BHU-IIT गैंगरेप केस: पीड़िता के सवालों के घेरे में तीसरे आरोपी की जमानत और बीएचयू में 11 करोड़ का सुरक्षा बजट !
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी स्थित बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के आईआईटी की छात्रा से गैंगरेप के मामले में तीसरा आरोपी सक्षम पटेल भी जेल से छूट गया। अभियोजन पक्ष की कमजोर पैरवी के चलते उसे इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत मिल गई।
पुलिस ने सक्षम को गैंगस्टर एक्ट और दुष्कर्म के आरोपों के तहत शातिर अपराधी करार दिया था। करीब 11 महीने जेल में रहने के बाद रिहा कर दिया गया। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से जुड़े शहर के तीन युवक सक्षम पटेल, कुणाल पांडेय और आनंद उर्फ अभिषेक चौहान ने बीएचयू कैंपस में आईआईटी छात्रा के साथ कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार किया था।
आईआईटी छात्रा के साथ गैंगरेप की वारदात बीएचयू कैंपस में हुई, जिसकी सुरक्षा के नाम पर बीएचयू प्रशासन हर साल करीब 11 करोड़ रुपये खर्च होते हैं। गैंगरेप की वारदात के बाद से ही लगातार यह सवाल उठाया जा रहा है कि आखिर करोड़ों रुपये कहां खर्च किए जा रहे हैं?
प्रॉक्टोरियल बोर्ड इन दिनों इतना निरीह क्यों हो गया है जिसके चलते उसे हर वारदात में पुलिस की मदद लेनी पड़ रही है। गैंगरेप की वारदात के बाद प्रॉक्टोरियल बोर्ड ने अपनी नाकामी पर पर्दा डालने के लिए कैंपस में पुलिस चौकी बनवा दी है।
बीएचयू कैंपस की सुरक्षा व्यवस्था दुरुस्त करने के बावजूद हास्टलों में रहने वाली छात्राओं पर नए-नए नियम–कानून लादे जा रहे हैं।
गैंगरेप के बाद आंदोलित स्टूडेंट
हाईकोर्ट के आदेश के बाद गैंगरेप के तीसरे अभियुक्त सक्षम पटेल को पिछले हफ्ते जेल से रिहा कर दिया गया। रिहाई से पहले उसे फास्ट ट्रैक कोर्ट में पेश किया गया। इसके साथ ही अन्य दो आरोपी, कुणाल पांडेय और आनंद उर्फ अभिषेक चौहान, भी अदालत में मौजूद थे।
तीनों ने एक साथ कोर्ट में पेशी दी। चार महीने पहले ही कुणाल और आनंद को भी इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत मिल गई थी। पुलिस रिपोर्ट के मुताबिक, ये तीनों आरोपी भाजपा आईटी सेल से जुड़े थे और सरकार के वरिष्ठ नेताओं और विधायकों से उनके संबंध थे।
हाईकोर्ट में सक्षम पटेल के वकील ने तर्क दिया कि उसके खिलाफ लगाए गए आरोप निराधार हैं और पुलिस ने पुराने मामलों के आधार पर गैंगस्टर एक्ट जोड़ा है। वकील का कहना था कि अभियोजन पक्ष कोई ठोस सबूत पेश नहीं कर पाया।
पुलिस ने केस में सीसीटीवी फुटेज, मोबाइल लोकेशन, वॉट्सऐप चैट और पीड़िता के बयान को आधार बनाया था, लेकिन कोर्ट में ये सबूत प्रभावी ढंग से प्रस्तुत नहीं किए गए।
