प्रेस क्लब ने महिला पत्रकार के ख़िलाफ़ पुलिस कार्रवाई का विरोध किया
प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने नवभारत टाइम्स की पत्रकार पूनम पांडे के ख़िलाफ़ पुलिस कार्रवाई की निंदा की, जिन्हें 29 जुलाई शाम दिल्ली के कर्तव्य पथ के पास एक प्रदर्शन को कवर करने के लिए हिरासत में लिया गया था|
नई दिल्ली: प्रेस क्लब ऑफ इंडिया (पीसीआई) ने मंगलवार को हिंदी दैनिक ‘नवभारत टाइम्स’ की पत्रकार पूनम पांडे के खिलाफ पुलिस कार्रवाई की निंदा की है. पांडे को सोमवार शाम दिल्ली के कर्तव्य पथ के पास एक प्रदर्शन को कवर करने के लिए हिरासत में लिया गया था
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, एक बयान में कहा गया, ‘पीसीआई प्रबंधन, पत्रकार बिरादरी की ओर से इसमें शामिल कर्मियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई और भविष्य में पत्रकारों के खिलाफ किसी भी तरह की मनमानी को रोकने के लिए सुरक्षा कर्मियों पर सख्ती की मांग करता है.’
पीसीआई ने कहा कि पूनम पांडे, जो साउथ ब्लॉक से अपने कार्यालय लौट रही थीं जब वे महिला आरक्षण की मांग कर रही महिला कांग्रेस कार्यकर्ताओं के प्रदर्शन को कवर करने के लिए रास्ते में रुकी थीं.
पूनम पांडे. (फोटो साभार: पांडे की इंस्टाग्राम से)
बयान में कहा गया, ‘हालांकि, प्रदर्शनकारियों को नियंत्रित करने वाले पुलिसकर्मियों ने उन्हें विरोध प्रदर्शन को शूट करने से रोका और बाद में एक पत्रकार के रूप में अपनी पहचान साबित करने और अपना पहचान पत्र दिखाने के बावजूद प्रदर्शनकारियों के साथ उन्हें घेर लिया गया.’
पीसीआई ने कहा कि पत्रकारिता कोई अपराध नहीं है, लेकिन पत्रकारों को चुप कराना निश्चित रूप से लोकतंत्र के खिलाफ अपराध है, किसी महिला पत्रकार को उनके दायित्वों का पालन करने के लिए डराने और हिरासत में लेने तथा शारीरिक बल का उपयोग करके उसे घेरने के मामले में सुरक्षाकर्मियों ने जो किया, उसका असर भयावह हो सकता है|
पीसीआई ने कहा, ‘यह कृत्य वर्तमान सत्ता के स्वतंत्र प्रेस के प्रति रवैये की गवाही है. प्रेस क्लब प्रबंधन स्वतंत्र न्यायिक जांच की मांग करता है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या सुरक्षाकर्मियों को उन घटनाओं को कवर करने वाले पत्रकारों को निशाना बनाने का निर्देश दिया गया है, जो सत्ता में बैठे लोगों के लिए परेशानी का कारण बन सकती हैं.’
वहीं, अखिल भारतीय महिला कांग्रेस, जिसके विरोध प्रदर्शन को पांडे कवर कर रही थीं, ने भी पुलिस की कार्रवाई की निंदा करते हुए एक बयान जारी किया|
उसने अपने बयान में कहा, ’29 जुलाई को नारी न्याय आंदोलन के विरोध प्रदर्शन के दौरान महिला कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया गया, जिसमें उन्हें घसीटना और उनके साथ दुर्व्यवहार करना शामिल था.’
बयान में आगे कहा कि चिंताजनक बात यह है कि नवभारत टाइम्स की पत्रकार पूनम पांडे को भी हिरासत में लिया गया, उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया और कर्तव्य पथ पर प्रदर्शन को कवर करने के दौरान उन्हें पत्रकारीय कर्तव्यों का पालन करने से रोका गया. यह घटना प्रेस की स्वतंत्रता पर सीधा हमला है.
