दिल्ली दंगा के साढ़े चार साल और अदालतों में घिसटती इंसाफ की उम्मीदें
सुप्रीम कोर्ट के बार-बार यह कहने पर कि “जमानतों पर सही समय पर निर्णय होना चाहिए, न्याय में देरी गलत है, फैसलों को लटका कर नहीं रखना चाहिए, फरवरी 20 में उत्तर पूर्वी दिल्ली के दंगों की कथित साजिश के मुकदमे न तो आगे बढ़ रहे हैं न ही जमानत पर सुनवाई हो रही है। एक अभियुक्त सामाजिक कार्यकर्ता खालिद सैफी की जमानत की अर्जी कोई दो साल से हाई कोर्ट में है। तीन बार अलग-अलग जज इसकी सुनवाई कर चुके है। फैसले से पहले ही जज साहब का तबादला हो जाता है और एक बार फिर नए जज के सामने महीनों के इंतजार के बाद बहस होती है।
खालिद सैफी पर लगे अन्य दो आरोप में उनकी जमानत हो चुकी है और जमानत आदेश से स्पष्ट है कि वह दंगे की भीड़ में थे ही नहीं। पुलिस ने इसके अलावा यूएपीए शायद इसीलिए लगाई थी कि उसकी जमानत कठिन होती है और इस तरह से लोगों को लंबे समय तक बगैर आरोप पत्र के जेल में रखा जा सकता है। यही हालत इस मामले के अधिकांश मुजरिमों के साथ है। इसके विपरीत जिला अदालत में चल रहे मामलों में पुलिस की जाँचें कमजोर हो रही है और आए दिन अभियुक्त बारी हो रहे है। एक मामला तो ऐसा भी सामने आया जिसमें जिसके घर में आग लगी, पुलिस ने उसी को उसी मामले में अभियुक्त बना दिया।
फरवरी-2020 में चार दिनों तक नॉर्थ-पूर्वी दिल्ली सुलगती रही। 53 लोग मारे गये, कई सौ घायल हुए। हज़ार से अधिक घर-मकान फूंक दिए गये। देश में सबसे अधिक सुरक्षित कहे जाने वाले महानगर में घटित ऐसे भयानक घटनाक्रम से जुड़े मसले जैसे-जैसे अदालत में आ रहे हैं। साफ़ हो रहा है कि न तो पुलिस ने सही तरीके से जांच की और न ही इसकी गहरी साजिश के असली सूत्र उजागर हुए। आये दिन जज जांच अधिकारियों को फटकार रहे हैं, आरोपी, माकूल साक्ष्य के अभाव में बरी हो रहे हैं। हर मामले में दिल्ली पुलिस की अधकचरी जांच, पूर्वाग्रही पड़ताल और साक्ष्यों के अभाव व सही गवाह न होने के चलते आरोपित बरी हो रहे हैं।
विदित हो चार दिनों तक दिल्ली में दंगे हुए, जिसमें एक पुलिसकर्मी रतनलाल और एक आईबी के कर्मचारी अंकित शर्मा की मौत भी हुई। पुलिस ने दंगे से जुड़े 758 मामले पंजीकृत किए थे। इनमें से एक स्पेशल सेल, 62 क्राइम ब्रांच और 695 उत्तर पूर्वी दिल्ली के विभिन्न थानों में पंजीकृत हैं। दिल्ली पुलिस में सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक़, पुलिस ने दंगों से जुड़ी कुल 758 एफ़आईआर दर्ज की हैं। इनमें अब तक कुल 2619 लोगों की गिरफ़्तारी हुई थी, इनमें से 2094 लोग ज़मानत पर बाहर हैं। अदालत ने अब तक सिर्फ़ 47 लोगों को दोषी पाया है और 183 लोगों को बरी कर दिया। वहीं 75 लोगों के ख़िलाफ़ पर्याप्त सबूत ना होने के कारण कोर्ट ने उनका मामला रद्द कर दिया है।
साढ़े चार वर्ष बीतने के बावजूद इनमें अभी 268 मामलों में जांच पूरी नहीं कर पाई है। पुलिस का रिकार्ड कहता है कि इनकी जाँच चल रही हैं। जरा सोचें 1680 दिन बाद दंगे के कौन से साक्ष्य अब मिलेंगे? असल में कुछ प्रकरण पुलिस केवल इस लिए दर्ज करती है कि डरा-धमका कर या अपनी पसंद के लोगों को उनमें फंसाया जा सके। विभिन्न थानों में दर्ज 57 मामले ऐसे भी हैं जिनमें पुलिस के हाथ प्रमाण नहीं लगे और इन्हें बंद करने के लिए पुलिस ने अदालत से निवेदन किया। ऐसे 43 मामलों की क्लोजर रिपोर्ट को कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है, जबकि 14 रिपोर्ट अभी विचाराधीन हैं।