इधर, तीसरे आरोपी सक्षम को जमानत मिलने के बाद पीड़ित छात्रा ने आक्रोश जताया है। उसने आरोपियों के लगातार जेल से बाहर आने पर सवाल भी उठाए हैं। इसके बाद वह कॉलेज छोड़कर अपने घर चली गई। साथ ही, छात्रा ने अपने वकील के जरिए कोर्ट को पत्र लिखकर कहा कि वह आरोपियों का सामना नहीं करना चाहती और वर्चुअल सुनवाई की मांग की।
पीड़िता का कहना है कि घटना के बाद से वह डर और दबाव में है। कोर्ट ने मामले की सुनवाई तेज कर दी है, लेकिन अभी भी कई गवाहों के बयान दर्ज होना बाकी हैं।
बीजेपी एमएलए के साथ गैंगरेप के आरोपित
पीड़िता ने पुलिस को दिए बयान में बताया कि 1 नवंबर की रात 1:30 बजे, वह होस्टल से बाहर निकली थी। गांधी स्मृति चौराहे के पास तीन युवक बुलेट मोटरसाइकिल पर आए और उसे रोककर एक कोने में ले गए। वहां, उसके साथ दुर्व्यवहार किया, वीडियो और फोटो बनाए, और धमकी देकर फरार हो गए।
घटना के बाद तीनों आरोपी करीब 60 दिनों तक फरार रहे और मध्य प्रदेश में शरण ली। वाराणसी पुलिस ने 225 सीसीटीवी फुटेज खंगाले और स्पेशल टास्क फोर्स, क्राइम ब्रांच सहित कुल छह टीमें जांच में लगाईं। अंततः 30 दिसंबर 2023 को तीनों को गिरफ्तार किया गया। हालांकि, गिरफ्तारी में देरी के पीछे उनके राजनीतिक संपर्कों का आरोप भी लगाया गया।
सक्षम पटेल के वकील ने हाईकोर्ट में बताया कि उसके ऊपर (सक्षम) पर लगाए गए सभी आरोप निराधार हैं। पुलिस ने पुराने मामलों के आधार पर गैंगस्टर लगा दिया। इसके अलावा, बीएचयू गैंगरेप केस में नई धाराएं बढ़ा दी। इनके खिलाफ कोई मजबूत सबूत नहीं मिल पाया है।
वाराणसी कोर्ट ने खारिज कर दी याचिका
IIT-BHU गैंगरेप के तीनों आरोपियों की सुनवाई वाराणसी के फास्ट ट्रैक कोर्ट (पॉक्सो) में चल रही थी। जुलाई 2024 में तीनों आरोपियों ने कोर्ट में जमानत याचिका दाखिल की थी। अभियोजन के विरोध पर तीनों आरोपियों कुणाल, आनंद उर्फ अभिषेक और सक्षम की जमानत अर्जी खारिज कर दी।
यह पहली बार नहीं था, बल्कि इससे पहले दो बार कोर्ट उनकी याचिका खारिज कर चुका था। आरोपियों के खिलाफ केस और पुलिस की चार्जशीट ही मजबूत थी।
वाराणसी फास्ट ट्रैक कोर्ट में याचिका खारिज होने के बाद सबसे पहले आरोपी आनंद ने 11 नवंबर 2023 को जमानत याचिका हाईकोर्ट में दायर की थी, जिस पर कई बार सुनवाई हुई और तारीख बढ़ती रही। आनंद ने परिजन की बीमारी समेत कई कारण बताए, तो कोर्ट ने 2 जुलाई 2024 को जमानत स्वीकार कर ली, लेकिन कई शर्तें लगा दीं।
आनंद के जमानत स्वीकार होते ही दूसरे आरोपी कुणाल ने भी 2 जुलाई 2024 को हाईकोर्ट में जमानत याचिका दायर की। 4 जुलाई को कोर्ट ने उसकी भी जमानत स्वीकार कर ली, लेकिन जमानतकर्ताओं के वैरिफिकेशन के चलते उसकी भी रिहाई 24 अगस्त को हो सकी।
इसके बाद 4 जुलाई को तीसरे आरोपी सक्षम पटेल ने जमानत अर्जी दाखिल की, जिस पर कोर्ट ने कुछ दिन बाद गैंगरेप में जमानत दे दी, लेकिन गैंगस्टर में आपत्ति दाखिल हो गई।
