सर्दियों में भारतीय महानगरों पर हावी रहा प्रदूषण, दिल्ली में एक भी दिन साफ नहीं रही हवा: सीएसई रिपोर्ट

सीएसई रिपोर्ट के मुताबिक वायु प्रदूषण के मामले में सभी महानगरों में दिल्ली की स्थिति सबसे खराब रही, जहां सर्दियों के दौरान पीएम2.5 का औसत स्तर 175 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहा
भारत में वायु प्रदूषण की समस्या किसी से छुपी नहीं है, जो सर्दियों में कहीं ज्यादा विकराल हो जाती है। दिल्ली तो पूरी दुनिया में वायु प्रदूषण को लेकर बदनाम है। ऐसा ही कुछ इस बार भी सर्दियों में देखने को मिला।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) द्वारा जारी एक नए विश्लेषण से पता चला है इस बार सर्दियों के दौरान दिल्ली में एक भी दिन ऐसा नहीं रहा जब हवा को साफ कहा जा सके। इस दौरान दिल्ली में स्थिति किस कदर खराब थी इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आठ दिन वायु गुणवत्ता ‘बेहद गंभीर’, 12 दिन ‘गंभीर’ वहीं 68 दिन ‘बेहद खराब’ थी।
18 नवंबर 2024 को तो हालात इस कदर खराब हो गए कि पीएम2.5 का स्तर 602 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच गया। पिछले चार वर्षों में देखें तो किसी भी दिन दिल्ली की हवा इतनी खराब नहीं रही। पिछली सर्दियों में सबसे प्रदूषित दिन की तुलना में देखें तो इस दिन प्रदूषण का स्तर 65 फीसदी अधिक था। वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा जारी मानकों के लिहाज से देखें तो प्रदूषण का यह स्तर 40 गुणा ज्यादा था।
गौरतलब है कि सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने अपनी इस नई रिपोर्ट में दिल्ली सहित छह भारतीय महानगरों का विश्लेषण किया है। इनमें दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बेंगलुरु, हैदराबाद और चेन्नई शामिल हैं।
सीएसई द्वारा जारी यह विश्लेषण प्रदूषण के महीन कणों पीएम2.5 के रियल-टाइम डेटा पर आधारित है। इससे भारतीय महानगरों में बढ़ते प्रदूषण के रुझानों का पता चला है। साथ ही मौसमी बदलावों और सर्दियों के दौरान हवा की गुणवत्ता में साल दर साल होने वाले बदलावों पर भी प्रकाश डाला गया है।
रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि बढ़ते प्रदूषण का असर इन सभी महानगरों पर पड़ रहा है, यहां तक कि कोलकाता और हैदराबाद जैसे शहर जहां भौगोलिक और जलवायु परिस्थितियों कहीं ज्यादा अनुकूल हैं, उन महानगरों में भी स्थिति चिंताजनक है।
2024-25 में सर्दियों के दौरान (एक अक्टूबर, 2024 से 31 जनवरी, 2025) इन सभी महानगरों में स्थिति खराब रही। हालांकि स्थानीय मौसम के आधार पर प्रदूषण का स्तर और उसके चरम पर पहुंचने का समय अलग-अलग रहा।
सभी महानगरों में सबसे खराब रही दिल्ली की स्थिति
रिपोर्ट के मुताबिक वायु प्रदूषण के मामले में इन सभी महानगरों में दिल्ली की स्थिति सबसे खराब रही, जहां सर्दियों के दौरान पीएम2.5 का औसत स्तर 175 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहा, हालांकि पिछली सर्दियों की तुलना में यह थोड़ा बेहतर है।
सर्दियों के दौरान दिल्ली के कई इलाकों में प्रदूषण के स्तर में अच्छी खासी वृद्धि दर्ज की गई। उदाहरण के लिए सीआरआरआई मथुरा रोड में प्रदूषण के स्तर में 20 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई, जबकि अशोक विहार, विवेक विहार और ग्वाल पहाड़ी में पीएम2.5 के स्तर में 11 से 13 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई।
इस दौरान दिल्ली में आनंद विहार की स्थिती सबसे खराब रही, जहां सर्दियों में पीएम2.5 का औसत स्तर 227 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच गया। एनसीआर क्षेत्र में, गाजियाबाद का लोनी सबसे अधिक प्रभावित रहा, जहां पीएम2.5 का औसत 153 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहा, जबकि गुरुग्राम की ग्वाल पहाड़ी इलाके में यह 149 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर के साथ दूसरे स्थान पर रही।
