रोजगार के विकल्प नहीं, इसीलिए गरीब कर रहे गांवों से शहरों में पलायन
जौरा-मुरैना । कोरोना महामारी के दौरान जो लोग शहर से वापस अपने-अपने गांवों में लौटे थे वह अब वापस रोजगार की तलाश में शहरों की ओर पलायन कर चुके हैं। जिनके पास थोड़ी बहुत ही जमीन है, वह कुछ ना कुछ करके जीवन यापन कर रहे हैं, लेकिन जो भूमिहीन हैं उनके लिए पलायन करना मजबूरी है। यह बातें एकता परिषद द्वारा निकाली जा रही न्याय और शांति पदयात्रा को संबोधित करते हुए, एकता परिषद के प्रदेश अध्यक्ष डोंगर शर्मा ने कहीं।
परिषद और सर्वोदय समाज गांधीवादी विचारक पीवी राजागोपाल के नेतृत्व में 21 सितम्बर से न्याय और शान्ति पदयात्रा शुरू की गई है। यह शांति यात्रा ग्वालियर-चंबल के अलावा, बुंदेलखण्ड क्षेत्र में निकाली जा रही है। यह पदयात्रा बुधवार को पहाड़गढ़ क्षेत्र में पहुंची जहां से गुरुवार को देवगढ़ क्षेत्र में पहुंची। देवगढ़ में रात्रि विश्राम करने के बाद एकता परिषद के झंडे व बैनर लेकर चल रहे आदिवासी व एकता परिषद के पदाधिकारी व सदस्य गुरुवार को जौरा पहुंचे। यहां जौरा के आदिवासी मोहल्ला, जवाहर कॉलोनी में यात्रा का रात्रि पड़ाव रखा गया। बुंदेलखंड और चंबल में पदयात्रा की आगुवाई कर रहे एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष रनसिंह परमार ने बताया कि बुंदेलखंड और चंबल इलाके में लोग बड़ी संख्या में ऋतुकालीन पलायन करते हैं। पलायन करने वाले लोगों में ज्यादातर लोग आदिवासी और दलित समाज से आते हैं।
इनकी आजीविका पलायन पर ही निर्भर है। कोरोना महामारी के दौरान बड़ी संख्या में यहां के लोग बाहर फंस गए थे। कुछ लोग फसल की कटाई के लिए और कुछ लोग छोटे मोटे उद्योग-धंधे में रोजगार के लिए पलायन करते हैं। लोगों के पास स्थानीय रोजगार की उपलब्धता नहीं है, नरेगा के अंदर भी लोगों को रोजगार नहीं मिल रहा है, जमीन लोगों के पास है नहीं, जंगल कट रहे हैं तो वनोपज भी नहीं है, तो इनके लिए पलायन ही एक मात्र आजीविका का साधन है। मध्यप्रदेश के धार जिले से आईं एकता परिषद की राष्ट्रीय संयोजक श्रद्धा कश्यप के अनुसार, गांवों के खेतों में फसल होने के बावजूद भी लोगों की संख्या कम नजर आ रही हैं। स्कूल और कॉलेज खुले होने के बाद भी युवा मजबूर होकर रोजगार की तलाश में पलायन कर रहे हैं। गांव में गाय, भैंस, बकरी आदि चराने के लिए बुजुर्गों को छोड़ दिया गया है, 80 प्रतिशत गांव खाली है। यहां से हर दिन लोग मालवा, गुजरात आदि जगहों के लिए रोजगार की तलाश में पलायन कर रहे हैं। प्रदेश का यह क्षेत्र वैसे भी सूखा क्षेत्र है, ऐसे में इनके पास जीवनयापन के लिए पलायन एक मात्र विकल्प रह जाता है। इस यात्रा में गांधी आश्रम के प्रबंधक प्रफुल्ल श्रीवास्तव, शीतल जैन, रमेश आदिवासी, बानार्सी आदिवासी, पटवारी आदिवासी आदि शामिल हैं।
पहाड़गढ से जौरा तक यात्रा का संयोजन कर रहे एकता परिषद के जिला सम्न्वयक उदभान सिंह परिहार ने बताया कि पदयात्रा के दौरान गांव व ग्रामीणों की समस्याओं का रिकार्ड इकट्ठा किया जा रहा है। शुक्रवार को जौरा में एसडीएम को जौरा क्षेत्र के ग्रामीणों की समस्याओं को लेकर ज्ञापन दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि यह पदयात्रा देश के 105 और मप्र के 27 जिलों साथ-साथ विश्व के 25 देशों में आयोजित की जा रही है। वयात्रा के दौरान लगभग पांच हजार पदयात्री पैदल चल रहे हैं और लगभग दस हजार किलोमीटर की दूरी तय की जाएगी। पदयात्रा का समापन 2 अक्टूबर को गांधी जयंती पर किया जाएगा, जिसे दुनिया में अन्तराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
साभार : नई दुनिया
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