जेएनयू में साईबाबा को श्रद्धांजलि, उनके विचारों और आंदोलन को जिंदा रखने का संकल्प
नई दिल्ली। प्रोफेसर जी.एन साईबाबा की मृत्यु के बाद उन्हें देश के अलग-अलग हिस्सों में श्रद्धांजलि दी गई। इसी क्रम में रविवार को जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय (जेएनयू) में छात्र संगठनों द्वारा उनकी याद में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें प्रोफेसर मनोरंजन मोहंती, प्रोफेसर नंदिता, प्रोफेसर अजय गुडावर्ती, प्रोफेसर एन सचिन मौजूद थे।
कार्यक्रम की शुरुआत नारों के साथ की गयी। जिसमें साईबाबा के विचारों को जिंदा रखने के संकल्प के साथ सरकार द्वारा उन पर की गई प्रताड़ना को बताया गया। उनके दस सालों के संघर्ष के साथ-साथ दलित आदिवासियों के लिए किए गए उनके काम को बताया गया। ताकि लोगों को उनके संघर्ष के बारे पता चले।
साल 2014 में कैसे उन्हें कथित तौर पर माओवादी कनेक्शन के लिए गिरफ्तार किया गया और दस साल की प्रताड़ना के बाद इसी साल बंबई हाईकोर्ट ने उन्हें निर्दोष साबित किया। लेकिन जब तक उन्हें रिहा किया गया उनके शरीर का ज्यादातर हिस्सा काम करना बंद कर चुका था।
साईबाबा दिल्ली यूनिर्वसिटी में अंग्रेजी के प्रोफेसर थे। लेकिन बाद में उन्हें नौकरी से भी निकाल दिया गया। कार्यक्रम में उनके द्वारा लिखी गई कविता को भी पढ़ा गया।
प्रोफेसर मनोरंजन मोहंती ने साईबाबा को याद करते हुए कहा ‘हमने उन्हें बचाने की बड़ी कोशिश की। लेकिन सफल नहीं हो पाए। सरकार ने उनकी हत्या की है। यह कोई सामान्य मौत नहीं है। अब वक्त आ गया है कि यूएपीए को खत्म किया जाए। इसके कारण कई लोगों की जिदंगियां बर्बाद हो रही हैं’।
साथ ही कहा कि ‘साईबाबा की परंपरा एक संघर्षशील आंदोलनों की रही है। हमें इसे आगे बढ़ाना है। ताकि फासीवादी ताकतें दलित आदिवासियों की आवाज को दबा न पाए’। फासीवाद आज हमारी संस्कृति इकोनॉमी और शिक्षा में भी आ गई है। जिसका उदाहरण हमें चारों तरफ देखने को मिल रहा है।
अगली विजयदशमी के दिन आरएसएस को पूरे सौ साल हो जाएंगे। इस दौरान वह पूरे देश में हिंदुत्व के प्रचार को वृहद रुप से आयोजित करने जा रहे हैं। जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं उन्हें जेलों में भरा जा रहा है।
साईबाबा के साथ जेल में रहे हेमंत मिश्रा भी इस कार्यक्रम का हिस्सा बने। उन्हें संघर्ष के दस सालों को याद करते हुए कहा कि ‘साई की मुस्कुराहट ही हम सबको लड़ने के लिए प्रेरित करती थी। उन्हें जेल में इस हद तक प्रताड़ित किया गया कि वह जेल से बाहर निकलने के बाद ज्यादा दिनों तक जिंदा रह नहीं पाए’।
हेमंत ने जेल के दिनों को याद करते हुए बताया कि हमें जेल में भी अपनी मांगों को लेकर भूख हड़ताल करनी पड़ी थी। स्थिति यह थी कि साईबाबा के लिए बाथरुम तक की व्यवस्था नहीं थी। जबकि वह विकलांग थे। जिसके कारण उन्हें दो दिन तक बिना बाथरुम जाए बगैर रहना पड़ा। हमलोगों ने जेल में भूख हड़ताल की उसके बाद उन्हें बाथरुम के लिए व्हीलचेयर मिली।
जेल में रहते हुए उनका शरीर 90 प्रतिशत तक काम करना बंद कर चुका था। पेट में पथरी हो गई। किडनी भी खराब हो गई और अंत में ऑपरेशन के बाद हार्ट अटैक हो गया। सरकार द्वारा उनकी हत्या कर दी गई। लेकिन हम उनके आंदोलन को आगे बढ़ाएंगे। यही उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि है।
आपको बता दें कि माओवादियों के कथित लिंक के मामले में इसी साल मार्च में बंबई हाईकोर्ट ने उन्हें रिहा कर दिया था। दो सप्ताह पहले ही उनके पित्ताशय के संक्रमण का ऑपरेशन हुआ था। जिसके बाद उन्हें हार्ट अटैक हुआ और 12 अक्टूबर को रात उनका निधन हो गया। (पूनम मसीह की रिपोर्ट)
सौजन्य:जनचौक
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