चुनाव प्रणाली पर संसद या न्यायपालिका में बहस नहीं बल्कि चुनाव प्रणाली को चुनने के लिये जनमत संग्रह होना चाहिये !
EVM में भ्रष्टाचार कोई बड़ा मुद्दा नहीं है क्योंकि जो भी दल केन्द्र में सत्ता में रहेगा उस पर EVM के माध्यम से भ्रष्टाचार करने के आरोप हमेशा लगेंगे.
अरुण खोटे
बैलेट पेपर वाली चुनावी प्रक्रिया को खिलाफ व EVM को लाने के पीछे जो सबसे बड़ा तर्क या दावा था कि,
1. बैलेट पेपर को लुटा जाता है.
2. फर्जी वोट डाले जाते है.
3. मतों की गिनती और नतीजों की घोषणा में काफी समय लगता है.
4. संसाधनों की बर्बादी होती है.
5. सरकार को चुनावों में बहुत ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ता है.
6. सत्तारूढ़ दल चुनावी मशीनरी का अपने पक्ष में गलत इस्तेमाल करता है.
यदि पिछले दस वर्षों में EVM से होने वाले चुनावों पर निगाह डाले तो EVM मशीन प्रणाली इनमें से किसी भी बिंदु पर सफल नहीं हो सकी है. बल्कि EVM ने देश के नागरिक के सवैधानिक अधिकार पर बहुत बड़ा हमला किया है जिसे बड़ा संवैधानिक भ्रटाचार भी कहा जा सकता है.
लेकिन जबतक EVM मशीन प्रणाली के विरोध में केन्द्र में सत्तारूढ़ दल की कार्यशैली रहेगी तबतक किसी भी बड़े नतीजे की कोई भी उम्मीद नहीं हो सकती है.
2024 के आम चुनावों के बाद पहले हरियाणा और अब महाराष्ट्र के विधान चुनावों के नतीजों ने बहुत ही स्पष्टरूप से EVM मशीन प्रणाली को कटघरे में खड़ा कर दिया है लेकिन इसके बावजूद देश के एक बहुत बड़ा हिस्सा भाजपा को वोट भी दे रहा है और उसके समर्थन में भी खड़ा है क्योंकि EVM मशीन प्रणाली को वह भाजपा के विरोध के रूप में देखता है और सभी राजनैतिक दल भी इसे इसी रूप में पेश भी करते हैं.
इस तरह से EVM मशीन के विरोध के मुद्दे पर देश की जनता को दो हिस्सों में बाँट दिया गया है जबकि EVM मशीन पुरे देश के नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों के ऊपर एक बहुत बड़ा हमला है जिसे जनता के सामने दलगत भावना से ऊपर जाकर देखने के रूप में रखने की आवशयकता है.
EVM सबसे ज्यादा चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता पर हमला करती है. जो हमारे वोट के माध्यम से अपने जनप्रतिनिधि को चुनने के अधिकार की स्वतंत्रता की मूल भावना के प्रतिकुल है. इसलिये इसे संविधानिक अधिकारों पर हमले के रूप में देखा जाना चाहिये.
यदि एक भी मतदाता अपने दिए गये मत के बारे में निम्न रूप से भी से भी संशय में है कि उसका वोट उसके चुने हुये प्रत्याशी को नहीं गया है और वह उसको अपनी सीमित क्षमता से सत्यापित नहीं कर सकता है तो पूरी चुनावी प्रणाली दोषी है. हमारे देश में अभी भी शिक्षा का वह स्तर नहीं हो पाया है कि सभी मतदाता या अधिकतर डिजिटल या कंप्यूटर आधारित चुनावी प्रणाली में अपने मत का सत्यापन कर सके.
चुनाव आयोग की मतदाता व देश की जनता के प्रति यह सबसे बड़ी संवैधानिक जिम्मेदारी है कि वह ऐसी चुनावी प्रणाली का इस्तेमाल करे जिसे शिक्षित से लेकर पूर्णरूप से अशिक्षित मतदाता तक खुद सत्यापित कर सके.
निष्पक्ष चुनावों के लिये यही सबसे बड़ी शर्त भी है
कमोवेश चुनावों में चुनाव चिन्ह का उपयोग इसी कारण से किया जाता है कि एक अशिक्षित मतदाता भी जिसे वोट देना चाहता है उसे वह प्रत्याशी के चुनाव चिन्ह के माध्यम से चिन्हित करके वोट दे सके.
चुनाव आयोग की मतदाता व देश की जनता के प्रति यह भी बड़ी संवैधानिक जिम्मेदारी है कि वह एक ऐसी चुनावी प्रणाली का उपयोग करे जो मतदाता को यह विशवास दिला पाए कि पूरी मतदान की प्रक्रिया को किसी भी प्रकार के बाहरी हस्तक्षेप से पूर्णरूप से स्वतन्त्र रखेगा. जिस पर एक अशिक्षित मतदाता भी विशवास अपनी सीमित क्षमता के आधार पर जांच सके.
दुर्भाग्यवश कंप्यूटर प्रणाली वाली EVM मशीन को अनेक स्तर पर तकनीकी रूप से जुड़े होने के कारण एक अशिक्षित मतदाता को यह विशवास देने देने में पूर्णरूप से नाकाम है.
आज देश में EVM का मुद्दा जिस स्तर पर आ गया है उसने जनता के भीतर पूरी चुनाव प्रणाली व व्यवस्था के प्रति एक गहरा अविश्वास पैदा कर दिया है. देश की जनता और मतदाता को यह अधिकार होना चाहिये की वह चुनाव प्रणाली को चुने जाने की व्यवस्था में सीधे हिस्सेदारी कर सके.
इसके लिये “EVM या बैलेट” को चुनने के लिये जनमत संग्रह एक बेहतर विकल्प हो सकता है. जनता और मतदाता के विशवास पर खरी उतरने वाली चुनावी व्यवस्था ही एक लोकतांत्रिक व्यवस्था को बज्बुती दे सकती है .
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