नवादा कांड अकेला नहीं, दलितों पर अत्याचार के हर दिन 150 से ज्यादा मामले… पढ़ें- क्या कहते हैं आंकड़े.
नवादा में दलित बस्ती में दंबगों ने 34 घरों में आग लगा दी. बताया जा रहा है कि जमीन विवाद के चलते ये सब किया गया. इस मामले में 28 लोगों को आरोपी बनाया गया है, जिनमें से 15 को गिरफ्तार किया जा चुका है. ऐसे में जानते हैं कि दलितों पर अत्याचार के कितने मामले सामने आते हैं? और दलितों की सुरक्षा को लेकर कानून क्या है?
बिहार के नवादा में दलितों की बस्ती में घर जलाने की घटना सामने आई है. कुल 34 घर जलाए गए हैं. मामले में 15 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने घटना की निंदा की और एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) को जांच की मॉनिटरिंग करने का निर्देश दिया है.
दलित बस्ती में घर जलाने की घटना 18 सितंबर को हुई थी. ये बस्ती मांझी टोला इलाके में है. शुरुआती जांच में जमीन विवाद को इसकी वजह माना जा रहा है.
पुलिस ने इस मामले में मुख्य आरोपी नंदू पासवान समेत 15 आरोपियों को गिरफ्तार किया है. आरोपियों के पास 3 देसी पिस्तौल, 6 मोटरसाइकिल और कई जिंदा कारतूस भी जब्त किए हैं.
नवादा के डीएम आशुतोष कुमार वर्मा ने न्यूज एजेंसी को बताया है कि कुल 28 आरोपियों को नामजद किया गया है, जिनमें से 15 की गिरफ्तारी हो गई है.
अब तक क्या-क्या पता चला?
डीएम वर्मा ने बताया कि इस घटना में कुल 34 घरों को नुकसान पहुंचा है. 21 घर पूरी तरह जल गए हैं, जबकि 13 घरों को थोड़ा-बहुत नुकसान हुआ है.
उन्होंने बताया कि जांच से पता चला है कि घटना के पीछे का मकसद 29 साल पुराना जमीन विवाद है. उन्होंने बताया कि घरों में आग लगाने से पहले आरोपियों ने हवा में गोलियां भी चलाई थीं.
डीएम वर्मा के मुताबिक, आरोपियों के खिलाफ आर्म्स एक्ट और एससी-एसटी एक्ट के तहत केस दर्ज किया गया है.
नवादा के एसपी अभिनव धीमान ने बताया कि 18 सितंबर की शाम सवा 7 बजे मांझी टोला में आग लगने की सूचना मिली थी. इसके बाद फायर ब्रिगेड ने जाकर आग बुझाई.
ये न पहली घटना है और न ही आखिरी !
नवादा में दलितों की बस्ती में आग की घटना का मकसद जमीन विवाद बताया जा रहा है. मगर देश में हर दिन दलितों के साथ अत्याचार होते हैं. कभी दलितों की सरेआम पिटाई होती है तो कभी दलितों को मंदिर में घुसने नहीं दिया जाता है तो कभी दलित दूल्हे को घोड़ी तक से उतार दिया जाता है.
आजादी के इतने साल बीत जाने के बाद भी दलितों के साथ इस तरह की घटनाएं आम हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों की मानें तो दलितों के साथ अत्याचार के 150 से ज्यादा मामले अब भी रोजाना दर्ज किए जाते हैं.
एनसीआरबी की रिपोर्ट बताती है कि 2018 से 2022 के बीच दलित अत्याचार के मामले 35% तक बढ़ गए हैं. आंकड़ों के मुताबिक, 2018 के बाद से हर साल मामले लगातार बढ़े हैं.
2018 में दलितों के खिलाफ अपराध के 42,793 मामले दर्ज किए गए थे. जबकि, 2022 में 57,582 मामले दर्ज हुए थे. वहीं, 2021 में 50,900 मामले सामने आए थे.
कहां सबसे ज्यादा अत्याचार?
एनसीआरबी के मुताबिक, दलितों पर अत्याचार के सबसे ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश में सामने आते हैं. 2022 में उत्तर प्रदेश में दलितों पर अत्याचार के 15 हजार से ज्यादा मामले दर्ज किए गए थे. दूसरे नंबर पर राजस्थान रहा, जहां साढ़े आठ हजार से ज्यादा मामले सामने आए थे.
आंकड़े ये भी बताते हैं कि हर दिन औसतन 12 दलित महिलाओं के साथ रेप होता है. 2022 में दलित महिलाओं के साथ रेप के 4,241 मामले सामने आए थे. इतना ही नहीं, 14 सौ से ज्यादा मामले तो दलित बच्चों के साथ रेप के भी थे.
रिपोर्ट के मुताबिक, हर दिन दो से तीन दलितों की हत्या हो जाती है. इसके अलावा दलितों को अपमानित और सामाजिक बहिष्कार करने के मामले भी आए दिन सामने आते हैं.
रही बात तो दलितों पर अत्याचार के आरोपियों को सजा मिलने की तो इसका कन्विक्शन रेट 34% है. दो साल से कन्विक्शन रेट घट रहा है. 2018 में कन्विक्शन रेट 42% से ज्यादा था, जो 2021 में घटकर 36% पर आ गया. 2022 में कन्विक्शन रेट 34% रहा.
यूपी में दलितों पर अत्याचार के सबसे ज्यादा मामले सामने आते हैं और यहीं पर कन्विक्शन रेट भी सबसे ज्यादा है. यूपी में दलितों के खिलाफ अपराध के मामलों में कन्विक्शन रेट 80% से भी ज्यादा है. जबकि, राजस्थान में 40% से भी कम है.
दलितों को लेकर क्या है कानून?
दलितों और आदिवासियों की सुरक्षा के लिए 1989 में कानून बनाया गया था. इसका नाम अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) कानून है. इसे आमतौर पर एससी-एसटी एक्ट भी कहा जाता है. ये कानून हर उस व्यक्ति पर लागू होता है जो एससी या एसटी नहीं है और वो इन समुदाय से जुड़े लोगों का उत्पीड़न करता है. इस कानून का मकसद दलितों और आदिवासियों के खिलाफ हो रहे अपराधों के लिए अपराधियों को सजा देना है. ये कानून एससी-एसटी वर्ग के लोगों को सुरक्षा और अधिकार देता है. इस कानून के तहत स्पेशल कोर्ट भी बनाई जाती हैं, जो ऐसे मामलों में जल्दी फैसला लेती हैं. मार्च 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट के तहत दर्ज मामलों में तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी. कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा था कि सरकारी कर्मचारियों की गिरफ्तारी सिर्फ सक्षम अथॉरिटी की इजाजत के बाद ही हो सकती है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का जमकर विरोध हुआ था. बाद में केंद्र सरकार ने कानून में संशोधन कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने भी इस संशोधित कानून को मंजूरी दे दी थी.
सौजन्य: आज तक
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