हरियाणा के महाकांड-1 कुत्ता भौंका तो दलित बाप-बेटी को जिंदा जलाया:14 साल पुराने हिसार जिले के मिर्चपुर कांड की पूरी कहानी
दिल्ली से 167 किलोमीटर दूर हरियाणा के हिसार जिले का मिर्चपुर गांव। 29 अप्रैल 2010 का दिन। राहुल गांधी अचानक गांव में दाखिल होते हैं। वो उस वक्त कांग्रेस महासचिव और सांसद थे।
राहुल के इस दौरे की खबर न तब के हरियाणा सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा को थी और न ही कांग्रेस के किसी अन्य पदाधिकारी को। संयोग से नायब तहसीलदार धीरज चहल मिर्चपुर में मौजूद थे। वह गांव के लोगों को गेहूं बांटने आए थे।
बिखरी बस्ती, जले हुए घरों के बीच राहुल गांधी वाल्मीकि परिवार के ताराचंद के घर पहुंचे। जिन्हें उनकी नाबालिग बेटी के साथ जिंदा जला दिया गया था। राहुल कुल 45 मिनट वहां रुके। वाल्मीकियों ने राहुल से अनुरोध किया कि उन्हें किसी और गांव में बसा दिया जाए, क्योंकि जाट उन्हें जिंदा नहीं छोड़ेंगे।
दैनिक भास्कर की सीरीज ‘हरियाणा के महाकांड’ में ऐसी घटनाएं, जिन्होंने हरियाणा की राजनीति पर गहरा असर डाला। आज पहले एपिसोड में कहानी मिर्चपुर कांड की। कैसे एक कुत्ते के भौंकने से शुरू हुआ झगड़़ा, जाट vs वाल्मीकि की खूनी राजनीति में बदल गया…
मिर्चपुर गांव में वाल्मीकि समुदाय के करीब 300 घर थे। ये लोग पास के तालाब में मछली पकड़ते, साफ-सफाई का काम करते और गांव के जाट जमींदारों के खेतों में मजदूरी करते। वाल्मीकि बिरादरी के करण सिंह स्थानीय फूलन देवी मंदिर में सालाना उत्सव करवाते थे। इसमें पूरे हरियाणा से लोग शामिल होने आते थे। मार्च 2010 में उत्सव शुरू हुआ तो जाटों ने वाल्मीकि महिलाओं के साथ छेड़छाड़ शुरू कर दी। यहां से तनाव बनने लगा था।
‘मिर्चपुर कार्नेज: कास्ट वॉयलेंस इन हरियाणा’ नाम की किताब में मिर्चपुर कांड से जुड़े सभी कानूनी दस्तावेज संकलित किए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट में दायर वाल्मीकियों की याचिका के मुताबिक, तारीख थी 19 अप्रैल 2010, रात के करीब 8 बजे का वक्त था। जाटों के 5 लड़के नशे में धुत मिर्चपुर की वाल्मीकि बस्ती से गुजर रहे थे। तभी वहां की एक फीमेल डॉग रूबी उन पर भौंकने लगी।
जाट जमींदार के लड़के राजिंदर पाली ने ईंट उठाई और रूबी को दे मारी। यह ईंट पास में सो रहे करण सिंह के भतीजे योगेश को लगी। योगेश ने इसका विरोध किया।
राजिंदर के साथ सोनू, मोनू और ऋषि नाम के लड़के थे। इन लोगों ने भी बहस शुरू कर दी। इतने में 15-20 जाट लड़के और आ गए और मारपीट पर उतारू हो गए। मारपीट के बाद जाट लड़के बुरा अंजाम भुगतने की धमकी देते हुए वहां से चले गए। इतने में अजीत सिंह नाम का एक जाट पुलिस कॉन्स्टेबल वाल्मीकि बस्ती में दाखिल हुआ, उसने वाल्मीकियों से पंचायत के लिए चलने को कहा।
अजीत के कहने पर करण सिंह और बुजुर्ग वीरभान सिंह माफी मांगने जाटों के पास पहुंचे, लेकिन वहां दोनों को बुरी तरह पीटा गया। इधर, करीब 50-60 जाट लड़कों ने वाल्मीकियों के घरों पर पत्थरबाजी की। करीब आधे घंटे बाद पुलिस आई और वाल्मीकियों को सुरक्षा देने की बात कहकर चली गई।
मिर्चपुर गांव नारनौंद पुलिस स्टेशन की सीमा में आता है। नारनौंद थाने के SHO विनोद कुमार काजल मिर्चपुर के एक जाट के करीबी थे, इसलिए बात इतने पर ही खत्म नहीं हुई।
