BHU की दलित महिला शिक्षक ने कुलसचिव सहित विश्वविद्यालय के कई पदाधिकारियों पर लगाया उत्पीड़न का आरोप, बोलीं- ‘कूटरचित दस्तावेजों पर लिए जा रहे प्रमोशन’
उत्तर प्रदेश के बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में पत्रकारिता एवं जनसम्प्रेषण विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. शोभना नार्लिकर ने विश्वविद्यालय के कई पदाधिकारियों पर उत्पीड़न करने और कूटरचित दस्तावेजों के आधार पर प्रमोशन लेने का आरोप लगाया है|
उत्तर प्रदेश: वाराणासी जिले स्थित बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में पत्रकारिता एवं जनसम्प्रेषण विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. शोभना नार्लिकर ने गुरुवार को एक प्रेसवार्ता के माध्यम से विश्वविद्यालय के कई पदाधिकारियों पर वर्षों से उत्पीड़न करने और कूटरचित दस्तावेजों के आधार पर प्रमोशन लेने का आरोप लगाया है.
मूल रूप से महाराष्ट्र की निवासी दलित समाज से आने वाली डॉ. शोभना नार्लिकर ने प्रेसवार्ता के दौरान जारी पत्र में विश्वविद्यालय के रेक्टर प्रो. संजय कुमार, कुलसचिव प्रो. अरुण कुमार सिंह, संकाय प्रमुख प्रो. एम.एस. पाण्डेय और प्रो. अनुराग दवे पर उत्पीड़न करने का आरोप, विश्विद्यालय के स्पेशल फंड से मनमाने तरीके से धन आवंटित कराने व फर्जी और कूटरचित दस्तावेजों के आधार पर प्रमोशन लेने के आरोप लगाया है.
उन्होंने मांग की है कि, एक विभागाध्यक्ष के रूप में उनके सम्पूर्ण अधिकार पुनः वापस दिए जाएं और मामले से सम्बंधित लोगों के खिलाफ जांच गठित की जाए, अन्यथा वह सत्याग्रह के लिए बाध्य होंगी.
डॉ. शोभना ने आरोप लगाया कि, “मैं जबसे पत्रकारिता विभाग की विभागाध्यक्ष बनी हूँ तबसे विभाग में हुए स्व-वित्तपोषित पाठ्यक्रम की लूट को रोकने का निरन्तर प्रयास किया है। समय-समय पर तत्कालीन संकाय प्रमुख कला संकाय जो भी रहे हों उनके साथ प्रो. शिशिर वसु और प्रो. अनुराग दवे फर्जी दस्तावेजों एवं नियम विरूद्ध तरीके से विश्वविद्यालय प्रशासन को पैसे खिलाकर स्व-वित्तपोषित पाठ्यक्रम के धन को लूटने का काम किया है। जिसका ताजा उदाहरण वर्तमान संकाय प्रमुख प्रो. एम.एस. पाण्डेय ने प्रो. अनुराग दवे के साथ मिलकर विश्वविद्यालय के स्पशेल फण्ड से मनमाने तरीके से धन आवंटित करा लिया है।”
उन्होंने आगे कहा, “मैं देश के प्रधानमंत्री एवं वाराणसी के सांसद आदरणीय नरेन्द्र मोदी जी सहित रेक्टर, कुलसचिव, संकाय प्रमुख एवं अन्य अधिकारियों से विनम्रतापूर्वक प्रेस कांफ्रेन्स के माध्यम से आग्रह करती हूँ कि यदि विभागाध्यक्ष के रूप में मेरे सन्पूर्ण अधिकार पुनः वापस नहीं किये गये एवं इन फर्जी अध्यापकों क्रमशः प्रो. अनुराग दवे, डा. स्वर्ण सुमन, डा. धीरेन्द्र राय एवं डा. अमिता के विरूद्ध जांच गठित नहीं की गयी तो एक सप्ताह के अन्दर एक दलित समाज की उत्पीड़ित महिला सत्याग्रह के लिए बाध्य होगी जिसकी पूरी जिम्मेदारी विश्वविद्यालय प्रशासन एवं केन्द्र सरकार की होग.”
