मोदी से ज्यादा रेवड़ियां कौन बांट रहा है, अपने गिरेबान में क्यों नहीं झांकती भाजपा
16 जुलाई 2022 को पीएम मोदी ने कहा- हमारे देश में मुफ्त की रेवड़ी बांटकर वोट बटोरने का कल्चर लाने की कोशिश हो रही है। ये रेवड़ी कल्चर देश के विकास के लिए बहुत घातक है। इस रेवड़ी कल्चर से देश के लोगों को बहुत सावधान रहना है। मोदी ने कहा- रेवड़ी कल्चर वाले कभी आपके लिए नए एक्सप्रेसवे नहीं बनाएंगे, नए एयरपोर्ट या डिफेंस कॉरिडोर नहीं बनाएंगे। रेवड़ी कल्चर वालों को लगता है कि जनता जनार्दन को मुफ्त की रेवड़ी बांटकर, उन्हें खरीद लेंगे। हमें मिलकर उनकी इस सोच को हराना है, रेवड़ी कल्चर को देश की राजनीति से हटाना है।
रेवड़ी कल्चर की निन्दा करने वाले पीएम मोदी ने 2020 में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PM-GKAY) योजना लॉन्च कर दी। कोरोना काल में लॉन्च की गई यह योजना आज भी जारी है। जिसके तहत गरीबों को 5 किलो राशन बांटा जाता है। योजना में कोई बुराई नहीं है और गरीबों के कल्याण के लिए यह योजना ठीक भी है। लेकिन जब आप इसका इस्तेमाल चुनाव में पीएम का और भाजपा शासित राज्य के सीएम का फोटो छापकर वही अनाज बांटते हैं तो वो मुफ्त की रेवड़ी ही तो है।
सुप्रीम कोर्ट ने 26 अगस्त 2022 को कहा था कि करदाताओं के पैसे का इस्तेमाल करके मुफ्त सुविधाएं (मुफ्त रेवड़ियां) दी जा रही हैं और यह देश को “दिवालियेपन” की ओर धकेल सकती हैं। उसने चुनाव में ऐसा वादा करने वाले राजनीतिक दलों को लेकर केस की सुनवाई करने की बात कही थी। यह बात आई गई हो गई।
29 नवंबर 2023 को पीआईबी की एक प्रेस रिलीज में कहा गया- 81.35 करोड़ लाभार्थियों को पांच साल तक मुफ्त अनाज: कैबिनेट फैसला। केंद्र सरकार PMGKAY के तहत खाद्य सब्सिडी पर अगले 5 वर्षों में 11.80 लाख करोड़ रुपये खर्च करेगा। इससे लगभग 81.35 करोड़ लोगों को फायदा पहुंचेगा। पांच वर्षों तक मुफ्त अनाज जारी रहेगा। यानी अगला लोकसभा चुनाव आने से पहले हालात के हिसाब से केंद्र इस योजना को रद्द करेगा या जारी रखेगा। अब केंद्र की पीएम किसान निधि, उज्ज्वला योजना जैसी सारी मुफ्त रेवड़ी कल्चर की योजनाओं को छोड़कर सीधे महाराष्ट्र की महायुति सरकार की एक बड़ी योजना को देखिए। जहां इसी महीने विधानसभा चुनाव है।
महाराष्ट्र में भाजपा-शिंदे-अजित पवार की रेवड़ीः महराष्ट्र की महायुति सरकार ने 17 अगस्त 2024 को लाडली बहना योजना मध्य प्रदेश की तर्ज पर लॉन्च की। जिसमें उन महिलाओं को 1,500 रुपये की मासिक सहायता दी जाएगी जिनके परिवार की वार्षिक आय 2.5 लाख रुपये से कम है। इस योजना से करीब एक करोड़ महिलाओं को फायदा होगा। महाराष्ट्र के खजाने पर सालाना 46,000 करोड़ रुपये खर्च होने की उम्मीद है। यह पैसा इसकी जेब से निकलेगा, यह पीएम मोदी से लेकर सीएम एकनाथ शिंदे से ज्यादा कोई नहीं जानता।
एमपी की लाडली बहना योजना