दंगे की साजिश रचने के मामले की जांच स्पेशल सेल कर रही है, इसमें दो आरोपित गिरफ्त के बाहर हैं। साजिश के केस में भी आरोपियों को जमानते देते समय अदालत ने जांच पर सवाल खड़े किये। वह तो पुलिस ने कतिपय लोगों को जेल में रखने के इरादे से यूएपीए का इस्तेमाल किया है वर्ना सारी जांच के चिथड़े उड़ गए होते।
यदि दिल्ली पुलिस के ही आंकड़े देखें तो पता चलेगा कि 73 मामले ऐसे हैं जिनमें या तो आरोप ही नहीं सिद्ध हो पाया या फिर उचित साक्ष्य के अभाव में में लोग बरी हो गए अभी तक महज 16 मामलों में ही दोष सिद्ध हो पाए हैं। कई प्रकरण तो ऐसे सामने आये जिनमें जांच ही अधूरी थी या गलत दस्तावेज लगाए गए थे, इस पर न्याययिक अधिकारी कड़ी टिपण्णी करते रहे।
सबसे शर्मनाक मामला ‘कट्टर हिन्दू एकता’ व्हाट्सएप ग्रुप वाला था जिसमें पुलिस ने 24 फरवरी से आठ मार्च के बीच हुई तमाम बातचीत को भी कोर्ट में जमा किया। इस ग्रुप में हुई बातचीत आरएसएस, कपिल मिश्रा, मस्जिदों में आग लगाने और मूर्तियां स्थापित करने, बंदूक, पिस्टल और गोली के लेन-देन करने और मुसलमानों को मारने की साज़िश के इर्द-गिर्द रही है। इतना ही नहीं इस ग्रुप में मुस्लिम महिलाओं का दुर्व्यवहार करने की भी बात की गई है। दुर्भाग्य से यह मामला जब अदालत में गया तो पुलिस यह सिद्ध नहीं कर पाई कि सवा सौ लोगों का समूह साजिश रच कर यह उपद्रव कर रहा था। इसी तरह दिलबर नेगी हत्याकाण्ड में 12 में से 11 आरोपी बरी हो गये। आरोप मुक्त किए गए लोगों के खिलाफ कोई ठोस साक्ष्य नहीं थे, न ही इस मामले में दंगाई के रूप में उनकी पहचान कराने संबंधी किसी गवाह के बयान थे। जबकि शर्जील इमाम जो कि दंगे से डेढ़ महीने पहले गिरफ्तार किया गया और असम की जेल में था, उसे दंगे की साजिश में रखा गया है।
अदालत के कठघरे में दिल्ली पुलिस की जांच
02 सितंबर 2021 : दिल्ली हाई कोर्ट : एक ही मामले में पांच एफआईआर। घटना एक रिपोर्टकर्ता पांच। गवाह भी समान और मुजरिम भी समान। कोर्ट ने पुलिस को खरी-खरी सुनाई व चार एफआईआर रद्द कर दीं।
03 सितंबर 2021 : दिल्ली हाईकोर्ट ने फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली हिंसा के दौरान हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल की हत्या के मामले के साथ-साथ एक डीसीपी को घायल करने के मामले में 5 आरोपियों को शुक्रवार को जमानत दे दी। जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने आदेश पारित करते हुए कहा कि अदालत की राय है कि याचिकाकर्ताओं को लंबे समय तक सलाखों के पीछे नहीं रखा जा सकता है और उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों की सत्यता का परीक्षण ट्रायल के दौरान भी किया जा सकता है। पुलिस ने फुरकान, आरिफ, अहमद, सुवलीन और तबस्सुम को पिछले साल क्रमशः एक अप्रैल, 11 मार्च, छह अप्रैल, 17 मई और तीन अक्टूबर को गिरफ्तार किया था।
