‘बुलडोज़र एक्शन’ पर सुप्रीम कोर्ट की रोक, तोड़फोड़ की कार्रवाईयों पर क्यों उठते रहे सवाल? – ग्राउंड रिपोर्ट
बुलडोज़र के ज़रिए प्रॉपर्टी गिराए जाने के ख़िलाफ़ दायर याचिकाओं की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने देश में इस क़िस्म की कार्रवाइयों पर रोक लगा दी है|
देश की सबसे बड़ी अदालत ने अपने अंतरिम आदेश में कहा है कि कुछ जगहों में अतिक्रमण पर ये रोक लागू नहीं होगी. जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि ये आदेश सार्वजनिक सड़कों, फुटपाथों, रेलवे लाइनों और जलाशयों पर हुए अतिक्रमण पर लागू नहीं होगा.
मामले की अगली सुनवाई एक अक्तूबर को होगी. जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने पिछली सुनवाई में भी राज्य सरकारों के ‘बुलडोज़र एक्शन’ पर सवाल खड़े किए थे.
इस मामले में जमीयत उलेमा ए हिंद की तरफ़ से फ़ाइल की गई याचिका में कहा गया था कि राज्य सरकारें बुलडोज़र का इस्तेमाल अल्पसंख्यक और हाशिए पर चल रहे लोगों को डराने के लिए कर रहीं है. जहां प्रशासन बिना सुनवाई के और बिना अपील का टाइम दिए मकानों का गिरा रहा है. इस तरह की कार्रवाई कर रहा है जो ग़ैर क़ानूनी है और न्यायिक व्यवस्था के ख़िलाफ है.
उत्तर प्रदेश सरकार के इस बुलडोज़र एक्शन पर विपक्ष और कई विशेषज्ञों ने भी आरोप लगाया था कि इसके ज़रिए सरकार अल्पसंख्यकों को निशाना बना रही है.
इसी मामले पर सुनवाई करते हुए बुधवार चार सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, “कोई व्यक्ति दोषी भी है तो क़ानून की निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना उसके घर को ध्वस्त नहीं किया जा सकता.”
कोर्ट ने ये भी कहा, “किसी का घर केवल इस आधार पर कैसे ढहाया जा सकता है कि वो किसी मामले में अभियुक्त है?”
हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि किसी भी इमारत को ढहाने की कार्रवाई इसलिए नहीं की गई है कि वो शख़्स किसी मामले में अभियुक्त था. हमने एफिडेविट के माध्यम से दिखाया है कि नोटिस काफ़ी पहले ही भेजा गया था.”
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के जावेद मोहम्मद का दो साल पहले दो मंज़िला मकान हुआ करता था, आज वहां मलबे का ढेर है जिसके आस-पास झाड़ियां उग आई हैं.
जावेद अब अपनी पत्नी के साथ एक किराए के मकान में रहते हैं और ख़ाली वक़्त में यहां आकर अपने पुराने मकान को याद करते रहते हैं.
जून 2022 में भारतीय जनता पार्टी की नेता नुपूर शर्मा की पैगंबर मोहम्मद पर आपत्तिनक टिप्पणी के विरोध में एक प्रदर्शन का आयोजन किया गया.
पुलिस का आरोप है कि इसके दौरान शहर के अटाला इलाके में हिंसा और पथराव की घटना हुई जिसमें जावेद मोहम्मद भी शामिल थे. हालांकि जावेद ने इस आरोप को गलत बताया और प्रदर्शन में शामिल होने की बात से भी इनकार किया.
लेकिन इसके बाद जावेद मोहम्मद के उसी दो मंज़िला मकान को बुलडोज़र से ढहा दिया गया.
