भूख की त्रासदी: ओडिशा में आम की गुठली का दलिया खाने से तीन आदिवासी महिलाओं की मौत, विधानसभा में गूंजा मुद्दा लेकिन कई सवाल अभी भी अनुत्तरित
बीजद और कांग्रेस सदस्यों ने खाद्य सुरक्षा को लेकर माझी सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए आरोप लगाए कि उनकी सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सुचारू बनाने में विफल रही है, जिससे कंधमाल जिले के मंडीपांका गांव के लोगों को खाद्यान्न की कमी का सामना करना पड़ा और इस कारण वहां आदिवासी समुदाय की तीन महिलाओं की मौत हो गई है।
“आम की गुठली का दलिया खाने से आदिवासी महिलाओं की मौत जहां भूख की त्रासदी की कहानी कह रही है वहीं सार्वजनिक खाद्य वितरण प्रणाली पर बड़ा सवालिया निशान लगा रही है। मामला मंगलवार को ओडिशा विधानसभा में उठा। विपक्षी बीजू जनता दल (बीजद) और कांग्रेस के सदस्यों ने, कंधमाल जिले में बीते दिनों कथित तौर पर खाद्यान्न की कमी के कारण आम की गुठली का दलिया खाने से आदिवासी समुदाय की 3 महिलाओं की मौत के मुद्दे पर, माझी सरकार के खिलाफ नारे लगाए और आरोप लगाया कि उनकी सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सुचारू बनाने में विफल रही है।”
बीजद और कांग्रेस सदस्यों ने खाद्य सुरक्षा को लेकर माझी सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए आरोप लगाए कि उनकी सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सुचारू बनाने में विफल रही है, जिससे कंधमाल जिले के मंडीपांका गांव के लोगों को खाद्यान्न की कमी का सामना करना पड़ा और इस कारण वहां आदिवासी समुदाय की तीन महिलाओं की मौत हो गई है।
खास है कि दो दशकों से भी ज्यादा समय से ओडिशा खाद्य असुरक्षा से जूझ रहा है, लेकिन मंडीपांका को इससे पहले कभी इतने बड़े नुकसान का सामना नहीं करना पड़ा था। आज त्रासदी को 20 से ज्यादा दिन हो गए हैं, लेकिन यह गांव अभी भी खामोशी से मातम मना रहा है और इस सच्चाई को स्वीकार करने के लिए संघर्ष कर रहा है। वही, आम की गुठली जिसने मुश्किल वक्त में समुदाय को सहारा दिया, अब मौत का अग्रदूत बन गई है।
क्या है पूरा मामला?
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पिछले महीने कंधमाल ज़िले में आम की गुठली से बना दलिया खाने से दो आदिवासी महिलाओं की मौत हो गई और सात अन्य लोग बीमार हो गए थे। यह घटना दरिंगबाड़ी ब्लॉक के मंडीपांका गांव में हुई था, जहां कई ग्रामीणों ने कुछ दिन पहले आम की गुठली से दलिया बनाकर खाया था। बीमार लोगों को नजदीकी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया लेकिन हालत गंभीर होने पर इन्हें बरहमपुर भेजा जा रहा था। लेकिन अस्पताल पहुंचने से पहले ही दो महिलाओं की मौत हो गई। एक महिला की स्वास्थ्य केंद्र में मौत हो गई तो दूसरी महिला ने एंबुलेंस से बरहमपुर ले जाते वक्त रास्ते में दम तोड़ दिया। मृत महिलाओं की पहचान 30 वर्षीय रुनी माझी और 28 वर्षीय रनिता पटामाझी के रूप में हुई थी।
मामले में एक आधिकारिक जांच का आदेश दिया गया है, एक गैर सरकारी संगठन, गणतंत्र अधिकार सुरक्षा संगठन (जीएएसएस), ओडिशा की दो सदस्यीय टीम ने दरिंगबाड़ी ब्लॉक के मंडीपंका गांव का दौरा भी किया। टीम ने गांव के लोगों, पीड़ित परिवारों, स्थानीय राजनीतिक प्रतिनिधियों और बीडीओ से बातचीत की। उन्होंने प्रभाती पट्टामाझी, सुज़ाना पट्टामाझी और जिबंती पट्टामाझी से मुलाकात की, जो बरहमपुर से इलाज के बाद घर लौटी थीं। इन तीनों ने पांच अन्य लोगों के साथ बताया कि उन्हें सुभद्रा योजना के तहत कोई भुगतान नहीं मिला है, जो ओडिशा में वर्तमान सरकार द्वारा महिलाओं के लिए सबसे ज़्यादा प्रचारित योजना है।
गुठली खाने का एक विकल्प