दिल्ली-एनसीआर में सर्दियों में प्रदूषण का स्तर वार्षिक औसत से 5 से 47 फीसदी अधिक रहा, जो गंभीर मौसमी प्रभाव को उजागर करता है।
सर्दियों के दौरान दिल्ली में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ₂) के स्तर में तीव्र वृद्धि देखी गई, जो नवंबर-दिसंबर में कहीं ज्यादा स्पष्ट थी। आनंद विहार में अक्टूबर से दिसंबर के बीच इसमें 71 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। दिसंबर में आईटीओ में एनओ₂ का अधिकतम स्तर 167 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया। चिंता की बात यह है कि कई इलाकों में 40 दिनों से अधिक समय तक वायु गुणवत्ता ‘बेहद खराब’ दर्ज की गई।
दिल्ली के बाद कोलकाता और हैदराबाद सबसे अधिक प्रदूषित रहे। वहीं अन्य महानगरों मुंबई, चेन्नई, हैदराबाद और बेंगलुरु में भी बेहतर मौसम और वेंटिलेशन के बावजूद पीएम2.5 के स्तर में वृद्धि दर्ज की गई।
सीएसई द्वारा जारी रुझानों पर नजर डालें तो जहां सर्दियों के दौरान कोलकाता में पीएम2.5 का औसत स्तर 65 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहा। वहीं हैदराबाद में 52, मुंबई में 50, चेन्नई में 36 और बेंगलुरु में 37 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया।
मुंबई में सर्दियों के दौरान पीएम2.5 का औसत स्तर पिछले चार वर्षों में सबसे कम 50 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहा। जो पिछली चार सर्दियों के औसत की तुलना में 24 फीसदी की कमी को दर्शाता है। इस दौरान मुंबई में देवनार की हवा सबसे खराब रही, जहां पीएम2.5 का औसत स्तर 80 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रही।
इसके बाद शिवाजी नगर (76 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) और मलाड वेस्ट (माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) का स्थान रहा। गौरतलब है कि मलाड वेस्ट में एक नवंबर, 2024 को पीएम2.5 बढ़कर 194 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच गया था। खराब हवा वाले दिनों की बात करें तो मुंबई के देवनार में 28 दिन वायु गुणवत्ता ‘खराब’ या ‘बेहद खराब’ रही। कांदिवली पश्चिम और बोरीवली पूर्व में 22 दिन वायु गुणवत्ता ‘खराब’ थी।
सीएसई में अर्बन लैब विभाग की कार्यक्रम अधिकारी शरणजीत कौर के मुताबिक सर्दियों में औसत प्रदूषण की तुलना सीधे पीएम2.5 के दैनिक या वार्षिक मानकों से नहीं की जा सकती। उनका कहना है कि शहरों का औसत पीएम2.5 का स्तर कुछ क्षेत्रों में प्रदूषण के उच्च जोखिम को पूरी तरह से प्रतिबिंबित नहीं कर सकते हैं।
गौरतलब है कि भारतीय मानकों के अनुसार दैनिक आधार पर 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक पीएम2.5 को स्वास्थ्य के लिहाज से हानिकारक माना जाता है। वहीं वार्षिक रूप से 40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर का मानक तय किया गया है।
सीएसई रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि महानगरों के सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में प्रदूषण का स्तर शहर के औसत से 19 से 60 फीसदी अधिक है। मतलब वायु गुणवत्ता अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग होती है, कुछ क्षेत्र बहुत अधिक प्रदूषित होते हैं। उदाहरण के लिए, कोलकाता में बल्लीगंज और मुंबई के देवनार में वायु गुणवत्ता सबसे खराब रही, जहां सर्दियों में मौसमी औसत 80 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहा।
विश्लेषण के मुताबिक पांच महानगरों के 68 निगरानी स्टेशनों में से, छह सबसे प्रदूषित स्थानों में से चार मुंबई में और दो कोलकाता में थे। वहीं हैदराबाद में, आईडीए पाशम्यलारम में सबसे अधिक प्रदूषण रहा, जो 62 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया। वहीं बेंगलुरु में सबसे खराब स्थिति आरवीसीई में रही, जहां पीएम2.5 का औसत स्तर 56, जबकि चेन्नई के अलंदूर में 47 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रिकॉर्ड किया गया।
