यूपी में अब संघ लड़ेगा भाजपा की लड़ाई:दलित-पिछड़ों को मनाने गांव-गांव जाएगा; इंडी गठबंधन को संविधान-आरक्षण के मुद्दे पर ही घेरेगा
पहले आरएसएस और भाजपा के बीच सब कुछ ठीक नहीं था। लेकिन, अब स्थित बदल गई है। यूपी में आरक्षण और संविधान के मुद्दे पर संघ ने कमान संभाली है। पिछड़ों और दलितों को मनाने की जिम्मेदारी संघ उठाएगा। लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ बने एंटी रिजर्वेशन और संविधान बदलने के माहौल को पक्ष में करने के लिए गांव-गांव आयोजन करेगा।
लोकसभा चुनाव में यूपी में भाजपा की हार की प्रमुख वजह आरक्षण और संविधान के मुद्दे को माना गया। इंडी गठबंधन ने लोकसभा चुनाव में माहौल बनाया कि अगर भाजपा को 400 सीटें मिलीं, तो अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्ग का आरक्षण समाप्त हो जाएगा। भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी तो वह संविधान बदल देगी। इससे सबसे ज्यादा नुकसान पिछड़ों और दलितों को होगा।
चुनाव में यह मुद्दा दलितों और पिछड़ों के घर-घर तक पहुंच गया। नतीजा- यूपी, राजस्थान और पश्चिम बंगाल में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। लगातार तीसरी बार पूर्ण बहुमत की मोदी सरकार बनाने का भाजपा का सपना साकार नहीं हुआ।
संघ और भाजपा को आशंका है कि यूपी में दलितों और पिछड़ों के बीच अभी भी यह मुद्दा जिंदा है। इस कारण होने वाले उपचुनाव के साथ विधानसभा चुनाव में भी नुकसान हो सकता है। इसी को लेकर अब संघ ने दलितों-पिछड़ों के साथ ग्रामीण इलाकों में राष्ट्रवाद के मुद्दे को धार देने की कमान संभाली है। साथ ही संघ विपक्ष के एजेंडे को भी गलत साबित करेगा।
नाराज था संघ, असर लोकसभा चुनाव में यूपी में भी दिखा
लोकसभा चुनाव के दौरान यह कहा जा रहा था कि आरएसएस के शीर्ष पदाधिकारी भाजपा के टॉप नेताओं से नाराज हैं। इसका असर यूपी में लोकसभा चुनाव में भी दिखा। भाजपा 33 सीटों से आगे नहीं बढ़ पाई। चुनाव परिणाम में भाजपा की कमजोर स्थिति के लिए संघ की नाराजगी भी बड़ा कारण मानी गई।
इसके बाद यूपी में बीते दिनों संघ के सह सरकार्यवाह अरुण कुमार ने संघ, सरकार और भाजपा के पदाधिकारियों के साथ बैठक की। माना जा रहा है, इसी बैठक में यह रणनीति बनी थी कि अब कोर मुद्दों पर संघ काम करेगा। सरकार और भाजपा को संघ के रास्ते पर ही चलना है। अब माना जा रहा है कि संघ जिस प्रकार सक्रिय हुआ है, उससे साफ है कि उसकी नाराजगी दूर हो गई है। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक रतनमणिलाल कहते हैं- आरएसएस पहले सक्रिय नहीं था, लेकिन अब हो गया है। आरएसएस का सक्रिय होना भाजपा के लिए मजबूती का संकेत है।
आरएसएस के अखिल भारतीय संपर्क प्रमुख सुनील आंबेकर 3 दिवसीय प्रवास पर 13 सितंबर को लखनऊ आ रहे हैं। वह 13 से 15 सितंबर तक भारती भवन में संघ के अवध प्रांत और पूर्वी क्षेत्र के पदाधिकारियों के साथ मंथन करेंगे। विश्व संवाद केंद्र में प्रचार विभाग की बैठक लेंगे। बैठक में विभाग को बड़ी जिम्मेदारी मिलेगी। इसके तहत मीडिया से जुड़े लोगों के साथ सोशल मीडिया पर सक्रिय लोगों को संघ से जोड़ना है। विभाग को गांव-गांव तक अपना काम फैलाना है और इसके जरिए लोगों को भी जोड़ना है। विपक्ष के एजेंडे की सच्चाई जनता तक पहुंचाने के साथ राष्ट्रवाद से जुड़े विषयों का प्रचार-प्रसार करना है।