‘मैंने जेल से टीवी पर अपना घर गिरते हुए देखा’
प्रयागराज
इमेज कैप्शन,जावेद मोहम्मद और उनकी पत्नी
प्रयागराज में अपने कमरे में बैठे जावेद मोहम्मद कहते हैं, “पहले मेरे पास पुलिस की तरफ़ से फ़ोन आया कि ‘अटाला में हालात बदतर हो रहे हैं, आप आ जाइये संभालिए.’ मैंने मना कर दिया. फिर लोकल थाने से फोन आया, ‘मैंने फिर वहां जाने से मना कर दिया.’ रात को मेरे घर पर पुलिस आई और हमें ले गई, फिर पुलिस लाइन ले गए. हमें जेल भेज दिया. अगले दिन हमने जेल में ही टीवी पर अपना घर गिरते हुए देखा.”
लेकिन जब जावेद के घर पर बुलडोज़र चला था तब प्रयागराज विकास प्राधिकरण (पीडीए) ने कहा था कि घर अवैध तरीके से बनाया गया था और मई के महीने में ही जावेद को नोटिस दिया गया था.
जावेद ने नोटिस मिलने की बात से इनकार किया. उनकी पत्नी परवीन फ़ातिमा ने घर ढहाने की कार्रवाई को अदालत में चुनौती दी है और यह मामला कोर्ट में चल रहा है.
जावेद ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि घर वैसे भी उनके नहीं बल्कि उनकी पत्नी के नाम पर है. जावेद ने अदालत में भी अपना पक्ष रखते हुए ये बात कही है.
जावेद के तोड़े गए मकान के पड़ोस में ही रहने वाले फ़ैज़ान बीबीसी से कहते हैं, “क्या कह सकते हैं? एक कम्युनिटी को टारगेट किया जा रहा है. इस मकान पर रात में नोटिस चिपकाया गया और अगले दिन ढहा दिया गया. सामान भी निकालने का मौका नहीं दिया गया.”
हालांकि प्रयागराज के तत्कालीन ज़िलाधिकारी संजय खत्री ने तब कहा था, “पीडीए ने अवैध निर्माण चिन्हित किए हैं और उस पर कार्रवाई की जा रही है. ये कार्रवाई भी उसी मुहिम के तहत की गई.”
हालांकि, जावेद के वकील केके रॉय ने प्रशासन पर आरोप लगाया है कि जावेद सामाजिक और राजनीतिक व्यक्ति हैं और इसलिए उन पर इस तरह की कार्रवाई की गई है.
उत्तर प्रदेश में कई ऐसी संपत्तियों पर बुलडोज़र चलाया गया है, जब संपत्ति के मालिक का नाम किसी विवाद या किसी आपराधिक मामले से जुड़ा था.
फ़तेहपुर में समाजवादी पार्टी नेता हाजी रज़ा के चार मंज़िला शॉपिंग कॉम्पलेक्स पर कुछ ही दिन पहले बुलडोज़र एक्शन हुआ था. हाजी रज़ा पर आरोप था कि उन्होंने लोकसभा चुनाव के दौरान कथित तौर पर पीएम मोदी के ख़िलाफ़ आपत्तिजनक टिप्पणी की थी.
जब ये कॉम्प्लेक्स गिराया जा रहा था तो फ़तेहपुर के एसपी ने बताया कि हिस्ट्रीशीटर की बिल्डिंग को गिराया जा रहा है. फ़तेहपुर के एसपी धवल जायसवाल ने कार्रवाई वाले दिन मीडिया से कहा था कि, “हाजी रज़ा डी-69 गैंग का सरगना है, और उसके अवैध निर्माण को चिह्नित किया गया है. अब उसको गिराया जा रहा है. हाजी रज़ा के ख़िलाफ़ 24 मुक़दमे हैं.”
लेकिन हाजी रज़ा के परिवार वालों ने कहा कि समाजवादी पार्टी से जुड़ा होने के कारण उन पर ये कार्रवाई की गई. इससे पहले उत्तर प्रदेश के बाहुबली नेता अतीक़ अहमद के कई क़रीबियों के घर पर साल 2023 के मार्च महीने में बुलडोज़र चलाए गए थे.
साल 2020 के जून महीने में गैंगस्टर विकास दुबे के घर पर बुलडोज़र चला था.
विकास दुबे के ख़िलाफ़ कई आपराधिक मामले दर्ज थे.
