परिनिर्वाण दिवस: मौजूदा दौर में और भी प्रासंगिक हुए अंबेडकर
जब तक देश में जात-पात, धर्म-संप्रदाय ऊंच-नीच, छुआछूत, भेदभाव व्याप्त है तब तक बाबा साहेब के विचार न केवल प्रासंगिक रहेंगे बल्कि हमें सामाजिक न्याय के लिए प्रेरित करते रहेंगे।
आज के दौर में जब सामाजिक-आर्थिक असमानता बढ़ रही है। लोकतंत्र और संविधान संकट में हैं। समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता जैसे शब्दों पर सवाल उठने लगे हैं। देश के नागरिकों में भाईचारा, बंधुत्व और प्रेम घट रहा है तथा गैरबराबरी, भेदभाव, ईर्ष्या-द्वेष बढ़ रहा है। ऐसे में बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की प्रासंगिकता और बढ़ जाती है। बाबा साहेब ऐसा भारत कदापि नहीं चाहते थे।
वह राजनीतिक लोकतंत्र के साथ सामाजिक लोकतंत्र चाहते थे। समतामूलक समाज चाहते थे। आर्थिक समानता चाहते थे। जाति धर्म से ऊपर उठकर भारत के नागरिक सबसे पहले और सबसे अंत में हिंदू-मुसलमान हों – वह ऐसा भारत चाहते थे। वह समता, समानता, स्वतंत्रता, न्याय और बंधुत्व वाला भारत चाहते थे। परन्तु आज जिस तरह से जाति आधारित भेदभाव, ऊंच-नीच और दलितों पर अत्याचार बढ़े हैं। सांप्रदायिक साैहार्द की जगह सांप्रदायिक घृणा बढ़ी है इससे उनके सपनों के भारत का सपना खंड-खंड हो गया है। इसलिए मौजूदा दौर में अंबेडकर के विचार और भी प्रासंगिक हो गए हैं।
बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के मऊ में हुआ था। किन्तु पिताजी की नौकरी के कारण वहां से महाराष्ट्र जाना पड़ा। उनका निधन 6 दिसंबर 1956 को दिल्ली में हुआ।
बचपन से ही बाबा साहेब ने छूआछूत का क्रूर दंश झेला था। यही कारण था कि वे जाति व्यवस्था के विरोधी हो गए। उनका मानना था कि जाति व्यवस्था इंसानियत के लिए कलंक है। यह समतामूलक समाज के निर्माण के मार्ग में सबसे बड़ी बाधक है। यह एक ऐसी चार मंजिली इमारत है जिसमें सीढ़ियां नहीं हैं। जाति व्यवस्था के बारे में उनका मानना था- आप किसी भी दिशा में मुड़ें, जाति का राक्षस रास्ता रोके खड़ा मिलेगा। उसे मारे बिना न तो आर्थिक विकास संभव है, न सामाजिक विकास और न ही मानसिक विकास। वे दलित, स्त्री एवं वंचित समुदाय के लिए शिक्षा को अनिवार्य मानते थे। इसलिए उन्होंने एक बार कहा भी था- ‘शिक्षा शेरनी का दूध है। इसे जो पीएगा वह दहाड़ेगा।’
बाबा साहेब अंबेडकर दलित स्त्री एवं वंचित समुदाय में ज्ञान की ज्योति जलाना चाहते थे। वे मानते थे कि शिक्षा से ज्ञान आता है, जागरूकता आती है और उसी से शोषण और छूआछूत से मुक्ति मिल सकती हैं। इसलिए उन्होनें नारा दिया- ‘शिक्षित बनो, संगठित हो, संघर्ष करो।’ बाबा साहेब ने अपने तीन गुरू माने थे-1. गौतम बुद्ध 2. कबीर 3. महात्मा ज्योतिबा फुले। इनको गुरू मानने की कसौटी भी स्पष्ट है – गौतम बुद्ध ने पहली बार दलित, वंचित और स्त्रियों के लिए शिक्षा की शुरूआत की। ब्राह्मणों के शैक्षणिक संस्थान गुरुकुल पद्धति के समानान्तर बौद्ध विहार (शिक्षण संस्थान) की नींव डाली। कबीर ने भी ज्ञान पर अधिक बल दिया और समाज में फैले अंधविश्वास और पाखंडो के प्रतिकार के द्वारा ब्राह्मणवाद का तीव्र विरोध किया। महात्मा ज्योतिबा फुले ने भी दलितों और महिलाओं की शिक्षा पर बल दिया और महिलाओं के लिए अलग से स्कूल खोले। बुद्ध, कबीर, फुले तीनों ने ही अपने-अपने समय में जाति-व्यवस्था की जड़ों पर प्रहार किया। जाति-व्यवस्था के गढ़ों-मठों के खिलाफ मुहिम चलाई और ज्ञान का जवाब ज्ञान से ही देने के लिए शैक्षणिक संस्थानों को दलित वंचित महिलाओं तक उपलब्ध कराया। इसलिए बाबा साहेब ने इन्हें अपना अग्रणी माना।
बाबा साहेब बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वे केवल संविधान निर्माता ही नहीं बल्कि समाजशास्त्री, अर्थशास्त्री, कानूनविद्, राजनीतिज्ञ, दलितों के मसीहा आदि अनेक रूपों में हमारे सामने हैं।
