संविधान की प्रस्तावना तक याद नहीं रही, लेकिन देश मना रहा संविधान दिवस का जश्न !
संविधान की प्रस्तावना तक याद नहीं रही, लेकिन देश मना रहा संविधान दिवस का जश्न !
आज देश की संसद, राज्य सरकारें और विपक्षी दलों द्वारा संविधान दिवस को बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। वैसे तो संविधान की प्रस्तावना स्कूल की किताब में ही मिल जाती है, लेकिन क्या वास्तव में उस पर अमल किया जा रहा है? इस विषय पर विस्तार में जाने से पहले एक बार हमें दोबारा से मुड़कर संविधान की प्रस्तावना पर एक नजर डालने की जरूरत है:-
“हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्त्व-संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिये तथा इसके समस्त नागरिकों को: सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिये तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता तथा अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिये दृढ़ संकल्पित होकर अपनी इस संविधान सभा में आज दिनांक 26 नवंबर, 1949 ई। को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।”
यह प्रस्तावना हमारे देश के सभी संवैधानिक अंगों के लिए कम्पास के माफ़िक है, जिसके मातहत ही हमारे देश की व्यवस्थापिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को हम भारत के आम लोगों के सेवार्थ संविधान की आत्मा के मुताबिक अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना चाहिए।
लेकिन वास्तव में हो क्या रहा है? यदि देश में सिर्फ पिछले एक सप्ताह के हालात पर नजर डालें और आकलन करें कि क्या हमारी सरकार, कार्यपालिका और न्यायपालिका या चौथा खंभा कहे जाने वाले मीडिया और समाचारपत्रों के द्वारा इसका ईमानदारी से पालन किया जा रहा है, तो हमें सारा खेल उल्टा-पुल्टा नजर आएगा।
उदहारण के लिए, महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव और उत्तर प्रदेश की 9 सीटों पर उपचुनाव को देख सकते हैं। 23 नवंबर 2024 के दिन महाराष्ट्र में जो चुनावी नतीजे आये, उसने लगभग हर किसी को स्तब्ध करके रख दिया था। दो दिन तक तो विपक्ष को जैसे होश ही नहीं रहा कि ये क्या हो गया। अब कल 25 नवंबर से जब महाराष्ट्र की आम जनता और उम्मीदवारों ने खुलकर बताना शुरू कर दिया है कि जिस पोलिंग बूथ पर बड़ी संख्या में लोगों ने कांग्रेस को वोट दिया था, उस बूथ पर तो चुनाव आयोग की मतगणना में कांग्रेस को एक भी वोट नहीं प्राप्त हुआ, बताया जा रहा है।
इसी प्रकार, राज ठाकरे की पार्टी मनसे के दहिसर सीट पर खड़े उम्मीदवार, राजेश येरुनकर दावा कर रहे हैं कि उनके पोलिंग बूथ पर उनकी माँ, पत्नी, बेटी और उनका स्वयं का वोट था, लेकिन चुनाव आयोग के मुताबिक उनके पक्ष में इस पोलिंग बूथ से मात्र 2 वोट ही प्राप्त हुए। क्या वे यह मान लें कि उनकी माँ, पत्नी या बेटी में से किसी दो ने उन्हें ही वोट नहीं दिया है? EVM की बैटरी 99% फुल थी फॉर्म नंबर 17C और EVM सीरियल नंबर मैच नहीं हो रहा था। यह लोकतंत्र की हत्या है।
यहां पर रोचक तथ्य यह है कि राज ठाकरे और पीएम नरेंद्र मोदी की मित्रता जगजाहिर है, लेकिन जिस लाठी का शिकार अभी तक कांग्रेस होती आई थी, उसकी मार अब उद्धव ठाकरे, शरद पवार ही नहीं राज ठाकरे जैसों को भी पड़ रही है।
इसी प्रकार अक्कलकोट विधानसभा सीट पर राष्ट्रीय समाज पक्ष के उम्मीदवार, सुनील शिवाजी बंगडर की भी शिकायत है। इस उम्मीदवार ने 20 नवंबर को अपना वोट बूथ क्रमांक 270, दोडयार गाँव में दिया। लेकिन जब चुनावी नतीजा आया तो पता चला कि इस बूथ पर तो राष्ट्रीय समाज पक्ष को एक भी वोट नहीं मिला है। अब उम्मीदवार का कहना है कि वे मान लेते हैं कि उनके गाँव से उनके सभी सगे-संबंधियों और मित्रों ने उनका साथ नहीं दिया, लेकिन उनका खुद का वोट कहाँ चला गया?
