क्या ट्रांसजेंडर होना गुनाह? मां-बाप ने बच्ची को अपनाने से किया था इनकार, HC के दखल के बाद घर लौटी
दिल्ली हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए एक ट्रांसजेंडर बच्ची को उसके माता-पिता के साथ पुनर्मिलन करवाया है। यह मामला तब सामने आया जब बच्ची के एक दोस्त ने अदालत में याचिका दायर कर दावा किया कि बच्ची को उसके माता-पिता ने बंधक बना रखा है।
नई दिल्ली: ट्रांसजेंडर होने की वजह से अपने मां-बाप से दूर हो रही एक बालिग बच्ची अब अपने परिवार के पास वापस लौट आई है। ऐसा संभव हुआ दिल्ली हाई कोर्ट की दखल से जिसने उस लड़की के ‘दोस्त’ की मांग पर मामले को हल करने की कवायद शुरू की। बच्ची की सुरक्षा और मां-बाप की अपेक्षाओं को एक समझौते से बांधते हुए हाई कोर्ट ने इलाके के ACP को जरूरत में उनकी मदद का निर्देश दिया है। साथ में सीनियर एडवोकेट सौरभ किरपाल के योगदान पर ‘ताली’ बजाई, जिन्हें दोनों पक्षों की काउंसलिंग की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
दोस्त की वजह से परिवार के पास पहुंची बच्ची
जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह और जस्टिस अमित शर्मा की बेंच ने सामाजिक विषमताओं से जुड़े इस पेचीदे मामले को अब एक सुखद मोड़ पर खड़ा पाया और उस याचिका का निपटारा कर दिया, जो ट्रांसजेंडर लड़की की दोस्त होने का दावा करने वाली एक महिला ने दायर की थी। बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में उन्होंने अपनी दोस्त को कथित तौर पर अवैध बंधन से छुड़ाकर अदालत के सामने पेश करने का प्रतिवादियों को निर्देश देने का अनुरोध किया। मई में दायर याचिका पर पुलिस ने स्टेटस रिपोर्ट पेश की, जिसमें एक अलग कहानी सामने आई।
इसमें एक तरफ पैरंट्स थे और दूसरी तरफ उनका ट्रांसजेंडर बच्चा जिसे इस एक वजह से अपने माता-पिता द्वारा यातनाएं देने का आरोप लगाया जा रहा था। याचिकाकर्ता द्वारा इस खुलासे पर हाई कोर्ट ने पीड़ित को अदालत में पेश करने का निर्देश दिया। उसने बताया कि वह एक महिला है और अपने मेल बॉडी पार्ट्स को लेकर दुखी है।
उसने अपने माता-पिता के पास वापस जाने से साफ इनकार कर दिया। हालांकि, अपनी छोटी बहन से मिलने और बातचीत करने की इच्छा जताई। उसने अपनी सही ढंग से मेडिकल जांच कराए जाने और जरूरी सर्जरी की इच्छा भी कोर्ट के सामने रखी। लिहाजा, सर्वसम्मति से कोर्ट ने AIIMS के एक्सपर्ट डॉक्टरों से उसकी जांच और काउंसलिंग शुरू कराई। इस बीच पीड़ित याचिकाकर्ता के साथ रही, जिसने उसकी सुरक्षा का भरोसा दिलाया था।
बच्ची की हुई घर वापिसी
हाई कोर्ट ने सीनियर एडवोकेट सौरभ किरपाल को मामले में काउंसलर नियुक्त किया, जो खुद एक गे हैं और इस तथ्य को खुले में स्वीकार भी करते हैं। सीनियर एडवोकेट के समझाने से पीड़ित के मां-बाप को अपनी गलती का अहसास हुआ। वह अपनी बच्ची को उसके ट्रांसजेंडर होने की सच्चाई के साथ स्वीकारने के तैयार हो गए। इन खास परिस्थितियों में कोर्ट ने कुछ निर्देश जारी किए ताकि उनका परिवार जुड़ा रहे, आंशिक रूप से ही सही। सितंबर में जाकर दोनों पक्षों के बीच रिश्ते में कुछ सुधार दिखा। इसके बाद उनके बीच एक समझौते पर मुहर लगाते हुए हाई कोर्ट ने उन्हें पीड़ित के साथ घर वापस भेज दिया।
सौजन्य: नवभारत टाइम्स
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