अब गैंगस्टर के केस में सक्षम पटेल की याचिका हाईकोर्ट की खंडपीठ ने 16 सितंबर को खारिज कर दी। इसके बाद उसने डबल बेंच में अपील की, जहां कोर्ट ने सभी पहलुओं को सुनकर पुलिस रिपोर्ट तलब की।
बीजेपी के कबीना मंत्री के आजू-बाजू में अभियुक्त कुणाल व सक्षम
पुलिस ने कोर्ट में कमजोर रिपोर्ट पेश की, जिस पर अभियोजन की बहस भी फीकी रही और मजबूत आधार नहीं होने के चलते सक्षम पटेल को जमानत मिल गई। सवाल उठे तो पता चला कि सक्षम पटेल के खिलाफ भाजपा नेताओं की पैरवी की बात भी सामने आई है, काशी क्षेत्र के एक मजबूत भाजपा पदाधिकारी का करीबी भी बताया गया है।
हाई प्रोफाइल केस में पुलिस ने 17 जनवरी, 2024 को गैंगरेप की चार्जशीट दाखिल की थी। पुलिस ने तीनों आरोपियों पर गैंगस्टर एक्ट में केस किया था।
गैंगस्टर केस दर्ज होने के बाद लगातार उनकी जमानत याचिका खारिज हुई थी, लेकिन अब तीनों जमानत पर बाहर हैं। आरोपी कुणाल का घर बृज इंक्लेव कॉलोनी में है। वहीं, सक्षम पटेल और आनंद दोनों के घर अगल-बगल हैं।
पुलिस ने माना था पेशेवर अपराधी
31 दिसंबर, 2023 से तीनों अभियुक्त जिला जेल में बंद थे। उन्हें जघन्य वारदातों में शामिल आरोपियों की बैरक में रखा गया था। कोर्ट में पुलिस ने बताया कि तीनों पेशेवर अपराधी हैं, जनता के बीच तीनों को जाने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए।
पुलिस ने चार्जशीट में तीनों आरोपियों के रूट चार्ट, CCTV फुटेज, मोबाइल लोकेशन को आधार बनाया था। इसके साथ ही पीड़ित छात्रा, उसके दोस्त और एक गार्ड के बयान को भी आरोपियों के खिलाफ आधार बनाया है। वॉट्सऐप चैट को भी कोर्ट में पेश कर जब्त बुलेट का भी जिक्र किया गया था।
पीड़ित छात्रा ने अपने वकील के जरिए कोर्ट को दिए लेटर में कहा, मेरी परीक्षाएं चल रही हैं। कैंपस से बार-बार कोर्ट के चक्कर लगाना मेरे लिए परेशानी भरा है। मैं एग्जाम की तैयारी भी नहीं कर पा रही हूं।
बार-बार कोर्ट आना और रेप के आरोपियों से सामना मुश्किल भरा होता जा रहा है। पीड़ित ने केस में वर्चुअल पेशी की मांग की है।
छात्रा की ओर से घटना से जुड़े गवाहों के बयान होना बाकी है। केस में चश्मदीद गवाह, विवेचक, महिला शिक्षक, महिला पुलिस कर्मी और अफसरों के पूरे बयान नहीं हो सके हैं। छात्रा के वकील मनोज गुप्ता के मुताबिक, “कोर्ट ने IIT-BHU गैंगरेप की सुनवाई तेज कर दी है।
केस में सबसे पहले छात्रा को कोर्ट ने 22 अगस्त को बुलाया था। पुलिस सुरक्षा में छात्रा को कोर्ट में पेश किया गया। BHU की वारदात को छात्रा ने कोर्ट के सामने रखा। उसने बताया कि तीनों आरोपियों ने दरिंदगी की, धमकाया और फिर फरार हो गए। घटना के बाद से कई तरह का दबाव भी महसूस कर रही है। बाहर आते-जाते डर लगता है, इसलिए अधिकांश समय हॉस्टल में रहती हूं।”