इन तीन मुद्दों पर ऐसे काम करेगा संघ
1- सामाजिक समरसता पर जोर रहेगा: आरएसएस के स्वयंसेवक और उससे जुड़े संगठनों के कार्यकर्ता यूपी के शहरी और ग्रामीण इलाकों में दलित और पिछड़ी बस्तियों में लगातार रहेंगे। वहां पर समरसता भोज के साथ अन्य कार्यक्रम करेंगे। इन कार्यक्रमों से बताया जाएगा कि भाजपा पिछड़ों-दलितों के अधिकार में कटौती नहीं करेगी। यह भी बताया जाएगा कि संविधान बदलने का काम भी कांग्रेस ने ही किया है। OBC आयोग को संवैधानिक दर्जा मोदी सरकार ने दिया है। देश में सबसे ज्यादा पिछड़े और दलित वर्ग के सांसद, विधायक और अन्य जनप्रतिनिधि भाजपा के ही हैं। मोदी और योगी सरकार पूरी तरह दलित और पिछड़ा वर्ग की हितैषी है।
2- आरक्षण के मुद्दे पर रहेगा जोर: संघ सूत्रों के मुताबिक, आरएसएस का जोर आरक्षण के मुद्दे पर ही रहेगा। बीते दिनों केरल में हुई संघ की बैठक में भी यह साफ किया है कि संघ आरक्षण का विरोधी नहीं है। इसका संघ घर-घर प्रचार-प्रसार करेगा।
3- जातीय जनगणना: संघ जातीय जनगणना के मुद्दे पर भी जनता के बीच अपनी स्थिति साफ करेगा। संघ बताएगा कि जातीय जनगणना देश की एकता और अखंडता के लिए जरूरी है। इसके जरिए संघ विपक्ष के हाथ से जातीय जनगणना का मुद्दा छीनने का प्रयास करेगा।
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक सुनीता एरन कहती हैं- लोकसभा चुनाव में भाजपा की सीटें कम हुई हैं। आरएसएस को लगता है कि लोकसभा चुनाव में उनके एजेंडे का संदेश ठीक प्रकार से जनता के बीच नहीं गया। यह सच है, आरएसएस का कैडर चुनाव में पूरी तरह जनता के बीच काम करता है। आरएसएस का गांव-गांव में नेटवर्क है, जो भाजपा के लिए काम करता है।
यह भी सही है कि लोकसभा चुनाव में आरएसएस के स्वयंसेवकों ने उस प्रतिबद्धता से काम नहीं किया, जैसे पहले करते थे। इस कारण लोकसभा चुनाव में नुकसान हुआ। अभी आरएसएस ने तय किया है कि आरक्षण समाप्त करने, संविधान बदलने, जातीय जनगणना जैसे मुद्दे जनता के बीच ले जाकर स्थिति साफ करेगी।
सोशल मीडिया की कमान संभालेगा संघ
लोकसभा चुनाव के बाद सामने आया कि भाजपा सोशल मीडिया पर बहुत कमजोर रही। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में खुले तौर पर यह बात रखी। सूत्रों के मुताबिक, अब सोशल मीडिया की कमान भी संघ संभालेगा। सोशल मीडिया पर विपक्षी दलों के भ्रामक प्रचार पर काउंटर करने के साथ ही सरकार, संघ, भाजपा और उससे जुड़े संगठनों की ओर से लगातार सोशल मीडिया पर सरकार की उपलब्धियां पोस्ट की जाएंगी। राष्ट्रवाद, महिला, युवा, किसान, धार्मिक स्थलों के मुद्दे को लेकर विपक्ष को कटघरे में खड़ा किया जाएगा।
शताब्दी वर्ष में गांव-गांव तक विस्तार करेगा संघ
आरएसएस का शताब्दी वर्ष अक्टूबर में शारदीय नवरात्रि से शुरू हो रहा है। यह अगले नवरात्र तक चलेगा। शताब्दी वर्ष में संघ पूरे प्रदेश में कई कार्यक्रम करेगा। जानकारों का मानना है कि इससे आरक्षण, संविधान सहित राष्ट्रवाद के अन्य मुद्दों को लेकर जनता के बीच जाने से संघ को भी गांव-गांव तक विस्तार में मदद मिलेगी।
सौजन्य:दैनिक भास्कर
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