हाईकोर्ट ने महिला सहित पांच आरोपियों को जमानत देते हुए शुक्रवार को कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में विरोध और असहमति जताने का अधिकार मौलिक है। कोर्ट ने कहा कि इस विरोध करने अधिकार का इस्तेमाल करने वालों को कैद करने के लिए इस कृत्य का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि यह सुनिश्चित करना अदालत का संवैधानिक कर्तव्य है कि राज्य की अतिरिक्त शक्ति की स्थिति में लोगों को व्यक्तिगत स्वतंत्रता से मनमाने ढंग से वंचित नहीं किया जाए।
04 सितंबर 2021 : दिल्ली की विशेष जज की आदलत में पता चला कि दंगे के दौरान शेरपुर में जीशान की दुकान जलाने के मामले में पुलिस ने दयालपुर थाने में ही दो एफआईआर दर्ज कर ली थी – एक 109/2020 और दूसरी 117/2020।
20 जून, 2020 : दिल्ली की एक अदालत में फ़ैसल को जमानत देने वाले जज विनोद यादव ने कहा कि इस मामले के गवाहों के बयानों में अंतर है और मामले में नियुक्त जांच अधिकारी ने ख़ामियों को पूरा करने के लिए पूरक बयान दर्ज कर दिया है। अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘जांच अधिकारी ने इन लोगों में से किसी से भी बात नहीं की और सिर्फ़ आरोपों के अलावा कोई भी ठोस सबूत नहीं है, जिसके दम पर यह साबित किया जा सके कि फ़ैसल ने इन लोगों से दिल्ली दंगों के बारे में बात की थी।’
विदित हो राजधानी पब्लिक स्कूल जो कि दिल्ली के दंगों में पूरी तरह आग के हवाले कर दिया गया था, लेकिन उसके संचालक फैसल फारूक को पुलिस ने दंगों का मुख्य सूत्रधार, षडयंत्रकर्ता और आयोजक बना कर 8 मार्च को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। पुलिस ने यह भी दावा किया था कि फ़ारूक़ के कहने पर ही दंगाइयों ने राजधानी स्कूल के बगल में स्थित डीआरपी कॉन्वेन्ट स्कूल, पार्किंग की दो जगहों और अनिल स्वीट्स में भी सोच-समझकर तोड़फोड़ की थी।
29 मई 2020 : दिल्ली हाई कोर्ट ने फिराज खान नामक एक अभियुक्त को जमानत देते हुए पुलिस से पूछा कि आपकी प्रथम सूचना रिपोर्ट में तो 250 से 300 की गैरकानूनी भीड़ का उल्लेख है। आपने उसमें से केवल फिरोज व एक अन्य अभियुक्त को ही कैसे पहचाना? पुलिस के पास इसका जवाब नहीं था और फिरोज को जमानत दे दी गई।
27 मई 2020 : दिल्ली पुलिस की स्पेशल ब्रांच ने साकेत कोर्ट में जज धर्मेन्द्र राणा के सामने जामिया के छात्र आसिफ इकबाल तनहा पेश किया गया था। इस ममले में भी आसिफ को न्यायिक हिरासत में भेजते हुए जज ने कहा कि दिल्ली दंगों की जांच दिशाहीन है। मामले की विवेचन एकतरफा है। कोर्ट ने पुलिस उपायुक्त को भी निर्देश दिया कि वे इस जांच का अवलोकन करें।
25 मई 2020 : पिंजड़ा तोड़ संगठन की नताशा और देवांगना को जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के सामने प्रदर्शन करने के आरोप में गिरफ्तार किया। अदालत ने कहा कि उन्होंने प्रदर्शन करने का कोई गुनाह नहीं किया इसलिए उन्हें जमानत दी जाती है। यही नहीं अदालत ने धारा धारा 353 लगाने को भी अनुचित माना। अदालत ने कहा कि अभियुक्त केवल प्रदर्शन कर रहे थे। उनका इरादा किसी सरकारी कर्मचारी को आपराधिक तरीके से उनका काम रोकने का नहीं था। इसलिए धारा 353 स्वीकार्य नहीं है।
