अर्जक संघ: हिंदी पट्टी में 1968 से ब्राह्मणवाद से लड़ता नास्तिकों का एक संगठन
अर्जक संघ मानवतावाद, बुद्धिवाद, वैज्ञानिक सोच और सभी के लिए समान शिक्षा की वकालत करता है, ताकि समाज से जाति का भेदभाव खत्म हो जाए. संगठन का मानना है कि समाज की सभी बुराइयों की जड़ ‘शिक्षा की कमी’ और ‘पाखंड’ (धार्मिक पाखंड) है|
नई दिल्ली: हिंदी पट्टी के जाति-विरोधी नास्तिकों ने पांच दशक पहले ‘अर्जक संघ’ नामक एक संगठन बनाया था, जिसका मुख्य उद्देश्य समाज से जाति आधारित भेदभाव को खत्म करना और वैज्ञानिक सोच का प्रसार करना था और आज भी है|
पिछले वर्ष यह संगठन तब सुर्खियों में आया था, जब इसके मुख्य विचारक दिवंगत रामस्वरूप वर्मा की जन्म शताब्दी समारोह के दौरान वरिष्ठ विपक्षी नेता स्वामी प्रसाद मौर्या ने ब्राह्मणवाद और जाति पदानुक्रम पर तीखा हमला किया|
मौर्य ने कहा था, ‘ब्राह्मणवाद की जड़ें बहुत गहरी हैं और यह सभी विषमताओं का कारण भी है. हिंदू नाम का कोई धर्म नहीं है. हिंदू धर्म सिर्फ़ एक धोखा है. सही मायनों में ब्राह्मण धर्म को हिंदू धर्म बताकर इस देश के दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों को अपने धर्म के जाल में फंसाने की साजिश है.’
मौर्या ने जो कहा वह अर्जक संघ के विचारों के अनुरूप था. साल 1978 में अर्जक संघ के सदस्यों ने अपने एक ऐतिहासिक विरोध प्रदर्शन के दौरान रामचरितमानस की प्रतियां सार्वजनिक रूप से जलाई थीं.
अर्जक संघ की स्थापना राम स्वरूप वर्मा ने उत्तर प्रदेश में 1 जून, 1968 को अपने वामपंथी रुझानों वाले समाजवादी नेताओं के साथ मिलकर की थी. अर्जक संघ के संस्थापकों का मानना था कि स्वतंत्रता के बाद राजनीतिक परिवर्तन ने श्रमिक वर्गों और जातियों को सशक्त बनाया है, लेकिन वास्तविक परिवर्तन केवल सामाजिक बदलाव के साथ ही आएगा, क्योंकि समाज अभी भी अवैज्ञानिक और अंध धार्मिक विश्वासों, अंधविश्वास और जाति-आधारित भेदभाव से ग्रस्त है.
अर्जक संघ में विवाह की अलग परंपरा
साल 1977 में कानपुर के एक गांव में शिव कुमार ‘भारती’ की शादी के दिन सार्वजनिक आक्रोश पैदा हो गया था. उस समय तक 27 वर्षीय शिव कुमार को अर्जक संघ में लगभग एक दशक हो चुके थे. उनकी शादी का ब्राह्मणवादी रीति-रिवाज से नहीं, बल्कि अर्जक परंपरा के तहत आयोजित की गई थी.
अर्जक परंपरा की शादियों में मंत्रोच्चार या पंडित नहीं होते. कन्यादान भी नहीं होता. इसके अलावा न मंडप होता और न ही अग्नि को साक्षी मान उसके फेरे लेने होते हैं. अर्जक परंपरा की शादियां एक साधारण सामाजिक समारोह होती हैं, जिसमें पुरुष और महिला, वहां उपस्थित लोगों के सामने एक-दूसरे को पति-पत्नी के रूप में स्वीकार करने वाले शपथ-पत्र पढ़ते हैं.
शिव कुमार में ब्राह्मणवादी परंपरा और अनुष्ठानों को अस्वीकार करने की प्रवृत्ति अर्जक संघ में सीखे दर्शन से उपजी थी.
अर्जक संघ का घटता आधार
शिव कुमार की उम्र सिर्फ़ 18 साल थे जब राम स्वरूप वर्मा ने उन्हें अर्जक संघ में शामिल किया था. वर्मा शिव कुमार के चाचा भी थे.
पिछले वर्ष शिव कुमार को इस संगठन का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया था. संगठन के संसाधन और आकार में अब काफी कमी आ गई है, लेकिन जाति-विरोधी क्षेत्र में अभी भी इसका प्रमुख स्थान है.
यह संगठन 1970 और 80 के दशक में बहुत लोकप्रिय हुआ करता था, लेकिन आज इसके लगभग 15,000 सदस्य हैं, जो कई राज्यों में फैले हुए हैं. इसकी शाखाएं उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, दिल्ली और मध्य प्रदेश में संचालित होती हैं, जहां नियमित रूप से बैठकों, धरनों, मार्च और चर्चाओं का आयोजन किया जाता है.