अगले दिन यानी 20 अप्रैल को जाट समुदाय के लोग बड़ी तादाद में गांव में इकठ्ठा हुए। दलितों को उनके घर जलाने की धमकी दी गई। इस बीच खबर फैलाई गई कि वाल्मीकियों ने एक जाट लड़के पर हमला कर दिया है। इस दिन इससे ज्यादा कुछ नहीं हुआ, लेकिन जो होना था, उसकी तैयारी चल रही थी।
21 अप्रैल की सुबह करीब 7 बजे वाल्मीकि समुदाय के गुलाब सिंह को जाटों के मोहल्ले में पकड़कर मारा-पीटा गया। जैसे-तैसे गुलाब सिंह बचकर वहां से निकला और वाल्मीकि मोहल्ले में आकर चेतावनी दी कि आज कोई बड़ी अनहोनी हो सकती है। डरे-सहमे वाल्मीकियों ने पुलिस से मदद की गुहार लगाई तो थाने के SHO विनोद ने 4 कॉन्स्टेबल मिर्चपुर भेज दिए।
जब जाटों की भीड़ और बढ़ने लगी तो SHO विनोद खुद गांव आए। वह अपने साथ 4 और कॉन्स्टेबल और नारनौंद तहसील के नायब तहसीलदार जागेराम को भी लेकर आए। इस समय सुबह के 8 बज रहे थे। याचिका में आरोप लगाया गया है कि विनोद काजल और जागेराम ने वाल्मीकियों को समझौते की बैठक के लिए चौपाल पर बुलाया।
इसके बाद विनोद काजल और जागेराम ने जाटों को खुली छूट दे दी। कहा, ‘जो भी करना है, उसके लिए एक घंटे का समय है।’ करीब एक हजार जाटों ने बैठक के लिए आए वाल्मीकियों को घेर लिया और मारपीट की। इनमें करीब 35-40 जाट औरतें भी थीं।
पत्रिका ‘ओपन मैगजीन’ के मुताबिक,
इधर वाल्मीकि समाज के मर्द भीड़ से घिरे थे, उधर 100-150 जाट उनकी बस्ती पहुंच गए। इनके पास केरोसिन और पेट्रोल के डिब्बे, गंडासी, खेती किसानी में काम आने वाले ‘हथियार’ और लाठी-डंडे थे। जाटों ने ढूंढ-ढूंढकर उन वाल्मीकियों के घरों को आग लगा दी।
एक दलित महिला ने बाद में पत्रकारों को बताया था, ‘सबसे पहले उन्होंने सरकार से मिले हमारे पानी के टैंक तोड़ दिए, ताकि हम आग न बुझा सकें।’
एक घर में 17 साल की पोलियो से पीड़ित लड़की सुमन मौजूद थी। उसने अपनी ट्राईसाइकिल से बाहर निकलने की कोशिश की, लेकिन घर को बाहर से बंद करके उसे और उसके 60 साल के पिता ताराचंद को जिंदा जला दिया गया। सुमन का शव बाद में फायर ब्रिगेड को मिला, जबकि ताराचंद की मौत अस्पताल में हुई। उन्होंने दम तोड़ते हुए अपना बयान दर्ज करवाया।
फूलकली देवी और उनके पति चंदर सिंह ने साल 1996 में अपना मकान बनवाया था। चंदर घर पर ही जनरल स्टोर चलाते थे। सब कुछ जलकर राख हो गया। फूलकली ने बताया कि बेटी की शादी के लिए 25 हजार रुपए के जेवर और 50 हजार रुपए नकद रखे थे। जाट सब लूट ले गए। ये उत्पात सुबह 9 बजे से दोपहर साढ़े 12 बजे तक चला। हिंसा में वाल्मीकि समाज के करीब 50 लोग घायल हुए।
करण सिंह की शिकायत पर 21 अप्रैल को ही नारनौंद पुलिस स्टेशन में FIR नंबर 166 दर्ज हुई। पुलिस पर दबाव बढ़ा तो 29 जाटों को गिरफ्तार किया गया। साथ ही SHO विनोद को सस्पेंड कर दिया गया। हादसे के तीन दिन बाद 24 अप्रैल को मिर्चपुर के पशु चिकित्सालय में 43 खापों की एक महापंचायत हुई। गिरफ्तार किए गए जाटों को छोड़ने और SHO विनोद को बहाल करने की मांग की गई।
वाल्मीकि समुदाय ने कलेक्टर ऑफिस पर धरना देकर उन्हें दूसरी जगह रहने की जगह देने की मांग की। तीन दिनों में मिर्चपुर गांव के करीब एक दर्जन वाल्मीकि परिवारों ने गांव छोड़ दिया था। हरियाणा सरकार ने ऐलान किया कि मृतक ताराचंद के तीनों बेटों को सरकारी नौकरी और 25 लाख रुपए मुआवजा दिया जाएगा। सुमन के एक भाई को नौकरी का जॉइनिंग लेटर और उनकी मां को 16 लाख रुपए का चेक दिया गया।