और ये सब हो रहा है संविधान सम्मत, संवैधानिक संस्था चुनाव आयोग की देखरेख में। ऐसे एक नहीं अनेकों उदाहरण सामने आ रहे हैं। यह प्रक्रिया मध्य प्रदेश, हरियाणा विधानसभा से अब महाराष्ट्र तक आ पहुंची है। बस फर्क यह है कि मध्य प्रदेश और हरियाणा में चुनाव आयोग की करतूत का खामियाजा सिर्फ एक पार्टी को भुगतना पड़ा था, लेकिन महाराष्ट्र में यह मामला महा विकास अघाड़ी के गठबंधन के चलते काफी तूल पकड़ता जा रहा है।
ऐसा सुनने में आ रहा है कि महाविकास अघाड़ी के 150 से अधिक उम्मीदवार ईवीएम और चुनाव आयोग के खिलाफ एक लंबी लड़ाई की तैयारी करने जा रहे हैं। आज मुंबई में शिवसेना ठाकरे गुट और एनसीपी शरद चंद्र पवार पार्टी के हारे हुए विधायकों की बैठक भी हुई है। बैठक में ईवीएम के आंकड़ों और बढ़े प्रतिशत पर संदेह जताया गया है। इसके बाद पार्टी प्रमुख शरद पवार ने भी इस मामले को गंभीरता से लेते हुए ईवीएम के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने का फैसला किया है। ऐसे में देखा जा रहा है कि ईवीएम के खिलाफ लड़ाई को लेकर विपक्ष का आक्रामक रुख शुरू हो गया है।
उत्तर प्रदेश उपचुनाव लोकतंत्र के नाम पर एक भद्दा मजाक
उत्तर प्रदेश की जिन 9 विधानसभा सीटों पर चुनाव हुए, उनका हाल तो मतदान के दिन ही सारे देश ने देख लिया था। लिहाजा मानकर चला जा रहा था कि योगी आदित्यनाथ ने अपने पद को बरकरार रखने के लिए सारी हदें पार कर दी हैं, और अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं तक को पुलिस प्रशासन बंदूक के बल पर वोट डालने से रोकता रहा। पुलिस प्रशासन की जोर-जबरदस्ती के एक नहीं सैकड़ों उदाहरण, तस्वीरों और वायरल वीडियो में देखे जानते रहे। चुनाव आयोग की ओर से कोई पहलकदमी देखने को नहीं मिली, हालाँकि विपक्ष की ओर से जब बार-बार आयोग के समक्ष शिकायत पेश की गई तो कुछ पुलिसकर्मी इस प्रकिया में सस्पेंड भी किये गये, लेकिन संविधान की प्रस्थापना को तो कुचला ही गया।
इसमें एक सीट मुरादाबाद जिले की कुंदरकी की चर्चा तो महाराष्ट्र के नांदेड़ से भी ज्यादा कुख्यात हो रही है। असल में यह सीट मुस्लिम बहुल है, जिस पर भाजपा पिछले 31 साल से नहीं जीती थी। लेकिन इस बार भाजपा के रामवीर सिंह रिकॉर्ड मतों से इस सीट पर जीत हासिल करने में सफल रहे हैं। रामवीर सिंह को हासिल मतों ने एक अनोखा रिकॉर्ड कायम कर दिया है, उन्हें कुल मतों का 76.71% मत हासिल हुआ है। बीजेपी को कुल 170,371 वोट हासिल हुए हैं, जबकि कुल मतदान ही 2,22,097 पड़े थे।
समाजवादी पार्टी के मोहम्मद रिजवान के खाते में इस बार मात्र 25,580 मत प्राप्त हुए हैं, जो कुल मतदान का मात्र 11.52% हैं। इसके अलावा कुल 10 मुस्लिम उम्मीदवार भी चुनाव मैदान में थे, लेकिन उनके और नोटा के बीच में बाकी के बचे 12% मत विभाजित हो जाते हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह खड़ा हो रहा है कि भाजपा उम्मीदवार को हासिल 77% मतों का आधा हिस्सा तो स्वयं मुस्लिम मतदाताओं का होना चाहिए, जबकि यूपी पुलिस तो उन्हें ही लगातार धमका रही थी और बूथ से पहले बेरिकेडिंग और कागजात जांचने के नाम पर चुनाव में हिस्सेदारी करने से हतोत्साहित करने में लगी हुई थी।
संसद का शीतकालीन सत्र अडानी के चलते सरकार नहीं चलाने को तैयार