इसके पहले गैंगस्टर विकास दुबे और उनके साथियों को पकड़ने के लिए पुलिस कानपुर देहात ज़िले के बिकरु गांव पहुंची थी. इसमें दोनों तरफ़ से गोलीबारी हुई थी, जिसमें 8 पुलिसवालों की मौत हो गई थी. उसके बाद विकास दुबे फ़रार हो गए थे.
लेकिन न तो उत्तर प्रदेश इकलौता ऐसा राज्य है जहां बुलडोज़र का प्रयोग किया जा रहा है और न ही जावेद, हाजी रज़ा ऐसे इकलौते व्यक्ति हैं जिन्होंने अपनी आंखों के सामने अपनी संपत्ति पर बुलडोज़र चलता देखा हो.
मध्य प्रदेश के छतरपुर में हाजी शहज़ाद का निर्माणाधीन मकान 22 अगस्त को गिरा दिया गया.
आरोप है कि 21 अगस्त को मुस्लिम समुदाय के लोगों ने एक विवादित टिप्पणी के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया था. इस दौरान पुलिस को ज्ञापन देने पहुँची भीड़ ने कोतवाली पर पत्थरबाज़ी कर दी थी. भीड़ में हाजी शहज़ाद भी शामिल थे.
लेकिन हाजी शहज़ाद के घरवालों का कहना है कि शहज़ाद तो बीच-बचाव कर रहे थे.
शहज़ाद अभी जेल में हैं. उनकी बेटी फ़ातिमा खातून कहती हैं, “मेरे घर पर दो लोग आए, उसमें एक महिला पुलिस भी थी. उन्होंने हमसे पूछा कि कोई नया मकान बन रहा है तो हमने कह दिया कि हां. फिर वो हमें लेकर वहां से नए मकान पर चले गए. शाम को अधिकारी बुलडोज़र लेकर आ गए. मेरे बड़े पापा का और चाचा का घर भी गिरा दिया.”
फ़ातिमा दावा करती हैं कि उनके मकान को स्थानीय प्रशासन ने कभी भी अवैध नहीं बताया और ना ही कभी कोई नोटिस दिया गया.
वो कहती हैं कि उनके पिता के प्रशासन से अच्छे रिश्ते थे. वो स्कूली बच्चों के प्रोग्राम कराते थे, जिसमें आला अफसर भी आते थे, लेकिन इस घटना के बाद सबका रवैया बदल गया है.
वहीं उनकी पड़ोसी रुख़सार ने कहा, “जब घर ढहाने की कार्रवाई हो रही थी तो मोहल्ले वालों को भी घर से निकलने नहीं दिया गया कि कुछ सामान निकालने का मौका मिल जाता.”
लेकिन जिस दिन ये बुलडोज़र कार्रवाई हुई उस दिन छतरपुर के एसपी अगम जैन ने कहा था कि, “मकान अवैध था इसलिए गिराया जा रहा है. प्रशासन ने चिह्नित किया था. तक़रीबन 10 करोड़ की संपत्ति थी. सारी कार्रवाई नियमों के मुताबिक़ हुई.”
हाजी शहज़ाद के पक्ष में दिल्ली से वकील महमूद पराचा भी छतरपुर पहुंचे थे उन्होंने स्थानीय प्रशासन से इस पूरी कार्रवाई का वीडियो मांगा है.
वो दावा करते हैं कि क़ानून के मुताबिक़ ऐसे मामलों की वीडियोग्राफी कराई जानी ज़रूरी है.कांग्रेस ने बुलडोज़र राज की आलोचना की है, लेकिन कांग्रेस शासित राज्य तेलंगाना में कथित झील पर अतिक्रमण हटाने के नाम पर बुलडोज़र चला है.
जून में ही 43 एकड़ ज़मीन ख़ाली कराई गई है, जिसमें 164 ढांचे गिराए गए हैं. यह कार्रवाई हैदराबाद डिज़ास्टर रिस्पांस एंड एसटी प्रोटेक्शन एजेंसी ने की थी.
