ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों की लड़ाई लड़ रही हैं विद्या राजपूत

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर निवासी विद्या राजपूत एक ट्रांसजेंडर हैं और खुद को लेकर और समुदाय को लेकर उनके मन में एक टीस थी
हम सभी समाज में अपनी पहचान के साथ जीते हैं। अपने वजूद का अहसास होता है। गरिमामयी व्यवहार, अपनत्व होता है। इन्हें सुनिश्चित करने के लिए व्यवस्थाएं भी होती हैं। पर समाज में एक ऐसा तबका भी है, जो लंबे समय से समाज, सरकार और परिवार की उपेक्षा सह रहा है।
जनगणना 2011 में चार करोड़ नब्बे हजार लोग ट्रांसजेंडर समुदाय से हैं। इस समुदाय ने भी उपेक्षा सह-सह कर अपमान को जैसे अपनी नियति मान लिया हो। पर रोशनी के लिए कुछ खिड़कियां हमेशा बनी होती हैं या बनाई जा सकती हैं। छत्तीसगढ़ में इस दिशा में जो कुछ हुआ है, वह बहुत उम्मीद देने वाला है। इस संघर्ष की सूत्रधार हैं विद्या राजपूत।
एक ट्रांसजेंडर के सामने सबसे बड़ी चुनौती होती है खुद को तलाश करने की, ‘मैं कौन हूं’? मेरा वजूद क्या है? समाज में स्वीकार्यता नहीं है, इससे पनपता है एक खालीपन। कोई अन्य लोगों की तरह काम देने को तैयार नहीं। मजबूरी में वही काम, मांगना, नाचना, शरीर को बेचना। इन सब कारणों से जो तनाव उपजता है, उसे सामान्यत: समझा नहीं जा सकता।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर निवासी विद्या राजपूत भी एक ट्रांसजेंडर हैं। खुद को लेकर और समुदाय को लेकर उनके मन में एक टीस थी। 2010 में रायपुर के कलेक्टर गार्डन में ऐसे ही कुछ और लोग आए, बैठे। एक—दूसरे के बारे में जाना—समझा, बहुत अच्छा लगा। एक इंसान होने का अहसास हुआ।
एचआईवी के बारे में जाना। जांच के लिए तैयार हुए। तीस लोगों की जांच की गई, पर जब यह पता चला कि 25 लोग एचआईवी पॉजीटिव हैं, तो पैरों तले जमीन खिसक गई। यहीं से लगा कि क्यों न समुदाय के लोगों के साथ सभी विषयों पर बातचीत की जाए। विचार आया कि एक ट्रांसजेंडर मंच होना चाहिए। थर्ड जेंडर के रूप में मान्यता मिलनी चाहिए। रोटी—कपड़ा का सवाल तो था ही पर संरक्षण का विषय भी उभरकर सामने आया।
संगठित प्रयास होने शुरू हुए। भेदभाव से मुक्ति, रोजगार, आवास, सामाजिक सुरक्षा, सरकारी नौकरियों में जगह, किताबों में तृतीय लिंग को शामिल करवाना, जागरुकता, साहित्यिक—सांस्कृतिक आयोजन, नाटकों के माध्यम से मंच प्रदान करना, नए विचारों को लाना, कानून बनाना, शिक्षा, सरकारी तंत्र को संवेदनशील बनाना आदि बिंदु इस संगठन के एजेंडे में शामिल किए गए। दूसरी तरह समुदाय के लोगों को भी इन सभी चीजों के लिए सक्रिय बनाना था।
कोशिशें की तो उसके परिणाम भी दिखाई देने लगे। एक बड़ी कोशिश थी 2012 में ट्रांसजेंडर की स्पोट्र्स मीट। इस मीट से पहली बार एक समाज की मुख्यधारा में शामिल हुए। बिग बॉस फेम ट्रांसजेंडर लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी ने यहां आकर हौसला बढ़ाया।
विद्या कहती हैं कि ‘यह उम्मीदों की एक शुरुआत थी। हम जिंदगी में उपेक्षा सहते—सहते खुद से प्यार करना भूल जाते हैं, इस स्पोर्टर्स मीट और इससे पहले हुए कई सारे छोटे—छोटे आयोजन जैसे नर्सों का सम्मान, पेड़ों को राखी बांधना और कई सारे आयोजनों का पहला असर हमें दिखाई देने लगा। हम अपने आप से प्यार करने लगे। यह परिवर्तन की शुरुआत थी।‘
इस बीच छत्तीसगढ़ मितवा संकल्प समिति को पंजीकृत भी करवा लिया गया। विद्या कहती हैं कि ‘यहां से हमें जीवन की एक दिशा भी मिल रही थी, जब हम किसी मिशन पर जाते हैं ओर सफलताएं मिलती हैं तो अकेलापन चला जाता है, एक मेंटल पीस भी मिलता है और यह उसी को हासिल होता है जिसे समाज में उपेक्षाएं मिली हो।
15 अप्रैल 2014 का दिन भी एक ऐसा दिन था जब हमें तीसरे जेंडर का दर्जा मिला। यह एक बड़ी कामयाबी थी।‘