सूत्रों का कहना है कि आरोपियों के सत्तादल में पदाधिकारी होना भी गिरफ्तारी में लेटलतीफी का कारण था, शासन से क्लीयरेंस मिलने के बाद तीनों की गिरफ्तारी की गई। गिरफ्तारी के 10 दिन पहले ही इस मामले की जांच कर रहे ACP भेलूपुर प्रवीण सिंह का भी ट्रांसफर कर दिया गया था।
वाराणसी पुलिस ने कैंपस और कैंपस के बाहर कुल 225 CCTV फुटेज की जांच की थी। स्पेशल टास्क फोर्स (STF), क्राइम ब्रांच और सर्विलांस सहित कुल 6 टीमों को तलाश में लगाया गया था।
तीसरे अभियुक्त सक्षम पटेल को जमानत मिलने के बाद प्रबुद्ध नागरिकों की तीखी प्रतिक्रिया सामने आई है। 11 दिसंबर 2024 को बनारस पहुंची भोजपुरी लोक गायिका नेहा राठौर ने IIT-BHU गैंगरेप मामले को लेकर गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने कहा, “छात्रा के साथ गैंगरेप हुआ था, लेकिन आज उसके तीनों आरोपी जमानत पर बाहर घूम रहे हैं।
यह वही लोग हैं जो ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का नारा देते हैं। बनारस पढ़ने आई बेटी न तो सुरक्षित रही, न ही पढ़ाई पूरी कर पाई। वह अपनी पढ़ाई छोड़कर घर लौट गई। यह स्थिति दिल दहला देने वाली है।”
वाराणसी दौरे के दौरान नेहा ने IIT-BHU गैंगरेप मामले पर गहरा दुख जताया। उन्होंने कहा, “जब एक बेटी बनारस जैसी जगह पर पढ़ने के लिए आती है और उसके साथ ऐसा घिनौना अपराध होता है, तो यह समाज और प्रशासन दोनों के लिए शर्म की बात है।
जिस देश में बेटियां सुरक्षित नहीं हैं, वहां केवल नारों से कुछ नहीं होगा। बेटियों की सुरक्षा के नाम पर यहां सिर्फ दिखावा हो रहा है। जब एक प्रतिष्ठित संस्थान में ऐसा घिनौना अपराध होता है और आरोपी बाहर घूमते हैं, तो आम महिलाएं और बेटियां कैसे सुरक्षित महसूस करेंगी?”
नेहा ने बीजेपी सरकार की नीतियों और राजनीतिक मुद्दों को लेकर कहा, “आज देश में असली मुद्दों को नजरअंदाज करके लोगों को धर्म के नाम पर बांटा जा रहा है। मंदिर-मस्जिद जैसे मुद्दों से जनता को भटकाना बंद कीजिए। जरूरत है कि अस्पताल बनाए जाएं, महिलाओं और बेटियों को सुरक्षा दी जाए, और बेरोजगारों को रोजगार मिले।”
नेहा ने स्पष्ट किया कि वह सत्ता में बैठे किसी भी व्यक्ति से सवाल करना अपना अधिकार समझती हैं। उन्होंने कहा, “आज जो सरकार सत्ता में है, उससे सवाल करूंगी। कल को अगर अखिलेश यादव या कोई और सत्ता में आएगा, तो उनसे भी सवाल करूंगी।
हमारा सवाल केवल जनहित और महिलाओं की सुरक्षा पर है। हमें धर्म और जाति के नाम पर बांटने की राजनीति को नकार कर असली मुद्दों पर ध्यान देना होगा। रोजगार, शिक्षा, और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर सभी को एकजुट होकर सरकार से जवाब मांगना चाहिए।”
बेटियों को कौन देगा न्याय?