दिल्ली पुलिस की जांच तब और संदिग्घ हो गई जब केस नंबर 65/20 अंकित शर्मा हत्या और केस नंबर 101/20 खजूरी खास की चार्जशीट में कहा गया कि 8 जनवरी को शाहीन बाग में ताहिर हुसैन की मुलाकात खालिद सैफी ने उमर खलिद से करवाई और तय किया गया कि अमेरिका के राष्ट्रपति के आने पर दंगा करेंगे। हकीकत तो यह है कि 12 जनवरी 2020 तक किसी को पता ही नहीं था कि ट्रंप को भारत आना है और 12 जनवरी को भी एक संभावना व्यक्त की गई थी जिसमें तारीख या महीने का जिक्र था ही नहीं। यह यह तो कुछ ही मामले हैं। दिल्ली पुलिस ने दंगों से संबंधित जांच को एक उपन्यास बना दिया।
24 फरवरी 2020 को चमन पार्क में मिठाई के गोदाम में उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के रोखड़ा गांव निवासी दिलबर नेगी का आधा जला शव बरामद हुआ था। उसके हाथ और पैर भी गायब थे। इस मामले में बुधवार को कड़कड़डूमा कोर्ट ने 12 में से 11 आरोपितों को आरोप मुक्त कर दिया। एक आरोपित मोहम्मद शाहनवाज पर हत्या समेत अन्य आरोप तय किए गए है। आरोप मुक्त किए गए लोगों के खिलाफ कोई ठोस साक्ष्य नहीं थे, न ही इस मामले में दंगाई के रूप में उनकी पहचान कराने संबंधी किसी गवाह के बयान थे।
घोंडा के सुभाष विहार निवासी दानिश की करावल नगर रोड पर शेरपुर चौक के पास चंदू नगर ए-97 स्थित कोरियर की दुकान 24 फरवरी 2020 को दंगाइयों ने जला दी थी। इस पर एफआइआर : 108/2020, दयालपुर थाना में दर्ज हुई लेकिन जब मामला अदालत में गया तो पुलिस ने 22 अन्य शिकायतें इसमें जोड़ दीं । इसी साल सात जून को कड़कड़डूमा कोर्ट ने इस केस के तीन लोगों को बरी कर दिया। कोर्ट ने आदेश में लिखा कि इस मामले में जांच अधिकारी ने ढिलाई बरती है। उसने केवल एक शिकायत पर जांच की, जिसमें आरोपितों पर आरोप साबित करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य नहीं थे। बाकी शिकायतों की जांच के लिए कोर्ट ने निर्देश दिया है।
25 फरवरी 2020 को ब्रजपुरी में विक्टोरिया स्कूल के अंदर खड़े वाहन जलाने के मामले में कड़कड़डूमा कोर्ट ने गत 16 अगस्त को आरोपियों को बरी करते हुए कहा कि पुलिस ने रिपोर्ट की गई घटनाओं की पूरी तरह से जांच नहीं की। आरोपपत्र गलत तरीके से दायर किया गया और शुरुआती गलती पर पर्दा डाला गया। इसमें भी कोर्ट ने फिर से जांच करने को कहा है।
20 जून, 2020: दिल्ली की एक अदालत ने राजधानी पब्लिक स्कूल अग्निकांड मामले में आरोपी फ़ैसल को जमानत देने वाले जज विनोद यादव ने कहा कि इस मामले के गवाहों के बयानों में अंतर है और मामले में नियुक्त जांच अधिकारी ने ख़ामियों को पूरा करने के लिए पूरक बयान दर्ज कर दिया है। अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘जांच अधिकारी ने इन लोगों में से किसी से भी बात नहीं की और सिर्फ़ आरोपों के अलावा कोई भी ठोस सबूत नहीं है, जिसके दम पर यह साबित किया जा सके कि फ़ैसल ने इन लोगों से दिल्ली दंगों के बारे में बात की थी।’
सबसे भयानक तो वे दस से अधिक एफआईआर हैं जिनमें कई रसूखदार लोगों के नाम जिनमें सरेआम दंगा करते, लोगों की हत्या करते, माल-असबाब जलाने के आरोप हैं। यमुना विहार के मोहम्मद इलीयास और मोहम्मद जामी रिजवी, चांदबाग की रुबीना बानो, प्रेम विहार निवासी सलीम सहित कई लोगों की रिपोर्ट पर पुलिस थाने की पावती के ठप्पे तो लगे हैं लेकिन उनकी जांच का कोई कदम उठाया नहीं गया। इसी तारतम्य में हाई कोर्ट के जज मुरलीधरन द्वारा कुछ वीडियो देख कर दिए गए जांच के आदेश और फिर जज साहब का तबादला हो जाना और उसके बाद उनके द्वारा दिए गए जांच के आदेश पर कार्यवाही ना होना वास्तव में न्याय होने पर शक खड़ा करता है।
