सुप्रीम कोर्ट में जजों की संख्या बढ़ने के बावजूद लंबित मामले अब तक के उच्चतम स्तर 83,000 पर पहुंचे
वर्ष 2009 में सुप्रीम कोर्ट में जजों की स्वीकृत संख्या 26 से बढ़ाकर 31 की गई थी, इसके बावजूद 2013 तक लंबित मामलों की संख्या 50,000 से बढ़कर 66,000 हो गई. इसके बाद, 2019 में जजों की संख्या बढ़ाकर 34 कर दी गई थी. वर्तमान में लंबित मामलों की संख्या 82,831 है|
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि होने के बावजूद लंबित मुकदमों के कम होने की दिशा में सीमित प्रभाव देखा गया है| टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, पिछले दशक भर में लंबित मुकदमों की संख्या में आठ बार वृद्धि दर्ज की गई है, जबकि इस दौरान केवल दो मौके ऐसे आए जब मामलों में कमी देखी गई.
सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामलों की संख्या वर्तमान में लगभग 83,000 है, जो अब तक की सर्वाधिक है. जब 2009 में सुप्रीम कोर्ट में जजों की स्वीकृत संख्या 26 से बढ़ाकर 31 की गई, तो 2013 तक लंबित मामलों की संख्या धीरे-धीरे 50,000 से बढ़कर 66,000 हो गई. 2014 में मुख्य न्यायाधीश पी. सदाशिवम और आरएम लोढ़ा के कार्यकाल के दौरान लंबित मामलों की संख्या थोड़ी कम होकर 63,000 हो गई थी. 2015 में जस्टिस एचएल दत्तू के कार्यकाल में यह और कम होकर 59,000 रह गई|
हालांकि, इसके बाद के साल में सीजेआई टीएस ठाकुर के कार्यकाल में लंबित मामले बढ़कर 63,000 हो गए. मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर ने केस मैनेजमेंट में सूचना प्रौद्योगिकी के एकीकरण के माध्यम से कागज रहित अदालतों के विचार की शुरुआत की, जिससे लंबित मामलों की संख्या में उल्लेखनीय कमी आई और यह 56,000 तक पहुंच गई. 2018 में, मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के कार्यकाल के दौरान, लंबित मामलों की संख्या फिर से बढ़कर 57,000 हो गई|
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने संसदीय अधिनियम के माध्यम से 2019 में न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या 31 से बढ़ाकर 34 करने के लिए सरकार को राजी कर लिया. इस वृद्धि के बावजूद, लंबित मामले बढ़कर 60,000 हो गए|
वहीं, मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे के कार्यकाल में कोविड-19 महामारी ने न्याय वितरण प्रणाली को बुरी तरह से बाधित कर दिया था, जिससे लंबित मामले बढ़कर 65,000 हो गए|
2021-22 की अवधि के दौरान, महामारी ने मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना के अधीन भी मामलों में निपटारों को प्रभावित करना जारी रखा. 2021 में लंबित मामलों की संख्या 70,000 तक पहुंच गई और 2022 के अंत तक बढ़कर 79,000 हो गई. इस दौरान दो मुख्य न्यायाधीश रमना और यूयू ललित सेवानिवृत्त हुए और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की सीजेआई के रूप में नियुक्ति हुई|
पिछले दो वर्षों में, लंबित मामलों की संख्या में लगभग 4,000 की वृद्धि हुई है, जिससे मामलों की संख्या अब तक के उच्चतम स्तर 83,000 तक पहुंच गई है. ऐसा तब हुआ है जब मामलों के वर्गीकरण और समूहीकरण में सुधार के लिए सीजेआई चंद्रचूड़ ने विभिन्न तकनीकी उपाय आजमाए हैं|
वर्तमान में लंबित 82,831 मामलों में से 27,604 (33 फीसदी) एक साल से कम समय से लंबित हैं. इस साल, सुप्रीम कोर्ट में 38,995 में नए मामले दर्ज हुए, जबकि 37,158 मामलों का निपटारा हुआ. निपटाए गए मामलों की दर नए दर्ज मामलों के करीब ही है|
उच्च न्यायालयों में, 2014 में कुल लंबित मामलों की संख्या करीब 41 लाख थी. पिछले दशक में यह आंकड़ा लगातार बढ़ा है, सिवाय एक मौके के, जब 2023 में मामले 61 लाख पर पहुंच गए थे जो इस साल घटकर 59 लाख रह गए. इस बीच, भारत में निचली अदालतों में लंबित मामलों की संख्या 2014 के 2.6 करोड़ से बढ़कर वर्तमान में 4.5 करोड़ हो गई है|
सौजन्य :द वायर
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