इस पर बीआरएस के नेता केटी रामाराव ने सवाल किया तो मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने बचाव करते हुए कहा कि झीलों के वैभव को फिर से वापस पाने के लिए किया जा रहा है.
दिल्ली में भी पुराने राजिंदर नगर में कोचिंग सेंटर में पानी भरने से हुई यूपीएससी की तैयारी कर रहे तीन छात्रों की मौत के बाद बुलडोज़र चलाया गया था.
सरकार बनाम विपक्ष
उत्तर प्रदेश सरकार के बुलडोज़र एक्शन की आलोचना करते हुए समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव ने कहा था, “सरकार निजी फ़ायदे के लिए बुलडोज़र का दुरुपयोग कर रही है. जिनसे बदला लेना है उन पर बुलडोज़र चलवा रही है. बुलडोज़र का दिमाग़ नहीं होता सिर्फ़ स्टीयरिंग व्हील होता है. उत्तर प्रदेश की जनता कब किसका स्टीयरिंग मोड़ दे कहा नहीं जा सकता. ”
बीबीसी
जिसके जवाब में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था, “बुलडोज़र पर हर किसी के हाथ फ़िट नहीं हो सकते. इसके लिए दिल और दिमाग़ दोनों चाहिए. बुलडोज़र जैसी क्षमता और दृढ़ प्रतिज्ञा जिसमें हो वही बुलडोज़र चला सकता है. दंगाइयों के सामने नाक रगड़ने वाले लोग बुलडोज़र के सामने वैसे ही पस्त हो जाएंगे.”
क्या है क़ानूनी प्रक्रिया
ऐसे ज़्यादातर मामलों में प्रशासन की दलील है कि बुलडोज़र का प्रयोग अवैध निर्माण के ख़िलाफ़ किया गया.
लेकिन सवाल ये भी उठता है कि अगर इमारत अवैध भी है तो उसे गिराने से पहले तयशुदा प्रक्रिया का पालन नहीं होना चाहिए? क्या रातों रात बुलडोज़र से घर ढहाया जा सकता है? कानूनविदों के मुताबिक़ घर गिराने से पहले जुर्माने का प्रावधान है?
लखनऊ में उच्च न्यायालय में वकील सायमा ख़ान कहती हैं, “आवासीय मकानों को गिराने से पहले उचित क़ानूनी प्रक्रिया का पालन आवश्यक है, जिसमें संबंधित लोगों को नोटिस देना और अपील करने का मौक़ा देना शामिल है. ऐसा करने से न्याय सुनिश्चित होता है और किसी के संपत्ति के अधिकार का उल्लंघन नहीं होता.”
सवालों के घेरे में बुलडोज़र?
मानव अधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक़, अप्रैल से जून 2022 के बीच असम, दिल्ली, गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की 128 प्रॉपर्टीज़ को सज़ा के तहत बुलडोज़र से ढहा दिया गया.
रिपोर्ट कहती है कि इन जगहों पर सांप्रदायिक तनाव के बाद ये कार्रवाई की गई. इससे कुल 617 लोग प्रभावित हुए|एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक़ इनमें से कई मामलों में निर्धारित क़ानूनी प्रक्रिया का भी पूरी तरह पालन नहीं किया गया|
ये बुलडोज़र कार्रवाई ज़्यादातर बीजेपी शासित प्रदेशों में हुई.
हाउस एंड लैंड राइट्स नेटवर्क ने बताया है कि 2023-2024 में तकरीबन 5 लाख लोग जबरन अपने घरों से बेदखल किए गए हैं, अब यह आंकड़ा बढ़ गया है, जिसमें अतिक्रमण और सौंदर्यकरण के अलावा इस तरह के मामले भी शामिल हैं.
सौजन्य:बीबीसी
नोट: यह समाचार मूल रूप सेwww.bbc.com/hind में प्रकाशित हुआ है|और इसका उपयोग पूरी तरह से गैर-लाभकारी/गैर-व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए विशेष रूप से मानव अधिकार के लिए किया गया|