अर्जक संघ मानवतावाद, बुद्धिवाद, वैज्ञानिक सोच और सभी के लिए समान शिक्षा की वकालत करता है, ताकि समाज से जाति का भेदभाव खत्म हो जाए. संगठन का मानना है कि समाज की सभी बुराइयों की जड़ ‘शिक्षा की कमी’ और ‘पाखंड’ (धार्मिक पाखंड) है.
अर्जक संघ के सदस्य नास्तिक होते हैं, जो सभी प्रकार के भगवान, देवी-देवताओं, मूर्तियों और स्वर्ग, नरक और पुनर्जन्म के जाल को अस्वीकार करते हैं|
सभी के लिए समान शिक्षा की मांग करता है अर्जक संघ
अर्जक संघ का नारा है- राष्ट्रपति, डीएम का बेटा या निर्धन की हो संतान, भेद भाव पाखंड रहित, शिक्षा मुफ्त व एक समान. इस वर्ष अर्जक संघ ने देश की शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू किया. संघ की मांग है कि बच्चों को ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ में एक समान, निःशुल्क, मानवतावादी और वैज्ञानिक मूल्यों पर आधारित शिक्षा दी जाए|
अर्जक संघ चाहता है कि शिक्षा के क्षेत्र में धार्मिक संगठनों के प्रवेश या हस्तक्षेप पर प्रतिबंध लगे. देश का शिक्षा बजट, रक्षा बजट के बराबर हो.
अर्जक संघ ने अवसरों और संसाधनों के समान वितरण के पक्ष में भी नारा दिया है- दो बातें हैं, मोटी मोटी, सबको इज्जत सबको रोटी.
रामस्वरूप वर्मा और महाराज सिंह भारती: अर्जक संघ के दो मुख्य विचारक
अर्जक संघ की मान्यताओं का अधिकांश हिस्सा दो समाजवादी राजनेताओं और सुधारकों – राम स्वरूप वर्मा और महाराज सिंह भारती के लेखन, विचारों, पुस्तकों और भाषणों से पता चलता है. दोनों किसान पृष्ठभूमि से थे और आज ओबीसी कहलाने वाले वर्ग से थे.
वर्मा कानपुर देहात के कुर्मी थे और भारती मेरठ की जाट. दोनों ब्राह्मणवाद और जाति व्यवस्था पर आधारित रूढ़िवादी हिंदू आस्था के कट्टर विरोधी थे.
वर्मा, ग्रामीण कानपुर से छह बार विधायक चुने गए. उन्होंने 1967 में चौधरी चरण सिंह की सरकार में यूपी के वित्त मंत्री के रूप में भी काम किया. यूपी राज्य विधानसभा के रिकॉर्ड से पता चलता है कि वर्मा ने धर्म वाले कॉलम में ‘मानव धर्म’ लिखा था.
रामस्वरूप वर्मा (बाएं) और महाराज सिंह भारती (दाएं).
भारती, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय परिषद सदस्य थे और पहले कांग्रेस से जुड़े थे. 1958 में वे यूपी विधान परिषद के सदस्य चुने गए. 1967 में उन्होंने कांग्रेस के तीन बार के सांसद और पूर्व सैन्य अधिकारी शाह नवाज खान को हराकर मेरठ से लोकसभा चुनाव जीता.
सांगवान जाट महाराज सिंह भारती जमींदार परिवार से ताल्लुक रखने वाले एक कृषिविद थे. उन्होंने कृषि संबंधी मुद्दों पर किसानों को शिक्षित करने और जातिवाद को खत्म करने पर ध्यान केंद्रित किया, उन्होंने लगभग दो दर्जन किताबें लिखीं. उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम से प्रेरणा लेकर अपने नाम में ‘भारती’ जोड़ा था.
आज, अर्जक के कई सदस्य, जिनमें इसके अध्यक्ष शिव कुमार भी शामिल हैं, ‘भारती’ उपनाम का उपयोग करते हैं. ऐसा इसलिए भी किया जाता है क्योंकि इससे आंशिक तौर पर ही सही, लेकिन जातिगत पहचान से छुटकारा मिलता है.
भारती के मुख्य सिद्धांत वैज्ञानिक मूल्यों और दृष्टिकोण पर आधारित समाज के निर्माण पर केंद्रित थे. उनके पोते मनीष भारती बताते हैं, ‘वे धार्मिक कुप्रथा को शोषण का एक बड़ा स्रोत मानते थे.’ अपने दादा की राह पर चलते हुए मनीष भी नास्तिक हो गए हैं.
