नदीम खान और मोहम्मद जुबैर का उत्पीड़न भाजपा सरकारों के सांप्रदायिक राजनीति व हिंसा के खिलाफ लोकतांत्रिक आवाज़ों को दबाने का प्रयास है
रांची। झारखंड जनाधिकार महासभा (जेजेएम) और लोकतंत्र बचाओ अभियान (एलबीए) भाजपा की केंद्र एवं उत्तर प्रदेश सरकारों द्वारा मानवाधिकार कार्यकर्ता नदीम खान और ऑल्ट न्यूज के संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर को परेशान किये जाने की कड़ी निंदा करते हैं। दोनों ही लोकतांत्रिक तरीके से नफरत और सांप्रदायिक राजनीति के खिलाफ लड़ रहे हैं। JJM और LBA उनके साथ एकजुटता से खड़े हैं, उनके विरुद्ध दर्ज फर्जी प्राथमिकी को रद्द करने और उनके उत्पीड़न को तत्काल रोकने की मांग करते हैं।
नदीम खान ने एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (APCR) नामक संगठन से जुड़ कर लिंचिंग, घृणास्पद भाषणों, बुलडोजर हिंसा और सांप्रदायिक हिंसा के मामलों को उजागर करने तथा पीड़ितों को कानूनी सहायता प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। एपीसीआर अदालतों में कई मामलों की पैरवी कर रहा है, जिसमें इस साल अगस्त से सितंबर में कांवड़ यात्रा के दौरान दुकानों पर मालिकों के पूरे नाम प्रदर्शित करने के योगी सरकार के आदेश के खिलाफ मुकदमा उठाना भी शामिल है। दूसरी तरफ, मोहम्मद ज़ुबैर मोदी सरकार के गलत सूचना अभियान, नफरती एवं सांप्रदायिक प्रचार को उजागर करने में एहम भूमिका निभाई है। भाजपा सरकारें अपने फासीवादी प्रयास में नदीम और ज़ुबैर को निशाना बना रही हैं ताकि उनकी नफरती और सांप्रदायिक राजनीति को उजागर करने वाली आवाज़ों और पीड़ितों के साथ खड़े होने वाले लोगों को दबाया जा सके।
बिना किसी प्राथमिकी या नोटिस के, दिल्ली पुलिस 29 नवंबर की रात को एपीसीआर के दिल्ली कार्यालय पहुंच गई थी। उन्होंने वहां मौजूद सिक्युरिटी गार्ड से APCR के राष्ट्र सचिव नदीम खान एवं संगठन के बाकी साथियों के बारे में पूछा। अगले दिन शाम 5 बजे शाहीन बाग़ पुलिस ने नदीम को बैंगलोर में उनके रिश्तेदार के घर से डीटेन करने की कोशिश करी। दिलचस्पी की बात यह है की नदीम के खिलाफ प्राथमिकी शाहीन बाग़ थाने में 30 नवंबर को सुबह दोपहर 12: 48 पर ही फाइल हुई थी। पुलिस ने नदीम को कोई नोटिस भी नहीं दिया था। प्रक्रियागत खामियां स्पष्ट करती हैं की यह पूरे तरीके से नदीम को राजनीतिक तौर पर पुलिस द्वारा टारगेट करने की कोशिश थी। प्राथमिकी मध्य नवंबर में हैदराबाद में हुए APCR के प्रदर्शनी पर थी जिसका विषय घृणा फैलाने वाले भाषण के सुप्रलेखित उदाहरण और लोगों को उनके कानूनी अधिकारों के बारे में शिक्षित करना था। यह बात साफ़ है की यह प्राथमिकी महज़ एक बहाना है ताकि नदीम और APCR अपने ज़रूरी काम न कर पाएं। दिल्ली उच्च न्यायलय ने 3 दिसम्बर को नदीम को गिरफ़्तारी से अंतरिम संरक्षण तो दिया लेकिन इस फर्जी प्राथमिकी को रद्द नहीं किया।
यूपी पुलिस ने मोहम्मद ज़ुबैर पर धार्मिक समूहों के बीच नफ़रत फैलाने के आरोप में 3 अक्तूबर 2024 को प्राथमिकी दर्ज की। पिछले हफ्ते, पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता के सेक्शन 152 को जोड़ते हुए ज़ुबैर पर भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने का इलज़ाम भी लगा दिया। प्राथमिकी यति नर्सिंघानंद की एक वीडियो को ट्विटर पर शेयर करने पर लगाई गई थी। विडियो में नर्सिंघानंद मुसलमानों के विरुद्ध नफरती भाषण दे रहे हैं। मज़ेदार बात यह है कि पुलिस ने इस वीडियो के आधार पर ही यति नर्सिंघानंद पर मामला भी दर्ज किया था लेकिन उन्हें उसके लिए गिरफ्तार नहीं किया था। नर्सिंघानंद अक्सर हेट स्पीच देतें आएं हैं और उनके विरुद्ध अनेक प्राथमिकियां दर्ज हैं। ज़ुबैर ने इस मामले के विरुद्ध अलाहबाद उच्च न्यायलय में पेटीशन दर्ज की है लेकिन न्यायलय के बेंच ने अपने को recuse कर लिया है।
यह पहली बार नहीं है जब तथ्य-जांचकरता मोहम्मद ज़ुबैर पर फ़र्ज़ी FIR दर्ज की गई हो। भाजपा सरकार एवं हिंदुत्व संसथान मोहम्मद ज़ुबेर पर बार बार हमला करती हैं क्यूंकि वह उनकी गलत सूचना और घृणा अभियान पर पर्दा फाश करते हैं। 2022 में, दिल्ली पुलिस ने ज़ुबैर को 2018 के एक ट्वीट के लिए गिरफ्तार किया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उन्होंने हिंदू धार्मिक मान्यताओं का अपमान किया है। उन्हें एक महीने के लिए जेल में रखा गया, लेकिन बाद में उन्हें बरी कर दिया गया और वे एक स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में बाहर आ गए।
नदीम और ज़ुबैर को निशाना बनाकर मोदी और योगी सरकार एक बार फिर अपने गैर-संविधानिक हिंदुत्व विचारधारा को ज़ाहिर कर दिए हैं। भारत को एक हिन्दू राष्ट्र बनाने में, भाजपा सरकारें नफ़रत और सांप्रदायिक हिंसा का इस्तिमाल करके मुसलामानों को दुसरे दर्जे के नागरिक बनाने की कोशिश कर रही हैं। वे राज्य के तंत्रों को इस्तिमाल कर उनके इस अजेंडा को उजागर करने वाले लोकतान्त्रिक आवाज़ों को दबा रहे हैं। ऐसे मामलों एवं संवैधानिक व लोकतांत्रिक व्यवस्था पर बढ़ते हमलों पर न्यायलय का ढुलमुल रवैया देश के लिए चिंता का विषय है।
झारखण्ड जनाधिकार महासभा और लोकतंत्र बचाओ अभियान राज्य तंत्रों और न्यायालों को अपनी संविधानिक गरिमा का सम्मान करने का गुहार लगाते हैं ताकि वे भाजपा और आरएसएस के हिंदुत्व अजेंडा का एक हिस्सा ना बने। झारखंड नदीम खान और मोहम्मद जुबैर के साथ खड़ा है।
सौजन्य: जनचौक
नोट: यह समाचार मूल रूप से janchowk.com पर प्रकाशित हुआ है और इसका उपयोग पूरी तरह से गैर-लाभकारी/गैर-वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए किया जाता है, खासकर मानवाधिकारों के लिए।