आर्थिक मोर्चे पर ‘तरक्की’ के बावजूद शेख़ हसीना के हाथ से कैसे फिसल गई सत्ता?
विश्व बैंक: बांग्लादेश ने ग़रीबी को कम करने में टिकाऊ प्रगति की है. सतत आर्थिक विकास से इसमें मदद मिली है…ये तरक्की और विकास की एक प्रेरक कहानी है, जिसमें साल 2031 तक एक उच्च मध्य-आमदनी वाला देश बनने की आकांक्षा है|
ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूशन: बांग्लादेश हाल के वर्षों में एशिया की सबसे उल्लेखनीय और अप्रत्याशित सफलता वाली कहानियों में से एक है|
बांग्लादेश सरकार: हम दुनिया की सबसे तेज़ गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक हैं. एक दशक से अधिक समय से तेज़ी से विकास करते हुए बांग्लादेश अगला एशियन टाइगर बनने की राह पर है|
एशियाई विकास बैंक: बांग्लादेश साल 2026 में सबसे कम विकसित देशों के समूह से आगे बढ़ने की राह पर है, लेकिन इस बदलाव में चुनौतियां भी हैं.
आईएमएफ़: बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था कई चुनौतियों को पार करके आगे बढ़ रही है. यहां तक कि मुश्किल हालात में भी, विकास की गाड़ी मौटे तौर पर पटरी पर ही है|
बांग्लादेश के घटनाक्रम से सबक
बांग्लादेश में शेख़ हसीना की सरकार साल 2009 से सत्ता में थी. अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर नई ऊंचाइयों का श्रेय काफ़ी हद तक इसी सरकार को जाता है.
लेकिन बीते कुछ दिनों में बांग्लादेश के नाटकीय घटनाक्रम ने एक सवाल को जन्म दिया है और वो सवाल यह है कि आर्थिक मोर्चे पर बेहतर प्रदर्शन के बावजूद सत्ता के प्रति लोगों में गुस्सा क्यों था|
वो कौन से राजनीतिक सबक हैं, जो बांग्लादेश के इस घटनाक्रम से लिए जा सकते हैं? इसे समझने के लिए हमने कई विश्लेषकों से बात की. साथ ही कई संगठनों के आंकड़ों का जायज़ा लिया.
डॉक्टर सलीम रेहान, ढाका यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं. उन्होंने बीबीसी से बातचीत में कहा, “मैं इस सरकार के आर्थिक प्रदर्शन को कोविड से पहले और कोविड के बाद, मोटे तौर पर दो हिस्सों में रखूंगा.”
“हां ये सच है कि इस सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था में सुनहरे दौर की शुरूआत की है. ग़रीबी उन्मूलन का काम जारी था, निवेश आ रहा था और विकास की दर भी बढ़ रही थी. लेकिन अर्थव्यवस्था के साथ ढांचागत दिक्कतें हैं, जैसे डिफॉल्ट लोन रेट ज्यादा है और टैक्स बेस बहुत कम है.”
उनका कहना है, “इन वर्षों में सरकार की अपनी राजनीतिक वैधता कम होती गई. इसमें चुनावों और विपक्ष पर हमला करने के लिए सत्ता के दुरुपयोग के आरोप भी शामिल हैं. फिर भी, चूंकि अर्थव्यवस्था अच्छा कर रही थी, लोग उतने नाराज़ नहीं थे.”
वैसे एक तथ्य ये भी है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुताबिक़, बांग्लादेश का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) कुछ वर्षों के लिए भारत से भी अधिक हो गया था. इस ट्रेंड में हालिया समय में ही बदलाव आया है|
प्रोफेसर रेहान के मुताबिक, “यहां तक कि जब कोविड का दौर आया, तब भी इस सरकार का प्रदर्शन बहुत बुरा नहीं था. तब काम इस तरह से किया गया कि समाज के साथ-साथ वैक्सीनेशन प्रोग्राम को भी आर्थिक पैकेज मिला. ये सब बख़ूबी हुआ और सरकार को इसका श्रेय भी मिला.”