मनीष ने कहा कि उनके दादाजी ब्राह्मणवादी व्यवस्था की सामान्य आलोचना से आगे बढ़ गए, उन्होंने तर्क के माध्यम से इसका खंडन किया और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के माध्यम से इन सवालों के समाधान प्रस्तुत किए.
केवल बुनियादी शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद भारती जटिल वैज्ञानिक अवधारणाओं को बड़ी आसानी से आम लोगों को समझा देते थे. सांसद के रूप में, उन्होंने धर्म की स्वतंत्रता पर लोकसभा में एक विधेयक पेश किया था, जिसमें प्रस्ताव दिया गया कि बच्चों को 18 वर्ष की आयु तक सभी धर्मों के बारे में पढ़ाया जाना चाहिए. एक बार जब वे वयस्क हो जाते हैं, तभी उन्हें अपनी पसंद का धर्म चुनने की अनुमति दी जानी चाहिए.
मनीष ने कहा कि उनके दादा ने मिसाल कायम की. उन्होंने अपनी बेटी का कन्यादान नहीं किया और अपनी वसीयत में साफ-साफ लिखा था कि उनकी मृत्यु के बाद संसद को शोक जताते हुए उन्हें ‘स्वर्गीय’ न कहा जाए. न ही ‘आत्मा की शांति’ के लिए दो मिनट का मौन रखा जाए. मनीष बताते हैं कि ये विचार उनके (महाराज सिंह भारती) सिद्धांतों के खिलाफ थे.
भारती, मार्क्सवादी और लेनिनवादी दर्शन से भी प्रभावित थे. मनीष ने बताया कि रूसी साहित्य को बेहतर ढंग से समझने के लिए उन्होंने दिल्ली में एक रूसी राजनयिक की पत्नी से रूसी भाषा भी सीखी थी, जो उनकी छह भाषाओं में से एक थी.
ब्राह्मणवादी समाज की जगह मानवतावादी समाज बनाने की कोशिश
अर्जक संघ एक मानवतावादी समाज के निर्माण में विश्वास करता है जहां सभी लोग एक समान हों और एक दूसरे के साथ समान व्यवहार करें. यह संगठन अंतरजातीय विवाह और अंतरजातीय भोज का समर्थन करता है और भेदभाव और छुआछूत के खिलाफ़ खड़ा रहता है.
शिव कुमार बताते हैं, ‘अर्जक संघ ब्राह्मणवादी समाज की जगह मानवतावादी समाज की स्थापना करना चाहता है.’
‘अर्जक‘ का शाब्दिक अर्थ है वह व्यक्ति जो शारीरिक श्रम करके अपनी आजीविका कमाता है. दूसरे शब्दों में, यह किसानों, मजदूरों, कारीगरों और सभी प्रकार के रचनाकारों को दर्शाता है.
यह शारीरिक श्रम को सर्वोच्च मानता है, उत्पादन और निर्माण में इसकी भूमिका को स्वीकार करता है. केवल दलित, ओबीसी, आदिवासी और मुस्लिम ही अर्जक संघ के सदस्य बन सकते हैं, इन्हें अर्जक समुदाय कहते हैं.
शिव कुमार का मानना था कि हिंदू धर्म के मूल में ब्राह्मणवाद है, जो केवल ब्राह्मणों के लाभ के लिए बनाया और कायम रखा गया है. शिव कुमार ने पूछा, ‘क्या एक धर्म के सभी अनुयायी समान नहीं होने चाहिए? अगर एक ही धर्म के लोगों को समान नहीं माना जाता और वे एक–दूसरे से शादी नहीं करते तो वह धर्म कैसे हो सकता है?’
वर्मा ब्राह्मणवादी संस्कारों को ‘शोषण का साधन‘ मानते थे और उनका मानना था कि इस व्यवस्था को यह सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया था कि पुरोहित जातियां बिना किसी शारीरिक परिश्रम के जीवन के सुखों का आनंद उठा सकें.
शिव कुमार का मानना है कि अर्जक आंदोलन का असर देखने लायक है, खास तौर पर अलग–अलग जातियों के एक–दूसरे के साथ व्यवहार में. उन्होंने कहा कि एक समय था जब लोग दूसरी जातियों के लोगों के साथ बैठने या खाने–पीने से इनकार कर देते थे. वर्मा जी ने लोगों को आपस में मिलजुलकर रहने, साथ बैठकर खाने–पीने के माध्यम से मानवतावादी संस्कृति को अपनाने का मंत्र दिया.
शिव कुमार स्पष्ट करते हैं कि इसका मतलब यह नहीं है कि लोग अर्जक संघ का आंख मूंदकर अनुसरण करने लगें. अर्जक जीवन शैली के प्रति लोगों का विश्वास साक्ष्य और तर्क पर आधारित होना चाहिए न कि केवल संबद्धता पर, अर्जक संघ का एक प्रमुख आदर्श वाक्य है- ‘जानो, तब मानो’
सौजन्य :द वायर
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