दिल्ली दंगों को लेकर दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग की एक जांच रिपोर्ट है, सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज मदन वी लोकुर की अध्यक्षता में गठित एक स्वतंत्र जांच आयोग की रिपोर्ट है। इसके अलावा भी दो अन्य संगठनों की जाँच रिपोर्ट है। इन सभी रिपोर्ट्स के तथ्य और निष्कर्षों को पुलिस ने नज़रंदाज़ किया। यह नहीं उनकी जांच की दिशा जस्टिस लोकुर के निष्कर्षों से बिलकुल विपरीत दिशा में हैं।
यह एक विचारणीय प्रश्न है कि अमेरिका के राष्ट्रपति के आगमन से कुछ दिन पहले संसद से 13 किलोमीटर दूर चार दिन लगातार दंगा चलता रहा। जिस दिल्ली में सभी अर्ध सैनिक बलों की पर्याप्त बटालियन होती है, दिल्ली पुलिस का अपना विशेष बल है। जिस जगह देश और दुनिया की सभी ख़ुफ़िया एजेंसियां काम करती है। ऐसे में यदि चार दिन निरंकुश उत्पात होता रहा तो इसमें पुलिस और ख़ुफ़िया महकमें की जिम्मेदारी कैसे न तय की जाए? उसके बाद जांच के नाम पर अधूरे, फर्जी तथ्य अदालत में जा रहे हैं। इस मामले में कई लोग साजिश के आरोप में चार साल से अधिक दिनों से जेल में हैं और न्यायिक प्रक्रिया ठिठकी हुई है। इसीलिए आज जरूरी हो गया है कि दिल्ली दंगों की जांच की जांच किसी निष्पक्ष एजेंसी से करवाई जाए, यदि हाई कोर्ट के किसी वर्तमान जज इसकी अगुआई करें तो बहुत उम्मीदें बंधती हैं।
न जांच न तफ्तीश न संगठित अपराध
“भाई आरएसएस के लोग आये हैं यहां सपोर्ट में। ब्रिजपुरी में.. और नौ मुल्लों को मार दिया गया है ब्रिजपुरी पुलिया पर
हिम्मत बनाये रखो और इनकी बजाये रखोजय श्रीराम…”
यह मैसेज दिल्ली दंगे के दौरान बने एक व्हाट्सएप ग्रुप का है। दंगों में हुई आगजनी और कत्लेआम के एक बड़े हिस्से की तैयारी इसी ग्रुप के ज़रिए हुई थी।
दिल्ली में दंगे भड़के हुए थे और पुलिस इतनी मुस्तैद थी कि तीन दिन तक आगजनी, लूटपाट, हत्या होती रहीं।
25 फरवरी 2020 शाम 4 से 4.30 बजे – मुरसलीन को भीड़ ने घेर कर मारा, उसका स्कूटर जलाया और लाश को भागीरथी विहार नाले में जोहरी पुलिया के पास फैंक दिया।
25 फरवरी 2020 शाम 7 से 7 .30 बजे- लोनी की तरफ से पैदल आ रहे आस मुहम्मद को चाकू डंडों से मारा और उसी नाले में फैंक दिया।
25 फरवरी 2020 शाम 7.30 से 8.00 बजे – पहले इलाके की बिजली काटी फिर मुशर्रफ को घर से निकाल आकर काट डाला गया- फिर उसकी लाश को उसी नाले में फेंक दिया गया।
25 फरवरी 2020 रात 9.०० बजे- आमीन को मारा और नाले में डाल दिया।
26 फरवरी 2020 सुबह सवा 9 बजे- भूरे अली उर्फ़ सलमान की हत्या आकर नाले में डाला।
26 फरवरी 2020 रात सवा 9 बजे हमजा की हाथ पैर तोड़े और उसे अधमारा ही नाले में फैंक दिया।
26 फरवरी 2020 रात साढ़े 9 बजे- अकिल अहमद को भी मार आकर नाले में डाल दिया।
26 फरवरी 2020 रात 9.40 बजे- हाशिम अली और उसके भाई आमिर को मारा और नाले में लाश फेंक दी।