इसका उदाहरण देश ने कल ही देख लिया, जब राज्य सभा में सभापति और देश के उप राष्ट्रपति ने नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के शुरूआती वक्तव्य में गौतम अडानी का नाम सुनते ही कहना शुरू कर दिया कि इस शब्द को सदन की कार्रवाई से बाहर किया जाता है। इसके बाद बिना वक्त गंवाए पहले दिन के कामकाज को वहीं पर रोक दिया गया, और यही हाल लोकसभा में भी देखने को मिला, जिसे लोकसभाध्यक्ष ने एक बार स्थगित कर 12 बजे पूरे दिन के लिए स्थगित कर दिया। आज चूँकि संविधान दिवस है, इसलिए कल अर्थात 27 नवंबर से लेकर 20 दिसंबर तक यही नजारा देखने को मिलने वाला है।
कई पर्यवेक्षकों का आकलन है कि मौजूदा सरकार के लिए अडानी समूह का महत्व संभवतः उनसे भी महत्वपूर्ण हो चुका है। और हो भी क्यों न! जिस शख्स ने 2019 में ही महाराष्ट्र में सरकार बनाने और गिराने ( संदर्भ अजित पवार का इकबालिया बयान) में भूमिका अदा की और 2024 चुनाव में धारावी प्रोजेक्ट के साथ बहुत कुछ दांव पर लगा है, उनके नाम की लाज रखने का काम तो भाजपा का पावन कर्तव्य बनता ही है।
लेकिन आज बात देश, संविधान और लोकतंत्र के साथ-साथ दुनिया में भारत की छवि से भी तब जुड़ जाता है जब गौतम अडानी के खिलाफ अमेरिकी अदालत समन जारी करने लगी है और अमेरिकी जांच एजेंसी एफबीआई भी भारतीय उद्योगपति के कारनामों से अपने निवेशकों के हितों की रक्षा की जांच में जुटी हुई है।
पिछले कुछ वर्षों से अडानी गेट देश की राजनीति में कुख्यात होने के बावजूद मोदी सरकार की मेहरबानी से सभी बाधाओं से अछूता बना हुआ है। हमारे देश के संविधान में देशवासियों के बीच में गैर-बराबरी बढ़ाने की बात तो बिल्कुल नहीं कही गई है, लेकिन गरीबी-अमीरी की तो बात ही रहने दीजिये, यहां पर अमीर वर्ग के बीच में देश की बहुमूल्य खनिज संपदा और सार्वजनिक संपत्ति की लूट को लेकर एकाधिकार की लड़ाई में भी एकतरफा मारकाट जारी है, जिसके सिरमौर अडानी-अंबानी समूह हैं।
लेकिन इसे भारत सरकार का संरक्षण नहीं तो क्या कहेंगे कि आज अडानी न सिर्फ श्रीलंका, बांग्लादेश, आस्ट्रेलिया, केन्या और इजराइल में अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिए उचित-अनुचित उपाय को अपनाए हुए हैं, उन्होंने अमेरिकी निवेशकों तक को अपने जाल में फांसने का दुस्साहस कर दिखाया, जिसका मुकदमा अब अमेरिकी अदालत में चल रहा है। इसका खामियाजा अडानी या भाजपा जो भुगतेगी वो भुगतेगी लेकिन भारत, भारतीय लोकतंत्र और 145 करोड़ नागरिकों सहित भारत की छवि पर जो बट्टा लग रहा है, उसकी भरपाई कौन करेगा?
ऐसे में, हम देश के आम लोगों को चाहिए कि संविधान दिवस के नाम पर नेताओं की लंबी लंबी डींग हांकने पर उन्हें रोककर उनकी सही जगह दिखाने पर फोकस करना होगा और बताना होगा कि हम भारत के लोग हैं, जिनके लिए, जिनके द्वारा और जिनके नाम पर संविधान सभा का गठन और इसे तैयार किया गया था। हम आज भी जिंदा हैं, और आगे भी हमें ही इस देश के मान-सम्मान और खुशहाली की चिंता करनी है।
यदि मौजूदा सरकार, चुनाव आयोग या न्यायपालिका जिसे हम भारतवासियों ने ही चुना है, हमारे ही मताधिकार में पारदर्शिता, निष्पक्षता का बर्ताव नहीं रखती तो उसे इस नाटक को तत्काल बंद कर देना चाहिए और बकौल, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर, ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’ के लिए तैयार रहे।
सौजन्य : जनचौक
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