इधर, मिर्चपुर के जाट खाप पंचायत बुलाकर वाल्मीकियों को धमकियां दे रहे थे और उन पर शिकायत वापस लेने का दबाव बना रहे थे। आखिरकार करीब 150 दलित भागकर दिल्ली आ गए। इन लोगों ने दिल्ली में कनॉट प्लेस के पास एक वाल्मीकि मंदिर में शरण ली। घटना के बाद मिर्चपुर में CRPF के 75 जवान तैनात कर दिए गए। ये दिसंबर, 2016 तक गांव में रहे। इसके बाद जब हालात कुछ सामान्य हुए तो जिम्मेदारी स्थानीय पुलिस को दे दी गई।
मिर्चपुर कांड ने कैसे बदली हरियाणा की राजनीति
मिर्चपुर कांड के समय हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार थी। वरिष्ठ पत्रकार मनोज ठाकुर कहते हैं, ‘दलितों के खिलाफ मिर्चपुर जैसी हिंसा के मामले पहले भी हुए थे, लेकिन तीन वजहों से इस मामले ने तूल पकड़ा। पहली वजह वेद पाल तंवर राजपूत नेता थे। उन्होंने शुरुआत में मानवीय नजरिए से वाल्मीकियों को शरण दी, बाद में उन्हें इसमें राजनीतिक फायदा नजर आने लगा।’
इसलिए वह इस पूरे मामले में बेहद सक्रिय रहे। बाद में उन्होंने विधानसभा चुनाव भी लड़ा, लेकिन हार गए। दूसरी वजह थी कि उस समय मीडिया ने अच्छी भूमिका निभाई, जिसके चलते दिल्ली तक मामला गरमा गया। तीसरी वजह थी कि हरियाणा कांग्रेस के कई नेता हुड्डा के खिलाफ थे। कुमारी शैलजा जैसे कई नेताओं ने इस मामले में खुलकर बयान दिए। ‘
राहुल गांधी 29 अप्रैल 2010 को अचानक मिर्चपुर पहुंचे। मनोज ठाकुर कहते हैं,
राहुल को भी हुड्डा पर भरोसा नहीं था। इसकी वजह यह थी कि हुड्डा जाट बिरादरी से आते थे, जबकि पीड़ित दलित थे और आरोपी ज्यादातर जाट थे। पुलिस में भी जाटों का दबदबा था। उस समय पत्रकार भी मिर्चपुर जाने से डरते थे।
यूपी की तब की सीएम मायावती ने भी इस मुद्दे को उठाया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस 60 सालों के अपने शासन में दलितों के साथ न्याय नहीं कर सकी। उन्होंने तब की राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल को भी पत्र लिखा।
दिल्ली में 10 मई 2010 को लोक जनशक्ति पार्टी के मुखिया रामविलास पासवान ने भी कुछ दलित संगठनों के साथ मिलकर जंतर-मंतर पर प्रदर्शन किया। पासवान ने हरियाणा में खाप पंचायतों को बैन करने की मांग की। हुड्डा के इस्तीफे और मिर्चपुर कांड की न्यायिक जांच की मांग भी की गई।
2 जुलाई को दिल्ली से 13 सांसदों की एक संसदीय समिति मिर्चपुर पहुंची। पीड़ितों ने समिति को बताया कि उन पर खाप पंचायत के जरिए समझौता करने और मुकदमा वापस लेने का दबाव बनाया जा रहा है। समिति के आने से पहले 9 मई, 4 जून और 15 जून को तीन खाप पंचायतें हो चुकी थीं।
वाल्मीकियों का कहना था कि वे अब किसी भी कीमत पर मिर्चपुर में नहीं रहना चाहते। जब समिति के लोग गांव से निकलने वाले थे तब जाटों की भीड़ ने उनका रास्ता रोकने की कोशिश की। समिति के लौटने के बाद भी 11 जुलाई को एक बड़ी खाप पंचायत हुई। इसमें वाल्मीकियों को बुलाकर डराया-धमकाया गया और मुकदमे वापस लेने का दबाव बनाया गया।
97 लोगों पर मुकदमा चला, 8 साल बाद सजा मिली
2010 में कांग्रेस सरकार ने पूर्व जज इकबाल सिंह की अध्यक्षता में जांच आयोग गठित किया। कुल 103 आरोपी गिरफ्तार किए गए। इनमें से पांच नाबालिग थे। 97 लोगों पर मुकदमा चला। दलितों को आशंका थी कि हरियाणा में उनके केस की निष्पक्ष सुनवाई नहीं होगी, इसलिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई।