IIT-BHU गैंगरेप मामले में तीनों अभियुक्तों की रिहाई पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए बीएचयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष अनिल श्रीवास्तव ने महिला सुरक्षा, न्याय व्यवस्था, और समाज के रवैये पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
उन्होंने कहा, “यह घटना केवल एक न्यायिक विफलता नहीं है, बल्कि यह समाज के नैतिक पतन और प्रशासनिक उदासीनता का स्पष्ट प्रमाण है। आज इंसान धीरे-धीरे पशु बनता जा रहा है, और दुर्भाग्यवश, समाज इसे स्वीकार कर रहा है।”
अनिल श्रीवास्तव ने गुजरात के बिलकिस बानो मामले का जिक्र करते हुए कहा, “जब गुजरात में गैंगरेप के आरोपी छोड़े गए तो उन्हें सम्मानित किया गया। बनारस में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। जो अपराध करके आ रहा है, उसे माला पहनाई जा रही है।
क्या महिलाओं की सुरक्षा का अब कोई मायने नहीं रहा? यह समाज के लिए एक शर्मनाक स्थिति है।” उन्होंने इस बात पर चिंता जताई कि अपराधियों का महिमामंडन समाज में गलत संदेश भेज रहा है। उनके अनुसार, यह स्थिति अपराधियों को बढ़ावा देने और महिलाओं को असुरक्षित महसूस कराने का कारण बन रही है।
पुलिस और अभियोजन पक्ष की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए अनिल श्रीवास्तव ने कहा, “जब केस को कमजोर दाखिल किया जाएगा, तो अभियुक्त बच ही जाएंगे। पुलिस और अभियोजन पक्ष ने पीड़िता के लिए न्याय सुनिश्चित करने के बजाय अपराधियों को बचाने का रास्ता तैयार किया।
पीड़िता को न्याय दिलाने की लड़ाई बेहद कठिन होती जा रही है। लड़की की स्थिति इतनी खराब कर दी गई कि वह अदालत में कैसे खड़ी होगी, यह कहना मुश्किल है। प्रशासन और समाज दोनों ने उसके संघर्ष को कठिन बना दिया है।”
घटना के खिलाफ आवाज उठाने वालों के प्रति प्रशासनिक रवैये की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा, “जिन लोगों ने इस जघन्य घटना के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया, उनके खिलाफ बीएचयू प्रशासन और पुलिस प्रशासन ने फर्जी केस दर्ज किए। उल्टे उन्हें ही प्रताड़ित किया गया।
जब ऐसे घिनौने अपराधों के आरोपियों को रिहा किया जाता है, तो यह केवल न्याय की हत्या नहीं, बल्कि समाज की नैतिकता पर एक करारा तमाचा है।”
“जनतंत्र अंतिम सांस ले रहा है”
बीएचयू के पूर्व छात्र नेता अनिल ने इस घटना को भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरा बताते हुए कहा, “यह घटना केवल एक अपराध नहीं, बल्कि हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों पर सीधा हमला है। आज लोकतंत्र अपनी अंतिम सांसें ले रहा है। यह केवल एक लड़की का संघर्ष नहीं, बल्कि पूरे समाज की नैतिकता और न्याय व्यवस्था की परीक्षा है।