“ये साल 2021 के आख़िर और साल 2022 के शुरुआत का समय था, जब महामारी का दौर अपने ख़ात्मे की ओर बढ़ने के बावजूद आर्थिक संकेतक गति नहीं पकड़ रहे थे. महंगाई बढ़ी हुई थी और निर्यात भी अच्छा नहीं हो रहा था.”
इस दौरान बांग्लादेश का विदेशी मुद्रा भंडार कम होता जा रहा था और रोज़गार के अवसर घटते जा रहे थे.”
“सरकार इसके लिए रूस-यूक्रेन संकट को ज़िम्मेदार बता रही थी. लेकिन लोगों को सरकार की ये बात जंची नहीं, ख़ासतौर पर तब, जब रोज़मर्रा की ज़रूरी चीज़ें महीने-दर-महीने महंगी हो रही थीं.”
प्रोफेसर रेहान बांग्लादेश के थिंक टैंक साउथ एशियन नेटवर्क ऑन इकॉनोमिक मॉडलिंग (एसएएनईएम) में एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर भी हैं.
वो कहते हैं, “एक तरफ़ जहां सरकार अपनी राजनीतिक वैधता खो रही थी, उसी दौरान आर्थिक प्रदर्शन से उसे जो मजबूती मिली थी, वही मजबूती अब ख़त्म होती जा रही थी और छात्र आंदोलन आरंभ होने के पीछे ये एक प्रमुख वजह थी.”
रेटिंग से पता चल रही थी वित्तीय सेहत
कोविड महामारी से पहले, ‘मूडीज़’ ने बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था को श्रीलंका के साथ एशिया प्रशांत क्षेत्र में ‘नेगेटिव’ की श्रेणी में रखा था.
ढाका में मौजूद अर्थशास्त्री, डॉक्टर अल महमूद टीटूमीर ने बीबीसी को बताया कि बांग्लादेश के आर्थिक मॉडल की अपनी सीमाएं थीं और वो अपनी ‘सीमा’ पर पहुंच गया था|
उन्होंने कहा, “बांग्लादेश के विकास की कहानी में खपत की अहम भूमिका थी. देश के कपड़ा उद्योग और विदेशों में रहने वाले अपने नागरिकों की तरफ़ से आने वाले धन से हमें पेमेंट क्राइसिस से बचने में मदद मिली.”
“लेकिन इकॉनमी में इससे मिलने वाली मदद की भी सीमाएं थीं और हम उस सीमा तक पहुंच चुके थे. जहां तक इकॉनमी में निवेश और रोज़गार के अवसर पैदा करने की बात थी, तो ऐसा वाकई कभी हुआ नहीं. अधिकतर जॉब, इनफॉर्मल सेक्टर में थे.”
डॉक्टर अल महमूद टीटूमीर का ये भी कहना है कि क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों पर ग़ौर करने से पता चलेगा कि वो बांग्लादेश की रेटिंग ‘लगातार कम’ करते जा रहे थे.
उनकी ये बात ग़लत भी नहीं है. सितंबर 2023 में रेटिंग एजेंसी फ़िच ने बांग्लादेश की लांग-टर्म फॉरेन करेंसी रेटिंग को डिफॉल्ट से नेगेटिव में बदल दिया था. इससे पता चलता है कि बांग्लादेश पर बाहरी झटकों का जोखिम बढ़ता जा रहा था.
इमेज कैप्शन,बीते कुछ साल में बांग्लादेश के उपर विदेशी कर्ज़ काफ़ी बढ़ा है|
इसी साल जून में क्रेडिट रेटिंग एजेंसी फ़िच ने बांग्लादेश की रेटिंग बी पॉजिटिव से बीबी नेगेटिव कर दी थी, जिससे पता चलता है कि देश का ‘एक्सटर्नल बफ़र्स’ कमज़ोर हुआ है, जो हालिया नीतिगत सुधारों के बावजूद चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है.
इससे बांग्लादेश की हालत और नाज़ुक हुई. साल 2022 से जो नीतिगत फ़ैसले लिए गए, वो फॉरेन एक्सचेंज रिज़र्व में गिरावट को रोकने के लिए काफी नहीं थे.
