बुलडोजर आतंक: अतिक्रमण के बहाने अल्पसंख्यकों पर निशाना
इन दिनों सुप्रीम कोर्ट बुलडोजरों द्वारा की जा रही तोड़फोड़ की कार्रवाई के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है। याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि मुसलमानों के घरों और पूजा स्थलों को निशाना बनाया जा रहा है, और सबसे अधिक नुकसान उन राज्यों में हो रहा है जहां बीजेपी सत्ता में है।
अभय कुमार
1 अक्टूबर को जस्टिस बी. आर. गवई और के.वी. विश्वनाथन की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए कड़े शब्दों में कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और धर्म के आधार पर किसी की संपत्ति को नष्ट नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि देश का कानून किसी आरोपी या अपराधी के घर को ध्वस्त करने की इजाजत नहीं देता। याचिकाकर्ताओं के तर्कों पर विचार करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह जल्द ही पूरे देश के लिए दिशानिर्देश जारी करेगा, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि किसी का घर अवैध रूप से न तोड़ा जाए। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि उसका निर्णय अनधिकृत निर्माणों और सार्वजनिक अतिक्रमणों को सुरक्षा नहीं देगा।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का व्यापक स्वागत हो रहा है, कुछ लोग मानते हैं कि कोर्ट को इस बुलडोजर कार्रवाई के खिलाफ पहले ही स्वत: संज्ञान लेना चाहिए था। उनके अनुसार, उत्पीड़ितों की नजर में बुलडोजर आतंक और अन्याय का प्रतीक बन चुका है। दुनिया के किसी भी लोकतंत्र में यह उदाहरण नहीं मिलता कि किसी आरोपी के घर को इस तरह गिराया गया हो। जिस तरह से भाजपा शासित राज्यों में अल्पसंख्यकों और अन्य वंचित समुदायों के घरों को निशाना बनाया गया है, इससे यह सवाल उठता है कि क्या देश में वास्तव में कानून का शासन है।
देश का संविधान और सुप्रीम कोर्ट भी यह कहता है कि नागरिकों को सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ शांतिपूर्वक विरोध करने का अधिकार है। लेकिन, जिन मुसलमानों ने सीएए और एनआरसी के खिलाफ शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक तरीके से विरोध किया, उनमें से कई को गिरफ्तार किया गया, उन पर मुकदमे चले और उनके घर बुलडोज़र से गिरा दिए गए। कुछ ही घंटों में उनके परिवार सड़कों पर सोने को मजबूर हो गए।
किसी भी व्यक्ति की कई यादें और भावनाएं उसके घर से जुड़ी होती हैं। कोई भी इंसान अपनी आँखों के सामने अपने आशियाने को ढहते हुए नहीं देख सकता। लेकिन वही दर्द, जिसे दिल सहन नहीं कर सकता, उत्तर प्रदेश, असम, गुजरात, मध्य प्रदेश और अन्य भाजपा शासित राज्यों में निर्दोष मुसलमानों को झेलना पड़ रहा है।
अक्सर देखा गया है कि भाजपा शासित राज्यों में कानून का उल्लंघन कर मुसलमानों को विस्थापित किया जा रहा है। अगर कोई मुसलमान अपने अधिकारों के लिए प्रदर्शन करता है, तो कुछ ही घंटों में उसके घर पर बुलडोजर चलाया जाता है। कई मामलों में न तो कोर्ट से अनुमति ली जाती है और न ही कोई नोटिस जारी किया जाता है। यदि नोटिस दिया भी जाता है, तो अपील करने या कानूनी प्रक्रिया अपनाने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया जाता। अवैध निर्माण और अतिक्रमण के बहाने अक्सर मुसलमानों के घरों को गिरा दिया जाता है।
यह भी दिलचस्प है कि जैसे ही किसी मुसलमान पर किसी अपराध का आरोप लगता है, पुलिस और प्रशासन को तुरंत उसके घर के अवैध निर्माण से जुड़े सबूत मिल जाते हैं, और फिर उसके घर को तोड़ने की कार्रवाई शुरू हो जाती है।
कई मामलों में, बुलडोज़र आतंक ने मानवाधिकारों के उल्लंघन की सभी हदें पार कर दी हैं। जब पीड़ितों ने अपने घरों के टूटने का विरोध किया, तो उन्हें पुलिस की बदसलूकी और मारपीट का सामना करना पड़ा। यहां तक कि महिलाओं और बच्चों को भी नहीं बख्शा गया।
