जिसके तुरंत बाद पीड़ित परिवार ने न्याय मार्च की घोषणा की।
सीबीआइ जांच की सिफारिश करने के भाजपा सरकार के फैसले को राजनीतिक कदम के तौर पर देखा जा रहा है। सत्ताधारी भाजपा आदिवासी मुद्दे को दोबारा विपक्षी कांग्रेस को नहीं सौंपना चाहती है।
पिछले कुछ महीनों के दौरान, भाजपा सरकार ने आदिवासी मतदाताओं को लुभाने के लिए कई कदम उठाए हैं-जैसे आदिवासी प्रतीकों का सम्मान करने के लिए बड़े कार्यक्रम आयोजित करना, रेलवे स्टेशनों और संस्थानों के नाम उनके समुदाय की शख्सियत के नाम पर रखना और 89 आदिवासी ब्लॉक में पीडीएस राशन की होम डिलीवरी जैसी अन्य रियायतों की घोषणा करना आदि शामिल हैं। राज्य के दोनों प्रमुख राजनीतिक दल-भाजपा एवं कांग्रेस-आदिवासी समुदाय के सदस्यों को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि राज्य विधानसभा की 47 सीटें वर्तमान में आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। इसके अलावा, यह समूह राज्य की अन्य 26 सीटों पर भी चुनाव परिणामों को भी प्रभावित करता है।
कांग्रेस ने नेमावर की घटना को एक बड़ा मुद्दा बना दिया था और जून में इसके उजागर होने के बाद इसको लेकर विरोध प्रदर्शन किया था। मप्र कांग्रेस कमेटी के प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने पीड़ित परिवार से मिलने के लिए नेमावर का दौरा किया और पीड़ित परिवार को 25 लाख रुपये भी दिए थे।
नेमावर में 29 जून 2021 को 10 फीट गहरे गड्ढे से बरामद किए गए पांच शव
घटना के कुछ दिनों बाद, कांग्रेस के दो सदस्यीय तथ्य-खोजी दल, जिसमें पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा और राज्य युवा कांग्रेस के प्रमुख विक्रांत भूरिया शामिल थे, ने पाया कि इस कांड के मुख्य आरोपी को भाजपा से संरक्षण मिल रहा है। ये आरोपी एक हिंदू संगठन भी चला रहा है। मुख्य आरोपी को पहले के आपराधिक मामलों में छोड़ दिया गया था और इस मामले की जांच में भी देरी की एक वजह वे ही हैं। भीम आर्मी, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (जीजीपी), जय आदिवासी युवा शक्ति सहित कई आदिवासी और दलित संगठनों ने परिवार के लिए न्याय की मांग करते हुए पश्चिमी मध्य प्रदेश में विभिन्न स्थानों पर विरोध प्रदर्शन किया था।
पुलिस के कई आधिकारिक सूत्रों ने पुष्टि की है कि नेमावर घटना की जांच अभी शुरू हुई है और आठ गवाहों के बयान भी दर्ज किए गए हैं। एक अधिकारी ने कहा, “हमने बयान दर्ज करने के लिए भारती और संतोष को भी बुलाया है।”
एससी/एसटी अत्याचारों के लंबित मामले और दोषसिद्धि के खराब रिकॉर्ड
नेमावर की घटना कोई अकेली घटना नहीं है। हाल ही में, आदिवासियों और दलितों के खिलाफ अत्याचार के कई मामलों ने राष्ट्रीय सुर्खियां बटोरी थी। नीमच में पिछले महीने चोरी के संदेह में आठ लोगों ने कन्हैयालाल भील नाम के 40 वर्षीय आदिवासी को एक वाहन से बांधकर घसीटा था और उसकी पिटाई की थी, जिससे अस्पताल में उसकी मौत हो गई थी।
28 सितंबर, 2020 को एमपी के गुना जिले में एक दलित युवक की उस समय हत्या कर दी गई थी, जब उसने एक उच्च जाति के व्यक्ति को सिगरेट जलाने के लिए माचिस देने से इनकार कर दिया था।
9 दिसंबर, 2020 को छतरपुर में उच्च जाति के पुरुषों के लिए तैयार किए गए भोजन को सिर्फ छू देने को लेकर एक 25 वर्षीय दलित को पीट-पीट कर मार डाला गया था।
15 अगस्त, 2021 को छतरपुर में एक वृद्ध दलित सरपंच के आने से पहले राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए उच्च जाति सचिव द्वारा उनके साथ मारपीट और गाली-गलौज की गई।
ऐसी कई घटनाओं पर किसी का ध्यान नहीं गया और जिन मामलों पर पुलिस का ध्यान गया, वे शायद ही किसी नतीजे पर पहुंच सके थे।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, एससी/एसटी अत्याचार के 37,751 मामले अदालतों में लंबित हैं- इनमें, अनुसूचित जाति से संबंधित 27,449 मामले हैं, जिनमें सजा की दर 40 फीसदी है और अनुसूचित जनजाति से संबंधित 10,302 मामले में सजा की दर 36 फीसदी है।
