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राज वाल्मीकि
बात–बेबात: यह कैसी सामाजिक समरसता!
वे बोले- ”सामाजिक समरसता के लिए जाति खत्म करने की कोई आवश्यकता नहीं है। यह तो हमारी धर्म-संस्कृति का हिस्सा है। हमारे पूर्वजों ने बहुत सोच समझकर कर्मों के आधार पर जाति व्यवस्था बनाई है। इसलिए यह तो बनी रहनी चाहिए। पर सामाजिक समरसता फिर भी हो सकती है।”
आज राह में उनसे मुलाकात हो गई। जिससे डरते थे वही बात हो गई। अरे नहीं, यकीन मानिए, मैं फिल्मी गीत की पंक्ति नहीं गुनगुना रहा। सचमुच उन्हें देख कर लगा कि जिस बात का डर था वही बात हो गई। मैं किसी काम से अपनी कॉलोनी के एक परिचित के घर के पास से गुजर रहा था। वे घर के बाहर अपना स्कूटर साफ कर रहे थे। उनकी नजर मुझ पर पड़ गई। देखते ही मेरी ओर लपके – ”अरे भाई… इधर कहां? बहुत दिन से मुलाकात नहीं हुई। आपके तो दर्शन ही दुर्लभ हो गए। चलिए, घर चलिए। बैठ कर बातें करते हैं।’’
” नहीं भाई, किसी काम से जा रहा हूं। फिर कभी…”
”नहीं, आज तो संडे है। आज कौन-सी ड्यूटी जा रहे हो। एक कप चाय तो पीनी पड़ेगी।” यह कहते हुए वे मुझ से हाथ मिलाते हुए अपने घर की ओर खींचने लगे।
मैं उनके आग्रह को टाल न सका। उनके साथ हो लिया। पर समझ गया कि कम से आधा घंटा तो गया। ऊपर से भारत की सभ्यता-संस्कृति की उपलब्धियों पर उनके प्रवचन भी सुनने होंगे…।
ड्राईंग रूम में प्रवेश करते ही उन्होंने भाभी जी को आवाज लगाई – ”अरी सुनती हो, आज राज भाई को पकड़ कर लाया हूं। जरा चाय-नाश्ता तो बनाओ।” भाभी जी से अभिवादन का आदान-प्रदान हुआ और वे किचन में चली गईं। हम उनके ड्राईंग रूम में आमने-सामने पड़े सोफे पर विराजमान हुए। बीच में शीशे की टेबल पर अखबार रखा था।
वे बचपन से आरएसएस की शाखा के सक्रिय कार्यकर्ता रहे हैं। पक्के संघी हैं। उसी विचारधारा के एक राजनीतिक दल से जुड़े हैं। भारत की सभ्यता-संस्कृति का बढ़ा-चढ़ा कर बखान करना अपना परम कर्तव्य समझते हैं।
वे अखबार की तरफ देखते हुए बोले – ”भाई, आपने आज का अखबार देखा, देखिए अपने देश और चीन की सहमति देख सारी दुनिया चकित है। भारत-चीन ने डेमचोक और डेपसांग से सैनिकों की वापसी शुरू कर दी है। चार साल के सीमा गतिरोध के बाद नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग ने विवाद की बड़ी गांठ खोल दी है। हिमालय के एक बड़े क्षेत्र से दोनों देशों की सेनाएं हटने लगी हैं। यह सुखद है। आखिर भारत की सूझ-बूझ और कूटनीति के आगे दुनिया नतमस्तक है। यह सब हमारे प्रधानमंत्री माननीय मोदी जी की मैजिक यानी उनके नेतृत्व का ही कमाल है।”
मैंने कहा – ”पर भाई, आप लोग ही कहते रहे हैं कि चीन बड़ा धोखेबाज है। दुश्मन है। कब धोखा दे दे पता नहीं। और ये ज़रुरी नहीं है कि भारत और चीन के हाथ मिल रहे हैं तो दिल भी मिल रहे हों। पर कूटनीति यही कहती है कि दिल मिलें या न मिलें हाथ मिलाते रहिए।”
”आप चीजों को आलोचना की दृष्टि से देखते हैं। पर मेरी नजर में यह हमारे देश की बड़ी सफलता है। खैर छोड़िए, ये बताइए आपने प्रात: स्मरणीय परम आदरणीय श्री मोहन भागवत जी का बयान अखबार में पढ़ा?’’
