महाराष्ट्र: भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान (FTII) पुणे के दलित छात्र ने शिक्षक पर लगाए जातिवादी भेदभाव और प्रताड़ित करने के आरोप, जानिए क्या है पूरा मामला?
छात्र प्रशान्त मोरे ने भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (फ़िल्म) के संयुक्त सचिव के नाम पत्र भेजा है, जिसमें उन्होंने पुणे के भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान (FTII) प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए हैं।
पुणे। महाराष्ट्र में पुणे के भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान (FTII) में एक गंभीर जातिवादी भेदभाव का मामला सामने आया है। प्रशांत मोरे, जो 2021 बैच के टीवी डायरेक्शन कोर्स के छात्र हैं, ने अपने शिक्षक डॉ. मिलिंद दामले के खिलाफ आरोप लगाए हैं कि वे जाति के आधार पर उन्हें निशाना बना रहे हैं और उनके काम को वेबजह रोकने का प्रयास कर रहे हैं।
छात्र ने इस मामले में करीब छहः महीने पहले एफटीआईआई के डायरेक्टर को पत्र लिखकर कार्रवाई की मांग की लेकिन आज तक शिक्षक डॉ. मिलिंद दामले के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई, छात्र का आरोप है कि उनपर कार्रवाई करने की बजाए संस्थान ने उनका अप्रत्यक्ष बचाव किया और उन्हें मामलों में नियम विरुद्ध एक पक्षीय जांच कर क्लीन चिट दे दी गई। हाल ही में छात्र ने उसके साथ हुये जातिगत, मानसिक प्रताड़ना के मामले में कार्रवाई को लेकर पुनः एक पत्र लिखा है। जिसमें उसने शिक्षक डॉ. मिलिंद दामले के खिलाफ जातिगत भेदभाव और प्रताड़न के मामले में उच्च स्तरीय जांच कर कार्यवाही करने की मांग की है।
छात्र ने भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (फ़िल्म) के संयुक्त सचिव के नाम पत्र भेजा है, जिसमें उन्होंने लिखा, “मैंने 13 दिसंबर 2023 को एक शिक्षक द्वारा जातिगत भेदभाव की लिखित शिकायत दर्ज की थी। FTII की ओर से लिखित में आश्वासन दिए जाने के बावजूद कि मामले को 15 दिनों के भीतर निपटा लिया जाएगा, बिना किसी समाधान के छह महीने बीत गए हैं। लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।” उन्होंने आगे लिखा, “इस तरह की देरी न केवल प्रशासन की विश्वसनीयता को कम करती है, बल्कि गंभीर शिकायतों को दूर करने के लिए संस्थान की प्रतिबद्धता को भी खराब तरीके से दर्शाती है।”
बाबा साहेब पर टिप्पड़ियां करने का आरोप
छात्र के शिकायती पत्र के मुताबिक, डॉ. दामले पर डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर के बारे में भी शर्मनाक टिप्पणी करने का आरोप है। छात्र का यह भी आरोप है, की इन टिप्पणियों के आलोक में उन्हें क्लीन चिट देने का प्रशासन का निर्णय उन्हें एफटीआईआई परिसर में होने वाले जातिगत अत्याचारों में भागीदार बनाता है।
छात्र का कहना है, “डॉ. दामले ने मुझे बार-बार जाति संबंधी मुद्दों पर लिखने से हतोत्साहित किया है, जो न केवल जातिगत अत्याचार है, बल्कि स्वतंत्र अभिव्यक्ति के मेरे मौलिक अधिकार का दमन भी है।”
जानिए क्या है पूरा मामला?
दलित छात्र मोरे ने आरोप लगाया है कि डॉ. दामले, जो इस कोर्स के एचओडी भी हैं, ने उन्हें बार-बार जातिगत मुद्दों पर काम करने से मना किया और उनके कार्यों पर आपत्तिजनक टिप्पणियाँ कीं। मोरे के द्वारा की गई शिकायत के अनुसार, जब उन्होंने जाति आधारित विषयों पर कहानियाँ लिखने की कोशिश की, तो डॉ. दामले ने उन पर दबाव डाला कि वे अन्य विषयों पर ध्यान दें। मोरे ने उदाहरण देते हुए बताया कि जब उन्होंने एक काल्पनिक कहानी प्रस्तुत की, जिसमें जातीय अत्याचार की समस्या को उजागर किया गया था, तो डॉ. दामले ने उनकी कहानी के विचार पर सवाल उठाया और उन्हें अन्य विषयों पर लिखने की सलाह दी।
इसके अलावा मोरे ने कहा कि उनके मल्टी-कैमरा मॉड्यूल और अंतिम अभ्यास के दौरान भी डॉ. दामले ने जातिगत मुद्दों पर काम करने से मना किया और उनकी परियोजनाओं में बाधा डाली। मोरे ने यह भी आरोप लगाया कि डॉ. दामले ने अन्य छात्रों के बीच उनके खिलाफ पूर्वाग्रह फैलाया, जिससे उनके काम को फिल्म फेस्टिवल्स में भेजने के अवसर को प्रभावित किया गया।
‘मेरे लिए आत्मसम्मान की लड़ाई’
“दलित छात्र प्रशांत मोरे ने द मूकनायक प्रतिनिधि से बातचीत में कहा, की मेरे लिए यह आत्मसम्मान की लड़ाई है। यदि में उच्च शिक्षा प्राप्त करने जे बाद भी अपने हक-अधिकारों से वंचित रहा तो मेरे जैसे अन्य छात्र भी भविष्य में जातिवादी मानसिकता से ग्रसित लोगों के शिकार बनेंगे।”
“एफटीआईआई जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में आकर भी मुझे एक शिक्षक द्वारा भेदभाव का सामना करना पड़ा, जो न केवल शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित करता है बल्कि मेरे आत्मसम्मान पर भी असर डालता है। ऐसे शिक्षक पर हर हाल में कार्यवाही होना चाहिए।”
यह मामला FTII में जातिवाद और भेदभाव के मुद्दों पर एक नई चर्चा को जन्म देता है। यह कोई पहला मामला नहीं जब किसी छात्र को उसकी जाति के कारण परेशान किया गया हो। अक्सर ऐसे मामले देश के हर राज्य से सामने आते रहते हैं। लेकिन सवाल यह सवाल उठाता है कि क्या फिल्म और टेलीविजन शिक्षा के क्षेत्र में समानता और समावेशिता को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त प्रयास किए जा रहे हैं। दलित छात्र मोरे का मामला इस बात की ओर इशारा करता है, कि कैसे जातिगत पूर्वाग्रह और भेदभाव आज भी उच्च शिक्षा के क्षेत्रों में मौजूद हैं, वह भी उन क्षेत्रों में जहां समाज को उनके अंदर व्याप्त कुरीतियों को उजागर करने के लिए काम किया जाता हो। वहीं इस मामले पर हमने FTII के अधिकारियों का पक्ष जानने के लिए प्रशासनिक अधिकारी के ऑफिस में कॉल किया लेकिन उनसे बात नहीं हो सकी।
सौजन्य :मूकनायक
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