इस पर फैसला देते हुए 8 दिसंबर 2010 को सुप्रीम कोर्ट ने मिर्चपुर केस, हिसार से दिल्ली की एक अदालत में शिफ्ट कर दिया। कोर्ट ने 20 जनवरी 2011 को मामले की जांच CBI से करवाने का आदेश दिया। इस बीच जनवरी में ही मिर्चपुर में जाटों और वाल्मीकियों में दोबारा मारपीट हो गई और 100 से ज्यादा परिवार गांव छोड़ कर हरियाणा जनहित कांग्रेस के नेता वेद पाल तंवर के हिसार की कैमरी रोड के फार्म हाउस में रहने चले गए।
इसके बाद आगे 8 साल में करीब 200 परिवारों ने मिर्चपुर गांव छोड़ दिया। 31 अक्टूबर 2011 को मिर्चपुर मामले में पहला फैसला आया। ट्रायल कोर्ट ने 97 में से 15 लोगों को दोषी करार दिया। 82 आरोपी बरी हो गए। इसके बाद मामला दिल्ली हाईकोर्ट गया।
24 अगस्त 2011 को कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इसमें कोई शक नहीं कि जाट समुदाय के लोगों ने वाल्मीकि बस्ती पर सोच-समझकर पूरी तैयारी के साथ’ हमला किया था। आरोपी यह जानते थे कि सुमन और उसके पिता ताराचंद घर के अंदर हैं, फिर भी उन्होंने घर में आग लगा दी।
मिर्चपुर कांड के बाद राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) ने मिर्चपुर का दौरा किया। आयोग के तब के अध्यक्ष बूटा सिंह से वाल्मीकि लोगों ने कहा कि वे अब मिर्चपुर में नहीं रहना चाहते। इसके बाद साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने तंवर फार्म हाउस में रह रहे लोगों का हाल जानने के लिए दो सदस्यीय कमेटी बनाई।
कमेटी के सामने एक पीड़ित ने कहा कि चाहे उसे पाकिस्तान जाकर गुलामी करनी पड़े, लेकिन मिर्चपुर किसी हालत में नहीं जाएंगे। इस कमेटी की सिफारिश थी कि मिर्चपुर के दलितों को एक टाउनशिप बनाकर कहीं और बसाना जरूरी है। बाद में हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर सरकार ने अप्रैल, 2018 में ढूढ़र गांव में ‘दीनदयालपुरम’ नाम से टाउनशिप बनाकर 256 लोगों को प्लॉट दिए जाने का ऐलान किया।
2018 में हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर हिसार के मिर्चपुर के दलित परिवारों के लिए पुनर्वास टाउनशिप की आधारशिला रखते हुए।
2018 में हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर हिसार के मिर्चपुर के दलित परिवारों के लिए पुनर्वास टाउनशिप की आधारशिला रखते हुए।
अगस्त, 2018 के अपने फैसले में हाईकोर्ट ने कहा,
इस मामले में साफ है कि जाट समुदाय के लोगों की भीड़ वाल्मीकि समुदाय की संपत्तियों को आग लगाने और उनके खिलाफ हिंसा के उद्देश्य से इकट्ठा हुई थी। भीड़ पत्थर, लाठी, गंडासे से लैस थी। भीड़ का मकसद वाल्मीकि समुदाय को सबक सिखाना था।
जस्टिस एस मुरलीधर और जस्टिस आईएस मेहता की बेंच ने यह भी कहा कि वाल्मीकि समुदाय के जिन लोगों ने मिर्चपुर में ही रहने का फैसला किया, उन्होंने कानूनी कार्रवाई में साथ नहीं दिया। जिन दलितों ने वापस मिर्चपुर न जाने का फैसला किया, उन्होंने ही अभियोजन पक्ष का साथ दिया।
इससे मिर्चपुर के दलितों का डर साफ है, जिसका एहसास उन्हें अभी भी हो रहा होगा। कोर्ट ने दलितों को अलग टाउनशिप में बसाने के सरकार के फैसले पर भी सवाल उठाया। बेंच का कहना था कि किसी को अलग-थलग कर देना समानता के मूल अधिकार के खिलाफ है।(लेखक: शिवेंद्र गौरव)
सौजन्य:दैनिक भास्कर
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