एडिटर्स गिल्ड ने आपराधिक क़ानूनों के पत्रकारों के ख़िलाफ़ दुरुपयोग की आशंका जताई
इसी बीच, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (ईजीआई) ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर नए आपराधिक कानूनों पर चिंता व्यक्त की है. गिल्ड ने पत्रकारों के खिलाफ आपराधिक कानूनों का दुरुपयोग कर उत्पीड़न और धमकी के तौर पर इस्तेमाल करने की आशंका भी जताई है|
द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, गिल्ड ने अपने पत्र में यह भी आशंका व्यक्त की कि नए कानून, कानून प्रवर्तन एजेंसियों की शक्तियों का और बढ़ाएंगे। इसने पत्रकारिता के काम के संदर्भ में पत्रकारों के खिलाफ आपराधिक शिकायत दर्ज किए जाने पर उनके लिए अतिरिक्त सुरक्षा की ज़रूरत पर जोर दिया|
ज्ञात हो कि इसी महीने से भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) ने क्रमशः ब्रिटिश कालीन भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह ली है|
पत्र में कहा गया है, ‘हम विशेष रूप से इन मुद्दों को इसलिए उठा रहे हैं क्योंकि हमें डर है कि इन सभी प्रावधानों का पत्रकारों के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकता है, जैसा कि अतीत में आईपीसी और सीआरपीसी के तहत हुआ है. इसलिए गिल्ड इस दृष्टिकोण से आपराधिक कानूनों की गहन समीक्षा करने का आग्रह करता है. हम इस संबंध में हमारे जैसे संगठनों के साथ परामर्श करने का सुझाव देते हैं.’
पत्र में कहा गया है, ‘हमारा यह भी मानना है कि जिस तरह से आपराधिक कानूनों का इस्तेमाल पत्रकारों के खिलाफ उत्पीड़न और धमकी के साधन के रूप में किया गया है, उसके मद्देनजर एफआईआर दर्ज करने में पत्रकारिता संबंधी अपवाद का एक वैध मामला है.’
पत्र में कहा गया है, ‘हम दोहराते हैं कि यह सभी दलों की सरकारों के तहत होता रहा है. इसलिए हम दृढ़ता से महसूस करते हैं कि किसी पत्रकार के खिलाफ एफआईआर के रूप में आपराधिक शिकायत दर्ज करने से पहले उनके द्वारा किए गए पत्रकारिता के काम के संदर्भ में, अतिरिक्त समीक्षा होनी चाहिए. हमारा विश्वास है कि प्रेस/मीडिया के सदस्यों के खिलाफ़ उनके कर्तव्य निर्वहन के दौरान किए गए कामों के लिए सजा को विनियमित करने के लिए गहन परामर्श और कुछ दिशानिर्देश तैयार करने की आवश्यकता है.’
गिल्ड ने एक ऐसी व्यवस्था का भी सुझाव दिया है जिसके तहत मीडिया के किसी सदस्य के खिलाफ ऐसी किसी शिकायत की समीक्षा एक उच्च पदस्थ पुलिस अधिकारी द्वारा की जाए तथा उसे भारतीय प्रेस परिषद के संज्ञान में लाया जाए ताकि इस बारे में राय ली जा सके कि क्या शिकायत/सूचना की आगे की जांच, मीडिया के सदस्य के रूप में कथित अपराधी की पेशेगत स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आज़ादीको प्रभावित करेगी|
पत्र में कहा गया है कि मीडिया की स्वतंत्रता, फ्री स्पीच और अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार का एक पहलू है, जिसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत संरक्षित किया गया है और मीडिया के सदस्य नागरिकों की आंख-कान हैं|
पत्र में कहा गया है, ‘स्वतंत्र प्रेस लोकतंत्र की पहचान है और अपने कर्तव्य के दौरान किए गए कार्यों के लिए उसे झूठे अभियोजन से संरक्षण मिलना चाहिए.’
इसके अलावा, गिल्ड ने संसद के भीतर पत्रकारों की पहुंच पर नए प्रतिबंधों की भी निंदा की|
गिल्ड ने मंगलवार को एक्स पर एक पोस्ट में कहा, ‘हम लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति से अपनी पिछली मांग दोहराते हैं, जिसमें सदन की कार्यवाही की रिपोर्टिंग करने से पत्रकारों पर प्रतिबंध हटाने का आग्रह किया गया है.’
सोमवार को पत्रकारों, मीडिया फोटोग्राफरों और टीवी कैमरा क्रू ने मीडिया पर बढ़े प्रतिबंधों के खिलाफ संसद परिसर के अंदर विरोध प्रदर्शन किया. लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने बजट चर्चा के दौरान सदन में इस मुद्दे को उठाया था और स्पीकर ओम बिरला से पत्रकारों को उनके ‘पिंजरे’ से ‘मुक्त’ करने का आग्रह किया था|
सौजन्य:द वायर
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