इसी तरह शहरी औसत की तुलना में हर महानगर में सबसे प्रभावित क्षेत्रों में स्थिति सबसे खराब रही। चेन्नई में जहां इन क्षेत्रों में प्रदूषण के स्तर में 30 फीसदी की वृद्धि देखी गई। वहीं बेंगलुरु में 51 फीसदी वृद्धि दर्ज की गई। यह असमानता मुंबई में सबसे अधिक स्पष्ट थी, जहां शहरी औसत की तुलना में सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में पीएम2.5 का स्तर 60 फीसदी अधिक था।
इसी तरह हैदराबाद में, सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में यह आंकड़ा 19 फीसदी, जबकि कोलकाता में 23 फीसदी दर्ज किया गया। दिल्ली की बात करें तो शहरी औसत की तुलना में सबसे प्रभावित क्षेत्र में पीएम2.5 का स्तर 30 फीसदी अधिक रहा।
यदि पिछले तीन वर्षों के आंकड़ों पर नजर डालें तो इन सभी महानगरों में दिल्ली का प्रदर्शन सबसे खराब रहा। जहां सर्दियों में प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है। हालांकि यदि पिछले तीन वर्षों में सर्दियों के औसत पीएम2.5 से तुलना करें तो इसमें एक फीसदी की वृद्धि हुई है।
2021-22 की तुलना में, मुंबई, कोलकाता और हैदराबाद में सुधार देखने को मिला है, जहां पीएम2.5 के स्तर में क्रमशः 16 फीसदी, 14 फीसदी और 16 फीसदी की गिरावट देखने को मिली है।
वहीं दिल्ली में पिछली सर्दियों की तुलना में पीएम2.5 के स्तर में सात फीसदी की गिरावट दर्ज की गई, लेकिन यह 2021-22 की तुलना में पांच फीसदी अधिक रहा। इस बीच, बेंगलुरु और चेन्नई में 2021-22 की तुलना में पीएम2.5 के स्तर में वृद्धि दर्ज की गई है, जो वायु गुणवत्ता में गिरावट की प्रवृत्ति को दर्शाता है।
स्थिति में पिछले वर्षों में कितना आया है बदलाव
रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में 18 नवंबर, 2024 को पीएम2.5 का स्तर बढ़कर 602 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच गया, जो चार वर्षों में सबसे अधिक है।
यह पिछली सर्दियों के चरम से 65 फीसदी की वृद्धि को दर्शाता है। पीक प्रदूषण के मामले में कोलकाता और चेन्नई में थोड़ा सुधार देखा गया। कोलकाता में पीएम2.5 का अधिकतम स्तर 135 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया, जो पिछली सर्दियों जितना ही है।
वहीं चेन्नई में पिछली सर्दियों में यह 147 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच गया था। हालांकि इस साल गिरावट के बाद यह 119 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पर पहुंच गया है।
ऐसा ही कुछ हैदराबाद, मुंबई और बेंगलुरु में भी देखें को मिला। हैदराबाद में सबसे ज्यादा सुधार हुआ, जहां पीएम2.5 का स्तर पिछले साल के पीक 183 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से गिरकर 89 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पर आ गया है। मतलब कि इसमें 51 फीसदी का सुधार आया है। इसी तरह बेंगलुरु में भी पीक प्रदूषण में 42 फीसदी का सुधार दर्ज किया गया।
इसके साथ ही यह 67 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पर पहुंच गया है। चेन्नई में भी 19 फीसदी का सुधार दर्ज किया गया है। मुंबई में भी प्रदूषण का चरम स्तर 12 फीसदी की गिरावट के साथ 92 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से गिरकर 81 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पर आ गया।