ढाका यूनिवर्सिटी में डेवेलपमेंट स्टडीज़ के प्रोफेसर, डॉक्टर रशीद बांग्लादेश के लोगों की हालत का ज़िक्र करते हुए कहते हैं, “यहां महंगाई बढ़ी, लोकल करेंसी की कीमत बुरी तरह गिरी, जिससे आयात बहुत महंगा पड़ने लगा.”
“बीते कुछ साल में बांग्लादेश का कर्ज़ तीन गुना बढ़ गया और कमज़ोर करेंसी से उसकी मुश्किलें और बढ़ती ही चली गईं. सोशल सेफ्टी नेट के तौर पर भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली है. लेकिन यहां बांग्लादेश में इस मामले में राजनीति होती है.”
“यहां जिन लोगों को लाभ मिलता है, वो राजनीति की वजह से मिलता है. उसके लिए आर्थिक और सामाजिक ज़रूरतों पर विचार करना ज़रूरी नहीं होता. तो जब यहां देश की आमदनी नहीं बढ़ रही थी, तो उस हालात में मदद करने की क्षमता भी नहीं बढ़ रही थी.”
युवाओं में बढ़ता असंतोष
इमेज कैप्शन,बांग्लादेश में हुए विरोध प्रदर्शनों में छात्रों की अहम भूमिका रही|
बांग्लादेश में आबादी का बड़ा हिस्सा युवाओं का है. सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि बांग्लादेश की 45 प्रतिशत आबादी 24 साल से कम उम्र की है.
इसी तरह 70 प्रतिशत आबादी 40 साल से कम उम्र की है. लगभग 23 लाख युवा हर साल रोज़गार की तलाश में निकल पड़ते हैं|
डॉक्टर रशीद के मुताबिक, “आबादी में युवाओं की इस भागीदारी का हमें लाभ मिलना चाहिए, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. इससे कई युवाओं को लगने लगा कि इस देश में उनका कोई भविष्य है भी या नहीं. ऐसे में जिन युवाओं ने देश छोड़ा, वो शायद ही कभी वापस आना चाहेंगे.”
बांग्लादेश में जिन दो विश्लेषकों से हमने बात की, उन दोनों ने ही देश में विरोध-प्रदर्शनों की एक और वजह बताई|
डॉक्टर रेहान कहते हैं, कुछ लोन डिफॉल्टर्स अपने लोन का स्वरूप बदलवाते रहे. भ्रष्टाचार चरम पर था और देश का धन, विदेशों में ले जाने के बारे में मीडिया की ख़बरों से लोगों का गुस्सा और बढ़ गया|
वहीं डॉक्टर रशीद कहते हैं, “संसाधनों का लाभ देश के लोगों को नहीं, बल्कि शक्तिशाली व्यक्तियों को मिल रहा था. हमने क़ानून बनाने वालों और पैसा बनाने वालों के बीच वो तालमेल देखा, जो नहीं होना चाहिए था.”
फिर जनवरी 2023 में काफ़ी बातचीत के बाद अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष बांग्लादेश को 4.7 अरब डॉलर की आर्थिक मदद देने पर राज़ी हुआ, ताकि देश की वित्तीय सेहत को और ख़राब होने से बचाया जा सके|
विश्लेषकों का कहना है कि देश की अर्थव्यवस्था में सुधार के इरादे से किए गए इन उपायों से अभी तक वांछित परिणाम नहीं मिले है.
लेकिन बदलाव के कुछ संकेत फिर भी नज़र आते हैं|
बीते सोमवार को ढाका स्टॉक एक्सचेंज मार्केट में 3.77 प्रतिशत की बढोत्तरी दर्ज हुई जो बीते तीन साल में सर्वाधिक है. चिटगांव स्टॉक एक्सचेंज भी यही रुझान देखने को मिला|
जानकारों की नज़र में इसकी वजह ये है कि नई उम्मीद जागी है और बेहतर प्रशासन की संभावनाएं दिख रही हैं|
सौजन्य :बीबीसी
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