आपको बता दें कि, डॉ. शोभना नार्लिकर इससे पहले भी विश्वविद्यालय के कई पदाधिकारियों पर उत्पीड़न का आरोप लगा चुकी हैं. जनवरी 2021 में भी वह विश्वविद्यालय के सेंट्रल ऑफिस के सामने धरने पर बैठ गईं। उस समय उनका आरोप था कि दलित होने के नाते विश्वविद्यालय में उनका मानसिक शोषण किया जा रहा है। आरोप था कि दलित होने के कारण, 2013 से लगातार विश्वविद्यालय में प्रशासनिक अफसर और विभाग के प्रोफेसर उनका उत्पीड़न कर रहे हैं। रेगुलर काम करने के बावजूद उन्हें कार्यालय में लीव विदाउट पे दिखाकर उनकी सीनियारिटी को प्रभावित किया जा रहा था।
डॉ. शोभना ने BHU के पत्रकारिता विभाग में 19 अगस्त 2002 को बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर ज्वाइन किया था. उस समय ही वह पीएचडी उपाधिधारक थीं। उनके साथ ही दो दिन बाद डॉ. अनुराग दवे ने भी विभाग में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर ज्वाइन किया, लेकिन वह पीएचडी उपाधि धारक नहीं थे।
लगभग 2 साल पहले, 2023 में, डॉ. शोभना नार्लिकर की एक वीडियो वायरल हुई थी जिसमें वह दिख रहीं थीं कि उनके हाथ में चप्पल है और वह छात्रों से सख्ती से बात कर रहीं हैं. इसके बारे में द मूकनायक ने पूछा तो उन्होंने बताया कि, “यह वीडियो गलत था. उसे एडिट करके चलाया गया था. जिन लोगों पर मैंने आरोप लगाया था उन्हीं लोगों इसे एडिट करके वायरल कराया था.”
BHU के 65 शिक्षकों ने प्रोफेसर शोभना नार्लीकर के खिलाफ कुलपति को दी थी शिकायत
डॉ. शोभना द्वारा प्रोफेसर पंकज कुमार पर SC/ST एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कराया गया था। जिससे नाराज 65 शिक्षकों का एक समूह कुलपति के समक्ष शिकायत लेकर पहुँचा था। उस समय कुलपति ने दोनों तरफ के आरोपों की न्यायिक जाँच का भरोसा दिया था। रिटायर्ड जस्टिस कलीमुल्लाह के नेतृत्व में एक समिति बनी भी थी। कई छात्रों ने उनके खिलाफ प्रदर्शन भी किया था. हालांकि, छात्रों द्वारा उनके खिलाफ प्रदर्शन करने के मामले में डॉ. शोभना बताती हैं कि, “उस समय मेरे खिलाफ विश्वविद्यालय के भूमिहार छात्रों को उकसा कर धरना-प्रदर्शन कराया गया था.”
इसी तरह उन्होंने, प्रोफेसर शिशिर बसु पर भी SC/ST एक्ट के तहत मुकदमा दायर किया था। लेकिन, वाराणसी की ही एक कोर्ट ने उन्हें लगभग 10 साल बाद 2022 में निर्दोष करार दिया था। अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि पीड़िता ने 2003 से ही प्रताड़ना की बात कही थी, लेकिन शिकायत दर्ज कराने में एक दशक लगा दिया गया।
SC/ST एक्ट के मामले में कोर्ट का आदेश
इस बारे में डॉ. शोभना द मूकनायक को बताती हैं कि, “इस मामले में मेरे पास गवाह नहीं थे इसलिए कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया था. क्योंकि मेरा जो गवाह – मेरा ड्राइवर – था उसे बसु ने पैसे देकर खरीद लिया था. वह यहीं का रहने वाला है और मैं ठहरी महाराष्ट्र की..!! बसु ने जब मेरे साथ सेक्सुअल ह्रासमेंट किया तब मेरे ड्राइवर, चपरासी सहित कई लोगों ने देखा था. लेकिन कोई महिला को मदद करना नहीं चाहता. ऐसे मामलों में कोर्ट जाने से पहले हर बार बीएचयू जाना पड़ता है. मैं इस मामले में बीएचयू गई, एससी-एसटी आयोग में गई, महिला आयोग में गई, यूजीसी में गई, ह्युमन राइट्स में गई. इस दरवाजों पर जाने के मैं हाईकोर्ट में गई. उसके बाद हाईकोर्ट से मेरा केस लोअर कोर्ट में भेज दिया गया. यह सब करते करते मुझे छः साल लग गए.”
वह कहती हैं कि, “जब मैं विभागाध्यक्ष बनी तब से सारी मीटिंग्स डीन की केबिन में होती रही है. हस्ताक्षर के लिए कोई फाइल मेरे पास आती ही नहीं है. विभागाध्यक्ष होते हुए भी मेरे पास कोई अधिकार नहीं है.”
मामले पर द मूकनायक ने बीएचयू के कुलपति की टिप्पणी के लिए उनसे संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन खबर लिखे जाने तक उनकी टिप्पणी नहीं मिली है|
सौजन्य: द मूलनायक
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