रिपोर्ट का यह भी कहना है कि भले ही इस सर्दी में कोलकाता, चेन्नई और हैदराबाद में प्रदूषण का चरम स्तर पिछले साल की तुलना में कम रहा, लेकिन फिर भी यह “खराब” श्रेणी में रहा। यह कोलकाता में दो नवंबर 2024 को 135 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर, चेन्नई में 31 अक्टूबर को 119 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर और हैदराबाद में 25 नवंबर को 89 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पर पहुंच गया।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारतीय महानगरों में हर महीने वायु गुणवत्ता का पैटर्न अलग-अलग होता है। उदाहरण के लिए नवंबर में दिल्ली और हैदराबाद में हवा सबसे खराब रही। वहीं जनवरी में कोलकाता, बेंगलुरु और चेन्नई में प्रदूषण चरम पर रहा। मुंबई में दिसंबर में सबसे ज्यादा प्रदूषण दर्ज किया गया।
यह सही है कि सर्दियों में सभी महानगरों में वायु प्रदूषण होता है, लेकिन इसकी तीव्रता अलग-अलग होती है। दिल्ली, कोलकाता और मुंबई में खराब हवा वाले दिनों का समूह लंबा रहा, जबकि हैदराबाद, बेंगलुरु और चेन्नई में यह कम रहा। दिल्ली में प्रदूषण इतना लंबा रहा कि इसे ‘स्मॉग एपिसोड’ के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।
रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि सर्दियों की शुरूआत के साथ मुंबई, चेन्नई और बेंगलुरु में स्थानीय प्रदूषण में सबसे तेज वृद्धि देखी गई। हालांकि इन शहरों में प्रदूषण का स्तर दिल्ली और कोलकाता से कम रहा। लेकिन इन शहरों के कुछ इलाकों में प्रदूषण शहर औसत की तुलना में 60 फीसदी तक अधिक रहा।
दिल्ली में प्रदूषित हवा वाले दिनों की संख्या सबसे अधिक रही। लेकिन कोलकाता में भी 15 दिन वायु गुणवत्ता ‘खराब’ थी, जो दिल्ली के बराबर ही है। साथ ही वहां एक दिन वायु गुणवत्ता बेहद खराब रही। इसके विपरीत चेन्नई में महज एक दिन वायु गुणवत्ता ‘खराब’ रही, जबकि मुंबई, बेंगलुरु और हैदराबाद में कोई भी दिन ऐसा नहीं था।
साफ हवा वाले दिनों की बात करें तो मुंबई में 19 दिन ऐसे थे, जब वायु गुणवत्ता ‘बेहतर’ थी। वहीं कोलकाता में 11 दिन हवा साफ रही। इसी तरह हैदराबाद में 21 दिन, बेंगलुरु में 44 दिन और चेन्नई 55 दिन वायु गुणवत्ता ‘बेहतर’ रही।
क्या है आगे की राह
सीएसई रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) को यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी शहरों में सर्दियों के दौरान प्रदूषण में होने वाली वृद्धि को रोकने के लिए सख्त कदम उठाएं जाएं। उनकी जलवायु कैसी भी हो उन्हें मानकों को हासिल करने के लिए उचित कदम उठाए जाने की जरूरत है।
बहुत अधिक प्रदूषण वाले शहरों को मौसमी प्रभावों को कम करने के लिए मजबूत और जल्द से जल्द कार्रवाई करनी होगी। उन्हें वाहनों, कारखानों, बिजली संयंत्रों, अपशिष्ट जलाने, निर्माण और घरेलू ईंधन से होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करने की आवश्यकता है।
सीएसई में कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉयचौधरी का इस बारे में कहना है, “नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के पांच वर्षों के प्रयास और बड़े निवेश के बावजूद अभी भी महानगर अभी भी साल भर स्वच्छ वायु गुणवत्ता मानकों को हासिल करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।” ऐसे में उनके मुताबिक वाहनों, उद्योगों, बिजली संयंत्रों, कचरे, निर्माण, घरेलू ईंधन और धूल से होने वाले प्रदूषण को कम करने के साथ-साथ एनसीएपी को मजबूत किए जाने की आवश्यकता है। इससे शहरों को साफ हवा वाले दिनों को बढ़ाने में मदद मिलेगी।
उनका आगे कहना है कि “गंगा के मैदानी इलाकों (आईजीपी) में मौजूद शहरों को प्रतिकूल मौसमी परिस्थितियों के कारण मानकों को हासिल करने में अतिरिक्त चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। यह परिस्थितियां प्रदूषण को रोके रखने में मदद करती हैं और स्थानीय एवं क्षेत्रीय प्रदूषण स्रोतों को बढ़ाती हैं। ऐसे में इन प्रभावों, तेजी से होते शहरीकरण, वाहनों के बढ़ते प्रभावों का मुकाबला करने के लिए जल्द से जल्द, सख्त और बेहतर कार्रवाई करने की आवश्यकता है।“
सौजन्य: डाउन टू अर्थ
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