अपनी खाद्य जरूरतों को पूरा करने के लिए ग्रामीण आम की गुठली इकट्ठा करके उसे जमा कर लेते हैं। वे गुठली को लकड़ी की आग (चूल्हे) पर रखते हैं ताकि फफूंद से खराब होने से बचाया जा सके। जब चावल और अन्य अनाज का स्टॉक खत्म हो जाता है, तो वे खाने के लिए गुठली का दलिया तैयार करते हैं। इसमें गुठली के अंदर के हिस्से को बारीक पीसकर चूर्ण बना लिया जाता है, कपड़े में लपेटा जाता है और 12 घंटे के लिए पानी में भिगोया जाता है। भीगे हुए गुठली के चूर्ण को उबालकर कम से कम दिसंबर तक दलिया बनाया जाता है।
राज्य सरकार के अधिकारियों का तर्क है कि यह पौष्टिक भोजन है। लेकिन अगर ऐसा है तो इसे चावल, दाल, अंडे और हरी सब्जियों के साथ स्कूली किताबों में संतुलित आहार या पोषण चार्ट में क्यों शामिल नहीं किया गया है। यह सच है कि आदिवासी और दलित दोनों समुदाय आम की गुठली इकट्ठा करते हैं लेकिन नया अनाज आने पर बची हुई गुठली को फेंक देते हैं।
जहरीली हो गईं थी गुठलियां
तीन साल तक सावधानी से स्टोर की गई आम की गुठली को जरूरत के हिसाब से तैयार किया गया था। कई आदिवासी परिवारों के लिए, गुठली सूखे मौसम के दौरान एक विकल्प के तौर पर इस्तेमाल की जाती है। उन्हें धोकर, सुखाकर और बड़ी मेहनत से पीसकर, अक्सर चावल के साथ दलिया के रूप में खाया जाता था, ताकि भूख से बचा जा सके, लेकिन उस दिन, स्टोर की गई गुठली जहरीली हो गईं और फिर उनसे गंभीर पॉइजनिंग हो गई।
मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने इस त्रासदी की जांच के आदेश दिए थे। और अस्थायी राहत उपाय के रूप में प्रभावित क्षेत्रों में तीन महीने का चावल वितरित करने का निर्देश दिया गया था। उधर, विपक्षी नेताओं खास- कर बीजेडी और कांग्रेस ने सरकार की ओर से देरी से की गई प्रतिक्रिया की आलोचना की और कहा कि न तो मुख्यमंत्री और न ही किसी कैबिनेट मंत्री ने स्थिति का प्रत्यक्ष आकलन करने के लिए क्षेत्र का दौरा किया है।
प्रभावित परिवारों को तत्काल सहायता लेकिन कई बड़े सवाल अभी भी अनुत्तरित
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, प्रभावित परिवारों को तत्काल सहायता प्रदान की गई है, लेकिन खाद्य सुरक्षा और आदिवासी कल्याण के बड़े मुद्दे अभी भी अनसुलझे हैं। क्या इन समुदायों को सुरक्षित खाद्य पद्धतियों को अपनाने के लिए आवश्यक सहायता मिलेगी? या फिर उन्हें भविष्य में भी उन्हीं जोखिमों से जूझना पड़ेगा? मंडीपांका में तीन महिलाओं की मौत ने एक ऐसा खालीपन छोड़ दिया है, जिसे भरने में सालों लग सकते हैं। लेकिन यह त्रासदी ओडिशा के आदिवासी समुदायों के सामने आने वाली चुनौतियों की एक गंभीर याद भी दिलाती है- जहां जीवित रहना आसान नहीं है।
मंडीपांका की त्रासदी ओडिशा के आदिवासी समुदायों के लिए गंभीर सवाल उठाती है। यहां के आदिवासी चावल को अपने मुख्य भोजन के रूप में इस्तेमाल करते हैं। साथ ही यहां आम की गुठली से बने व्यंजन जैसे कि आम की गुठली का दलिया लंबे समय से खाद्यान्न की कमी के दौरान पारंपरिक पूरक के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है, लेकिन क्या यह प्रथा अब सुरक्षित है? गांव की एक बुजुर्ग प्रवती पट्टामाझी कहती हैं, “अपना आहार बदलना आसान नहीं है। हम जंगल और उससे मिलने वाली चीजों पर निर्भर हैं, लेकिन इस घटना के बाद, हम अपने भोजन पर कैसे भरोसा कर सकते हैं?”
इस त्रासदी ने कई ऐसे सवाल छोड़े हैं, जिनके कोई जवाब अभी नहीं मिल सका है। जैसे कि क्या बेहतर जागरूकता या खाद्य सुरक्षा उपायों से इन मौतों को टाला जा सकता था? या यह लगातार खाद्य असुरक्षा और क्या यह पारंपरिक जीवनयापन प्रथाओं पर निर्भरता का नतीजा था? बहरहाल, मंडीपांका को जवाब, न्याय और इस उम्मीद का इंतजार है कि ऐसी त्रासदी फिर कभी नहीं होगी।
सौजन्य : सबरंग इंडिया
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