मध्य प्रदेश: अशोकनगर में आतताइयों का ज़मीन हथियाने का खेल, बंधुआ मजदूरी में जकड़े आदिवासी, हाई कोर्ट ने दिए सख्त निर्देश

एसपी अशोकनगर को निर्देश दिया गया कि वे छोटेलाल और मुन्नीबाई को पूरी सुरक्षा प्रदान करें और व्यक्तिगत रूप से इस मामले की निगरानी करें। कोर्ट ने यह भी सुनिश्चित करने के लिए कहा कि छोटेलाल और मुन्नीबाई को उनके गांव में ही रहने दिया जाए और पुलिस उनकी सुरक्षा में तैनात रहे।
भोपाल। मध्य प्रदेश के अशोकनगर जिले के ईसागढ़ में ज़मीन हथियाने और बंधुआ मजदूरी का एक गंभीर मामला सामने आया है। मनबढ़ और राजनीतिक रसूखदार लोग एक गरीब आदिवासी परिवार को जबरन बंधुआ मजदूरी में रखकर उसकी ज़मीन हड़पने की कोशिश कर रहे थे। मामला जब हाई कोर्ट पहुंचा, तो न्यायाधीशों ने इसे बेहद गंभीरता से लेते हुए कलेक्टर और एसपी को जांच के सख्त निर्देश दिए।
ईसागढ़ निवासी मुन्नीबाई अपनी 8 हेक्टेयर ज़मीन को बचाने के लिए हाई कोर्ट पहुंची थीं। सुनवाई के दौरान वे भावुक होकर रो पड़ीं और बताया कि उनके पति छोटेलाल को गांव के पूर्व सरपंच हरदीप रंधावा ने जबरन बंधुआ मजदूर बना रखा है। उन्होंने अदालत को बताया कि उनकी ज़मीन उनके नाम पर दर्ज है, लेकिन मनबढ़ लोग इसे किसी और को बेचने की साजिश रच रहे हैं। मुन्नीबाई की इस गवाही के बाद कोर्ट ने तुरंत आदेश दिया कि उनके पति छोटेलाल को शाम 4 बजे तक कोर्ट में पेश किया जाए।
आदेश मिलते ही छोटेलाल ग्वालियर पहुंच गया और कोर्ट में पेश हो गया, लेकिन इसी दौरान एक अप्रत्याशित घटना घटी। जब छोटेलाल कोर्टरूम में बैठा था, तभी हरदीप रंधावा का सहयोगी गौरव शर्मा और उसके पिता धर्मपाल शर्मा उसे जबरन बाहर ले जाने की कोशिश करने लगे। इस दृश्य को न्यायमूर्ति आनंद पाठक ने देख लिया और तुरंत हस्तक्षेप किया। उन्होंने नाराजगी जताते हुए गौरव शर्मा और उसके पिता को कोर्ट से बाहर निकालने का आदेश दिया। इस दौरान उन्होंने टिप्पणी की कि जब अदालत के सामने ही इस तरह की हरकत हो सकती है, तो बाहर पीड़ित परिवार के साथ क्या होता होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
इस पूरे घटनाक्रम को देखते हुए हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच, जिसमें न्यायमूर्ति आनंद पाठक और न्यायमूर्ति हिरदेश शामिल थे, ने अशोकनगर कलेक्टर और एसपी को सख्त निर्देश जारी किए। कोर्ट ने आदेश दिया कि जब तक यह मामला पूरी तरह से सुलझ नहीं जाता, तब तक मुन्नीबाई की ज़मीन की खरीद-फरोख्त पर रोक रहेगी। इसके अलावा, कोर्ट ने कलेक्टर को निर्देश दिया कि वे अशोकनगर जिले में बीते दस वर्षों में हुए सभी उन ज़मीन सौदों की जांच करें, जिनमें किसी आदिवासी ने अपनी ज़मीन किसी गैर-आदिवासी को बेची हो। कलेक्टर को दो सप्ताह के भीतर इस जांच की विस्तृत रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया गया।
इसके अलावा, एसपी अशोकनगर को निर्देश दिया गया कि वे छोटेलाल और मुन्नीबाई को पूरी सुरक्षा प्रदान करें और व्यक्तिगत रूप से इस मामले की निगरानी करें। कोर्ट ने यह भी सुनिश्चित करने के लिए कहा कि छोटेलाल और मुन्नीबाई को उनके गांव में ही रहने दिया जाए और पुलिस उनकी सुरक्षा में तैनात रहे। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि जिले में किसी अन्य व्यक्ति को ज़मीन हथियाने के उद्देश्य से बंधुआ मजदूरी में रखा गया है, तो कलेक्टर को उन मामलों की भी जांच करनी होगी और दोषियों पर कार्रवाई करनी होगी।
कोर्ट ने इस मामले में पुलिस की भूमिका पर भी सवाल उठाए। जब छोटेलाल के वकील ने अदालत को बताया कि वे अशोकनगर से ग्वालियर चार घंटे के भीतर पहुंच गए हैं, तो न्यायालय ने इस पर संदेह व्यक्त किया। न्यायमूर्ति आनंद पाठक ने कहा कि अशोकनगर से ग्वालियर इतनी जल्दी पहुंचने के लिए एक लग्जरी कार की आवश्यकता होगी, और पीड़ित परिवार की स्थिति देखकर यह नहीं लगता कि उनके पास ऐसी कोई सुविधा होगी। उन्होंने इस आशंका को भी जाहिर किया कि हो सकता है कि पेश किया गया व्यक्ति वास्तव में छोटेलाल न हो और कहीं यह पूरा मामला किसी और के इशारे पर लड़ा जा रहा हो।
इस मामले ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या अशोकनगर जिले में एक संगठित गिरोह गरीबों की ज़मीन हड़पने के लिए उन्हें बंधुआ मजदूरी में धकेल रहा है। इस पूरे प्रकरण में प्रशासन की निष्क्रियता भी उजागर हुई है। पूर्व सरपंच हरदीप रंधावा जैसे प्रभावशाली व्यक्तियों के राजनीतिक रसूख का फायदा उठाकर ज़मीन हथियाने की यह साजिश अब कोर्ट तक पहुंच चुकी है, और कोर्ट के सख्त रुख के बाद देखना होगा कि प्रशासन इस पर क्या ठोस कार्रवाई करता है।
साभार : मूकनायक
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