उदाहरण के लिए, मध्य प्रदेश ने 2020 में एससी/एसटी के खिलाफ अत्याचार के 9,574 मामले दर्ज किए। लेकिन एनसीआरबी के आंकड़ों से पता चलता है कि 2020 से लेकर अब तक केवल 95 मामले और इसके पिछले वर्ष के 594 मामले ही अदालतों में किसी नतीजे पर पहुंच सके थे।
मध्य प्रदेश के 70 वर्षीय पूर्व महाधिवक्ता आनंद मोहन माथुर कहते है, “न्याय में देरी का मतलब न्याय का नहीं मिलना है। एससी/एसटी से संबंधित मामला होने पर सिस्टम समर्थन नहीं करता है। पुलिस या तो एफआईआर दर्ज करने से बचने की कोशिश करती है या फिर आरोपित को बचाने के लिए अलग तस्वीर पेश करने की कोशिश करती है। नतीजतन, ऐसे मामलों में आरोपितों को आसानी से जमानत मिल जाती है।”
एक मामले का जिक्र करते हुए माथुर ने कहा, “धार जिले की मनावर तहसील में पटेल समुदाय के लोगों के सामने तेज आवाज में संगीत बजाने पर एक 17 वर्षीय दलित लड़के की हत्या कर दी गई लेकिन दलित संगठन के थाने के बाहर विरोध प्रदर्शन के बाद पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज की थी। पुलिस ने हत्या के एक मामले को आत्महत्या में बदल दिया, जिसे इंदौर उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया। कोर्ट ने करीब तीन साल पहले मामले की सीबीआइ जांच के आदेश दिए थे। तब से मामले के बारे में किसी को कुछ पता नहीं है।”
अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के मामलों में वृद्धि के लिए सत्तारूढ़ सरकार को दोषी ठहराते हुए माथुर ने आरोप लगाया कि सत्तारूढ़ दल के नेता एससी/एसटी मामलों के आरोपितों की रक्षा करते हैं। कई बार तो उन्होंने आरोपितों के समर्थन में धरना भी दिया।
माथुर ने कहा, “सैकड़ों आदिवासी और दलित छोटे-छोटे मामलों में सलाखों के पीछे हैं, जिनमें आइपीसी की धारा 107 (जानबूझकर, किसी भी कार्य या अवैध चूक से, उस चीज़ को करने में सहायता करना) शामिल है। न तो उनके पास कानूनी समर्थन है और न ही उनके पास जमानत पाने के लिए पैसे हैं।”
न्यूज़क्लिक की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2019 के एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की जेलों में करीब 58 फीसदी कैदी एससी, एसटी और मुस्लिम समुदाय से हैं।
2011 की जनगणना के अनुसार, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और मुसलमानों की आबादी लगभग 47 फीसदी हैं। दोनों राज्यों की कुल जनसंख्या 9.58 करोड़ है।
इस पर टिप्पणी करते हुए, आदिवासी कांग्रेस विधायक हीरालाल अलावा ने बताया कि भाजपा सरकार ने हाल ही में राहुल यादव नाम के एक व्यक्ति की हत्या से संबंधित एक मामले में सीबीआइ जांच का आदेश दिया था। राहुल को एक उच्च जाति की लड़की के साथ देखे जाने के बाद उसके परिवार के सदस्यों ने कथित तौर पर उन्हें जलाकर मार दिया था।
“घटना के 14 दिनों के भीतर सीबीआइ जांच का आदेश दिया गया था। लेकिन, पांच आदिवासियों की नृशंस हत्या में भाजपा सरकार को सीबीआइ जांच की सिफारिश करने में छह महीने लग गए।”
हाल ही में जारी एनसीआरबी के आंकड़ें जो आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार के मामलों में वृद्धि दर्शाते हैं, उन पर कटाक्ष करते हुए, मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा, “यह डेटा और कुछ नहीं बल्कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की विकास योजना के 16 साल का एक रिपोर्ट कार्ड है। भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार के कार्यकाल में आदिवासियों, दलितों और महिलाओं पर अत्याचार के मामले कई गुना बढ़ गए हैं। असामाजिक तत्वों और अपराधियों का मनोबल ऊंचा होता है और वे कानून से नहीं डरते।”
हालांकि, गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा, “आंकड़े ही दिखाते हैं कि मध्य प्रदेश पुलिस हर मामले को रिकॉर्ड करती है और राज्य में हर व्यक्ति को न्याय मिलता है। अब, हम आदिवासियों, अनुसूचित जाति, महिलाओं और गरीब लोगों के खिलाफ अपराध को रोकने के लिए गैंगस्टर एक्ट लेकर आ रहे हैं।”
सौजन्य : News click
नोट : यह समाचार मूलरूप से hindi.newsclick.in में प्रकाशित हुआ है. मानवाधिकारों के प्रति संवेदनशीलता व जागरूकता के उद्देश्य से प्रकाशित किया गया है !