अजमेर दरगाह के बाद अब मस्जिद ‘अढ़ाई दिन का झोंपड़ा’ पर भी दावा
अदालत में अजमेर शरीफ दरगाह के सर्वेक्षण की मांग वाली याचिका पर अभी फ़ैसला आया भी नहीं है कि पास की एक और मस्जिद को लेकर विवाद शुरू हो गया है। अजमेर में ऐतिहासिक ‘अढ़ाई दिन का झोंपड़ा’ के लिए भी इसी तरह की मांग फिर से उठाई गई है। यह राज्य और देश की सबसे पुरानी मस्जिदों में से एक है। अजमेर के उप महापौर नीरज जैन ने दावा किया है कि यहाँ एक संस्कृत महाविद्यालय और मंदिर होने के साक्ष्य मिले हैं।
हालाँकि, इसका दावा अभी तक अदालतों तक आगे नहीं बढ़ा है, लेकिन कुछ लोग लगातार इस मुद्दे को हवा देने में लगे हैं। मई महीने में राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने कुछ जैन मुनियों के दावे और दौरे के बाद उस स्थल पर एएसआई सर्वेक्षण की मांग की थी। उन्होंने विश्व हिंदू परिषद के सदस्यों के साथ दौरा किया था। उन्होंने दावा किया था कि उस स्थान पर कभी एक संस्कृत विद्यालय और एक मंदिर हुआ करता था।
अब अजमेर के उप महापौर नीरज जैन ने दावा किया है कि पहले के मौजूद ढाँचे को आक्रमणकारियों ने ध्वस्त कर दिया था। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने एक बयान में कहा, ‘झोंपड़ा में एक संस्कृत महाविद्यालय और मंदिर होने के साक्ष्य मिले हैं। इसे आक्रमणकारियों ने उसी तरह ध्वस्त कर दिया था, जिस तरह उन्होंने नालंदा और तक्षशिला को ध्वस्त किया था। हमारी संस्कृति, हमारी सभ्यता, हमारी शिक्षा पर हमला हुआ और यह (झोंपड़ा) भी उनमें से एक था।’
अढ़ाई दिन का झोंपड़ा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी एएसआई द्वारा संरक्षित स्मारक है। यह अजमेर दरगाह से क़रीब 5 मिनट की पैदल दूरी पर है। रिपोर्ट के अनुसार जैन ने दावा किया कि एएसआई के पास इस स्थल से 250 से अधिक मूर्तियाँ मिली हैं और इस स्थल पर स्वस्तिक और घंटियाँ और संस्कृत श्लोक हैं, जो मूल रूप से 1000 साल से अधिक पुराना है। उन्होंने दावा किया कि इसका उल्लेख ऐतिहासिक पुस्तकों में किया गया है।
जैन ने कहा, ‘हमने पहले भी यह मांग की है कि मौजूदा धार्मिक गतिविधियों को रोका जाना चाहिए और एएसआई को कॉलेज के पुराने गौरव की वापसी सुनिश्चित करनी चाहिए।
रिपोर्ट में एएसआई के हवाले से कहा गया है कि इसका नाम संभवतः इस तथ्य से पड़ा कि यहाँ ढाई दिन का मेला (उर्स) आयोजित किया जाता था।
हर बिलास सारदा ने अपनी 1911 की पुस्तक, अजमेर: ऐतिहासिक और वर्णनात्मक, में लिखा है कि यह नाम ‘अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में दिया गया था’ जब फ़कीर अपने धार्मिक नेता पंजाब शाह की मृत्यु की ढाई दिन की उर्स वर्षगांठ मनाने के लिए यहाँ इकट्ठा होने लगे थे। वह पंजाब से अजमेर पहुँचे थे।
सारदा के अनुसार, सेठ वीरमदेव काला ने 660 ई. में जैन त्योहार पंच कल्याण महोत्सव के उपलक्ष्य में एक जैन मंदिर का निर्माण कराया था। अंग्रेज़ी अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार सारदा ने लिखा, ‘चूँकि अजमेर में जैन पुरोहित वर्ग के रहने के लिए कोई जगह नहीं थी, इसलिए इस मंदिर का निर्माण किया गया।’ हालाँकि, सारदा के अनुसार इस जगह पर मौजूद संरचनाओं को कथित तौर पर 1192 में मुहम्मद गोरी के नेतृत्व में ग़ौर के अफ़गानों द्वारा नष्ट कर दिया गया था और संरचना को मस्जिद में बदल दिया गया था।
एएसआई का कहना है, ‘इसका निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने क़रीब 1200 ई. में शुरू किया था, जिसमें स्तंभों में नक्काशीदार खंभे इस्तेमाल किए गए थे… स्तंभों वाला कक्ष नौ अष्टकोणीय हिस्सों में बंटा है और केंद्रीय मेहराब के शीर्ष पर दो छोटी मीनारें हैं। कुफिक और तुगरा शिलालेखों से उकेरी गई तीन केंद्रीय मेहराबें इसे एक शानदार वास्तुशिल्प कृति बनाती हैं।’
बता दें कि अजमेर शरीफ़ दरगाह के नीचे मंदिर होने के दावे के लिए भी हर बिलास सारदा की किताब को ही आधार बनाया गया है। अदालत में दायर याचिका में अपने दावे के समर्थन में विष्णु गुप्ता ने कहा है कि ब्रिटिश शासन के दौरान एक महत्वपूर्ण पद संभालने वाले हर बिलास सारदा ने 1910 में एक हिंदू मंदिर की मौजूदगी के बारे में लिखा था। एक न्यायाधीश, राजनीतिज्ञ और एक शिक्षाविद सरदा ने अपनी एक किताब में दरगाह के बारे में लिखा, ‘परंपरा कहती है कि तहखाने के अंदर एक मंदिर में महादेव की छवि है, जिस पर हर दिन एक ब्राह्मण परिवार द्वारा पूजा की जाती थी, जिसे आज भी दरगाह द्वारा घरयाली (घंटी बजाने वाला) के रूप में रखरखाव किया जाता है।’
रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने दावा किया, ‘अजमेर में सारदा के नाम पर सड़कें हैं, इसलिए हमने कहा कि अदालत को उनकी बातों को गंभीरता से लेना चाहिए, कम से कम एक सर्वेक्षण तो होना चाहिए ताकि सच्चाई सामने आए।’ गुप्ता ने दावा किया कि ‘अजमेर की संरचना हिंदू और जैन मंदिरों को ध्वस्त करके बनाई गई थी’।
सौजन्य: सत्यहिंदी
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