इंदौर में ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए सुरक्षित आश्रय, सम्मान और आत्मनिर्भरता की ओर कदम
भारत में बच्चों, महिला, वृद्ध और बेजुबानों के लिए आश्रय की सुविधा है. लेकिन, यहां उन नागरिकों के लिए रहने के स्थल नहीं दिया है. जो ईश्वर की संरचना से विपरीत होने के कारण बहिष्कृत कर दिए जाते हैं. जी हां लोकल 18 के जरिए आपको बताते हैं कि हमारे समाज में ट्रांसजेंडर कहे जाने वाले ऐसे लोग हैं. जो शारीरिक रूप से अपने लिंग के विपरीत विकसित होने के कारण घर परिवार द्वारा बहिष्कृत कर दिए जाते हैं.
इन्हें समाज तो क्या अपने ही घर में जगह नहीं मिल पाती है. इन्हें सम्मान और रोजी रोटी की वजह से हर किसी से लड़ना पड़ता है. इसलिए इंदौर की स्वच्छता की ब्रांड एम्बेसडर संध्या बावरी और तपिश फाउंडेशन के निकुंज जैन ने अनोखी पहल शुरू की है. यहां प्रदेश में पहली बार एक ट्रांसजेंडर ग्रुप को साथ रहने का आसरा मिल रहा है. यहां बिना किसी भेदभाव के न केवल ट्रांसजेंडर मिलजुल कर रह रहे हैं. इसके साथ ही पढ़ लिखकर अपना भविष्य भी संवार रहे हैं यानी आत्मनिर्भर भी बन सकेंगे
यहां पर है 6 ट्रांसजेंडर
इंदौर में स्वच्छता की ब्रांड एंबेसडर संध्या घावरी ने बताया कि “प्रदेश में सैकड़ों ऐसे लोग हैं, जो ट्रांसजेंडर होने के कारण ट्रांसजेंडर्स बनकर अभिशप्त जीवन नहीं जीना चाहते. इनमें कई लोग ऐसे हैं जो पढ़ लिखकर समाज में अपना मुकाम बनाते हुए आगे बढ़ना चाहते हैं. यहां पर 6 ट्रांसजेंडर है, इनमें से 1 जज की तैयारी कर रहे. 2 ब्यूटीशियन, 1 कुकिंग और पढ़ाई कर रही है. अगर इनके खर्चे की बात करें तो इनमें से कुछ लोग पार्ट टाइम जॉब भी करते हैं. शेल्टर होम में ऐसे तमाम लोगों को सुरक्षित और आरामदायक घर के अलावा स्वस्थ एवं पौष्टिक भोजन, मानसिक स्वास्थ्य, कानूनी सहायता और दस्तावेज में नाम लिंग परिवर्तन जैसे प्रकरणों में मदद की व्यवस्था होगी.
ट्रांसजेंडर की समाज में नहीं कोई इज्जत
लड़की से लड़का बने तपिश फाउंडेशन के निकुंज जैन बताते हैं कि ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए इंदौर के महालक्ष्मी नगर में एक सुरक्षित आश्रय स्थल तैयार किया है. जहां ट्रांसमैन ट्रांस वूमेन और नॉन वायनरी व्यक्तियों के लिए सम्मान सुरक्षा और परिवार जैसा माहौल उपलब्ध है. ट्रांसवूमेन हो या ट्रांसमेन दोनों को समाज में इज्जत नहीं मिलती है. ये लोग अपनी पेरशानी से तो लड़ते हैं. लेकिन परिवार से भी इनकी लड़ाई रहती है. ये जिस शरीर में जन्म लेते हैं, समाज इन्हें उसी रूप में स्वीकार करता है. भावनाओ की कद्र नहीं होती है. जिसकी वजह से ये लोग आत्महत्या भी करते हैं. इसलिए ये लोग खुल कर जिंदगी बिता सकेंगे. इन किसी तरह का दबाव नहीं होगा.
सौजन्य : न्यूज़ 18
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