सत्ता में बैठकर अपराध करना अब फैशन बनता जा रहा है। यह घटना केवल एक केस नहीं, बल्कि हमारे समाज के लिए एक चेतावनी है। जब तक हम अन्याय को चुपचाप स्वीकार करते रहेंगे, अपराधी और अधिक ताकतवर होते रहेंगे। न्याय पाने की लड़ाई केवल पीड़िता की नहीं, बल्कि हर उस नागरिक की है जो लोकतंत्र और मानवाधिकारों में विश्वास रखता है।”
2 नवंबर 2023 को आईआईटी-बीएचयू परिसर में हुई यौन उत्पीड़न की घटना के बाद बीएचयू प्रशासन अधिक सीसीटीवी कैमरे, सख्त बैरिकेडिंग, और रात 10 बजे से सुबह 5 बजे तक “बाहरी लोगों” के प्रवेश पर प्रतिबंध–सुरक्षा उपायों की परिचित लकीर को ही दोहराता रहा।
बीएचयू की छात्राओं का कहना है कि यहां महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर असल मुद्दों को दबाकर कैसे संरचनात्मक बदलाव की बजाय मनमाने संरक्षणवादी उपाय थोपे जाते हैं।
छात्राओं का तर्क यह है कि छात्रावास कर्फ्यू महिलाओं की स्वतंत्रता को सीमित करने, उनके शरीर पर नियंत्रण रखने और सामाजिक संरचनाओं जैसे जाति, वर्ग, और कामुकता को बनाए रखने का एक साधन है।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि महिलाओं की सार्वजनिक स्थानों पर सक्रिय भागीदारी आवश्यक है, खासकर ऐसे परिसरों और शहरों में जो पुरुष-प्रधान मानसिकता के अधीन हैं।
दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू), जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू), और जादवपुर विश्वविद्यालय जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों की छात्राओं ने भी अपनी सुरक्षा और स्वायत्तता के अधिकार के लिए लड़ाई लड़ी। इस दौरान, पिंजरा तोड़ जैसे स्वायत्त महिला संगठनों ने सुरक्षा और संरक्षा के नाम पर महिलाओं पर थोपे गए प्रतिबंधों को चुनौती दी।
आईआईटी-बीएचयू में हाल की घटनाएं यह याद दिलाती हैं कि सुरक्षा के नाम पर महिलाओं की स्वतंत्रता को सीमित करना समस्या का समाधान नहीं है। यूजीसी की सक्षम रिपोर्ट पहले ही कह चुकी है कि “कैंपस सुरक्षा नीतियों का परिणाम अत्यधिक निगरानी, पुलिसिंग, या महिलाओं की स्वतंत्रता को कम करने वाला नहीं होना चाहिए।”
इसके बजाय, विश्वसनीय परिवहन, बेहतर छात्रावास सुविधाएं, और लैंगिक संवेदनशीलता जैसे संरचनात्मक बदलाव अधिक प्रभावी उपाय हैं।
परिसरों को ऐसे स्थान बनना चाहिए, जहां युवा महिलाएं स्वतंत्र रूप से सीख और बढ़ सकें। लेकिन मौजूदा माहौल में, बीएचयू और अन्य उच्च शिक्षा संस्थानों में महिलाओं को सिर्फ “सुरक्षा” के नाम पर ही सीमित किया जा रहा है।
यह जरूरी है कि सुरक्षा के नाम पर संरक्षणवाद के इस जाल को खत्म किया जाए और परिसरों को वास्तविक समानता और सशक्तिकरण का स्थान बनाया जाए।
क्यों बढ़ रही यौन हिंसा?
यूजीसी ने सभी संस्थानों और कॉलेजों को यौन उत्पीड़न की घटनाओं पर वार्षिक आंकड़ों की रिपोर्ट करने का आदेश भले ही जारी किया है, लेकिन क्या इससे कोई फर्क आया है। आखिर बीएचयू जैसे शैक्षणिक संस्थान में छात्राओं की सुरक्षा के सवाल पर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन क्यों करना पड़ रहा है?
एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2021 में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराधों में 15.3 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। यह आंकड़ा बताता है कि महिलाओं की सुरक्षा के मामले में सरकार को सख्त कदम उठाने की ज़रूरत है।
जुलाई 2023 में केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री सुभाष सरकार ने ऐलान किया था कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने बुनियादी सुविधाओं के अलावा स्टूडेंट्स की सुरक्षा के दिशा निर्देश तैयार किए हैं। उच्च शैक्षणिक संस्थानों में छात्राओं के लिए सुरक्षित वातावरण देने की कोशिश की जा रही है। इस बाबत सेमिनार और कार्यशालाएं भी आयोजित की जा रही हैं।
महिलाओं के उत्थान के लिए सालों से काम कर रहीं एक्टिविस्ट श्रुति नागवंशी कहती हैं, “शैक्षणिक संस्थानों में छात्राओं की सुरक्षा और समानता दोनों मामलों में काम करने की ज़रूरत है। बीएचयू में आए दिन यौन हिंसा की वारदातें सामने आ रही हैं।
ऐसे में शैक्षिक संस्थानों को एक स्तंभ के रूप में काम करना चाहिए। बेटियों की सुरक्षा का सवाल सिर्फ बीएचयू का सवाल नहीं, समूचे देश और समाज का सवाल है। इसे सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी हर किसी की है।”
“समाज को यह व्यवस्था देनी होगी कि महिलाएं कभी भी और किसी के साथ कहीं भी घूम सकें। सिर्फ लड़कियों पर यह पाबंदी नहीं लगाई जा सकती है कि वह घरों में कैद रहें। आज औरतें ऐसे मोड़ पर खड़ी हैं, जहां वो अपनी हिफाजत के लिए अनुरोध कर रही हैं।
ऐसे में सरकार और शिक्षण संस्थाओं के अधिकारियों को चाहिए कि वो लड़कियों की सुरक्षा के साथ ही उनकी स्वतंत्रता को अहमियत दें।”
“कहां खर्च हो रहा 11 करोड़?”
बीएचयू के पूर्व छात्र नेता एवं वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप श्रीवास्तव कहते हैं, “आईआईटी छात्रा के साथ हुई गैंगरेप की वारदात बीएचयू के इतिहास में सबसे ज़्यादा शर्मसार करने वाली घटना है। बीएचयू परिसर की सुरक्षा के नाम पर हर साल खर्च होने वाले 11 करोड़ रुपये आखिर कहां जा रहे हैं?
प्रॉक्टोरियल बोर्ड इन दिनों इतना निरीह क्यों हो गया है जिसके चलते उसे पुलिस की मदद लेनी पड़ रही है। कितनी शर्मनाक बात है कि पीड़िता के लिए न्याय मांगने वाले स्टूडेंट्स के ख़िलाफ़ फर्जी मामले दर्ज किए गए हैं।”
“यह सब उस बनारस में हो रहा है जहां के सांसद देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। महामना मदन मोहन मालवीय की कर्मस्थली में पुलिसिया साज़िश और गैंगरेप की वारदात को दबाने की कवायद गंभीर सवाल खड़ा करती है।बेटी पढ़ाओ का नारा लगाने वाली सरकार के लिए यह मामला उसे कलंकित कर रहा है, लेकिन उस पर कोई असर नहीं दिख रहा है।”
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, “भारत के विश्वविद्यालयों में यौन उत्पीड़न के हर चार कथित मामलों में से एक उत्तर प्रदेश से आता है।” यह आंकड़ा उस समय आया था जब छह बरस पहले बीएचयू परिसर में छात्रा के साथ यौन हिंसा की वारदात हुई थी।
यूजीसी के आंकड़ों के मुताबिक, “यूपी में यौन हिंसा के सर्वाधिक मामले अलीगढ़ विश्वविद्यालय, अंबेडकर विश्वविद्यालय और शारदा विश्वविद्यालय से मिले हैं। चंडीगढ़ के पंजाब विश्वविद्यालय से 12 और केरल के कालीकट विश्वविद्यालय से 13 शिकायतें आई थीं। यौन हिंसा के आठ मामले हरियाणा में दर्ज किए गए थे।”(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)
सौजन्य :जनचौक
नोट: यह समाचार मूल रूप से https://janchowk.com/में प्रकाशित हुआ है|और इसका उपयोग पूरी तरह से गैर-लाभकारी/गैर-व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए विशेष रूप से मानव अधिकार के लिए किया गया