बाबा साहेब अर्थशास्त्री के रूप में ‘प्रॉबलम ऑफ रूपी’ लिखते हैं। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की संकल्पना उन्हीं के विचारों पर है।
बाबा साहेब अंबेडकर का एक पत्रकार का रूप भी हमारे सामने आता है। उन्होंने लोगों को अपने मानवीय अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए समय-समय पर ‘मूकनायक’, ‘जनता’ और ‘बहिष्कृत भारत’ जैसे समाचार पत्रों का सम्पादन-प्रकाशन किया।
बाबा साहेब एक आंदोलनकर्मी भी थे। 1927-28 में उन्होंने सीधे दलितों के लिए आन्दोलन के नेतृत्व की शुरूआत की, जिसे महाड़ आन्दोलन या महाड़ सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है। महाड़ में चावदार तालाब पर दलितों को पानी लेने की मनाही थी। सरकार द्वारा एक कानून बनाकर उस तालाब से दलितों के पानी लेने के अधिकार को संरक्षित किया गया था। किन्तु कानून बनाने के बावजूद उच्च जाति के लोग चावदार तालाब से दलितों को पानी नहीं लेने देते थे। बाबा साहब अंबेडकर ने उन्हें यह अधिकार दिलाया। इसी समय में बाबा साहेब ने अन्य सार्वजनिक स्थानों में दलितों के प्रवेश के लिए भी लड़ाई लड़ी।
वे भारत के पहले कानून मंत्री बने। समाजशास्त्री के रूप में उन्होंने भारतीय समाज का गहन अध्ययन किया। उन्होंने भारत में जाति को बड़ी समस्या माना और ‘जाति का विनाश’ नाम की पुस्तक लिखी।
बाबा साहेब ने स्त्री अधिकारों, महिला सशक्तीकरण के लिए उस समय आवाज उठाई जब प्राय: उनके अधिकारों के बारे में कोई बात नहीं करता था। वे संसद में हिंदू कोड बिल लेकर आए।
बाबा साहेब ने महिलाओं के विकास पर विशेष जोर दिया। उन्होंने कहा कि यदि किसी समाज की प्रगति देखनी हो तो यह देखो की उस समाज की महिलाओं ने कितनी प्रगति की है। वे समाज के विकास का पैमाना महिलाओं के विकास को मानते थे। उनका मानना था कि यदि एक पुरुष शिक्षित होता है तो सिर्फ एक व्यक्ति शिक्षित होता है किन्तु यदि एक महिला शिक्षित होती है तो पूरा परिवार शिक्षित होता है।
इसी प्रकार उन्होंने दलितों के उद्धार की ही नहीं बल्कि दलितों की आजादी, समानता, न्याय और सम्मान के अधिकारों की बात की। यही वजह है कि आज भी दलितों के आत्मसम्मान का संघर्ष सीधे उनसे प्रेरणा पाता है। संक्षेप में कहा जाए तो बाबा साहब अंबेडकर ही हैं जिन्होंने भारत के सबसे ज्यादा दमित और अन्याय सहने वाले दलित एवं स्त्री समुदाय के सम्मान की रक्षा की और उसके लिए आजीवन संघर्ष किया। आन्दोलन किए।
बाबा साहेब का मानना था कि भारत के गांव दलितों के शोषण के कारखाने हैं। गांवों में दलितों के साथ सबसे ज्यादा भेदभाव, अन्याय और दमन होता है। इसीलिए उन्होंने दलितों को गांव से बाहर निकल कर शहरों की तरफ जाने की सलाह दी। उन्होंने देखा था कि गांव में दलित ही मरे जानवर उठाते हैं, मल-मूत्र उठाते हैं। उन्हें मन्दिरों में जाने नहीं दिया जाता, सार्वजनिक तालाबों और कुओं से पानी नहीं लेने दिया जाता। स्कूलों में मास्टर पढ़ाई के बजाय दलित बच्चों से सफाई का काम कराते हैं। जबकि शहरों में ऐसा नही होता है। शहरों में कोई भी जबरदस्ती पुश्तैनी (पारंपरिक) काम धंधों से नहीं बंधा होता। वह अन्य कार्य कर सकता है। इसलिए उन्होंने मरे जानवर उठाना, मलमूत्र ढोना इत्यादि पुश्तैनी काम धंधो को छोड़ने की बात की।
भारत रत्न बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर समता, समानता, स्वतंत्रता, न्याय और बंधुत्व के पक्षधर विचारक थे। मानवतावादी थे। जब तक देश में जात-पात, धर्म-संप्रदाय ऊंच-नीच, छुआछूत, भेदभाव व्याप्त है तब तक बाबा साहेब के विचार न केवल प्रासंगिक रहेंगे बल्कि हमें सामाजिक न्याय के लिए प्रेरित करते रहेंगे।
(लेखक सफाई कर्मचारी आंदोलन से जुड़े हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
सौजन्य: न्यूज़क्लिक
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