”हां, उन्होंने हिंदुओं की एकजुटता की बात कही है। इन दिनों मथुरा के फरह स्थित परखम के गौ-ग्राम में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक चल रही है। इसमें उन्होंने सामाजिक समरसता की भी बात कही है। उन्होंने चिंता व्यक्त की है कि जाति विभाजन समाज को तोड़ रहा है। कहीं लोग इकट्ठा हों तो उनकी जाति पूछी जाने लगती है। ये चिंता का विषय है। सभी को एकजुट करना होगा। सामाजिक समरसता लाने के लिए गहनता से विचार-विमर्श चल रहा है।”
”हां, आरएसएस सही कह रहा है कि सामाजिक समरसता से ही देश का विकास होगा। इसके लिए हिंदुओं की एकता जरूरी है। हमारे बुलडोजर बाबा भी सही कह रहे हैं कि हिंदू अगर बंटेंगे तो कटेंगे। एक रहेंगे तो नेक रहेंगे। कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकेगा।”
”आपके योगी बाबा ठीक ही कह रहे हैं। उत्तर प्रदेश में नौ सीटों के लिए उचचुनाव जो हो रहे हैं। ऐसे में चुनाव जीतने के लिए ये जरूरी हे। दूसरी बात है महाराष्ट्र और झारखंड में भी विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में वोट हासिल करने के लिए ये कहना जरूरी है।”
”अरे नहीं राज भाई, बात ये है कि हिंदू एकजुट होंगे तो हिंदुस्तान आगे बढ़ेगा। आप को तो पता ही है कि ये देश पहले सोने की चिड़िया कहलाता था। यहां दूध की नदियां बहती थीं। सारी दुनिया का ज्ञान-विज्ञान हमारे पास था। हमारा ज्ञान लेकर ही विदेशों ने तरक्की की है। हमारी छवि विश्वगुरु की रही है। हम चाहते हैं कि ये देश फिर से उसी आन-बान-शान को प्राप्त करें। वैसे जब से मोदी जी प्रधानमंत्री हुए हैं दुनिया में हमारा रुतबा बढ़ा है। अब सामाजिक समरसता और आ जाए तो हिंदुस्तान की बल्ले-बल्ले हो जाए।” वे प्रसन्न भाव से बोले।
तब तक भाभी जी चाय-नाश्ता टेबल पर रख कर चली गईं।
मैंने चाय का प्याला उठाया और अपने और उनके प्याले के अंतर पर गौर किया, उन्होंने मेरी तरफ देखा और कुछ झेंप से गए। मैं मुस्कुराया और चाय की चुस्की लेते हुए कहा- ‘’आप तो जातिवाद को अपनी संस्कृति का हिस्सा मानते हैं। इसलिए जाति खत्म करेंगे नहीं। फिर सामाजिक समरसता कैसे हो सकती है?”
वे बोले- ”सामाजिक समरसता के लिए जाति खत्म करने की कोई आवश्यकता नहीं है। यह तो हमारी धर्म-संस्कृति का हिस्सा है। हमारे पूर्वजों ने बहुत सोच समझकर कर्मों के आधार पर जाति व्यवस्था बनाई है। इसलिए यह तो बनी रहनी चाहिए। पर सामाजिक समरसता फिर भी हो सकती है।”
”कैसे?’’
”जाति के नाम पर हम कोई छुआछूत न करें और संप्रदाय के नाम पर भेदभाव न करें।’’
”पर इसे व्यवहार मे कैसे लाएंगे? जाति रहेगी तो दिमाग में जातिवादी मानसिकता रहेगी। कथित उच्च जाति में जन्में व्यक्ति को अपनी जाति का दंभ रहेगा। कथित निम्न जाति के व्यक्ति से वह नफरत करेगा। उसके साथ न रोटी का रिश्ता रखेगा न बेटी का। समाज में गैर बराबरी यथावत रहेगी। फिर सामाजिक समरसता कैसे?’’
‘’ देखिए राज भाई, जमीनी स्तर पर तो जातियों की गैर बराबरी रहेगी ही। कौन ब्राह्मण, ठाकुर, बनिया दलितों के साथ भला रोटी-बेटी का रिश्ता रखना चाहेगा। यह असमानता तो स्वाभाविक है। पर हमारा मकसद यह है कि ऊपर से हम ऐसा दिखाएं कि हम चाहे किसी भी जाति के हिंदू हों। हम सब एक हैं। तभी हम दुश्मनो का मुकाबला कर सकेंगे।’’
”दुश्मनों का?’’
”अरे इन्हींं मुसलमानों, ईसाईयों और वामपंथियों का। हिंदू राष्ट्र को खतरा इन्हीं से है।’’
”अस्सी प्रतिशत हिंदुओं को भला इन बीस प्रतिशत लोगों से खतरा कैसे हो सकता है? इसका मतलब आप मुसलमान, ईसाई और वामपंथियां को घृणा की दृष्टि से देखते हैं। उन्हें अपना दुश्मन जैसा समझते हैं। ऐसे में सर्व धर्म समभाव की भावना कैसे विकसित होगी?”
”देखिए, सर्व धर्म समभाव की तो कोई बात ही नहीं है। हमारे धर्म का किसी से कोई मुकाबला नहीं। हमारा सनातन धर्म सर्वश्रेष्ठ है। मुसलमान, ईसाई और वामपंथी ये तो हिंदू राष्ट्र विरोधी हैं। इनकी परवाह नहीं। पर हमारे हिंदू भाई जाति के नाम पर न बंटें। इसके लिए हम जमीनी स्तर पर हिंदू बस्तियों में बैठकें कर रहे हैं। हमारा संगठन अगले साल सौवें साल में प्रवेश कर रहा है। ऐसे में हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए समाज में समरसता जरूरी है। सामाजिक समरसता बनी रहे। यही हमारा प्रयास है।…” वे गदगद भाव से बोले जा रहे थे।
खैर, मेरी चाय खत्म हो चुकी थी। मैं उठ खड़ा हुआ था। उनसे हाथ मिलाकर घर से बाहर निकल आया। उनकी सामाजिक समरसता की परिभाषा मेरी समझ में नहीं आ रही थी। उनके अनुसार जाति भी बनी रहे, जातिगत छुआछूत और भेदभाव भी बना रहे। दूसरे धर्मों के प्रति घृणा भी बनी रहे। और सामाजिक समरसता भी कायम रहे। यह कैसी सामाजिक समरसता है?
सौजन्य: न्यूज़क्लिक
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