अध्यापक दिवस: क्या है शिक्षा के क्षेत्र में योगदान सर्वपल्ली राधा कृष्णन का ?
निश्चित रूप से सनातनी/वैदिक और अंग्रेजों के क्षमतावर्धन (स्किल डेवलपमेंट) वाले मिले शिक्षा शिक्षा प्रणाली को 68 वर्षों से देश के दबे कुचले वर्गों के ऊपर थोपने में सर्वपल्ली डॉ राधाकृष्णन की भूमिका अवश्य महत्वपूर्ण मानी जा सकती है.जिसके माध्यम से देश की एक बड़ी आबादी को शिक्षा और देश के विकास की प्रक्रिया से बाहर रखने में ब्राह्मणवाद ने व्यापक सफलता प्राप्त की है !
अरुण खोटे
सर्वपल्ली डॉ राधाकृष्णन महान ज्ञाता ,शिक्षाविद , दार्शनिक थे। यह पुरे विशव में एक सामान शिक्षा के समर्थक थे और वेह देश के पहले राष्ट्रपति भी थे.वह विशुद्ध उच्चकुलीन हिंदूवादी भी थे। मैं भी इसे स्वीकार करता हूँ ! लेकिन क्या सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख से ज्यादा उनका शिक्षा के क्षेत्र में कोई योगदान है या है भी की नहीं ? यह सारी जानकारी ही हमारे सेकुलरवादी, समाजवादी और वामपंथी मित्र बड़े ही जोश और गर्व के साथ गुणगान और तमाम सोशलमीडिया में शेयर करते रहे हैं। लेकन काफी कोशिश के बाद भी अभी तक यह नहीं पता चल पाया कि सर्वपल्ली डॉ राधाकृष्णन का शिक्षा के किस क्षेत्र में महान योगदान किया था और उसके क्या परिणाम (या हश्र) हुआ है ?
क्या सर्वपल्ली डॉ राधाकृष्णन ने कोई शिक्षा की क्रांति ला दी थी ? या फिर शिक्षा के माध्यम से उन्होंने सामाजिक रूढ़िवाद, सम्प्रदायवाद, धार्मिक उग्रता, वर्चस्य्वादी सामंतवाद और ब्राह्मणवाद , जातिवाद को समाप्त करने का कोई अभियान चलाया था ? या फिर उन्होंने एक सामान समाज के निर्माण, दबे कुचले वर्ग को गैरबराबरी से मुक्ति दिलाने के लिये शिक्षा को एक औजार की तरह इस्तेमाल करके कोई पहलकदमी ली थी ? अरे कम से कम यह ही बता दें कि क्या उन्होंने शिक्षा का कोई भी ऐसा प्रारूप या प्रणाली कभी भी पेश करने की कोई कोशिश की हो जिससे देश भर में सामाजिक गैरबराबरी और रूढ़िवाद, जातिवाद और पितृसत्तात्मक समाज को समाप्त करके समानता पर आधारित समाज की अवधारणा को मजबूती मिलती हो ?
इतने बड़े शिक्षाविद और देश के प्रथम राष्ट्रपति होकर भी वह समाज निर्माण पर आधारित शिक्षा का प्रणाली पेश करने में विफल रहे या फिर इस दिशा में कोई भी प्रयास नहीं कर सके ? ब्राह्मणवाद की जड़ें इतनी मजबूत हैं कि सामाजिक समानता और दबे कुचले वर्ग को मुख्यधारा के समकक्ष लाने के हर प्रयास को विफल करने और इस प्रकार के प्रयासों को करने वाले महापुरुषों के महत्त्व को कम करने और उनके प्रयासों को विफल करने के लिये नये नये कुटिल जाल बिछा देता है।
शिक्षा के प्रसार और प्रचार के माध्यम से दबे कुचले समाज, दलित, स्त्री को शिक्षित करके सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ने, धर्म, लिंग और जाति के आधार पर हो रही गैरबराबरी को समाप्त करके सामाजिक बदलाव लाने का प्रयास करने वाले महात्मा ज्योति राव फुले और सावित्री बाई फुले जैसे महान व्यक्तित्व के प्रयासों को नकारने ही नहीं बल्कि विफल करने की ब्राह्मणवादी साजिश ने सर्वपल्ली डॉ राधाकृष्णन को देश के ऊपर एक आदर्श अध्यापक के रूप में थोप दिया. इतना ही नहीं बल्कि महात्मा ज्योति राव फुले और सावित्री बाई फुले के प्रयासों को कुंद करने के लिये 5 सितम्बर का दिन सर्वपल्ली डॉ राधाकृष्णन “ अध्यापक दिवस” के रूप में तय करना दबे कुचले वर्ग के हितों के खिलाफ एक साजिश है।
निश्चित रूप से सनातनी/वैदिक और अंग्रेजों के क्षमतावर्धन (स्किल डेवलपमेंट) वाले मिले शिक्षा प्रणाली को 68 वर्षों से देश के दबे कुचले वर्गों के ऊपर थोपने में सर्वपल्ली डॉ राधाकृष्णन की भूमिका अवश्य महत्वपूर्ण मानी जा सकती है। जिसके माध्यम से देश की एक बड़ी आबादी को शिक्षा और देश के विकास की प्रक्रिया से बाहर रखने में ब्राह्मणवाद ने व्यापक सफलता प्राप्त की है। 76 वर्षों से देश भर में इस मुद्दे पर एक सामूहिक सहमतिया चुप्पी है . यह देश के शिक्षा के प्रति समर्पित वर्ग के लिये एक चुनौती भी है।
सर्वपल्ली डॉ राधाकृष्णन अपनी योग्यताओं के लिये निश्चित रूप से सम्मान के योग्य हैं लेकिन यदि इसका इस्तेमाल ब्राह्मणवादी साजिश के लिये किया जाता है तो यह दुर्भागय्पूर्ण है। सारी विषमताओं के बावजूद दबे कुचले वर्ग, दलित और आदिवासी जिस तरह से निरंतर अपने प्रयासों से शिक्षा सहित विभिन्न क्षेत्रों में जो दखल कर रहे हैं। वह एक उम्मीद अवश्य देता है कि धीरे धीरे इतिहास का पुनर्मुल्यांकन किया जायेगा और तब इतिहास के वास्तविक महापुरुषों को उनके उचित स्थान में स्थापित किया जायेगा। तब देश के दबे कुचले महात्मा ज्योति राव फुले और सावित्री बाई फुले को ही इस देश में शिक्षा के प्रसार और प्रचार में अपने योगदान के लिये “राष्ट्रीय अध्यापक दिवस” समर्पित करेंगे !
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