यह सब काम करता रहा ‘कट्टर हिन्दू एकता’ नामक व्हाट्सएप ग्रुप-जिसके चैट में बातचीत है-मैं गंगा विहार में हूँ, किसी भी हिन्दू को जरूरत हो तो बताना, पूरी तैयारी है सारे हथियार हैं- क्या 315 बोर के कारतूस मिला जायेंगे? क्या एक्स्ट्रा पिस्तौल है ? अभी तुम्हारे भाई ने दो मुल्लों को काट कर नाले में फैंक दिया ।
‘कट्टर हिन्दू एकता’ नाम का व्हाट्सएप ग्रुप 24 फरवरी की रात 12 बजकर 49 मिनट पर बनाया गया था। इस ग्रुप में लगभग 125 लोग जुड़े हुए थे।
पुलिस ने चार्जशीट के साथ ‘कट्टर हिन्दू एकता’ व्हाट्सएप ग्रुप में 24 फरवरी से आठ मार्च के बीच हुई तमाम बातचीत को भी कोर्ट में जमा किया है। इस ग्रुप में हुई बातचीत आरएसएस, कपिल मिश्रा, मस्जिदों में आग लगाने और मूर्तियां स्थापित करने, बंदूक, पिस्टल और गोली के लेन-देन करने और मुसलमानों को मारने की साज़िश के इर्द-गिर्द रही है। इतना ही नहीं इस ग्रुप में मुस्लिम महिलाओं का दुर्व्यवहार करने की भी बात की गई है।
कुल 125 लोगों का यह ग्रुप दो दिन तक हत्या कर लाश नाले में फेकता रहा। यह मैं नहीं कह रहा हूं – यह गोकुलपुरी थाने द्वारा अदालत में पेश चार्जशीट में कहा गया है — प्रथम सूचना रिपोर्ट 104/20 दिनांक 3.3. 2020 धारा -147,148, 149, 302,201, 120 बी।
इस मामले में गिरफ्तार 9 में से 8 लड़के महज 19 से 23 साल के हैं – दुखद है कि नफरत का जहर इस छोटे आयु वर्ग में भर दिया गया और इन्हें हथियारों से लैस किया गया। लोकेश सौलंकी 19, जतिन शर्मा उर्फ़ रोहित 19, हिमांशु ठाकुर 19, विवेक पांचाल 20, रिषभ चौधरी उर्फ़ तापस 20 , सुमित चौधरी उर्फ़ बादशाह 23, प्रिंस 22 और पंकज शर्मा 31 साल।
इस मामले में पुलिस की चार्जशीट कहती है कि यह भीड़ लोगों को पकडती-उनसे जय श्री राम के नारे लगवाती- आधार कार्ड देखती और ह्त्या कर देती। लगभग 30 घंटे में 9 ह्त्या करना तो इन्होने कबूला है। दुर्भाग्य है कि दिल्ली के नागरिक अधिकार समूह के लोगों को बगैर किसी पुख्ता प्रमाण के दंगा भड़काने की साजिश का दोषी बताकर यूएपीए में फंसाया गया लेकिन इतने सुनियोजित तरीके से कई हत्या करने, प्रोपर्टी जलाने वालों पर कोई संगठित अपराध या दंगा भड़काने की साजिश की धाराएँ नहीं लगायी गयीं।
एक अन्य एफ़आईआर में तो दंगे में आरएसएस की भागीदारी उजागर हो गयी। साहिल ने पुलिस को बताया कि –“25 फरवरी को तकरीबन शाम के 7 बजे होंगे। मैं और मेरे पिता नमाज अदा करने निकले ही थे। बाहर हमारे सामने की गली में सुशील, जयवीर, देवेश मिश्रा (गली 8) और नरेश त्यागी हाथों में तलवार, बंदूकें और डंडे लेकर खड़े थे। जब सुशील ने मेरे पिता को देखा तो हमारी तरफ गोली चला दी। मेरे पिता वहीं जमीन पर गिर पड़े और मैं अपनी जान बचाने के लिए भागा। साहिल ने अपनी शिकायत में दावा किया- उसने कुछ दूरी से देखा कि देवेश और जयवीर उसके पिता के पास पहुंचे और उन्हें लात मारी। फिर उनकी जेब से कुछ चीजें निकाली। वो लोग चिल्ला रहे थे कि आज वो उन्हें जिंदा नहीं छोड़ेंगे।”