मध्य प्रदेश में लाडली बहना योजना पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान ने शुरू की थी जो आज भी जारी है। माना जाता है कि पिछला विधानसभा चुनाव भाजपा इसी स्कीम के दम पर जीती है। एमपी सरकार ने अकेले 2024 में ही लाडली बहना योजना पर 9 हजार 455 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किए हैं। इसके तहत महिलाओं को एक हजार रुपये हर महीने मिलते थे जिसे पिछले चुनाव से ठीक पहले 1250 रुपये महीना कर दिया गया था। पीएम मोदी से लेकर सीएम मोहन यादव से ज्यादा इस स्कीम के बारे में कौन जानता होगा कि ये पैसा कहां से जा रहा है। एक भाजपा शासित राज्य की यह योजना मुफ्त रेवड़ी में नहीं आती है।
मोदी की गारंटी कितने करोड़ में चमकीः अब भाजपा शासित राज्यों के रेवड़ी कल्चर को छोड़कर वापस मोदी सरकार के उन विज्ञापनों पर बात करते हैं जो लोकसभा चुनाव 2024 से पहले नवंबर 2023 में शुरू हुए थे और मई 2024 तक जारी रहे थे। लोकसभा चुनाव का नतीजा 4 जून 2024 को आया था। लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के अलावा सरकार की एजेंसी केंद्रीय संचार ब्यूरो (सीबीसी) ने जारी किए थे। केवल चार महीने से कम समय में गूगल विज्ञापनों पर लगभग 387 मिलियन रुपये ($4.65m) सीबीसी ने खर्च किए। इसका पैसा टैक्सपेयर्स से मिलने वाले पैसे से खर्च किया गया था। विपक्ष ने उस समय यह मुद्दा केंद्रीय चुनाव आयोग के सामने उठाया था कि किस तरह करदाताओं का पैसा पीएम मोदी की छवि चमकाने पर खर्च किया गया। सरकारी योजनाओं को मोदी गारंटी नाम से प्रचारित किया गया। भारत के विपक्षी दलों की यही आपत्ति थी कि अगर विज्ञापन में योजनाओं को केंद्र सरकार की गारंटी बताया जाता तो ठीक था लेकिन उसे मोदी की गारंटी के रूप में प्रचारित किया गया। चुनाव आयोग ने इस शिकायत पर कोई ध्यान नहीं दिया और न कोई प्रतिक्रिया दी।
गूगल के ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों पर सीबीसी के विज्ञापन नवंबर में शुरू हुए थे। 15 मार्च को उसने आखिरी बार विज्ञापन दिया था। लोकसभा चुनावों की औपचारिक घोषणा 15 मार्च को की गई। उस समय से, सरकारी एजेंसियों को किसी भी विज्ञापन से रोक दिया गया। दरअसल, इन 113 दिनों में सीबीसी गूगल पर राजनीतिक विज्ञापनों पर भारत का सबसे बड़ा खर्चकर्ता था, जबकि बीजेपी 314 मिलियन रुपये ($3.7m) के साथ दूसरे स्थान पर रही। इस अवधि में गूगल विज्ञापन पारदर्शिता डेटा के अनुसार, इस अवधि में सीबीसी खर्च 275 मिलियन रुपये ($ 3.3 मिलियन) से 41 प्रतिशत अधिक था। इस रिपोर्ट में दिए जा रहे सारे आंकड़े गूगल विज्ञापन पारदर्शिता डेटा से लिए गए हैं।
सरकारी योजनाओं के नाम पर मुफ्त की रेवड़ी और मोदी सरकार की छवि चमकाने पर टैक्सपेयर्स के पैसे को खर्च करने पर अभी भी यह रिपोर्ट अधूरी है। कई योजनाओं का तो इसमें जिक्र रही नहीं आ पाया है। भारतीय चुनाव में जिस तरह से अप्रत्यक्ष रिश्वतखोरी चल रही है, वो अपने आप में चुनाव का मजाक है। चुनाव आयोग तमाम शिकायतों पर चुप्पी साधे हुए है। जनता ही इसका करारा जवाब दे सकती है।
सौजन्य: सत्य हिन्दी
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