उत्पीड़ितों के साथ खड़े होने के बजाय, राष्ट्रीय मीडिया ने बुलडोजर आतंक का समर्थन किया। मुख्यधारा के पत्रकारों ने बेहद असंवेदनशील तरीके से बुलडोजर के पास जाकर विध्वंस की सनसनीखेज रिपोर्टिंग की। मीडिया ने वही दिखाया जो सत्ताधारी दल चाहता था। विश्व प्रसिद्ध मानवाधिकार संगठन ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल’ ने भारत में हाल की बुलडोजर कार्रवाई पर दो रिपोर्ट प्रकाशित की हैं, जिन्हें उनकी वेबसाइट पर पढ़ा जा सकता है। ये दस्तावेज़ बुलडोजर आतंक की क्रूरता, संविधान के अपमान और कानून के दुरुपयोग की गवाही देते हैं।
जिस तरह से बुलडोजर की मदद से मुसलमानों और अन्य पीड़ित समुदायों के घरों को निशाना बनाया गया, वह सांप्रदायिक ताकतों की सोची-समझी साजिश का हिस्सा है। जब किसी पीड़ित का घर बुलडोजर से गिराया जाता है, तो इसके पीछे का असली मकसद उनके दिलों में भय और असुरक्षा की भावना पैदा करना होता है।
भारत का संविधान कानून के शासन और सभी के लिए समान अधिकारों की बात करता है, लेकिन जब किसी मुस्लिम के घर को बिना कानूनी प्रक्रिया के तोड़ा जाता है, तो यह पूरे मुस्लिम समुदाय को यह संदेश देता है कि उन्हें देश में दोयम दर्जे के नागरिक के तौर पर रहना चाहिए।
जब बुलडोजर चलता है, तो कुछ ही लोगों के घर टूटते हैं, लेकिन भय और आतंक की छाया बहुत दूर-दूर तक फैल जाती है। आतंकवाद की परिभाषा करते समय विशेषज्ञ इसे केवल हिंसा तक सीमित नहीं रखते; इसका एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी होता है। इसमें व्यक्ति प्रत्यक्ष हिंसा का शिकार न होते हुए भी उसके नकारात्मक प्रभावों से अछूता नहीं रहता।
यही कारण है कि सांप्रदायिक सरकारें न केवल अल्पसंख्यकों के घरों को ध्वस्त करने के लिए बुलडोजर का उपयोग कर रही हैं, बल्कि फिरकापरस्त ताकतें अपनी रैलियों में बुलडोजर के प्रतीक का भी इस्तेमाल कर रही हैं। जनता के पैसे को पानी की तरह बहाकर यह प्रचार फैलाया जा रहा है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने “बुलडोजर न्याय” के ज़रिए राज्य में सुशासन स्थापित कर दिया है।
दुख की बात है कि जिस योगी आदित्यनाथ के शासन में अनगिनत निर्दोष मुसलमानों के घर ध्वस्त किए गए हैं, उन्हें विकास का प्रतीक माना जा रहा है। योगी को “बुलडोजर बाबा” कहकर उनकी प्रशंसा की जा रही है। यूट्यूब पर कई वीडियो अपलोड किए गए हैं, जिनमें योगी को एक बड़े हिंदू नेता के रूप में दिखाया गया है, जो अपराधियों को शीघ्र सजा देने में विश्वास रखते हैं और राज्य को अपराध से मुक्त करने के लिए दिन-रात काम कर रहे हैं।
कई वीडियो में गायक और गायिकाएं योगी की बुलडोजर नीति की प्रशंसा कर रहे हैं। इन वीडियो में ज़मीन पर ढहते मकान और रोते-बिलखते परिवारों पर जश्न मनाया जा रहा है। इन वीडियो को देखकर यह स्पष्ट होता है कि एक खास धर्म के मानने वालों को अपराधी के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। ऐसे गाने और वीडियो मुसलमानों को देश के लिए “खतरा” बताते हुए बहुसंख्यकों के दिलों में धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति भय पैदा कर रहे हैं।
निष्कर्ष यही है कि बुलडोजर आतंक लोकतंत्र के लिए एक बड़ा खतरा बनकर उभर रहा है। उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट दिशानिर्देश बनाते समय इस मुद्दे पर व्यापक दृष्टिकोण अपनाएगा। वह न केवल पीड़ितों को न्याय दिलाने का आदेश जारी करेगा, बल्कि दोषी अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई करेगा, ताकि संविधान-विरोधी ऐसी कार्रवाइयों की पुनरावृत्ति न हो।
सौजन्य: जनचौक
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