साहिल परवेज की शिकायत में देवेश मिश्रा का नाम था। लेकिन उसे अब तक ना गिरफ्तार किया गया ना उसका नाम चार्जशीट में है। वह 1996 से संघ के साथ जुड़ा हुआ है और बीते आठ सालों से आरएसएस का यमुना विहार डिस्ट्रिक्ट प्रभारी है। हाल ही में वह विश्व हिंदू परिषद से जुड़ गया है । उत्तम लंबे समय तक संघ का प्रचारक रहा है और उनकी कई गतिविधियों में शामिल रहा है। दूसरा भाई नरेश त्यागी भी संघ का नियमित और सक्रिय सदस्य था। एक अन्य आरोपी हरिओम मिश्रा है। उसकी जिम्मेदारी उत्तरी घोंडा में रोज सुबह शाखा लगाने की थी। राजपाल त्यागी एक गणित टीचर है। वह भी शहीद भगत सिंह पार्क में रोज सुबह शाखा जाता है। अन्य नामों में दो भाई अतुल चौहान और वीरेंद्र चौहान, दीपक कुमार, सुशील और उत्तम मिश्रा हैं, जो आरएसएस की शाखा में जाते थे।
इस सारे मामले में मीडिया की भूमिका बेहद संदिग्ध रही है। दिनांक 04 जुलाई के “हिंदुस्तान” ने इस खबर का एक हिस्सा छापा लेकिन किसी का नाम नहीं लिखा, साथ में टिप्पणी है – सौहार्द कायम रहे इस लिए हम किसी का नाम नहीं ले रहे। लेकिन इसके एक दिन पहले ही पहले पन्ने पर इसी अखबार ने मुस्लिम पक्ष के नाम सहित उलिस के बयान को हबर बना कर छाप दिया था।
इन दिनों दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल अपने वकील के जरिये जो जवाब या बयान या सामग्री कोर्ट में पेश करती है उसे — प्रेस को दे देती है और इसे खास विचारधार के पत्रकार अपना इन्वेस्टिगेशन के रूप में इसे छापते हैं। पुलिस का इतना सांप्रदायिक, एकपक्षीय और झूठा स्वरुप तो उत्तर प्रदेश में भी नहीं देखने को मिला- स्पेशल सेल में पूछताछ के लिए बुलाये जा रहे अधिकांश लोग यह कहते पाए जाते हैं कि लगता ही नहीं कि उनसे कोई पुलिस वाला सवाल जवाब कर रहा है- लगता है कि संघ के कार्यालय में कोई तफ्तीश हो रही है।
मुआवजे के लिए भटकते लोग
दंगों के तत्काल बाद दिल्ली सरकार के दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने एक नौ सदस्यीय कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी के चेयरमैन, सुप्रीम कोर्ट के वकील एमआर शमशाद, औऱ गुरमिंदर सिंह मथारू, तहमीना अरोड़ा, तनवीर क़ाज़ी, प्रोफ़ेसर हसीना हाशिया, अबु बकर सब्बाक़, सलीम बेग, देविका प्रसाद तथा अदिति दत्ता सदस्य थे।
अल्पसंख्यक आयोग की नौ सदस्यीय जांच कमेटी ने, दंगो में घोषित मुआवज़े के लिए लिखे गए 700 प्रार्थनापत्रों का अध्ययन किया। अपने अध्ययन के बाद, कमेटी ने पाया कि अधिकतर मामलों में क्षतिग्रस्त जगह का दौरा भी नहीं किया गया है, और जिन मामलों में जान माल के नुकसान को, सही पाया गया है, उनमें भी बहुत कम धनराशि, अंतरिम सहायता के रुप मे दी गई है।
दंगों के तुरन्त बाद कई लोग घर छोड़ कर चले गए हैं, इसलिए बहुत से लोग, मुआवज़े के लिए आवेदन नहीं कर सके हैं। मुआवज़े में भी सरकारी अधिकारी के मरने पर उनके परिवार वालों को एक करोड़ की रक़म दी गई जबकि आम नागरिकों की मौत पर केवल 10 लाख रुपए का मुआवज़ा दिया गया। मुआवजे का कोई तार्किक आधार तय नहीं किया गया है। इस रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में क़ानून-व्यवस्था की ज़िम्मेदारी केंद्र सरकार की है फिर भी दंगों में पीड़ितों को केंद्र सरकार की ओर से, दंगा पीड़ितों की कोई मदद नहीं की गई।