मितवा ने अपने साथ और लोगों को जोड़ा और हर मोर्चे पर एक एक पहलू के लिए संघर्ष किया। अपने नाम के परिचय पत्र हासिल करना और लोगों को योजनाओं से जोड़ना भी एक चुनौती थी। इसके लिए जरूरी था कि सरकारी तंत्र को कैसे संवेदनशील बनाएं? एक—एक अधिकारी से मिलने के लिए घंटों का इंतजार और चक्करों पर चक्कर।
मंत्रियों से मिलने के लिए कई बार उनके बंगलों से वापस आना। सार्वजनिक यातायात और सार्वजनिक शौचालयों का इस्तेमाल। कई बार लोगों की फब्तियां भी। यह सब भी तनाव देता था। पर जब कभी कोई सफलता हासिल होती, यह सब मानो बहुत कम लगने लगता। और इससे ही हम पक्के भी बनते गए। छत्तीसगढ़ में ट्रांसजेंडर बोर्ड का गठन और ट्रांसजेंडर के लिए विशेष सामुदायिक भवनों का निर्माण हमारे लिए बड़ी बात थे।
पर अभी और भी मंजिलें रास्ता देख रही थीं। पुलिस विभाग में 13 ट्रांसजेंडर्स की भर्ती भी एक ऐसी खबर थी, जिसने सभी को चौंका दिया था। यह घटना तमाम नेशनल—इंटर नेशनल मीडिया की सुर्खियों में थी। पर यह कमाल ऐसे ही नहीं हो गया। इसके पीछे मितवा की एक लंबी लड़ाई थीं, सूत्रधार थीं विद्या राजपूत।
अपने समुदाय में लोगों को इस भर्ती के लिए तैयार करना सबसे बड़ी चुनौती थी। समुदाय के लोग अपने पारम्परिक सोच और व्यवहार को बदलने के लिए आसानी से तैयार नहीं थे। इसके लिए उन्हें कई परीक्षाओं से भी गुजरना था। लोगों की पढ़ाई करवानी थी, शारीरिक परीक्षणों के लिए तैयार करना था। प्रशासन अकादमी में इन सभी को रखा गया, पढ़ाई करवाई गई।
बस्तर फाइटर बनना भी एक ऐसी सुखद घटना थी। जब इसके लिए बात की तब भी समुदाय के लोगों का कहना था कि हम तीन कपड़ा इसलिए नहीं पहनी कि हमें जॉब करनी है। पर इस मानसिकता से भी निकाला गया और 9 लोग बस्तर फाइटर टीम में शामिल हुए, जो एक बहुत बड़ी घटना थी। यह सफर निजी क्षेत्र में भी निकला।
बाल्को और वेदांता में 28 और टाटा स्टील में 07 लोग विभिन्न पदों पर चुने गए। रायपुर नगर निगम और अन्य क्षेत्रों में तकरीबन 08 लोगों को जोड़ा गया है, यह पारम्परिक आजीविका से बिलकुल अलग जुदा और सम्मानजनक है। लोग अपना व्यवसाय शुरू कर सकें इसके लिए लोन की व्यवस्था हुई, दो लाख रुपए का लोन मिलने से ब्यूटी पार्लर, मेहंदी जैसे काम भी शुरू हुए। इन सभी से बड़ी संख्या में लोग समाज की मुख्यधारा में शामिल होने लगे।
संस्था ने लगातार सभी मंचों पर अपने हकों की लड़ाई जारी रखी, यही वजह है कि छत्तीसगढ़ में ट्रांसजेंडर पॉलिसी बनी और अमल हो सका। विभिन्न सरकारी फार्म में जेंडर के लिए तीसरा कालम छोड़ा जाने लगा। छतीसगढ़ में स्टेट ट्रांसजेंडर वेलफेयर बोर्ड गठित हुआ। स्कूल की किताबों में ट्रांसजेंडर सम्बन्धी सामग्री शामिल हुई।
सर्जरी करवाने के लिए दो लाख रुपए की सहायता सहित कई प्रावधान शामिल हुए। ट्रांसजेंडर को नौकरियों में आरक्षण की लड़ाई जारी है। छत्तीसगढ़ में हाउसिंग के लिए दो प्रतिशत आरक्षण मिला, यही वजह है कि 188 लोगों को उनके आवास मिल सके, जिसमें आज वह सम्मान से रह रही हैं। मितवा ने ऐसे 15 लोगों की सामूहिक शादी करके संदेश दिया कि ट्रांसजेंडर के जीवन में भी खुशियों का बसेरा हो सकता है।
विद्या कहती हैं कि ‘मेरे जीवन में लोग आए। मेरे साथ कुछ समय रहे। मैंने रिश्ता निभाने की हर कोशिश। पर पता नहीं हमारी जिंदगी में ऐसा क्या होता है ? मैं टूटी, रोयी, पर ज्यादा मजबूती से फिर उठ खड़ी हुई। अपने लिए, अपने समुदाय के लिए। अब मेरी जिंदगी में एक शख्स आया। मैंने अपना घर बसाया। अब मुझे लगता है कि कोई मेरी चिंता करने वाला है। कोई मेरे बाजू में है जो मुझसे पूछता है कि लेट क्यों हो गई, अब तक घर क्यों नहीं आई।‘
सौजन्य: डाउन टू अर्थ
नोट: यह समाचार मूल रूप से https://hindi.downtoearth.org.in पर प्रकाशित हुआ है और इसका उपयोग गैर-सैन्य/गैर-वाणिज्यिक समुदाय, विशेष रूप से मानवाधिकार क्षेत्र के लोगों द्वारा किया जाना है।