इस रिपोर्ट के मुताबिक 11 मस्जिद, पाँच मदरसे, एक दरगाह और एक क़ब्रिस्तान को नुक़सान पहुँचाया गया.. मुस्लिम बहुल इलाक़ों में किसी भी ग़ैर-मुस्लिम धर्म-स्थल को नुक़सान नहीं पहुँचाया गया था। जबकि दिल्ली पुलिस ने अदालत में जो हलफनामा दिया है उसके अनुसार, इन दंगों में, कुल मृतक, 52 हैं जिंसमे 40 मुस्लिम समुदाय के और 12 हिन्दू समुदाय के हैं। इसी प्रकार घायलों की कुल संख्या, 473 है जिसमे से धर्म के आधार पर, 257 मुस्लिम और 216 हिंदू हैं। संपत्ति के नुकसान का जो आंकड़ा दिल्ली पुलिस ने हलफनामा में दिया है, उसके अनुसार, कुल 185 घर बर्बाद हुए हैं जिनमे से 50 घर, मुस्लिम समुदाय के और 14 घर हिंदुओं के हैं। लेकिन इस हलफनामा में खजूरी खास और करावल नगर में हुए नुकसान का साम्प्रदायिक आधार पर ब्रेकअप नहीं दिया गया। इसी प्रकार इन दंगों में दिल्ली पुलिस के हलफनामे के अनुसार, बर्बाद होने वाली 53.4 % दुकानें मुस्लिम समुदाय की हैं औऱ 14 % हिन्दू समाज की। शेष विवरण नही दिया गया है। साम्प्रदायिक दंगों का कारण धार्मिक कट्टरता होती है तो निश्चय ही उपासना स्थल निशाने पर आते हैं।
इस बात के लिए दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार की भूमिका भी संदिग्ध है कि अप्रैल 2020 में उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगा दावा आयोग (एनईडीआरसीसी) के गठन के बावजूद, आज भी 2,790 दावे अनसुलझे हैं। तब की केजरीवाल सरकार द्वारा गठित इस आयोग को सरकार ने निर्देशित किया था कि परिवार के वयस्क सदस्य की मृत्यु पर 10 लाख रुपये, स्थायी विकलांगता के लिए 5 लाख रुपये, गंभीर चोटों के लिए 2 लाख रुपये और मामूली चोटों के लिए 20,000 रुपये का मुआवजा दिया जाएगा।
इसके साथ ही स्थायी आवासों और वाणिज्यिक इकाइयों के नुकसान के संबंध में, योजना में आवासीय इकाइयों को बड़ी क्षति के लिए 5 लाख रुपये, मध्यम क्षति के लिए 2.5 लाख रुपये और मामूली क्षति के लिए 25,000 रुपये का उल्लेख था। जबकि ई-रिक्शा को नुकसान के लिए 50,000 रुपये और मवेशी के लिए 5,000 रुपये देने का वादा था। बिना बीमा वाली वाणिज्यिक इकाइयों के लिए 5 लाख रुपये के मुआवजे की पेशकश थी।
वायदे-दावे आगे चल कर सरकार बनाम उप राज्यपाल के झगड़े में फंस गए। 25 अगस्त, 2022 को उप-राज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने दावों के निपटान में तेजी लाने के लिए आयोग में 40 नए हानि मूल्यांकनकर्ताओं को नियुक्त किया। उन्हें वित्तीय घाटे की सीमा का आकलन करने वाली रिपोर्ट संकलित करने और उन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय में पेश करने के लिए कहा गया था। एलजी सक्सेना ने मौजूदा 14 मूल्यांकनकर्ताओं को 25 अगस्त की तारीख से तीन सप्ताह के भीतर उन्हें सौंपे गए दावा निपटान पर अपनी रिपोर्ट जमा करने का भी निर्देश दिया। ऐसा कहा गया कि 40 नए मूल्यांकनकर्ताओं में से कुछ को सरकार द्वारा उन्हें दी गई जिम्मेदारी के बारे में भी पता नहीं था। बहुत से लोगों ने काम ही नहीं शुरू किया। उधर आयोग के अधिकारी कहते हैं कि एल जी द्वारा नियुक्त एसेस्मेंट टीम के 40 में से केवल 5 से ही उनका संपर्क हो पाया।
हालांकि यहाँ लोगों ने लाखों गँवाए हैं, समय के साथ उनके जख्म भर रहे हैं। बहुत से लोगों ने नए सिरे से रोजी रोटी के रास्ते खोले हैं लेकिन सरकार के मुआवजे के दावे और निर्दोष लोगों को न्यायिक सहयोग में आम आदमी सरकार की निर्ममता और लापरवाही केंद्र सरकार से काम नहीं हैं। (पंकज चतुर्वेदी वरिष्ठ पत्रकार हैं)
सौजन्य: जनचौक
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